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आसाराम को अपनी सजा के बारे में पहले से पता था! तभी तो...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 25 अप्रिल, 2018 02:53 PM
  • 25 अप्रिल, 2018 02:53 PM
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आसाराम को नाबालिग से रेप के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई है. देश के नामी वकीलों की मदद लेने वाले आसाराम को शायद यह पहले से अंदाजा था कि उसके जुर्म को कोई छुपा नहीं पाएगा. इसलिए उसने सभी वकीलों से अनबन कर ली.

आसाराम को 2013 के नाबालिग से रेप के मामले में जोधपुर कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी है. आसाराम के लिए 2013 के बाद से ही कोई राहत की खबर नहीं आई. और तभी से वाे जेल में ही रहा. आसाराम बापू ने अपने पूरे जेल के समय में कई वकील बदले उन्हें देश के दिग्गज वकीलों ने सपोर्ट तो किया, लेकिन उनमें से कोई भी आसाराम को बेल दिलाने में कामयाब नहीं रहा.

जब आसाराम दोषी करार नहीं दिए गए थे, जेल में बंद थे तब से ही लगातार वकीलों की फेरबदल चलती आ रही है. वकील आते रहे और जाते रहे पर लगता है आसाराम को कोई भी रास नहीं आया. 25 अप्रैल काे भी जोधपुर कोर्ट में भी आसाराम के साथ 14 वकीलों की फौज खड़ी थी, लेकिन उनपर दो सरकारी वकील भारी पड़ गए और 14 वकीलों की फौज भी आसाराम के लिए कुछ न कर पाई.

आसाराम का केस राम जेठमलानी, सुब्रमणियन स्वामी, सलमान खुर्शीद, के. के. मनन, राजू रामचंद्रन, सिद्धार्थ लूथरा, के. एस. तुलसी सहित देश के कई जाने माने वकीलों ने लड़ने की कोशिश की, लेकिन जिस तरह के हालात रहे थे उनमें से कोई भी बेल दिलाने में कामयाब नहीं रहा.

1. राम जेठमलानी..

राम जेठमलानी उन वकीलों में से एक हैं जिन्होंने सबसे पहले आसाराम का साथ दिया था. बेल दिलवाने के लिए राम जेठमलानी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन नाकामयाब रहे.

2. सलमान खुर्शीद...

सलमान खुर्शीद ने आसाराम को बेल दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था. दावा किया गया कि आसाराम को ट्राईगेमिनल न्यूरैल्जिया बीमारी है जिसकी वजह से माथे और चेहरे में भयानक दर्द रहता है. सलमान खुर्शीद ने कहा था कि आसाराम को गामा-नाइफ प्रोसीजर (एक तरह की सर्जरी) के लिए बेल चाहिए. कोर्ट ने इस मामले में बेल की अर्जी को खारिज कर दिया.

गौरतलब है कि इस बात के...

आसाराम को 2013 के नाबालिग से रेप के मामले में जोधपुर कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी है. आसाराम के लिए 2013 के बाद से ही कोई राहत की खबर नहीं आई. और तभी से वाे जेल में ही रहा. आसाराम बापू ने अपने पूरे जेल के समय में कई वकील बदले उन्हें देश के दिग्गज वकीलों ने सपोर्ट तो किया, लेकिन उनमें से कोई भी आसाराम को बेल दिलाने में कामयाब नहीं रहा.

जब आसाराम दोषी करार नहीं दिए गए थे, जेल में बंद थे तब से ही लगातार वकीलों की फेरबदल चलती आ रही है. वकील आते रहे और जाते रहे पर लगता है आसाराम को कोई भी रास नहीं आया. 25 अप्रैल काे भी जोधपुर कोर्ट में भी आसाराम के साथ 14 वकीलों की फौज खड़ी थी, लेकिन उनपर दो सरकारी वकील भारी पड़ गए और 14 वकीलों की फौज भी आसाराम के लिए कुछ न कर पाई.

आसाराम का केस राम जेठमलानी, सुब्रमणियन स्वामी, सलमान खुर्शीद, के. के. मनन, राजू रामचंद्रन, सिद्धार्थ लूथरा, के. एस. तुलसी सहित देश के कई जाने माने वकीलों ने लड़ने की कोशिश की, लेकिन जिस तरह के हालात रहे थे उनमें से कोई भी बेल दिलाने में कामयाब नहीं रहा.

1. राम जेठमलानी..

राम जेठमलानी उन वकीलों में से एक हैं जिन्होंने सबसे पहले आसाराम का साथ दिया था. बेल दिलवाने के लिए राम जेठमलानी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन नाकामयाब रहे.

2. सलमान खुर्शीद...

सलमान खुर्शीद ने आसाराम को बेल दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था. दावा किया गया कि आसाराम को ट्राईगेमिनल न्यूरैल्जिया बीमारी है जिसकी वजह से माथे और चेहरे में भयानक दर्द रहता है. सलमान खुर्शीद ने कहा था कि आसाराम को गामा-नाइफ प्रोसीजर (एक तरह की सर्जरी) के लिए बेल चाहिए. कोर्ट ने इस मामले में बेल की अर्जी को खारिज कर दिया.

गौरतलब है कि इस बात के लिए आसाराम का परीक्षण भी हुआ और कोर्ट ने कहा कि जब तक ये साबित नहीं हो जाता आसाराम को जमानत नहीं मिल सकती.

3. सुब्रमणियन स्वामी..

जब राम जेठमलानी और सलमान खुर्शीद असफल रहे तब सुब्रह्मनियन स्वामी ने कमान संभाली. आसाराम से जेल में मिलकर स्वामी ने कहा था कि वो आसाराम को बेल दिलवाएंगे, लेकिन लगातार चार बार वो कोर्ट में पेश नहीं हो पाए. आसाराम का बेल का सपना भी ऐसे ही टूट गया.

4. यू यू ललित...

आसाराम केस एडवोकेट उदय उमेश ललित का वकील के तौर पर आखिरी केसों में से एक था. यू यू ललित ने ये दलील दी थी कि पीड़िता का स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट ये बताता है कि वो इस घटना के दौरान नाबालिग नहीं थी और बालिग हो चुकी थी. इस दलील के साथ बेल की अर्जी दी गई थी और ये बात कही गई थी कि POCSO एक्ट के अंतरगत इस केस को नहीं देखना चाहिए. साथ ही ये भी कहा था कि पॉक्सो एक्ट और जुविनाइल एक्ट में उम्र की परिभाषा अलग-अलग है.

5. के. टी. एस. तुलसी...

के. टी. एस तुलसी जो अपने आप में एक जाना माना नाम है खुद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद भी हैं. आसाराम मामले में उन्होंने गुजरात के एक और वकील बी एस गुप्ता के साथ मिलकर इस मामले में खास प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति पर सवाल उठाए थे. साथ ही सेशन कोर्ट में पीड़िता के बयान के समय लेडी कॉन्सटेबल के मौजूद होने पर भी आपत्ती जताई.

6. सिद्धार्थ लूथरा...

सिद्धार्थ लूथरा ने भी आसाराम को बीमारी के आधार पर ही ज़मानत दिलवाने की कोशिश की थी. यहां तक कि सिद्धार्थ लूथरा ने ये मांग भी की थी कि आसाराम को कोर्ट लेकर आते समय भी सावधानी बर्ती जाए, इसपर कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए कहा था कि AIIMS के डॉक्टरों के मेडिकल एग्जामिनेशन के बाद ही कोई फैसला दिया जाएगा और खास लोगों के लिए कानून में कोई भी अलग प्रावधान नहीं है.

7. राजू रामचंद्रन..

आसाराम केस में राजू रामचंद्रन ने भी आसाराम की बिगड़ती तबियत का हवाला देते हुए बेल की अर्जी दी थी. उन्होंने दलील दी थी कि आसाराम की तबियत लगातार खराब हो रही है और मेडिकल बोर्ड की राय में भी ये सामने आया है. इसलिए उन्हें तुरंत एक महीने की बेल दी जानी चाहिए. इसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया.

8. जगमल चौधरी..

जगमल चौधरी वो वकील हैं जिन्होंने कोई ठोस कारण न देते हुए आसाराम का केस छोड़ दिया था. राजस्थान के जाने माने वकील जगमल चौधरी ने निजी कारणों का हवाला देते हुए केस छोड़ा था. जगमल चौधरी राजस्थान हाईकोर्ट के सीनियर एड्वोकेट और स्टेट बार काउंसिल के पूर्व चेयरमैन थे.

जगमल चौधरी के बाद उनके बेटे प्रदीप चौधरी ने कमान तो संभालने की कोशिश की, लेकिन कुछ कर नहीं पाए.

आसाराम को देखें तो शायद ये कहा जा सकता है कि उन्हें अपने गुनहगार होने के बारे में पता था और इसलिए वो अपने वकीलों पर भरोसा नहीं जता पाए. लगातार ऐसी खबरें आती रहीं कि आसाराम की वकीलों से अनबन चल रही है. उन्हें लगातार ये संदेह रहा कि कहीं कोई वकील उन्हें सज़ा से बचा भी पाएगा या नहीं. मामला चाहें जो भी हो अभी तक कोई भी वकील आसाराम के लिए गुडलक नहीं लेकर आया है. अब दोषी करार होने के बाद आसाराम को कोई मदद मिलने की उम्मीद नजर भी नहीं आती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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