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बच्चों की मौत महीना देखकर नहीं आती मंत्री जी

    • मुनीष देवगन
    • Updated: 02 सितम्बर, 2017 05:55 PM
  • 02 सितम्बर, 2017 05:55 PM
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सरकारी आंकडों की अगर बात करें तो बीआरडी मेडिकल कॉलेज अगस्त में बच्चों की मौत का ये आंकड़ा है.. ये आंकड़े इसलिए दिखा रहे हैं कि बच्चों की मौत का संबंध सिर्फ अगस्त से ही नहीं है बल्कि सारे साल ये मौत का खेल चलता रहता है.

"मां, मंत्री जी का अगस्त तो गुजर गया... पर बच्चे तो मरते ही जा रहे हैं?"

30 अगस्त की दोपहर को गोरखपुर की पूजा रानी मिश्रा घर पर अकेली हैं. दोपहर की गर्मी के चलते पूरी गली में सन्नाटा पसरा है. पूजा रानी मिश्रा के पड़ोसी बलराज शुक्ला ने जैसे ही टीवी पर एक खबर देखी, वो बेहद परेशान हो गए. उनकी बीवी ने पूछा तो उन्होंने बताया कि आज फिर अपने शहर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज से मनहूस खबर आई है.

2 दिन में 42 बच्चों ने दम तोड़ दिया है, ये कहते हुए वो बेहद भावुक हो उठे और अपने मोबाइल पर पड़ोसी महेश मिश्रा-पूजा मिश्रा के पांच साल के बेटे सोनू की तस्वीर खंगालने लगे. 30 जुलाई को सोनू का जन्मदिन था. कुर्ता पायजामा पहन कर सोनू मंदिर में माथा टेकने के बाद जैसे ही शुक्ला जी के घर आया तो सोनू के कहने पर ही ये तस्वीर खींची गई थी.

बच्चों के मरने का कोई महीना नहीं होता साहेब

बलराज शुक्ला पिछले साल सरकारी बैंक से रिटायर हुए हैं. रिटायर होने से पहले ही वो बेटी के हाथ पीले कर चुके थे और अब सोनू में ही उनकी जान बसती थी. महज पांच साल का सोनू अपने मां-बाप के बाद सबसे ज्यादा शुक्ला जी को पसंद करता था... क्योंकि मां ने कुल्फी, चिप्स खाने पर बैन लगाया था, लेकिन शुक्ला जी सोनू को चुपके से ये सब दिलवा दिया करते थे.

लेकिन 1 अगस्त को सोनू को ऐसा बुखार हुआ जो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. 7 अगस्त को सोनू को बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले जाना पड़ा. शुक्ला जी खुद ही अपनी मारूति 800 में उसे लेकर गए. अस्पताल में भारी भीड़ थी... डॉक्टर ने जांच कर बताया कि सोनू को दिमाग़ी बुखार है. सोनू को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी. डॉक्टरों ने सोनू को ऑक्सीजन देने की शुरुआत की थी. अगले दिन जैसे ही सोनू होश में आया उसने शुक्ला जी से अपनी पसंदीदा चॉकलेट...

"मां, मंत्री जी का अगस्त तो गुजर गया... पर बच्चे तो मरते ही जा रहे हैं?"

30 अगस्त की दोपहर को गोरखपुर की पूजा रानी मिश्रा घर पर अकेली हैं. दोपहर की गर्मी के चलते पूरी गली में सन्नाटा पसरा है. पूजा रानी मिश्रा के पड़ोसी बलराज शुक्ला ने जैसे ही टीवी पर एक खबर देखी, वो बेहद परेशान हो गए. उनकी बीवी ने पूछा तो उन्होंने बताया कि आज फिर अपने शहर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज से मनहूस खबर आई है.

2 दिन में 42 बच्चों ने दम तोड़ दिया है, ये कहते हुए वो बेहद भावुक हो उठे और अपने मोबाइल पर पड़ोसी महेश मिश्रा-पूजा मिश्रा के पांच साल के बेटे सोनू की तस्वीर खंगालने लगे. 30 जुलाई को सोनू का जन्मदिन था. कुर्ता पायजामा पहन कर सोनू मंदिर में माथा टेकने के बाद जैसे ही शुक्ला जी के घर आया तो सोनू के कहने पर ही ये तस्वीर खींची गई थी.

बच्चों के मरने का कोई महीना नहीं होता साहेब

बलराज शुक्ला पिछले साल सरकारी बैंक से रिटायर हुए हैं. रिटायर होने से पहले ही वो बेटी के हाथ पीले कर चुके थे और अब सोनू में ही उनकी जान बसती थी. महज पांच साल का सोनू अपने मां-बाप के बाद सबसे ज्यादा शुक्ला जी को पसंद करता था... क्योंकि मां ने कुल्फी, चिप्स खाने पर बैन लगाया था, लेकिन शुक्ला जी सोनू को चुपके से ये सब दिलवा दिया करते थे.

लेकिन 1 अगस्त को सोनू को ऐसा बुखार हुआ जो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. 7 अगस्त को सोनू को बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले जाना पड़ा. शुक्ला जी खुद ही अपनी मारूति 800 में उसे लेकर गए. अस्पताल में भारी भीड़ थी... डॉक्टर ने जांच कर बताया कि सोनू को दिमाग़ी बुखार है. सोनू को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी. डॉक्टरों ने सोनू को ऑक्सीजन देने की शुरुआत की थी. अगले दिन जैसे ही सोनू होश में आया उसने शुक्ला जी से अपनी पसंदीदा चॉकलेट मांगी.

शुक्ला जी ने कहा ये लो चॉकलेट, ये तो 3 दिन से मैं अपनी जेब में ही रखा हूं. अब तुमको रोज़ एक चॉकलेट मिलेगी. सोनू अपनी मां से पूछने लगा कि मां इतने बच्चों से बेड भरे हैं... क्या सबको बुखार है मां? सोनू की मां ने कहा हां, लेकिन तुम जल्दी ठीक होकर घर चलोगे हमारे साथ. तुमको कुछ नहीं होगा बेटा, कहकर मां की आंखें जैसे भर आईं.

शुक्ला जी ने सोनू के मां-बाप का हौंसला बढ़ाने के लिए बताया कि मोहल्ले में राम हलवाई के छोटे बेटे को भी जापानी बुखार हुआ था. लेकिन उसको एक हफ्ते में छुट्टी मिल गई. अपने सोनू को भी हफ्ते भर के अंदर छुट्टी मिल जाएगी. सोनू को फिर से सांस लेने में तकलीफ होने लगी. डॉक्टर को बुलाया गया तो फिर से ऑक्सीजन देने की शुरुआत हुई. लेकिन एक घंटे बाद ही ऑक्सीजन के सिलेंडर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ख़त्म होने लगे.

डॉक्टर ज्यादा गंभीर बच्चों को ऑक्सीजन देते जा रहे थे. लेकिन सोनू की हालत अगले दिन तक बेहद खराब होने लगी. महज पांच साल का सोनू सिस्टम की नाकामी के आगे अपनी बीमारी से कितना लड़ सकता था! सिलेंडर लगातार खाली हो रहे थे और ऑक्सीजन का प्रेशर कम. पीछे से सप्लाई पहले ही बंद हो गई थी. रात भर किसी तरह सिलेंडर बदल-बदल कर बच्चों को किश्तों में सांसें दी गई. मगर सुबह होते ही हालात और बिगड़ गए.

कब थमेगा ये सिलसिला

सिलेंडर खाली होने शुरू हो गए और दम घुटना चालू. और फिर वही हुआ, जो कोई सोच भी नहीं सकता था. सोनू भी अपने मां-बाप और शुक्ला जी को छोड़कर इस दुनिया से चला गया. सोनू के जाने के बाद जैसे उसकी मां की दुनिया ही उजड़ गई. 4 दिन अस्पताल में रहने के बाद सोनू की मां को जब होश आया तो बहुत देर हो चुकी थी.

पड़ोस के शुक्ला जी भी सोनू की तस्वीर सारा दिन देखते रहते और जिस गेंद से सोनू खेलता था उसको पकड़ कर रखते. आज फिर दोपहर में शुक्ला जी का खबर सुनने के बाद जब मूड खराब हुआ तो वो राम हलवाई की दुकान पर चले गए. उनकी बीवी ने बेटी को फोन लगा बताया कि अपने पिता जी को वो समझाएं कि अपना ध्यान रखा करें.

सोनू की मां ने शुक्ला जी की बीवी को फोन पर ये कहते हुए सुन लिया कि पिछले दो दिनों में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2 दिन में 42 बच्चों की मौत की दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है. सोनू की मां एक गहरी सोच में डूबती चली गई. पिछले दो हफ्तों से उसकी नींद जैसे कहीं उड़ गई थी. लेकिन आज जैसे ही बेड पर लेटी तो देखा कि सोनू हाथ में चॉकलेट लिए दरवाजे पर खड़ा है और आते ही मां से एक सवाल पूछ रहा है, "मां, मंत्री जी तो कहते थे कि अगस्त में बच्चे मरते हैं. अब तो अगस्त बीत गया मां..., दर्जनों बच्चे मरते ही जा रहे हैं. क्या मंत्री जी झूठ बोल रहे थे मां?"

(ऐसे कितने ही सोनू हर साल हंसते-खेलते हमारे से, हमारे देश के हेल्थ सिस्टम से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक ऐसे ही बच्चों को मारने वाले इंसेफिलाइटिस यानी दिमागी बुखार के वायरस को खत्म किए जाने के इंतजाम किए जाएंगे.)

सरकारी आंकडों की अगर बात करें तो बीआरडी मेडिकल कॉलेज अगस्त में बच्चों की मौत का ये आंकड़ा है.. ये आंकड़े इसलिए दिखा रहे हैं कि बच्चों की मौत का संबंध सिर्फ अगस्त से ही नहीं है बल्कि सारे साल ये मौत का खेल चलता रहता है. और हमारा सरकारी अमला आजादी के 70 साल बाद भी इस मौत के आंकड़े को मूक दर्शक बन कर देखता रहता है.

अगस्त 2014 में 567 मौतअगस्त 2015 में 668 मौतअगस्त 2016 में 587 मौतअगस्त 2017 में 415 मौत

लेकिन हैरानी की बात ये है कि

सितंबर 2014 में 563सितंबर 2015 में 635सितंबर 2016 में 601

ऐसे ही मौत तो पूरे साल ही होती रहती है. लेकिन मंत्री जी जल्दबाज़ी में बिना आंकड़ों को देखे ही बोल गए

जुलाई 2014 में 564 जुलाई 2015 में 673जुलाई 2016 में 523

आंकड़ों में जहां हजारों बच्चे साल के हर महीने मरते जाते है...लेकिन मंत्री जी क्यों अगस्त ही बताते हैं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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