• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

जिसे 4 जजों ने अनियमितता बताया वो सुप्रीम कोर्ट की 'परंपरा' रही है !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 15 जनवरी, 2018 10:01 PM
  • 15 जनवरी, 2018 10:01 PM
offline
ध्यान से देखा जाए तो क्या इन चारों जजों की भूमिका सवालों के घेरे में नहीं है? जिसे इन जजों ने सुप्रीम कोर्ट की अनियमितता कहा है, दरअसल वह तो कई सालों से चली आ रही सुप्रीम कोर्ट की परंपरा है.

सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने शुक्रवार को न्यायपालिका को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया था. उसे लेकर सियासी गलियारे में भी हलचल काफी तेज हो गई है. मामला भी इतना संवेदनशील है कि कोई भी कुछ भी कहने से बचता सा नजर आ रहा है. जिन चार जजों- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस रंजन गोगोई - ने इस चिंगारी को हवा दी है, वह भी सोमवार को काम पर वापस लौट आए हैं. जजों ने जैसे ही कहा कि पिछले कुछ महीनों से सुप्रीम कोर्ट में अनियमितताएं देखी जा रही हैं, वैसे ही मोदी सरकार और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर सवाल उठने शुरू हो गए. लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए तो जिसे इन जजों ने सुप्रीम कोर्ट की अनियमितता कहा है, दरअसल वह तो कई सालों से चली आ रही सुप्रीम कोर्ट की परंपरा है. अगर मनमर्जी से केस किसी जज को देना अनियमितता है तो फिर ऐसा तो कई सालों से हो रहा है. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने पिछले 20 साल के कई ऐसे केस उजागर किए हैं जो दिखाते हैं कि मनमर्जी से केस देना कोई अनियमितता नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की परंपरा है.

=> सबसे पहले 1998 में राजीव गांधी की हत्या के मामले में नलिनी और अन्य लोगों ने दोषी करार दिए जाने और मौत की सजा सुनाए जाने के खिलाफ याचिका डाली थी. राजीव गांधी की हत्या का मामला उस समय का सबसे हाई-प्रोफाइल मामला था, लेकिन इस केस को देश के मुख्य न्यायाधीश ने तीन जूनियर जजों- के टी थॉमस, डी पी वधावा और एस एम कादरी- को सौंप दिया. उस समय इसे लेकर कोई सवाल नहीं उठाया गया.

=> दूसरा मामला 1999 का है जब सीबीआई ने बोफोर्स मामले में एक नई चार्जशीट दायर की थी. उसमें सीबीआई ने एनआरआई भाइयों श्रीचंद हिंदुजा और गोपीचंद हिंदुजा पर गंभीर आरोप लगाए थे. ट्रायल कोर्ट ने हिंदुजा भाइयों को जमानत देने से मना कर दिया था. जब यह मामला जमानत...

सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने शुक्रवार को न्यायपालिका को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया था. उसे लेकर सियासी गलियारे में भी हलचल काफी तेज हो गई है. मामला भी इतना संवेदनशील है कि कोई भी कुछ भी कहने से बचता सा नजर आ रहा है. जिन चार जजों- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस रंजन गोगोई - ने इस चिंगारी को हवा दी है, वह भी सोमवार को काम पर वापस लौट आए हैं. जजों ने जैसे ही कहा कि पिछले कुछ महीनों से सुप्रीम कोर्ट में अनियमितताएं देखी जा रही हैं, वैसे ही मोदी सरकार और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर सवाल उठने शुरू हो गए. लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए तो जिसे इन जजों ने सुप्रीम कोर्ट की अनियमितता कहा है, दरअसल वह तो कई सालों से चली आ रही सुप्रीम कोर्ट की परंपरा है. अगर मनमर्जी से केस किसी जज को देना अनियमितता है तो फिर ऐसा तो कई सालों से हो रहा है. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने पिछले 20 साल के कई ऐसे केस उजागर किए हैं जो दिखाते हैं कि मनमर्जी से केस देना कोई अनियमितता नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की परंपरा है.

=> सबसे पहले 1998 में राजीव गांधी की हत्या के मामले में नलिनी और अन्य लोगों ने दोषी करार दिए जाने और मौत की सजा सुनाए जाने के खिलाफ याचिका डाली थी. राजीव गांधी की हत्या का मामला उस समय का सबसे हाई-प्रोफाइल मामला था, लेकिन इस केस को देश के मुख्य न्यायाधीश ने तीन जूनियर जजों- के टी थॉमस, डी पी वधावा और एस एम कादरी- को सौंप दिया. उस समय इसे लेकर कोई सवाल नहीं उठाया गया.

=> दूसरा मामला 1999 का है जब सीबीआई ने बोफोर्स मामले में एक नई चार्जशीट दायर की थी. उसमें सीबीआई ने एनआरआई भाइयों श्रीचंद हिंदुजा और गोपीचंद हिंदुजा पर गंभीर आरोप लगाए थे. ट्रायल कोर्ट ने हिंदुजा भाइयों को जमानत देने से मना कर दिया था. जब यह मामला जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उस समय के मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले को कोर्ट नंबर-8 को सौंप दिया, जिसके प्रमुख एक जूनियर जज एम बी शाह थे. वहां पर हिंदुजा भाइयों को 15 करोड़ रुपए का बॉन्ड देकर जमानत मिल गई. उस वक्त भी किसी ने यह नहीं कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने मनमानी करते हुए यह केस जूनियर जज को दिया.

=> इसी तरह 2004 में गुजरात दंगों से संबंधित बेस्ट बेकरी केस सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया था, जिसे उस समय के मुख्य न्यायाधीश ने कोर्ट नंबर-11 के हवाले कर दिया था. उसके जज अरिजीत पसायत थे, जो एक जूनियर जज थे.

=> यह सिलसिला आगे बढ़ा. 2005 में वकील लिलि थॉमस ने कई विधायकों और सांसदों की सदस्यता खारिज करने के लिए एक याचिका दायर की. इन विधायकों और सांसदों को अलग-अलग मामलों में दो या दो साल से अधिक की सजा हुई थी, लेकिन वे लोग एक अपील डालकर संसद की कार्रवाई का हिस्सा बन रहे थे. लिलि थॉमस की गेम चेंजर याचिका को उस समय के मुख्य न्यायाधीश ने कोर्ट नंबर 9 को सौंप दिया, जिसके प्रमुख जूनियर जज ए के पटनायक थे, लेकिन किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया.

=> ऐसा ही कुछ हुआ 2007 में भी, जब सोहराबुद्दीन शेख के भाई रुबाबुद्दीन शेख ने एक याचिका दायर की. आपको बता दें कि सोहराबुद्दीन वही शख्स है, जिसे फर्जी एनकाउंटर में मारा गया था और इसमें अमित शाह का नाम भी आ रहा था. राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण यह केस, जिससे अमित शाह और गुजरात पुलिस दोनों कटघरे में आ खड़े हुए थे, उसे कोर्ट नंबर 11 के हवाले कर दिया गया, जिसके प्रमुख जस्टिस तरुण चटर्जी काफी जूनियर जज थे.

=> 2009 में वरिष्ठ जज राम जेठमलानी ने कालेधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. कालेधन का जो मुद्दा 2014 के लोकसभा चुनावों में खूब भुनाया गया, उसे 2009 में कोर्ट नंबर 9 को सौंप दिया गया था, जिस पर जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और एस एस निज्जर ने सुनवाई की थी. यहां भी सुनवाई जूनियर जजों के हवाले की गई थी.

=> बेहद चर्चित 2जी स्कैम को लेकर जब 2010 में एक एनजीओ चलाने वाले वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, तो उसे भी कोर्ट नंबर 11 को सौंप दिया गया. इसकी सुनवाई जस्टिस जी एस सिंघवी और ए के गांगुली ने की थी.

इन सभी मामलों से एक बात तो साफ हो जाती है कि जिस मुद्दे की ओर सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने इशारा किया है दरअसल वह अनियमितता नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की परंपरा रही है. यह हमेशा से ही होता आ रहा है, लेकिन कभी किसी ने विरोध नहीं किया.

ये भी पढ़ें-

Fact Check: तो क्या अमित शाह ने कराई जस्टिस लोया के बेटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस ?

हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई.. जानिए, किस धर्म में पैदा हो रहे हैं सबसे ज्यादा बच्चे!

बदलने वाला है भारतीय पासपोर्ट, अब क्या होगा पुराने का?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲