• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

जानते हैं जापान में हड़ताल के दौरान क्‍या होता है ?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 अप्रिल, 2018 09:29 PM
  • 02 अप्रिल, 2018 09:29 PM
offline
भारत बंद के नाम पर हो रही हिंसा आगजनी और तोड़फोड़ को देखकर महसूस होता है कि हम भारतीय आज जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही लगातार काटे जा रहे हैं. कह सकते हैं कि ऐसे विरोध प्रदर्शनों से हमारा देश लगातार पीछे होता चला जा रहा है.

भारत बंद है, हिंसा का दौर बदस्तूर जारी है. जगह जगह झड़प हो रही है और प्रशासन बेबसी लिए उसे संभालने में नाकाम है. चाहे न्यूज़ वेबसाइट हों या फिर फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, भारत बंद की ख़बरों से पूरा इंटरनेट पटा पड़ा है. जो लोग तकनीकी कारणों से इंटरनेट से दूर हैं उनकी टीवी स्क्रीन पर भारत बंद और उससे उपजी हिंसा से जुड़ी खबरें हैं. लोग अपनी अपनी टीवी स्क्रीन पर स्टूडियो में बैठे ऐंकर्स के माध्यम से नजरे गड़ाए देख रहे हैं कि कहां गोली चली, कहां पथराव हुआ. कह सकते हैं कि न्यूज़ रूम से पत्थरबाजी से लेकर लाठीचार्ज तक और धारा 144 से लेकर कर्फ्यू तक के पल-पल के अपडेट जनता को दिए जा रहे हैं.

भारत बंद के नाम पर जिस तरह हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं उससे पूरा देश शर्मसार हुआ है

क्यों किया गया भारत बंद का आयोजन और उससे क्या हुआ

एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम (एसएसी/एसटी एक्ट) को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय के विरोध में दलित और आदिवासी संगठन देशभर में विरोध- प्रदर्शन कर रहे हैं. देश के कई हिस्सों से हिंसक प्रदर्शन की ख़बरें आ रही हैं. कई जगह लोगों के गुस्से ने तोड़फोड़ व अगजनी का रूप ले लिया है. मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर और मुरैना में विरोध प्रदर्शन के दौरान 9 लोगों की मौत हो गई है और काफी लोग गंभीर रूप से घायल हैं.

टीवी पर इन ख़बरों को दिखाना कितना देश हित में है या फिर इससे देश का कितना अहित होगा ये वो जानें जिनका जैसा उद्देश्य है. बात कुछ यूं है कि इन प्रदर्शनों के नाम पर अपने लोगों के चोटिल या घायल होने पर लोगों का आहत होना एक बेहद सामान्य प्रक्रिया है. क्रिया की प्रतिक्रिया मिल रही है, पूरा देश जल रहा है. प्रदर्शन से जुड़ी कोई न कोई नई खबर हर पांच मिनट पर आ रही है. ये...

भारत बंद है, हिंसा का दौर बदस्तूर जारी है. जगह जगह झड़प हो रही है और प्रशासन बेबसी लिए उसे संभालने में नाकाम है. चाहे न्यूज़ वेबसाइट हों या फिर फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, भारत बंद की ख़बरों से पूरा इंटरनेट पटा पड़ा है. जो लोग तकनीकी कारणों से इंटरनेट से दूर हैं उनकी टीवी स्क्रीन पर भारत बंद और उससे उपजी हिंसा से जुड़ी खबरें हैं. लोग अपनी अपनी टीवी स्क्रीन पर स्टूडियो में बैठे ऐंकर्स के माध्यम से नजरे गड़ाए देख रहे हैं कि कहां गोली चली, कहां पथराव हुआ. कह सकते हैं कि न्यूज़ रूम से पत्थरबाजी से लेकर लाठीचार्ज तक और धारा 144 से लेकर कर्फ्यू तक के पल-पल के अपडेट जनता को दिए जा रहे हैं.

भारत बंद के नाम पर जिस तरह हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं उससे पूरा देश शर्मसार हुआ है

क्यों किया गया भारत बंद का आयोजन और उससे क्या हुआ

एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम (एसएसी/एसटी एक्ट) को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय के विरोध में दलित और आदिवासी संगठन देशभर में विरोध- प्रदर्शन कर रहे हैं. देश के कई हिस्सों से हिंसक प्रदर्शन की ख़बरें आ रही हैं. कई जगह लोगों के गुस्से ने तोड़फोड़ व अगजनी का रूप ले लिया है. मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर और मुरैना में विरोध प्रदर्शन के दौरान 9 लोगों की मौत हो गई है और काफी लोग गंभीर रूप से घायल हैं.

टीवी पर इन ख़बरों को दिखाना कितना देश हित में है या फिर इससे देश का कितना अहित होगा ये वो जानें जिनका जैसा उद्देश्य है. बात कुछ यूं है कि इन प्रदर्शनों के नाम पर अपने लोगों के चोटिल या घायल होने पर लोगों का आहत होना एक बेहद सामान्य प्रक्रिया है. क्रिया की प्रतिक्रिया मिल रही है, पूरा देश जल रहा है. प्रदर्शन से जुड़ी कोई न कोई नई खबर हर पांच मिनट पर आ रही है. ये ख़बरें हमें बता रही है कि हम अपनी आंखों के सामने अपने देश को बर्बाद होते देख तो रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे हैं.

भारत बंद के नाम पर हो रहे इस प्रदर्शन को ध्यान से देखने पर कुछ चीजें निकल कर सामने आ रही हैं. कुछ के लिए ये प्रदर्शन वक़्त की जरूरत और अपने हक की लड़ाई है. तो वहीं कुछ के लिए बेरोजगारी और महंगाई के जटिल पलों में "प्रदर्शन" के नाम पर टाइम पास करने का माध्यम. बात घूम फिर कर फिर वहीं आ गयी है इससे नुकसान देश का है.

उग्र होने के बाद कहीं रेलवे को क्षतिग्रस्त किया जा रहा है तो कहीं बसें फूंकी जा रही हैं. कहीं ऑटो को आग के हवाले किया जा रहा है तो कहीं सड़कों पर खड़ी कारें आम जनता के गुस्से का शिकार हो रही हैं. अपने आस पास देखिये, मिलेगा कि जो मरीज हैं वो बेचारे अपने-अपने घरों में दर्द से तड़प रहे हैं. लाचारी लिए तीमारदार उन बीमारों को दर्द से तड़पते हुए देख रहे हैं मगर उनके लिए कुछ कर नहीं पा रहे. शायद उन्हें इस बात का डर है कि अगर वो मरीज को इलाज के लिए अस्पताल ले गए और रास्ते में उन्हें कुछ हो गया तो क्या होगा.'

बच्चे घरों में दुबके बैठे हैं. जो राजू और पिंकी इस वक़्त तक दोस्तों के साथ क्रिकेट में बैटिंग न मिलने पर लड़ते थे आज वो एक ऐसी लड़ाई देख रहे हैं जिसका भूत निस्संदेह उन्हें भविष्य में डराएगा. जो लोग दफ्तर में हैं उनके सामने सबसे बड़ी चिंता यही है कि शाम को वो अपने-अपने घर कैसे जाएंगे. वो जा भी पाएंगे या कोई ऐसी घटना हो जाएगी जिससे हर बार की तरह इंसानियत शर्मसार होगी.

इस तरह की गतिविधियों से हम देश को लगातर पीछे कर रहे हैं

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) एक्ट के दुरुपयोग पर अपनी गहरी चिंता जताई थी और इसके तहत मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी की जगह शुरुआती जांच की बात कही थी. विभिन्न दलित संगठन इस फ़ैसले से आहत और नाराज़ हो गए. खैर, केन्द्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है.. कहा जा सकता है कि जो होना था वो चुका है. जानें जा चुकी हैं. लोग मर चुके हैं. सरकारी संपत्ति को नुकसान हो चुका है.

भारत बंद के नाम पर चल रहे इस प्रदर्शन को देखकर मुझे कहीं पढ़ा एक किस्सा याद आ गया. किस्सा द्वितीय विश्व युद्ध अमेरिका और जापान से जुड़ा है. पर्ल हार्बर की घटना के बाद अमेरिका ने जापान के दो बड़े शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला किया था. दूसरे विषय युद्ध के दौरान ये हमला कितना खतरनाक था इसका अंदाजा आप आज भी जापान में पैदा हो रहे बच्चों को देखकर लगा सकते हैं. हां तो अमेरिका जापान पर हमला कर चुका था. जापानी लोग जहां एक तरफ इस घटना से दुखी थे, तो वहीं इस घटना के बाद उनके दिल में अमेरिका के लिए नफरत हो गयी थी. उन्हें सबसे ज्यादा दुःख अमेरिका के प्रति अपनी सरकार के लचर रवैये से हुआ.

बात जब विरोध की हो रही है तो हमें जापानियों से कुछ सीख लेनी चाहिए

बहरहाल, अमेरिका तब भी जापान में अपनी चीजें निर्यात कर रहा था और चूंकि जापानी अमेरिका से नाराज थे तो उन्होंने इसका और अपनी सरकार के लचर रवैये का विरोध करने का सोचा. जापानियों ने विरोध स्वरूप काम बंद करने के बजाए अपना प्रोडक्शन डबल कर दिया. यानी जो जापान तब तक दो जोड़ी जूते बना रहा था उसने चार जोड़ी बनाने शुरू कर दिए. अमेरिका रोज़ अपनी चीजें जापान भेजता और रोज़ जापानी उसे लौटा देते. इससे तब न सिर्फ अमेरिका जैसे देश का अपमान हुआ बल्कि उन्हें काफी नुकसान भी हुआ. मगर इस घटना में जापानियों ने जिस तरह अपना विरोध दर्ज किया उससे ये बता चलता है कि उन्होंने अपना काम नहीं बंद किया बल्कि बढ़ाया जिससे दोनों ही देशों अमेरिका और जापान को झुकना पड़ा और बाद में जाकर चीजें सामान्य हुईं.

भारत बंद के नाम पर हो रही हिंसा के दौरान जापान की ये घटना इसलिए भी याद आई क्योंकि वहां आम जापानियों ने विरोध के नामपर अपनी संपत्ति का नुकसान नहीं किया. न ही उन्होंने अपने लोगों पर गोली चलाई. विरोध के लिए उन्होंने काम के साथ समझौता नहीं किया और काम करते हुए बल्कि जयादा काम करते हुए अपना विरोध दर्ज किया.

बात का सार बस इतना है कि, अब वो वक़्त आ गया है जब लोगों क समझ लेना चाहिए कि एक ऐसे जटिल दौर में जब हमारे पास रोजगार के विकल्प कम हैं इस तरह विरोध के नाम पर देश और देश से जुड़ी चीजों को क्षति पहुंचाना और कुछ नहीं हमें सदियों पीछे ढकेल रहा है. साथ ही अगर हमें विरोध ही करना है तो हम ऐसा विरोध करें जिसके लिए हमें भविष्य में शर्मिंदा न होना पड़े.

ये भी पढ़ें -

'रामजी' के सहारे भाजपा ने बाबा साहब अंबेडकर की घर वापसी करा ली है ?

भीमराव अंबेडकर जी की क्लोनिंग करना चमत्कार है या बैसाखियों का प्रचार !

कर्नाटक में कांग्रेस की दलित पॉलिटिक्स में बुरी तरह उलझ चुकी है बीजेपी


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲