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जब उसे छोटी बच्ची दिखती तो फांसी का फंदा दिखाई देना बंद हो जाता...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 08 अप्रिल, 2019 10:49 AM
  • 08 अप्रिल, 2019 10:49 AM
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छोटे बच्चे-बच्चियों से रेप करने वाले दरिंदे सामान्य अपराधी नहीं है. ऐसे जुर्म में फंसी का प्रावधान होने के बावजूद यदि ये बाज़ नहीं आ रहे हैं, तो समझ लीजिये कि उनके दिमाग में हवस किस कदर घुसी है. ऐसे लोगों का सामान्य व्यवहार छलावा ही है.

किसी कैदी का अच्छा व्यवहार उसका पछतावा होगा या छलावा? हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जो चौंका दे. एक ऐसा रेपिस्ट जिसे जेल से इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि उसने सबके सामने अच्छा व्यवहार दिखाया था उसने दोबारा 9 साल की एक बच्ची का रेप कर उसकी हत्या कर दी. वादीवेल देवेंद्र उर्फ गुंडाप भाई को 2013 में 5 साल की एक बच्ची का रेप करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था. ये आदमी जेल में इतना अच्छा बनकर रहा कि उसके व्यवहार के चलते उसे जल्दी रिहा कर दिया गया.

6 महीने पहले ही देवेंद्र जेल से छूटा था और बाहर आने के बाद उसने दोबारा वही घिनौना काम किया जो पहले कर चुका है. उसने 9 साल की एक बच्ची का रेप किया. उसका कत्ल किया और फिर लाश को विलेपार्ले पब्लिक टॉयलेट में फेंक दिया.

पिछली बार जिस बच्ची को देवेंद्र ने अपनी हवस का शिकार बनाया था वो भी देवेंद्र की पड़ोसी थी और इस बार जिस लड़की के साथ ये हरकत की है वो भी देवेंद्र की पड़ोसी ही है.

देवेंद्र ने बच्ची की लाश छुपाने के लिए सेप्टिक टैंक में डाल दी थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के जरिए देवेंद्र को पकड़ा. देवेंद्र ने शुरुआत में तो इस बात से इंकार किया, लेकिन बाद में अपना जुर्म कबूल कर लिया. कक्षा तीसरी में पढ़ने वाली वो लड़की देवेंद्र की पड़ोसी थी और अपने घर से बीमार मां के लिए चाय लेने निकली थी. लड़की के माता-पिता मजदूर हैं.

देवेंद्र पर IPC की धारा 201 (सबूत मिटाने), 302 (कत्ल), 363 (अपहरण), 376 (रेप) और POCSO एक्ट के तहत सेक्शन 4, 8 और 12 के तहत केस दर्ज हुआ है.

ऐसा कई दोषी होते हैं जिन्हें आदतन अपराध अच्छे लगते हैं. छोटे बच्चों के साथ ऐसा घिनौना काम करने वाला भले ही जेल में कितना भी अच्छा व्यवहार दिखाए, लेकिन वो एक खतरनाक अपराधी होता है और ऐसे अपराधी को...

किसी कैदी का अच्छा व्यवहार उसका पछतावा होगा या छलावा? हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जो चौंका दे. एक ऐसा रेपिस्ट जिसे जेल से इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि उसने सबके सामने अच्छा व्यवहार दिखाया था उसने दोबारा 9 साल की एक बच्ची का रेप कर उसकी हत्या कर दी. वादीवेल देवेंद्र उर्फ गुंडाप भाई को 2013 में 5 साल की एक बच्ची का रेप करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था. ये आदमी जेल में इतना अच्छा बनकर रहा कि उसके व्यवहार के चलते उसे जल्दी रिहा कर दिया गया.

6 महीने पहले ही देवेंद्र जेल से छूटा था और बाहर आने के बाद उसने दोबारा वही घिनौना काम किया जो पहले कर चुका है. उसने 9 साल की एक बच्ची का रेप किया. उसका कत्ल किया और फिर लाश को विलेपार्ले पब्लिक टॉयलेट में फेंक दिया.

पिछली बार जिस बच्ची को देवेंद्र ने अपनी हवस का शिकार बनाया था वो भी देवेंद्र की पड़ोसी थी और इस बार जिस लड़की के साथ ये हरकत की है वो भी देवेंद्र की पड़ोसी ही है.

देवेंद्र ने बच्ची की लाश छुपाने के लिए सेप्टिक टैंक में डाल दी थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के जरिए देवेंद्र को पकड़ा. देवेंद्र ने शुरुआत में तो इस बात से इंकार किया, लेकिन बाद में अपना जुर्म कबूल कर लिया. कक्षा तीसरी में पढ़ने वाली वो लड़की देवेंद्र की पड़ोसी थी और अपने घर से बीमार मां के लिए चाय लेने निकली थी. लड़की के माता-पिता मजदूर हैं.

देवेंद्र पर IPC की धारा 201 (सबूत मिटाने), 302 (कत्ल), 363 (अपहरण), 376 (रेप) और POCSO एक्ट के तहत सेक्शन 4, 8 और 12 के तहत केस दर्ज हुआ है.

ऐसा कई दोषी होते हैं जिन्हें आदतन अपराध अच्छे लगते हैं. छोटे बच्चों के साथ ऐसा घिनौना काम करने वाला भले ही जेल में कितना भी अच्छा व्यवहार दिखाए, लेकिन वो एक खतरनाक अपराधी होता है और ऐसे अपराधी को छोड़कर समाज के लिए खतरा पैदा किया जाता है. एक मासूम बच्ची की जिंदगी छीन ली, उसे मारने से पहले कितना दर्द दिया और उस इंसान को 6 महीने पहले ही छोड़ा गया था.

हिंदुस्तान में वैसे भी लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ जुर्म बढ़ रहे हैं, लेकिन बच्चों के साथ इस तरह की हरकत तो माफी के काबिल नहीं है. जहां पूरे देश में POCSO एक्ट को लेकर संशोधन किया गया है और अब तो इसके लिए फांसी की सजा भी मुकर्रर हो गई है ऐसे में भी अगर अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं तो इसके पीछे कोई न कोई कारण तो है ही.

भारत में होने वाले बलात्कार के मामले में जो दूसरा और डराने वाला पहलू है वो यह कि देश में होने वाले ज्यादातर बलात्कार के मामलों में दोषी कोई नजदीकी ही होता है. ज्यादातर मामलों दोषी या तो पड़ोसी या अपने घर का ही कोई रिश्तेदार निकलता है. ऐसे में क्या दुनिया कि कोई भी पुलिस या सरकार ऐसे मामलों में रोक लगा सकती है? शायद नहीं, क्योंकि जिन पर महिला या बच्चियों की सुरक्षा का दारोमदार है अगर वही हैवानियत पर उतर आएं तो फिर ऐसे मामले रोकना काफी मुश्किल है.

ऐसी स्थिति में बच्चियों की सुरक्षा के लिए उन्हें जागरुक करना ज्यादा महत्वपूर्ण है. बच्चियों के साथ जिस तरह की दरिंदगी के मामले बढ़ रहे हैं वह कहीं न कहीं हमारे समाज में बढ़ रही विकृत सोच का नतीजा है. ऐसे में अगर कड़े कानून नहीं बनाए गए तो माहौल और भी खराब होगा.

NCRB के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में नाबालिगों के साथ 16863 रेप हुआ. यानी हर दिन 46 बच्चियों का रेप. यानी हर घंटे 2 और हर आधे घंटे में एक बच्ची के साथ भारत में रेप हो रहा है. इसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों की संख्या 1596 थी. ये डेटा 2017 के अंत में आया था. तब से लेकर अब तक नाबालिगों और बच्चियों के साथ रेप के मामले काफी बढ़ गए हैं.

अगर इस डेटा को भी मान लिया जाए तो साल में 12 साल से कम उम्र वाली बच्चियों के रेप की घटनाएं 1596 थीं, यानी हर दिन 4 से 5 बच्चियों का रेप हुआ है. 2014 - 2016 में पोस्को एक्ट के तहत ही 1,04,976 मामले दर्ज किए गए. हर साल इसमें लगभग 34 से 35 हजार मामले दर्ज किए गए. हालांकि, 1 लाख से ज्यादा मामलों में लगभग सवा लाख लोगों की गिरफ्तारी भी हुई, मगर इसमें 11266 लोगों को ही दोषी ठहराया गया. यानी पॉक्सो एक्ट में कन्विक्शन रेट देखें तो लगभग 12 फीसदी का ही है. डेटा कहता है कि हर 10 में से 4 रेप पीड़ित नाबालिग थे और हर 10 में से 1 बच्ची 12 साल से कम उम्र की थी. यहां भी आंकड़ा साफ बताता है कि बच्चियों के रेप के मामले में दोषियों को सज़ा कम मिली है.

यानी 100 दोषियों में से सिर्फ 12 को ही सज़ा मिलती थी और बच्चियों के मामले में ये आंकड़ा 10 ही था.

शायद यही कारण है कि बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले लोगों को कभी ये नहीं लगता कि उन्हें कोई बड़ी सज़ा मिल भी सकती है. ऐसे में अगर देवेंद्र का केस देखा जाए तो हम पाएंगे कि देवेंद्र को तो खुद पुलिस ने ही रिहा किया था. छोटे बच्चे-बच्चियों से रेप करने वाले दरिंदे सामान्य अपराधी नहीं है. ऐसे जुर्म में फंसी का प्रावधान होने के बावजूद यदि ये बाज नहीं आ रहे हैं, तो समझ लीजिए कि उनके दिमाग में हवस किस कदर घुसी है. ऐसे लोगों का सामान्य व्यवहार छलावा ही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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