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सरोगेसी... जिसके गर्भ में हैं सवाल ही सवाल!

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 25 जनवरी, 2022 04:17 PM
  • 25 जनवरी, 2022 03:15 PM
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नि:संतान दंपत्तियों के आग्रह के प्रति मेरी पूरी संवेदना है. बच्चे की चाहत कितनी बड़ी होती है, ये भी समझता हूं. लेकिन पता नहीं क्यों सरोगेसी का मामला जहन में कुछ अटक सा जाता है. जब भी सरोगेसी के बारे में सुनता हूं, ऐसा लगता है जैसे कहीं अपराध हो रहा है.

क्या ऐसे परिवार की कल्पना की सकती है, जिसके पास एक कार हो और उस घर की महिला अपनी कोख किराए पर देती हो? यानी सरोगेट मदर का काम करती हो. ऐसा होना कल्पना से परे है. तो फिर ये सरोगेट मदर कहां से आती हैं? और कहां चली जाती हैं? एक बच्चे के जन्म के साथ बहुत सारी मोह-माया जुड़ी होती है, तो सरोगेसी के मामले में उनका क्या होता है?

मेरा सरोगेसी से उतना ही जुड़ाव है, जितना कि मीडिया में आई किसी खबर से समाज का होता है. मैं ऐसी किसी महिला से अब तक नहीं मिला, जिसने अपनी कोख किराए पर दी हो. लेकिन मिलने की तमन्ना बहुत है. क्योंकि, बहुत से सवाल हैं मातृत्व के इस नए रूप को लेकर. सिर्फ सरोगेट मदर ही नहीं, उससे जन्मे बच्चे और बाद में उसका लालन-पालन करने वाले माता-पिता से जुड़े भी बहुत से कौतूहल हैं...

सरोगेसी क्या वाकई जायज जरूरत पूरी कर रही है? इस व्यवस्था से होने वाले सामाजिक बदलाव का क्या?

1. क्या एक सरोगेट महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को उसी नजरिये से देखती है, जैसे कि प्राकृतिक रूप से गर्भस्थ महिला?

2. एक सरोगेट महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर क्या सपने देख होगी, जबकि उसे पता है कि यह किसी और का है, और किसी और के ही घर पलेगा?

3. एक गर्भस्थ महिला अपने अंश से लगाव के कारण प्रसव पीड़ा सह जाती है. एक सरोगेट महिला के मन में प्रसव पीड़ा के दौरान क्या चलता होगा?

4. बच्चे को जन्म न दे पाने वाले दंपत्ति और गर्भावस्था की झंझट से बचने वाले सेलिब्रिटी/अमीर कपल के अंतर को सरोगेट महिला कैसे महसूस करती होगी?

5. क्या एक सरोगेट महिला को वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता होगा कि जिसके बच्चे को उसने अपना गर्भ दिया है वो एक जरूरतमंद दंपत्ति...

क्या ऐसे परिवार की कल्पना की सकती है, जिसके पास एक कार हो और उस घर की महिला अपनी कोख किराए पर देती हो? यानी सरोगेट मदर का काम करती हो. ऐसा होना कल्पना से परे है. तो फिर ये सरोगेट मदर कहां से आती हैं? और कहां चली जाती हैं? एक बच्चे के जन्म के साथ बहुत सारी मोह-माया जुड़ी होती है, तो सरोगेसी के मामले में उनका क्या होता है?

मेरा सरोगेसी से उतना ही जुड़ाव है, जितना कि मीडिया में आई किसी खबर से समाज का होता है. मैं ऐसी किसी महिला से अब तक नहीं मिला, जिसने अपनी कोख किराए पर दी हो. लेकिन मिलने की तमन्ना बहुत है. क्योंकि, बहुत से सवाल हैं मातृत्व के इस नए रूप को लेकर. सिर्फ सरोगेट मदर ही नहीं, उससे जन्मे बच्चे और बाद में उसका लालन-पालन करने वाले माता-पिता से जुड़े भी बहुत से कौतूहल हैं...

सरोगेसी क्या वाकई जायज जरूरत पूरी कर रही है? इस व्यवस्था से होने वाले सामाजिक बदलाव का क्या?

1. क्या एक सरोगेट महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को उसी नजरिये से देखती है, जैसे कि प्राकृतिक रूप से गर्भस्थ महिला?

2. एक सरोगेट महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर क्या सपने देख होगी, जबकि उसे पता है कि यह किसी और का है, और किसी और के ही घर पलेगा?

3. एक गर्भस्थ महिला अपने अंश से लगाव के कारण प्रसव पीड़ा सह जाती है. एक सरोगेट महिला के मन में प्रसव पीड़ा के दौरान क्या चलता होगा?

4. बच्चे को जन्म न दे पाने वाले दंपत्ति और गर्भावस्था की झंझट से बचने वाले सेलिब्रिटी/अमीर कपल के अंतर को सरोगेट महिला कैसे महसूस करती होगी?

5. क्या एक सरोगेट महिला को वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता होगा कि जिसके बच्चे को उसने अपना गर्भ दिया है वो एक जरूरतमंद दंपत्ति हैं या पैसों के प्रभाव से गर्भ खरीदने वाले अमीर?

6. सरोगेसी वाली महिला उस गमले की तरह क्यों है, जिसे नर्सरी से कोई भी खरीद सकता है?

7. गर्भावस्था के दौरान सरोगेट महिला को ये कितनी बार ख्याल आता होगा कि यदि उसके पास भी पैसा होता तो वो ये काम क्यों करती?

8. किराए की कोख देने वाली महिलाएं ये काम क्या समाजसेवा की तरह खुशी-खुशी करती हैं, या पैसों की तंगी उन्हें ये काम करने पर मजबूर करती है?-क्या अमीर परिवारों की महिलाएं भी किसी दूसरे के बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी कोख किराए पर देती हैं?

9. क्या सरोगेसी से जन्मे बच्चे की परवरिश और प्राकृतिक रूप से परिवार में जन्मे बच्चे की परवरिश में फर्क देखा जाता है?

10. यदि दोनों तरह के बच्चे की परवरिश एक जैसी ही होती है, तो फिर ये अनुवांशिकी के प्रति इतना आग्रह क्यों है?

11. बच्चा मां पर गया है या पिता पर? इस बात को खोजने की जितनी छटपटाहट हमारे समाज में है, सरोगेसी से जन्मे बच्चों को लेकर वही समाज क्या अपनी प्रकृति बदल पाता है?

12. सरोगेसी या बच्चों की नर्सरी का कारोबार इतना ही सहज और जायज है, तो फिर क्या ये अपना 'वंश' आगे बढ़ाने की प्रवृत्ति में बदलाव का सूचक है?

13. कितने लोग होंगे जिनके बगीचे में वही पौधे होंगे, जिनके बीज उन्होंने विकसित किए? यदि गमलों में रोपित पौधे हमें स्वीकार्य हैं तो क्या आने वाला समय उन्हीं बच्चों की पौध का होगा, जो खरीदे गए गर्भ में रोपे गए होंगे?

14. सरोगेसी से जन्मे अपने बच्चे को सेलिब्रिटीज़ तो समाज के सामने ले आते हैं, क्या आम परिवारों वाले माता-पिता भी ऐसा कर पाते हैं या वे जीवन भर ये बताने में झिझकते ही रहते हैं?

15. प्रसव पीड़ा सहने के बजाए बच्चे को सर्जरी के जरिए जन्म देने का ट्रेंड चल पड़ा है. इस बात पर बहस बाद में करेंगे कि कौन सा तरीका ज्यादा बेहतर होता है, लेकिन इस ट्रेंड से ये भी माना जा सकता है कि प्रसव पीड़ा को बायपास करने के लिए जब सर्जरी चुनी जा सकती है तो 9 महीने के गर्भ को बायपास करने के लिए सरोगेसी भी चुनी जा सकती है. है ना?

16. प्रकृति ने तो एक बच्चे के जन्म में माता-पिता का ही प्रावधान किया था, लेकिन विज्ञान की मेहरबानी से सरोगेसी भी होने लगी. कहा जाता है कि मां का कर्ज नहीं उतारा जा सकता, तो सरोगेसी के मामले में क्या होता होगा? मां अपने बच्चे से अलग-अलग मौकों पर कहती है कि 'मैंने तुझे 9 महीने अपने खून से सींचा है' या '9 महीने तुझे अपने पेट में रखा है', सरोगेसी के मामले में क्या मां-बच्चे के बीच यह बातें बदल जाती होगी?

17. सरोगेसी का ट्रेंड तो हालांकि नया है, लेकिन क्या इस बात की गुंजाइश नहीं है कि इस प्रकिया से जन्मा बच्चा बड़ा होकर अपनी उस 'मां' को ढूंढे जिसने 9 महीने उसे अपने गर्भ में रखा? या इससे बचने के लिए सरोगेसी की बात उन बच्चों और समाज से छुपाई जाएगी?

नि:संतान दंपत्तियों के आग्रह के प्रति मेरी पूरी संवेदना है. बच्चे की चाहत कितनी बड़ी होती है, ये भी समझता हूं. लेकिन पता नहीं क्यों सरोगेसी का मामला मेरे जहन में कुछ अटक सा जाता है. जब भी सरोगेसी के बारे में सुनता हूं, ऐसा लगता है जैसे कहीं अपराध हो रहा है. जायज अपराध.

मैं इस बहस में नहीं पड़ूंगा कि सरोगेसी के जरिए संतान प्राप्त करने वाले माता-पिता किसी अनाथ को गोद क्यों नहीं ले लेते? मैं माता-पिता के उस मनोभाव को अच्छी तरह से समझता हूं कि दोनों या किसी कारण से दोनों में से एक का अंश तो बच्चे में रहे ही. जब तक ये आसक्ति रहेगी, सरोगेसी का 'कारोबार' फलता-फूलता रहेगा. सरोगेसी को कारोबार कहते हुए मैं उन महिलाओं के प्रति कठोर नहीं होना चाहता जो अपनी कोख किराए पर दे रही हैं. गरीब-मजबूर महिलाओं का जब दोहन होता है, तो वो किसी भी स्तर तक होता है. सरोगेसी को लेकर मेरी सहानुभूति है, और ऐसी कोख से जन्मे बच्चों के प्रति भी.

कामना यही है कि सरोगेसी रहे तो एक जायज जरूरत के दायरे तक ही रहे. सरोगेसी उन लोगों की पहुंच से दूर हो, जो पैसे के बल पर फैशन के चलते इसके उपभोक्ता बनना चाहते हैं. यदि किसी के पास दो बच्चे पहले से हैं, तो तीसरा बच्चा सरोगेसी से पैदा करवाने का क्या तुक है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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