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ये कैसा क्राइस्ट परिचय? ईसा मसीह तमिल हिंदू थे!

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 21 अप्रिल, 2019 01:38 PM
  • 23 फरवरी, 2016 07:03 PM
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1946 में छपी आरएसएस फाउंडर मेंबर की एक किताब में जीसस क्राइस्ट को तमिल हिन्दू बताया गया. 26 फरवरी को इस किताब का दोबारा विमोचन किया जा रहा है

देशद्रोह, देशप्रेम और जाट आंदोलन की खबरों की गहमागहमी के बीच एक और खबर आ रही है जो काफी हैरान करने वाली है. बात संघ से जुड़ी है तो इसका हैरान करना स्वाभाविक है. 1946 में छपी आरएसएस फाउंडर मेंबर की एक किताब में जीसस क्राइस्ट को तमिल हिन्दू बताया गया. 26 फरवरी को इस किताब का रीलॉंच हो रहा है.

राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के पांच संस्‍थापकों में से एक गणेश दामोदर(बाबाराव) सावरकर ने 1946 में छपी पुस्तक 'क्राइस्ट परिचय' में ये दावा किया था कि जीजस क्राइस्‍ट का जन्‍म तमिल हिंदू के रूप में हुआ था. वो तमिलनाडु के विश्वकर्मा ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. 26 फरवरी को इस किताब को मराठी में दोबारा लांच किया जा रहा है. स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक (सावरकर नेशनल मेमोरियल) इस पुस्तक का विमोचन करेंगे.

 राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के पांच संस्‍थापक थे जिसमें से एक थे गणेश दामोदर(बाबाराव) सावरकर

ये हैं पुस्तक के दावे-

- ईसाई धर्म हिंदू धर्म का ही एक पंथ है.

- वर्तमान फिलीस्‍तीन और अरब इलाके हिंदू भूमि हुआ करते थे.

- क्राइस्ट का असली नाम केशव कृष्णा था. उनका रंग काला था और उनकी मातृ भाषा तमिल थी.

- जब क्राइस्ट 12 साल के थे तब ब्राह्मण परंपरा के अनुसार उनका जनेऊ संस्कार हुआ था. उन्होंने जनेऊ भी पहना था.

- जब क्राइस्ट मृत्यु शैया पर थे, तो उन्हें ठीक होने के लिए जड़ी-बूटियों दी गईं थीं.

- कश्मीर में क्राइस्ट ने 3 साल भगवान शिव की आराधना की थी, और उन्हें शिव के दर्शन हुए.

- उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय हिमालय पर बिताया. वहां...

देशद्रोह, देशप्रेम और जाट आंदोलन की खबरों की गहमागहमी के बीच एक और खबर आ रही है जो काफी हैरान करने वाली है. बात संघ से जुड़ी है तो इसका हैरान करना स्वाभाविक है. 1946 में छपी आरएसएस फाउंडर मेंबर की एक किताब में जीसस क्राइस्ट को तमिल हिन्दू बताया गया. 26 फरवरी को इस किताब का रीलॉंच हो रहा है.

राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के पांच संस्‍थापकों में से एक गणेश दामोदर(बाबाराव) सावरकर ने 1946 में छपी पुस्तक 'क्राइस्ट परिचय' में ये दावा किया था कि जीजस क्राइस्‍ट का जन्‍म तमिल हिंदू के रूप में हुआ था. वो तमिलनाडु के विश्वकर्मा ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. 26 फरवरी को इस किताब को मराठी में दोबारा लांच किया जा रहा है. स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक (सावरकर नेशनल मेमोरियल) इस पुस्तक का विमोचन करेंगे.

 राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के पांच संस्‍थापक थे जिसमें से एक थे गणेश दामोदर(बाबाराव) सावरकर

ये हैं पुस्तक के दावे-

- ईसाई धर्म हिंदू धर्म का ही एक पंथ है.

- वर्तमान फिलीस्‍तीन और अरब इलाके हिंदू भूमि हुआ करते थे.

- क्राइस्ट का असली नाम केशव कृष्णा था. उनका रंग काला था और उनकी मातृ भाषा तमिल थी.

- जब क्राइस्ट 12 साल के थे तब ब्राह्मण परंपरा के अनुसार उनका जनेऊ संस्कार हुआ था. उन्होंने जनेऊ भी पहना था.

- जब क्राइस्ट मृत्यु शैया पर थे, तो उन्हें ठीक होने के लिए जड़ी-बूटियों दी गईं थीं.

- कश्मीर में क्राइस्ट ने 3 साल भगवान शिव की आराधना की थी, और उन्हें शिव के दर्शन हुए.

- उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय हिमालय पर बिताया. वहां उनकी समाधि भी है.

- क्राइस्ट का परिवार भारतीय परिधान पहनता था और उनके शरीर पर हिंदू चिन्ह बने हुए थे.

- क्राइस्ट ने भारत की यात्र की और योग सीखा.

- फिल्स्तीन की अरबी भाषा तमिल भाषा का ही रूपांतरण है.

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत सावरकर का कहना है कि- 'इस पुस्तक का 70 सालों के बाद दोबारा विमोचन करने के पीछे कोई दुर्भावना नहीं है. ये मेरे दादा जी की लिखी कुछ पुस्तकों में से एक है. ये पुस्तकें अब उपलब्ध नहीं हैं इसलिए पाठकों के हित के लिए दोबारा इनका विमोचन किया जा रहा है. हमें पता है कि इसपर सवाल उठाए जाएंगे. लेकिन गणेश सावरकर ने किताब में जो भी लिखा वो नया नहीं है. इसे लिखने से पहले काफी रिसर्च की गई थी.'

 पुस्तक 'क्राइस्ट परिचय' का एक पृष्ठ

वरिष्ठ पादरी फादर वार्नर डिसूजा का कहना है कि 'इस तरह की पुस्तकें सच्चे ईसाइयों के विश्वास को नहीं हिला सकतीं. हम एक बहुत ही धार्मिक देश में रहते हैं, और हमारा मानना है कि ईश्वर हमारे दिल में रहते हैं.'

ये भी पढ़ें- गोरे नहीं काले थे जीजस क्राइस्ट!

अब लोगों ने ईश्वर को लेकर अपने मन में जो कल्पना की, वो तो उसी रूप में अपने ईश्वर को स्वीकार करेंगे. इस तरह के दावे कररने वाले तो करते रहेंगे. अभी पुस्तक का विमोचन नहीं हुआ है, लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि विमोचन के बाद क्या प्रतिक्रियाएं आती हैं. बहरहाल इस पुस्तक ने रीलीज से पहले ही ईसा मसीह से जुडी बहस में एक और अध्यया तो जोड़ ही दिया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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