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Chhapaak की कहानी खत्म नहीं हुई, 5 साल में 1500 एसिड अटैक हो चुके हैं

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 13 जनवरी, 2020 02:45 PM
  • 13 जनवरी, 2020 02:45 PM
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एसिड अटैक (Acid Attack) की पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल (Laxmi Agrawal) ने एसिड को बेचे जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका लगाई और उस पर बैन भी लगा, लेकिन आज भी एसिड खुलेआम बिक रहा है. वहीं दूसरी ओर, लोग जो हैं कि दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) की फिल्म छपाक (Chhapaak) का विरोध करने में लगे हैं.

जब से दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) ने JN हिंसा के विरोध में आईषी घोष के समर्थन वाले विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया है, तब से उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग का कहा जाने लगा है. कुछ ये भी कह रहे हैं कि दीपिका का इस विरोध प्रदर्शन में जाना एक पब्लिसिटी स्टंट से अधिक कुछ नहीं था. भले ही जेएनयू जाना दीपिका पादुकोण का पब्लिसिटी स्टंट हो, लेकिन उन्होंने फिल्म छपाक (Chhapaak) के अंदर एसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल (Laxmi Agrawal) का जो रोल अदा किया है, वह इस देश की स्याह हकीकत को बयां करता है. इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DI) ने पाया कि 2014-2018 के बीच में देश में कुल 1483 महिलाओं पर एसिड अटैक (Acid Attack) हुआ. यानी हर 5 में से 4 दिन ये हमला हुआ है. बेशक ये आंकड़े हैरान करने वाले हैं, लेकिन छपाक का विरोध करने वालों को इसकी गंभीरता शायद नहीं दिख रही है. छपाक का विरोध करने के बजाय एसिड अटैक का विरोध होना चाहिए, इस बात का विरोध होने चाहिए कि एसिड अटैक करने वालों को सख्त सजा क्यों नहीं मिल रही? क्यों खुलेआम एसिड का बिकना पूरी तरह से रुका नहीं है? जिसके लिए लक्ष्मी ने लड़ाई भी लड़ी.

छपाक का विरोध करने के बजाय एसिड बेचने का विरोध लक्ष्मी एसिड अटैक पीड़िताओं को सुकून देगा.

लक्ष्मी की लड़ाई को फीका ना होने दें !

2005 में लक्ष्मी अग्रवाल पर एसिड अटैक हुआ था. उन्होंने जो भुगता उसके बाद ये लड़ाई लड़ी कि एसिड बेचने पर बैन लगे. सुप्रीम कोर्ट से बैन लगा भी, लेकिन अभी भी एसिड कई जगह बिक रहा है. यही वजह है कि एसिड अटैक की घटनाएं लगातार चली आ रही हैं. अगर एसिड बिक नहीं रहा, तो इन हमलावरों को मिल कहां से रहा है? दीपिका पादुकोण के जेएनयू प्रदर्शन में हिस्सा लेने की बात को लेकर अगर राजनीति ही करते रह जाएंगे, तो इन...

जब से दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) ने JN हिंसा के विरोध में आईषी घोष के समर्थन वाले विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया है, तब से उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग का कहा जाने लगा है. कुछ ये भी कह रहे हैं कि दीपिका का इस विरोध प्रदर्शन में जाना एक पब्लिसिटी स्टंट से अधिक कुछ नहीं था. भले ही जेएनयू जाना दीपिका पादुकोण का पब्लिसिटी स्टंट हो, लेकिन उन्होंने फिल्म छपाक (Chhapaak) के अंदर एसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल (Laxmi Agrawal) का जो रोल अदा किया है, वह इस देश की स्याह हकीकत को बयां करता है. इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DI) ने पाया कि 2014-2018 के बीच में देश में कुल 1483 महिलाओं पर एसिड अटैक (Acid Attack) हुआ. यानी हर 5 में से 4 दिन ये हमला हुआ है. बेशक ये आंकड़े हैरान करने वाले हैं, लेकिन छपाक का विरोध करने वालों को इसकी गंभीरता शायद नहीं दिख रही है. छपाक का विरोध करने के बजाय एसिड अटैक का विरोध होना चाहिए, इस बात का विरोध होने चाहिए कि एसिड अटैक करने वालों को सख्त सजा क्यों नहीं मिल रही? क्यों खुलेआम एसिड का बिकना पूरी तरह से रुका नहीं है? जिसके लिए लक्ष्मी ने लड़ाई भी लड़ी.

छपाक का विरोध करने के बजाय एसिड बेचने का विरोध लक्ष्मी एसिड अटैक पीड़िताओं को सुकून देगा.

लक्ष्मी की लड़ाई को फीका ना होने दें !

2005 में लक्ष्मी अग्रवाल पर एसिड अटैक हुआ था. उन्होंने जो भुगता उसके बाद ये लड़ाई लड़ी कि एसिड बेचने पर बैन लगे. सुप्रीम कोर्ट से बैन लगा भी, लेकिन अभी भी एसिड कई जगह बिक रहा है. यही वजह है कि एसिड अटैक की घटनाएं लगातार चली आ रही हैं. अगर एसिड बिक नहीं रहा, तो इन हमलावरों को मिल कहां से रहा है? दीपिका पादुकोण के जेएनयू प्रदर्शन में हिस्सा लेने की बात को लेकर अगर राजनीति ही करते रह जाएंगे, तो इन 1483 लक्ष्मी अग्रवाल का क्या होगा? राजनीति के चक्कर में हम बस फिल्मों का विरोध करने, पोस्टर फाड़ने और सिनेमाहॉल में तोड़-फोड़ करते रह जाएंगे तो कुछ दरिंदे फिर से कई लक्ष्मी अग्रवाल को चोट पहुंचा देंगे.

लक्ष्मी जैसी लड़कियों को इंसाफ दिलाने के लिए हो प्रदर्शन

2014-2018 की बात करें तो 2017 में सबसे अधिक एसिड अटैक हुए. इस साल 309 ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिनमें कुल 319 लड़कियां घायल हुईं. बता दें कि 2017 और 2018 में कुल 596 एसिड अटैक के मामले रिपोर्ट किए गए थे, जिनमें कुल 623 लड़कियां घायल हुईं, लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि दोनों साल में औसतन सिर्फ 149-149 मामलों में चार्जशीट दायर की गई. यानी करीब आधी घटनाओं में ही चार्जशीट दाखिल हुई. सबसे कम केस 2014 में रिपोर्ट हुए थे, जिनकी संख्या 244 थी, लेकिन इनमें से 201 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी. यानी सबसे बड़ी दिक्कत तो इंसाफ दिलाने वाली व्यवस्था के साथ भी है. पहले तो बहुत से मामले रिपोर्ट नहीं होते, रिपोर्ट होते हैं तो उनमें बहुत से मामलों में चार्जशीट दाखिल नहीं होती, जिनमें चार्जशीट हो भी गई, तो भी ये गारंटी नहीं होती कि कोर्ट से उन्हें सजा मिलेगी ही.

विरोध दीपिका या छपाक का नहीं, एसिड का होना चाहिए

एक विरोध एसिड की बिक्री के खिलाफ होना चाहिए, ताकि जो कुछ लक्ष्मी ने झेला है, वह किसी और को ना झेलना पड़े. दीपिका का विरोध या उनकी फिल्म छपाक का विरोध करने से कुछ नहीं होने वाला. चंद लोग छपाक फिल्म नहीं देखेंगे तो ना तो फिल्म फ्लॉप होगी, ना ही दीपिका, लेकिन अगर अब भी एसिड की बिक्री का विरोध नहीं हुआ तो कल लक्ष्मी जैसी और भी लड़कियां होंगी, जिन्हें एसिड अटैक का दंश झेलना पड़ सकता है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद तेजाब खुलेआम बिक रहा है और ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी नहीं हो रही है. बिना लाइसेंस के तेजाब नहीं बेचा जा सकता है और बेचने की स्थिति में भी ग्राहक के आधार कार्ड की फोटो कॉपी जमा करनी होती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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