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जिन्हें हम-आप देहाती कहते हैं, इस दिवाली उनकी जागरूकता भी देख लीजिए

    • अनुराग तिवारी
    • Updated: 16 अक्टूबर, 2017 08:44 PM
  • 16 अक्टूबर, 2017 08:44 PM
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इस दिवाली बनारस की ये महिलाएं जो कर रही हैं वो निश्चित तौर पर तारीफ के काबिल है. यदि समाज इनसे सबक ले ले तो वाकई प्रदूषण जैसी समस्या से हमें काफी हद तक निजात मिल सकती है और हम एक सुखी जीवन जी सकते हैं.

गांव में रहने वाले जब शहर आते हैं तो अपने पहनावे और व्यवहार के लिए अक्सर ‘देहाती’ कहकर बुलाए जाते हैं. अब इन्हीं ‘देहातियों’ ने बीड़ा उठाया है, शहर वालों को जागरूक करने का. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के गांवों की रहने वाली महिलायें शहर में इको-फ्रेंडली दिवाली के लिए जागरूकता अभियान छेड़े हुए हैं. इस अभियान के जरिए वे न केवल लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रही हैं, बल्कि दिवाली पर चाईनीज सामान का बहिष्कार का झंडा भी बुलंद किये हुए हैं.

अपनी तरह का एक अनोखा सन्देश दे रही हैं बनारस की ये महिलाएं

रविवार को युवाओं की संस्था होप वेलफेयर की प्रेरणा से बनाए गए ग्रीन ग्रुप की महिलाएं हरी साड़ी और पैरो में हवाई चप्पल पहने ब्रांडेड जूते और कपड़े पहनने वालों से मिलीं. उनका उद्देश्य था शहर के लोगों को इस दिवाली पर गांवों में बने इको-फ्रेंडली दिए और मोमबत्तियां इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर सकें. महिलाओं का कहना था कि अगर शहर वाले गांव में बने सामानों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें तो गांवों में ही रोजगार के अवसर बढ़ जाएंगे. साथ ही बंद पड़े लघु और कुटीर उद्योग पर पड़े ताले खुल जाएंगे जिससे गाँवों से शहर की ओर हो रहा पलायन रुक जाएगा.

जब इस ग्रीन ग्रुप से जौनपुर से सपरिवार सिगरा स्थित मॉल में घूमने आए संदीप गुप्ता का सामना हुआ तो उनकी पत्नी ने ग्रीन ग्रुप की इस पहल की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि अब तक ऐसी मुहीम केवल सोशल मीडिया पर चल रही थी. सिर्फ सोशल मीडिया पर आंदोलन कर स्वदेशी का प्रयोग, मिट्टी के समान का प्रयोग करने की सीख देने से काम नहीं चलेगा बल्कि इसे जमीनी स्तर पर उतारना होगा. उनके मुताबिक ग्रीन ग्रुप की महिलाओं की तरह काम करने से ही समाज में बड़ा बदलाव संभव है जिससे गांधी के स्वदेश...

गांव में रहने वाले जब शहर आते हैं तो अपने पहनावे और व्यवहार के लिए अक्सर ‘देहाती’ कहकर बुलाए जाते हैं. अब इन्हीं ‘देहातियों’ ने बीड़ा उठाया है, शहर वालों को जागरूक करने का. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के गांवों की रहने वाली महिलायें शहर में इको-फ्रेंडली दिवाली के लिए जागरूकता अभियान छेड़े हुए हैं. इस अभियान के जरिए वे न केवल लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रही हैं, बल्कि दिवाली पर चाईनीज सामान का बहिष्कार का झंडा भी बुलंद किये हुए हैं.

अपनी तरह का एक अनोखा सन्देश दे रही हैं बनारस की ये महिलाएं

रविवार को युवाओं की संस्था होप वेलफेयर की प्रेरणा से बनाए गए ग्रीन ग्रुप की महिलाएं हरी साड़ी और पैरो में हवाई चप्पल पहने ब्रांडेड जूते और कपड़े पहनने वालों से मिलीं. उनका उद्देश्य था शहर के लोगों को इस दिवाली पर गांवों में बने इको-फ्रेंडली दिए और मोमबत्तियां इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर सकें. महिलाओं का कहना था कि अगर शहर वाले गांव में बने सामानों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें तो गांवों में ही रोजगार के अवसर बढ़ जाएंगे. साथ ही बंद पड़े लघु और कुटीर उद्योग पर पड़े ताले खुल जाएंगे जिससे गाँवों से शहर की ओर हो रहा पलायन रुक जाएगा.

जब इस ग्रीन ग्रुप से जौनपुर से सपरिवार सिगरा स्थित मॉल में घूमने आए संदीप गुप्ता का सामना हुआ तो उनकी पत्नी ने ग्रीन ग्रुप की इस पहल की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि अब तक ऐसी मुहीम केवल सोशल मीडिया पर चल रही थी. सिर्फ सोशल मीडिया पर आंदोलन कर स्वदेशी का प्रयोग, मिट्टी के समान का प्रयोग करने की सीख देने से काम नहीं चलेगा बल्कि इसे जमीनी स्तर पर उतारना होगा. उनके मुताबिक ग्रीन ग्रुप की महिलाओं की तरह काम करने से ही समाज में बड़ा बदलाव संभव है जिससे गांधी के स्वदेश का सपना साकार होगा.

लघु और कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए वाराणसी की इन महिलाओं की पहल सराहनीय है

इससे पहले ग्रीन ग्रुप की महिलाओं ने शहर के दुर्गा चरण गर्ल्स इंटर कॉलेज की स्टूडेंट्स के साथ मिलकर यह अभियान चलाया. इन महिलाओं के हाथ में गांव के कुम्हारों के हाथों से बने मिटटी के दिए थे. इन महिलाओं ने शहर के लोगों को प्रतीक के तौर पर गिफ्ट किए और उन्हें इस दिवाली पटाखों का प्रयोग कम करने और बिजली की झालर और आर्टिफिशियल दीयों की जगह मिटटी के दीपक से घर सजाने का शपथ दिलाई.

इन ‘देहाती’ महिलाओं की इस मुहिम का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि देश में दिल्ली में पटाखों पर लगे प्रतिबंध का मुद्दा गरमाया हुआ है. इनकी इस पहल को देखकर तो यही लगता है कि दिल्ली शहर के लोगों ने इनकी तरह सोचा होता तो आज सुप्रीम कोर्ट को पटाखों की बिक्री पर रोक न लगानी पड़ती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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