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मुख्य न्यायाधीश के रूप में दीपक मिश्रा के लिए चुनौतियां

    • बिजय कुमार
    • Updated: 28 अगस्त, 2017 03:02 PM
  • 28 अगस्त, 2017 03:02 PM
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देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस दीपक मिश्रा ने कार्यभार संभाल लिया है. जस्टिस मिश्रा ने अब तक कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले सुनाए हैं, वहीं आने वाले समय में भी उनकी चुनौतियां कम नहीं हैं.

जस्टिस दीपक मिश्रा ने सोमवार को देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभाल लिया है और अगले वर्ष 2 अक्टूबर तक इस पद पर बने रहेंगे. इससे पहले हमने देखा कि कैसे उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे. ऐस. खेहर ने अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले सुनाए. उनके लिए आखिरी के कुछ दिन तो काफी व्यस्ततम रहे, जिस दौरान तीन तलाक और निजता का अधिकार जैसे दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए गए.

45वें मुख्य न्यायाधीश की शपथ लेते जस्टिस मिश्रा

सोमवार से शुरू हो रहे कार्यकाल के पहले दिन ही सुनवाई में जस्टिस मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ में जस्टिस ऐ. एम. खानविलकर और डी. वाई. चंद्रचूड़ पीठ का हिस्सा होंगे. आपको बता दें की इन मामलों में से एक सिमी पर प्रतिबन्ध से जुड़ा मामला भी है.

बात करें जस्टिस मिश्रा के सामने आने वाले कुछ अहम् मामलों की तो उनमें अयोध्या भूमि विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई, जिसके लिए हाल ही में जस्टिस मिश्रा को तीन न्यायाधीशों की पीठ का अध्यक्ष बनाया गया था. कुछ अन्य मामलों में कावेरी विवाद और केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से जुड़ा अधिकार का मामला शामिल है.

यही नहीं उनके लिए एक बड़ा सिरदर्द न्यायिक भर्तियां भी हैं, साथ ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया का विवादास्पद मामला भी उन्हें जस्टिस केहर से विरासत में मिल रहा है. लेकिन उनके अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर यही लगता है कि वो इस मुश्किल दौर से आसानी से पार पा लेंगे. उनके कुछ अहम् फैसलों पर नजर डालें तो उनमें याकूब मेनन की फांसी रोकने वाली अपील को निरस्त करने का फैसला और निर्भया रेप के आरोपी की फांसी की सजा को बरकरार रखने का फैसला शामिल है.

जस्टिस दीपक मिश्रा ने सोमवार को देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभाल लिया है और अगले वर्ष 2 अक्टूबर तक इस पद पर बने रहेंगे. इससे पहले हमने देखा कि कैसे उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे. ऐस. खेहर ने अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले सुनाए. उनके लिए आखिरी के कुछ दिन तो काफी व्यस्ततम रहे, जिस दौरान तीन तलाक और निजता का अधिकार जैसे दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए गए.

45वें मुख्य न्यायाधीश की शपथ लेते जस्टिस मिश्रा

सोमवार से शुरू हो रहे कार्यकाल के पहले दिन ही सुनवाई में जस्टिस मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ में जस्टिस ऐ. एम. खानविलकर और डी. वाई. चंद्रचूड़ पीठ का हिस्सा होंगे. आपको बता दें की इन मामलों में से एक सिमी पर प्रतिबन्ध से जुड़ा मामला भी है.

बात करें जस्टिस मिश्रा के सामने आने वाले कुछ अहम् मामलों की तो उनमें अयोध्या भूमि विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई, जिसके लिए हाल ही में जस्टिस मिश्रा को तीन न्यायाधीशों की पीठ का अध्यक्ष बनाया गया था. कुछ अन्य मामलों में कावेरी विवाद और केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से जुड़ा अधिकार का मामला शामिल है.

यही नहीं उनके लिए एक बड़ा सिरदर्द न्यायिक भर्तियां भी हैं, साथ ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया का विवादास्पद मामला भी उन्हें जस्टिस केहर से विरासत में मिल रहा है. लेकिन उनके अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर यही लगता है कि वो इस मुश्किल दौर से आसानी से पार पा लेंगे. उनके कुछ अहम् फैसलों पर नजर डालें तो उनमें याकूब मेनन की फांसी रोकने वाली अपील को निरस्त करने का फैसला और निर्भया रेप के आरोपी की फांसी की सजा को बरकरार रखने का फैसला शामिल है.

इसके अलावा वो उच्चतम न्यायलय की जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ही थी जिसने राष्ट्रगान को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए फैसला किया था, कि सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाना अनिवार्य होगा, साथ ही सिनेमाघर के परदे पर राष्ट्रगान बजते समय फहराता हुआ तिरंगा दिखाना जरूरी होगा. पीठ ने कहा था कि राष्ट्रगान का सम्मान करना हर भारतीय का दायित्व है और हर किसी को इसके सम्मान में खड़ा होना चाहिए.

जस्टिस मिश्रा को साथियों द्वारा 'नागरिक समर्थक' की संज्ञा दी जाती है, इसी का उदाहरण हमें उस फैसले में दिखता है जब उन्होंने दिल्ली पुलिस से एफआईआर के 24 घंटे के भीतर उसे पुलिस वेबसाइट पर डालने का निर्देश दिया था, जिससे कि पीड़ित और दोषी दोनों पक्षों को इसकी पूरी जानकारी मिल सके.

उड़ीसा के कटक में जन्मे 63 वर्षीय जस्टिस दीपक मिश्रा ने करियर कि शुरुआत 14 फरवरी 1977 से कटक न्यायालय में वकालत से शुरू की थी. उच्चतम न्यायालय से पहले जस्टिस मिश्रा पटना हाईकोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. 10 अक्टूबर 2011 को वो उच्चतम न्यायलय में न्यायाधीश चुने गए थे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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