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Rinku Sharma murder case: किसी हत्या में सांप्रदायिक एंगल ढूंढने का घिनौना खेल!

    • अनु रॉय
    • Updated: 13 फरवरी, 2021 10:27 PM
  • 13 फरवरी, 2021 10:27 PM
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चाहे हम हिंदू-मुस्लिम एकता की कितनी ही बात क्यों न कर लें एक अन-सेड वैमनस्यता दोनों तरफ़ से पलती ही रहती है. नहीं तो कोई ऐसे ही किसी छोटी सी बर्थ-डे पार्टी वाले झगड़े या जय श्री राम के नारे के ऊपर चाकू पीठ में नहीं घोप कर चला जाता है. और न ही सिर्फ़ गाय की जान के लिए किसी अख़लाक़ की जान ले ली जाती है.

अब्दुल एक ट्रक में गाय लेकर कहीं जा रहा था. रास्ते में कुछ लोगों ने उसे गायों के साथ देखा और उसका पीछा करने लगे. कुछ दूर पीछा करने के बाद उसे पकड़ कर पीटने लगे. इतने में पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई दिया और जो लोग अब्दुल को मार रहे थे वो भागने लगे और अब्दुल भी ट्रक स्टार्ट करके वहां से निकल गया. ट्रक की स्पीड ज़्यादा थी और एक टर्निंग पर उससे गाड़ी संभली नहीं और ऐक्सिडेंट हो गया. दुःखद बात ये रही कि घटना स्थल पर ही अब्दुल की मौत हो गयी. पुलिस ने इस हादसे को देखा और आस-पास के लोगों से बयान भी लिया और फिर रिपोर्ट में ये बताया कि अब्दुल की मौत सड़क हादसे में हुई है. अब ज़रा कल से जो लोग ज्ञान की उल्टियां कर रहें हैं ज़रा ईमान से एक बात बताएं कि आप में से कितने लोग इसे सड़क हादसा कहेंगे और कितने लोग लिंचिंग? जवाब आपको भी पता है. हैशटैग के साथ आप शर्मिंदा होना शुरू कर देंगे. आपके हिसाब से हिंदू और हिंदुस्तान डूब मरने पर तैयार हो जाएगा.

देखिए साहब, ऊपर जो मैंने लिखी है वो एक हायपोथेटिक्ल सिचुएशन है लेकिन वो फिर भी सच ही है. चाहे हम हिंदू-मुस्लिम एकता की कितनी ही बात क्यों न कर लें एक अन-सेड वैमनस्यता दोनों तरफ़ से पलती ही रहती है. नहीं तो कोई ऐसे ही किसी छोटी सी बर्थ-डे पार्टी वाले झगड़े या जय श्री राम के नारे के ऊपर चाकू पीठ में नहीं घोप कर चला जाता है. और न ही सिर्फ़ गाय की जान के लिए किसी अख़लाक़ की जान ले ली जाती है.

रिंकू शर्मा की हत्या पर हमारी चुप्पी हमारा दोगलापन दिखाती है

और पुलिस की रिपोर्ट को आप कब से सच मनाने लगे? यही पुलिस जब कोई इनकाउंटर करती है तब आपको उसमें खोट ही खोट नज़र आता है. जब दिल्ली दंगों की चार्जशीट दाख़िल होती है तब बेईमान कहने से आप गुरेज़...

अब्दुल एक ट्रक में गाय लेकर कहीं जा रहा था. रास्ते में कुछ लोगों ने उसे गायों के साथ देखा और उसका पीछा करने लगे. कुछ दूर पीछा करने के बाद उसे पकड़ कर पीटने लगे. इतने में पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई दिया और जो लोग अब्दुल को मार रहे थे वो भागने लगे और अब्दुल भी ट्रक स्टार्ट करके वहां से निकल गया. ट्रक की स्पीड ज़्यादा थी और एक टर्निंग पर उससे गाड़ी संभली नहीं और ऐक्सिडेंट हो गया. दुःखद बात ये रही कि घटना स्थल पर ही अब्दुल की मौत हो गयी. पुलिस ने इस हादसे को देखा और आस-पास के लोगों से बयान भी लिया और फिर रिपोर्ट में ये बताया कि अब्दुल की मौत सड़क हादसे में हुई है. अब ज़रा कल से जो लोग ज्ञान की उल्टियां कर रहें हैं ज़रा ईमान से एक बात बताएं कि आप में से कितने लोग इसे सड़क हादसा कहेंगे और कितने लोग लिंचिंग? जवाब आपको भी पता है. हैशटैग के साथ आप शर्मिंदा होना शुरू कर देंगे. आपके हिसाब से हिंदू और हिंदुस्तान डूब मरने पर तैयार हो जाएगा.

देखिए साहब, ऊपर जो मैंने लिखी है वो एक हायपोथेटिक्ल सिचुएशन है लेकिन वो फिर भी सच ही है. चाहे हम हिंदू-मुस्लिम एकता की कितनी ही बात क्यों न कर लें एक अन-सेड वैमनस्यता दोनों तरफ़ से पलती ही रहती है. नहीं तो कोई ऐसे ही किसी छोटी सी बर्थ-डे पार्टी वाले झगड़े या जय श्री राम के नारे के ऊपर चाकू पीठ में नहीं घोप कर चला जाता है. और न ही सिर्फ़ गाय की जान के लिए किसी अख़लाक़ की जान ले ली जाती है.

रिंकू शर्मा की हत्या पर हमारी चुप्पी हमारा दोगलापन दिखाती है

और पुलिस की रिपोर्ट को आप कब से सच मनाने लगे? यही पुलिस जब कोई इनकाउंटर करती है तब आपको उसमें खोट ही खोट नज़र आता है. जब दिल्ली दंगों की चार्जशीट दाख़िल होती है तब बेईमान कहने से आप गुरेज़ नहीं करते. आज अपनी सलाहीयत के हिसाब से आपको पुलिस की रिपोर्ट को मानना है. न कि जो मर गया उसके बाप के बयान को. कितनी हिपोक्रेसी, कितना दोगलापन. उफ़्फ़.

रिंकू शर्मा की मौत महज़ बर्थडे पार्टी पर हुई लड़ाई का ख़ामियाज़ा है. अब्दुल का ऐक्सिडेंट लिंचिंग हो जाता है. सुनिए जब तक हम सब ग़लत को ग़लत और सही को सही नहीं कहना सीखेंगे रिंकू शर्मा और रहीम शाह की मौतें होती रहेंगी. आपको सच में इस बात का ज़रा भी ग़म नहीं कि किसी बाप से उसकी औलाद छीन ली गयी, किसी मां का आंचल सूना हो गया. आपको ज़रा दुःख नहीं हुआ रिंकू की मौत का क्योंकि वो आपके प्रॉपगैंडा में फिट नहीं हो रही थी. शर्मनाक है ये. अमानवीय है आपकी ऐसी सोच.

मुझे तो अख़लाक़ की बिलखती बेवा को देख कर भी उतना ही दुःख हुआ जितना रिंकु की मां को रोते देख कर. आप कैसे नहीं देख पाते रिंकू शर्मा की मां के आंसू और कैसे सिर्फ़ सिलेक्टिव हो कर अख़लाक़ की बेवा के लिए दुःखी हो पाते हैं. सुनिए आपके बारे में एक सच कह दूं, आपको न तो रिंकू शर्मा की मौत का दुःख है और न ही अब्दुल की लिंचिंग का. आप अपनी सहूलियत से प्ले-कॉर्ड लाते हैं. आप खुद को बुद्धिजीवी बताते हैं मुझे तो आप में जीवन ही नज़र नहीं आता. आप मुर्दों की भीड़ से ज़्यादा नहीं हैं.

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