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मुंहासे के इलाज के लिए लॉकडाउन का ई-पास मांगा जा रहा है, खुदा खैर करे!

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 07 मई, 2021 10:06 PM
  • 07 मई, 2021 10:04 PM
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भारत कोरोना से जूझ रहा है, राज्यों में लाकडाउन है, हर दिन तस्वीरें डरा रही हैं मगर अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनके लिए कोरोना तो बस मजाक के सिवा कुछ भी नहीं है. पूर्णिया जिले में लॉकडाउन के वक्त अपने पिंपल्स का इलाज कराने के लिए ईपास का आवेदन करना मूर्खता ही तो है.

भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इंसानों को पस्त करके रख दिया है. कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा एक ओर जहां लगातार बढ़ता जा रहा है वहीं दूसरी ओर लाशों के अंबार भी दिख रहे हैं. मौतों का तांडव ऐसा है कि पत्थर भी पिघल कर मोम बन जाने को तैयार है. डर है भय है दहशत है, लेकिन ऐसे माहौल में भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनके लिए सबकुछ सिवाय मजाक के कुछ भी नहीं है. मौजूदा हालात इतने भयावह और खतरनाक है कि इस वक्त बेवजह घर से बिल्कुल न के बराबर निकलने की हिदायत दी जा रही है. देश का हर हिस्सा लॉकडाउन की ज़द में है, अलग अलग राज्यों ने अपने अनुसार लॉकडाउन या तालाबंदी का ऐलान कर रखा है. हर राज्य के लिए चुनौती है कि वह अपने नागरिकों की हिफाज़त कर सके, राज्य सरकारों ने बंदी इसीलिए तो कर रखी है ताकि लोगों को घरों में कैद करके संक्रमण की चैन को तोड़ा जा सके. लगातार विज्ञापनों के ज़रिए भी सलाह दी जा रही है कि घर में रहकर खुद की सुरक्षा करें. बेवजह अस्पतालों के भी चक्कर न काटें लेकिन क्या ही कहा जाए कुछ लोगों के बारे में. बिहार राज्य के पूर्णिया शहर में जो हुआ वो आपको हैरत में डाल देगा.

ये अपने में शर्मनाक है कि कोविड की इन जटिलताओं में भी लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं

बिहार में कोरोना की चैन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन लगा हुआ है. कोई भी गतिविधि करना चाहता है तो उसको पहले इंटरनेट के माध्यम से ईपास के लिए आवेदन करना होता है जिसमें आवेदनकर्ता को बाहर निकलने की सटीक वजह बतानी होती है. इसके बाद जिला प्रशासन उसकी ज़रूरत को देखकर ही उसके आवेदन को स्वीकार्य करता है या फिर निरस्त कर देता है. पूर्णिया प्रशासन भी अपने स्तर पर इसी फार्मूले पर कार्य कर रहा है.

तमाम तरह के आवेदन अबतक आ चुके हैं, काफी आवेदन स्वीकारे जा चुके हैं जबकि कई आवेदनों को गैर...

भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इंसानों को पस्त करके रख दिया है. कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा एक ओर जहां लगातार बढ़ता जा रहा है वहीं दूसरी ओर लाशों के अंबार भी दिख रहे हैं. मौतों का तांडव ऐसा है कि पत्थर भी पिघल कर मोम बन जाने को तैयार है. डर है भय है दहशत है, लेकिन ऐसे माहौल में भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनके लिए सबकुछ सिवाय मजाक के कुछ भी नहीं है. मौजूदा हालात इतने भयावह और खतरनाक है कि इस वक्त बेवजह घर से बिल्कुल न के बराबर निकलने की हिदायत दी जा रही है. देश का हर हिस्सा लॉकडाउन की ज़द में है, अलग अलग राज्यों ने अपने अनुसार लॉकडाउन या तालाबंदी का ऐलान कर रखा है. हर राज्य के लिए चुनौती है कि वह अपने नागरिकों की हिफाज़त कर सके, राज्य सरकारों ने बंदी इसीलिए तो कर रखी है ताकि लोगों को घरों में कैद करके संक्रमण की चैन को तोड़ा जा सके. लगातार विज्ञापनों के ज़रिए भी सलाह दी जा रही है कि घर में रहकर खुद की सुरक्षा करें. बेवजह अस्पतालों के भी चक्कर न काटें लेकिन क्या ही कहा जाए कुछ लोगों के बारे में. बिहार राज्य के पूर्णिया शहर में जो हुआ वो आपको हैरत में डाल देगा.

ये अपने में शर्मनाक है कि कोविड की इन जटिलताओं में भी लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं

बिहार में कोरोना की चैन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन लगा हुआ है. कोई भी गतिविधि करना चाहता है तो उसको पहले इंटरनेट के माध्यम से ईपास के लिए आवेदन करना होता है जिसमें आवेदनकर्ता को बाहर निकलने की सटीक वजह बतानी होती है. इसके बाद जिला प्रशासन उसकी ज़रूरत को देखकर ही उसके आवेदन को स्वीकार्य करता है या फिर निरस्त कर देता है. पूर्णिया प्रशासन भी अपने स्तर पर इसी फार्मूले पर कार्य कर रहा है.

तमाम तरह के आवेदन अबतक आ चुके हैं, काफी आवेदन स्वीकारे जा चुके हैं जबकि कई आवेदनों को गैर जरूरी समझते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. इसी बीच प्रशासन के पास एक ऐसा आवेदन आया जिसने प्रशासन को हैरत में डाल दिया, प्रशासनिक अधिकारी ही आपस में माथापच्ची करने बैठ गए कि भाई अब इस आवेदन का क्या ही किया जाए. इस आवेदन में आवेदन कर्ता ने अपने पिंपल्स के इलाज के लिए जिला प्रशासन से अनुमति मांगी थी.

आवेदनकर्ता चाहता था कि प्रशासन उसे पास उपलब्ध कराए ताकि वह अपने पिंपल्स का इलाज कराए. मामला शहर के जिलाधिकारी तक पहुंचा तो जिलाधिकारी ने इस आवेदन को ट्विटर पर ट्वीट कर दिया और लिखा कि 'भाई लॉकडाउन के वक्त ई पास बनवाने के ज्यादातर एप्लिकेशन की वास्तविक वजहें होती हैं. लेकिन हमें कुछ ऐसी रिक्वेस्ट भी मिलते हैं. भाई साहब, आपके मुंहासे का इलाज कुछ समय बाद भी हो सकता है.'

शहर के डीएम राहुल कुमार के इस ट्वीट के बाद लोगों की प्रतिक्रिया भी जमकर देखने को मिली और यह ट्वीट वायरल हो गया. भारत को कोरोना वायरस से मजबूती के साथ लड़ना है तो देश के हर नागरिकों को इस लड़ाई में अहम योगदान देने की ज़रूरत है लेकिन ऐसे बेपरवाह नागरिक खुद को तो जोखिम में डालने का प्रयास तो करते ही हैं साथ ही अपने पूरे परिवार के लिए भी ऐसे लोग किसी मुसीबत से कम नहीं होते हैं.

ये आपदा का वक्त है इस समय खुद का ख्याल रखना चाहिए परिवार की सुरक्षा करनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि कोरोना की चैन को तोड़ने में सरकार और प्रशासन की मदद करें लेकिन नहीं ये लोग सड़कों पर घूमते रहना चाहते हैं. इनके लिए सबकुछ फिल्मी है, न तो इन्हें अस्पतालों में बिलखते परिजन नज़र आ रहे और न ही उठते जनाज़े और जलती चिताएं.

अभी भी वक्त है देश के हर नागरिक खुद से शपथ लें और देश के साथ कोरोना जैसी आपदाओं से जंग करें. ये जंग मैदान पर आकर नहीं बल्कि घरों में कैद होकर ही लड़नी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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