दुष्यंत कुमार का एक शेर तो सभी ने सुना होगा-
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.
इस कहावत का असल जिंदगी में सच कर दिखाया है 2003 बैच की आईएएस रितु माहेश्वरी ने. हम में से ज्यादातर लोगों ने आज के पहले इनका नाम शायद ही सुना होगा. लेकिन रितु ने जो काम किया है वो किसी चमत्कार से कम नहीं. आप सोच रहे होंगे चमत्कार! ये मैं आपको बर्गला क्यों रही हूं! या मैं कहीं पागल तो नहीं हो गई आदि आदि.
चलिए तो अब आपके सस्पेंस को खत्म करके रितु जी और उनके चमत्कार से आपको रू-ब-रू करा ही देते हैं. रितु वो अधिकारी हैं जिन्होंने देश में हो रही लगभग 65 हजार करोड़ रुपए सलाना की बिजली चोरी को रोकने की शुरुआत कर दी है. 2011 कानपुर में पोस्टेड रितु ने बिजली कंपनी के लगभग एक-तिहाई ग्राहकों के यहां नए स्मार्ट मीटर लगा दिए. इस मीटर में बिजली की खपत को डिजिटल तरीके से रिकॉर्ड किया जाता है और रियल-टाइम में बिजली के वितरण में होने वाले घपलों का खुलासा करती है.
रितु पिछले छह सालों से भ्रष्टाचार और स्त्री विरोधी माहौल के खिलाफ जंग लड़ रही हैं. इसके साथ ही इन्होंने बड़े पैमाने पर हो रही बिजली चोरी को रोकने के लिए टेक्नॉलजी की जरूरत पर खुब जोर दिया है. कुछ दिनों पहले तक वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को घाटे से उबारकर करोड़ों घरों, किसानों और फैक्ट्रियों को लगातार बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कराने की कोशिशों को बल दे रही थीं.
लेकिन जैसा की अमूमन हर ईमानदार और कर्मठ अधिकारी के साथ होता है. महज 11 महीने के बाद ही उनका ट्रांसफर गाजियाबाद कर दिया गया. बिजली चोरी के खिलाफ अभियान छेड़ने का नतीजा यह हुआ कि...
दुष्यंत कुमार का एक शेर तो सभी ने सुना होगा-
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.
इस कहावत का असल जिंदगी में सच कर दिखाया है 2003 बैच की आईएएस रितु माहेश्वरी ने. हम में से ज्यादातर लोगों ने आज के पहले इनका नाम शायद ही सुना होगा. लेकिन रितु ने जो काम किया है वो किसी चमत्कार से कम नहीं. आप सोच रहे होंगे चमत्कार! ये मैं आपको बर्गला क्यों रही हूं! या मैं कहीं पागल तो नहीं हो गई आदि आदि.
चलिए तो अब आपके सस्पेंस को खत्म करके रितु जी और उनके चमत्कार से आपको रू-ब-रू करा ही देते हैं. रितु वो अधिकारी हैं जिन्होंने देश में हो रही लगभग 65 हजार करोड़ रुपए सलाना की बिजली चोरी को रोकने की शुरुआत कर दी है. 2011 कानपुर में पोस्टेड रितु ने बिजली कंपनी के लगभग एक-तिहाई ग्राहकों के यहां नए स्मार्ट मीटर लगा दिए. इस मीटर में बिजली की खपत को डिजिटल तरीके से रिकॉर्ड किया जाता है और रियल-टाइम में बिजली के वितरण में होने वाले घपलों का खुलासा करती है.
रितु पिछले छह सालों से भ्रष्टाचार और स्त्री विरोधी माहौल के खिलाफ जंग लड़ रही हैं. इसके साथ ही इन्होंने बड़े पैमाने पर हो रही बिजली चोरी को रोकने के लिए टेक्नॉलजी की जरूरत पर खुब जोर दिया है. कुछ दिनों पहले तक वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को घाटे से उबारकर करोड़ों घरों, किसानों और फैक्ट्रियों को लगातार बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कराने की कोशिशों को बल दे रही थीं.
लेकिन जैसा की अमूमन हर ईमानदार और कर्मठ अधिकारी के साथ होता है. महज 11 महीने के बाद ही उनका ट्रांसफर गाजियाबाद कर दिया गया. बिजली चोरी के खिलाफ अभियान छेड़ने का नतीजा यह हुआ कि रितु बड़े-बड़े लोगों की नजरों में चढ़ गईं. कुछ नेता उनके दफ्तर में आकर धमकियां देने लगे. यहां तक कि उनके अपने ही स्टाफ बिजली चोरी की जांच की योजना पहले ही लीक कर देते थे. इससे बिजली चोर, सर्च टीम के पहुंचने से पहले ही अवैध कनेक्शन उतार लेते थे.
ट्रांसपिरेंसी इंटरनेशनल के बोर्ड मेंबर और ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडेरेशन के सदस्य पद्मजीत सिंह बताते हैं- 'कई लोग बिजली चोरी करना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं और इनके इस अधिकार को तोड़ने की कोशिश करने वाला उनका दुश्मन बन जाता है.' वहीं रितु कहती हैं- 'मैंने बिजली चोरी करनेवाले ग्राहकों के विरोध के बावजूद 5 लाख में से 1 लाख 60 हजार मीटर बदल दिए. इससे कानपुर में बिजली चोरी की घटना बहुत कम हो गई जो पहले 30 प्रतिशत थी.' बिजली मंत्रालय की वेबसाइट से पता चलता है कि रितु की इस रणनीति से कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी या केस्को का वितरण घाटा गिरकर 15.6 प्रतिशत हो गया.
रितु की बिजली चोरी के खिलाफ ये रणनीति काम कर गई और दिल्ली और मुंबई की कंपनियों के साथ-साथ छोटे विक्रेताओं ने भी बिजली के नुकसान को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल करने पर विचार कर रही हैं. बिजली वितरण कंपनियां और सरकारें पहले से ही डिजिटाइजेशन पर जोर दे रही हैं.
वो आगे कहती हैं, 'मेरे कदम से छोटे-बड़े स्टाफ, सारे स्टाफ खुश नहीं थे. चाहे नए मीटर लगाने की बात हो या छापेमारी की, हमारे लोग ही बिजली चोरों को पहले ही इस बात की खबर कर देते थे.' रितु माहेश्वरी कहती हैं, 'लोगों को लगता था कि मुझे आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है या बहकाया जा सकता है. क्योंकि उनकी नजर में किसी महिला को बिजली और उसके जटिल ग्रीड्स के बारे में कुछ पता नहीं होता.'
लेकिन एक बात वो भूल गए कि आईएएस बनने के पहले रितु ने साल 2000 में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज से ग्रैजुएशन कर रखी है. इसके बाद उन्होंने 2003 में वो आईएएस बन गई.
अब तो आपको यकीन हो गया न रितु ने सच में चमत्कार ही कर दिया. जिस देश में बिजली, पानी जैसी आधारभूत सुविधाएं भी चुनावी मुद्दा होती हों. मुफ्त और 24 घंटे बिजली के वादे पर सरकारें बनती-बिगड़ती हों. जहां बिजली चोरी करना "मौलिक अधिकार" माना जाता हो. वहां पर रितु माहेश्वरी की ये पहल न सिर्फ सरकार के खजाने को भर रही है बल्कि लोगों को सुविधाओं और अधिकारों के बीच का फर्क समझा कर जागरूक भी कर रही है.
आज हमारे यहां जितनी ज्यादा जरूरत रितु माहेश्वरी जैसे जीवट अधिकारियों की है उससे कहीं ज्यादा जरूरत लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने की भी है.
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