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CBI में नियुक्ति-प्रक्रिया की पोल खोल देती है पिछले 5 डायरेक्टरों की पोलिटिकल पोस्टि‍ंग

    • संतोष चौबे
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2018 09:58 PM
  • 26 अक्टूबर, 2018 09:53 PM
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सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया है. इस विवाद में सरकार और विपक्ष आमने-सामने है. लेकिन ये पहली बार नहीं कि सीबीआई डायरेक्टर पद को लेकर राजनीति हुई हो.

सीबीआई डायरेक्टर की पोस्ट का पॉलिटिकल हो जाना सीबीआई के कई विवादों की वजह है और तभी तो इसे सुप्रीम कोर्ट बंधा तोता कहता है जो सरकार की इज़ाज़त बगैर कुछ भी नहीं कर सकता है. और अब जो मामला सीबीआई के आरोपों और रिश्वतखोरी का था उसने भी राजनीतिक मोड़ ले लिया है.

आपसी खींचतान और एक-दूसरे पर लगाए गए आरोपों के बाद सीबीआई डायरेक्टर अलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि केंद्रीय सतर्कता आयोग लगाए गए आरोपों की जांच कर सके. लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि राकेश अस्थाना सरकार के काफी करीबी हैं.

वैसे हम पिछले बीस सालों में देखें तो सीबीआई डायरेक्टर की पोस्ट हमेशा ही पॉलिटिकल रही है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनको मिलने वाली रिटायरमेंट पोस्टिंग्स में देखा जा सकता है.

(सामने की ओर) सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके पीछे सीबीआई स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना

ए.पी. सिंह -

ए.पी. सिंह नवंबर 2010 से नवंबर 2012 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. यूपीए सरकार ने उन्हें 2013 में यूपीएससी मेंबर बनाया था लेकिन जब उनपर मोईन कुरैशी से जुड़े आरोप लगे तो जनवरी 2015 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. सीबीआई ने उनके खिलाफ फरवरी 2017 में केस दर्ज़ किया था.

अश्वनी कुमार -

अश्वनी कुमार अगस्त 2008 से नवंबर 2010 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. उन्हें यूपीए सरकार ने नागालैंड और मणिपुर का राज्यपाल बनाया था लेकिन एनडीए सरकार आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

विजय शंकर -

विजय शंकर दिसंबर 2005 से जुलाई 2008 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. रिटायर होने के बाद उन्हें केंद्र-राज्य संबंध आयोग का सदस्य बनाया गया था.

पी.सी. शर्मा...

सीबीआई डायरेक्टर की पोस्ट का पॉलिटिकल हो जाना सीबीआई के कई विवादों की वजह है और तभी तो इसे सुप्रीम कोर्ट बंधा तोता कहता है जो सरकार की इज़ाज़त बगैर कुछ भी नहीं कर सकता है. और अब जो मामला सीबीआई के आरोपों और रिश्वतखोरी का था उसने भी राजनीतिक मोड़ ले लिया है.

आपसी खींचतान और एक-दूसरे पर लगाए गए आरोपों के बाद सीबीआई डायरेक्टर अलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि केंद्रीय सतर्कता आयोग लगाए गए आरोपों की जांच कर सके. लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि राकेश अस्थाना सरकार के काफी करीबी हैं.

वैसे हम पिछले बीस सालों में देखें तो सीबीआई डायरेक्टर की पोस्ट हमेशा ही पॉलिटिकल रही है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनको मिलने वाली रिटायरमेंट पोस्टिंग्स में देखा जा सकता है.

(सामने की ओर) सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके पीछे सीबीआई स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना

ए.पी. सिंह -

ए.पी. सिंह नवंबर 2010 से नवंबर 2012 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. यूपीए सरकार ने उन्हें 2013 में यूपीएससी मेंबर बनाया था लेकिन जब उनपर मोईन कुरैशी से जुड़े आरोप लगे तो जनवरी 2015 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. सीबीआई ने उनके खिलाफ फरवरी 2017 में केस दर्ज़ किया था.

अश्वनी कुमार -

अश्वनी कुमार अगस्त 2008 से नवंबर 2010 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. उन्हें यूपीए सरकार ने नागालैंड और मणिपुर का राज्यपाल बनाया था लेकिन एनडीए सरकार आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

विजय शंकर -

विजय शंकर दिसंबर 2005 से जुलाई 2008 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. रिटायर होने के बाद उन्हें केंद्र-राज्य संबंध आयोग का सदस्य बनाया गया था.

पी.सी. शर्मा -

पी.सी. शर्मा अप्रैल 2001 से दिसंबर 2003 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. उन्हें एनडीए सरकार ने मार्च 2004 में एनएचआरसी का सदस्य बनाया था.

आर.के. राघवन -

आर के राघवन जनवरी 1999 से अप्रैल 2001 तक सीबीआई डायरेक्टर थे. उस समय एनडीए की सरकार थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में गोधरा दंगे पर राघवन के नेतृत्व में एसआईटी बनाई थी. जिसने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी थी. आज की एनडीए सरकार ने उन्हें अगस्त 2017 में सायप्रस का उच्चायुक्त नियुक्त किया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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