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बच्चा हो तो 'जन्मजात' कम्युनिस्ट, वरना ना हो

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 07 अप्रिल, 2018 05:44 PM
  • 07 अप्रिल, 2018 05:44 PM
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चीन के स्पर्म बैंक का कहना है कि अब वही लोग अपने स्पर्म डोनेट कर सकते हैं जो कम्युनिस्ट पार्टी को सपोर्ट करते हैं. आखिर करना क्या चाहता है चीन?

जब कोई बच्चे की प्लानिंग करता है तो बहुत सी चीजें सोचता है जैसे बच्चा कब प्लान करना है, किस डॉक्टर से संपर्क करना है, वगैरह वगैरह लेकिन उस वक्त ये सोचना कि बच्चा कैसा होगा, या किस विचारधारा का होगा इसपर भला कौन सोचता है. लेकिन चीन तो कुछ भी कर सकता है. और इस बार चीन ने एक अजीबोगरीब फरमान देकर सबको चौंका दिया है.

चीन के स्पर्म बैंक का कहना है कि अब वही लोग अपने स्पर्म डोनेट कर सकते हैं जो कम्युनिस्ट पार्टी को सपोर्ट करते हैं. डोनर को आवश्यक रूप से मातृभूमि से प्यार होना चाहिए और कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व स्वीकार्य होना चाहिए.

कम्यूनिस्ट पीढ़ी विकसित करना चाहता है चीन

दरअसल, पेकिंग यूनिवर्सिटी के थर्ड हॉस्पिटल ने एक स्पर्म डोनेशन कैंपेन चलाया है जिसमें उन्होंने संभावित डोनर्स के लिए आवश्यकताओं की एक लिस्ट जारी की है. जिसमें स्वास्थ होना, कोई गंभीर बीमारी का न होना, बाल न झड़ना, कलर ब्लाइंड न हों जैसी बातों के साथ-साथ ये भी लिखा गया है कि वही लोग स्पर्म डोनेट कर पाएंगे जो 20 से 45 की उम्र के हों और मातृभूमि को प्यार करने वाले हों, कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व का समर्थन करें, पार्टी के लिए वफादार और सभ्य रहें, कानून का पालन करने वाले हों और राजनीतिक समस्याओं से दूर रहने वाले हों.

स्पर्म डोनेट करने वालों की दो चरणों में जांच की जाएगी. पहले चरण में स्पर्म की गुणवत्ता की जांच होगी और दूसरे चरण में सामान्य स्वास्थ्य और फिटनेस की. इन टेस्ट को पास करने वालों को तुरंत ही 200 युआन (करीब 32 डॉलर) दिये जाएंगे. वहीं स्पर्म डोनेशन सफल होने पर 5,500 युआन (करीब 872 डॉलर) दिये जाएंगे. डोनर्स को 6 महीने के अंदर करीब 10 बार शुक्राणु डोनेट करने होंगे.

जब कोई बच्चे की प्लानिंग करता है तो बहुत सी चीजें सोचता है जैसे बच्चा कब प्लान करना है, किस डॉक्टर से संपर्क करना है, वगैरह वगैरह लेकिन उस वक्त ये सोचना कि बच्चा कैसा होगा, या किस विचारधारा का होगा इसपर भला कौन सोचता है. लेकिन चीन तो कुछ भी कर सकता है. और इस बार चीन ने एक अजीबोगरीब फरमान देकर सबको चौंका दिया है.

चीन के स्पर्म बैंक का कहना है कि अब वही लोग अपने स्पर्म डोनेट कर सकते हैं जो कम्युनिस्ट पार्टी को सपोर्ट करते हैं. डोनर को आवश्यक रूप से मातृभूमि से प्यार होना चाहिए और कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व स्वीकार्य होना चाहिए.

कम्यूनिस्ट पीढ़ी विकसित करना चाहता है चीन

दरअसल, पेकिंग यूनिवर्सिटी के थर्ड हॉस्पिटल ने एक स्पर्म डोनेशन कैंपेन चलाया है जिसमें उन्होंने संभावित डोनर्स के लिए आवश्यकताओं की एक लिस्ट जारी की है. जिसमें स्वास्थ होना, कोई गंभीर बीमारी का न होना, बाल न झड़ना, कलर ब्लाइंड न हों जैसी बातों के साथ-साथ ये भी लिखा गया है कि वही लोग स्पर्म डोनेट कर पाएंगे जो 20 से 45 की उम्र के हों और मातृभूमि को प्यार करने वाले हों, कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व का समर्थन करें, पार्टी के लिए वफादार और सभ्य रहें, कानून का पालन करने वाले हों और राजनीतिक समस्याओं से दूर रहने वाले हों.

स्पर्म डोनेट करने वालों की दो चरणों में जांच की जाएगी. पहले चरण में स्पर्म की गुणवत्ता की जांच होगी और दूसरे चरण में सामान्य स्वास्थ्य और फिटनेस की. इन टेस्ट को पास करने वालों को तुरंत ही 200 युआन (करीब 32 डॉलर) दिये जाएंगे. वहीं स्पर्म डोनेशन सफल होने पर 5,500 युआन (करीब 872 डॉलर) दिये जाएंगे. डोनर्स को 6 महीने के अंदर करीब 10 बार शुक्राणु डोनेट करने होंगे.

 वन चाइड पॉलिसी हटाने के बाद से बीजिंग में शुक्राणुओं की मांग काफी बढ़ गई है

चीनी मीडिया के मुताबिक चीन में 40 मिलियन पुरुष और महिलाएं इनफर्टाइल हैं. 2016 में बीजिंग यूथ डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में वन चाइड पॉलिसी हटाने के बाद से बीजिंग में शुक्राणुओं की मांग काफी बढ़ गई. लेकिन गुणवत्ता वाले शुक्राणु की कम दर देश में शुक्राणुओं की कमी का मुख्य कारण है. रिपोर्ट के मुताबिक कुल डोनेट किए गए स्पर्म में से केवल 20 फीसदी को ही इस्तेमाल के लिए उपयुक्त माना जाता है.

चलो इतनी बायोलॉजी तो सबको समझ आती है कि जो इंसान अपना स्पर्म डोनेट करे वो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो, क्योंकि कुछ बीमारियां जीन्स में होती हैं जो होने वाले बच्चे में भी आ सकती हैं. लेकिन किसी खास विचारधारा वाला इंसान ही स्पर्म डोनेट करे ये बात कहकर इस स्पर्म बैंक केवल अपना राजनीतिक रुझान दिखाया है. चीन हर चीज पर वर्चस्व चाहता है, हर चीज को कंट्रोल करना चाहता है. और उसकी ये ललक इस फरमान से साफ झलकती है कि उसे आने वाली नस्लों पर भी कंट्रोल चाहिए. पर इतना तो समझ लिया होता कि व्यक्ति की विचारधारा या आस्था जीन्स में नहीं बल्कि इंसान के व्यक्तित्व में होती है, जिसे कोई कंट्रोल नहीं कर सकता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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