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जो हमेशा बोया वो गणतंत्र दिवस पर काट रहा है दारुल उलूम

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 जनवरी, 2019 12:08 PM
  • 24 जनवरी, 2019 12:08 PM
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गणतंत्र दिवस से पहले जो बातें दारुल उलूम ने कहीं हैं वो ये साफ बताती हैं कि अगर आज देश के सामने मदरसों को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई है तो इसकी एक बड़ी वजह मदरसे का एडमिनिस्ट्रेशन है.

डिअर दारुल उलूम

काफी लम्बे वक़्त से मैं आपको खत लिखने की सोच रहा था. मगर कभी मौका नहीं मिला. आज एक खबर पर नजर गई तो महसूस हुआ कि अब वो वक़्त आ गया है जब खत लिख ही देना चाहिए. आज दिन भर में आपके पास कई फोन आए होंगे. कई सारे रिपोर्टरों ने बाइट के लिए आपका दरवाजा खटखटाया होगा. लोग जानना चाह रहे होंगे कि आखिर ऐसी क्या वजह थी? जिसके चलते आपको अपने छात्रों को ये हिदायत देनी पड़ी कि उन्हें किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए गणतंत्र दिवस वाले दिन अपने हॉस्टल में रहना चाहिए.

गणतंत्र दिवस को लेकर जो आदेश दारुल उलूम ने दिया है उसकी आलोचना होना लाजमी है

यकीन मानिए भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां हमारा संविधान हमें बोलने से लेकर अपने विचार व्यक्त करने और त्योहार मनाने की इजाजत देता है. आपने जो भी कहा है उसने मुझे अन्दर तक कचोट दिया है. मैं ये जान कर सन्न हूं कि, आपको लगता है कि अगर मदरसे के छात्र गणतंत्र दिवस के दिन बाहर निकल जाएंगे तो उनका उत्पीड़न हो जाएगा. यानी आपने अपने द्वारा कही बात में, इस बात को स्वीकार किया है कि, मदरसे के छात्र तब ही सुरक्षित है जब वो मदरसे में हों.

कुछ और कहने से पहले मैं अपनी इस चिट्ठी में पुनः आपके हॉस्टल विभाग के प्रमुख की बात को दोहराना चाहूंगा. हॉस्टल प्रमुख ने कहा है कि, 'गणतंत्र दिवस पर छुट्टी होती है, ऐसे में हॉस्टल के छात्र घूमने-फिरने बाहर जाते हैं. वो किसी विवाद की स्थिति में न फंस जाए या उनका उत्पीड़न न हो इसके चलते ये आदेश जारी किया गया है.

मैं जितनी बार इस खबर पर गौर कर रहा हूं. मेरे जहन में उतनी बार तरह तरह के सवाल आ रहे हैं. मुझे महसूस हो रहा है कि आप वही फसल काट रहे हैं जो आपने बोई है. हो सकता है ये बात आपको विचलित कर दे. मगर सच यही है. आपने हमेशा ही...

डिअर दारुल उलूम

काफी लम्बे वक़्त से मैं आपको खत लिखने की सोच रहा था. मगर कभी मौका नहीं मिला. आज एक खबर पर नजर गई तो महसूस हुआ कि अब वो वक़्त आ गया है जब खत लिख ही देना चाहिए. आज दिन भर में आपके पास कई फोन आए होंगे. कई सारे रिपोर्टरों ने बाइट के लिए आपका दरवाजा खटखटाया होगा. लोग जानना चाह रहे होंगे कि आखिर ऐसी क्या वजह थी? जिसके चलते आपको अपने छात्रों को ये हिदायत देनी पड़ी कि उन्हें किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए गणतंत्र दिवस वाले दिन अपने हॉस्टल में रहना चाहिए.

गणतंत्र दिवस को लेकर जो आदेश दारुल उलूम ने दिया है उसकी आलोचना होना लाजमी है

यकीन मानिए भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां हमारा संविधान हमें बोलने से लेकर अपने विचार व्यक्त करने और त्योहार मनाने की इजाजत देता है. आपने जो भी कहा है उसने मुझे अन्दर तक कचोट दिया है. मैं ये जान कर सन्न हूं कि, आपको लगता है कि अगर मदरसे के छात्र गणतंत्र दिवस के दिन बाहर निकल जाएंगे तो उनका उत्पीड़न हो जाएगा. यानी आपने अपने द्वारा कही बात में, इस बात को स्वीकार किया है कि, मदरसे के छात्र तब ही सुरक्षित है जब वो मदरसे में हों.

कुछ और कहने से पहले मैं अपनी इस चिट्ठी में पुनः आपके हॉस्टल विभाग के प्रमुख की बात को दोहराना चाहूंगा. हॉस्टल प्रमुख ने कहा है कि, 'गणतंत्र दिवस पर छुट्टी होती है, ऐसे में हॉस्टल के छात्र घूमने-फिरने बाहर जाते हैं. वो किसी विवाद की स्थिति में न फंस जाए या उनका उत्पीड़न न हो इसके चलते ये आदेश जारी किया गया है.

मैं जितनी बार इस खबर पर गौर कर रहा हूं. मेरे जहन में उतनी बार तरह तरह के सवाल आ रहे हैं. मुझे महसूस हो रहा है कि आप वही फसल काट रहे हैं जो आपने बोई है. हो सकता है ये बात आपको विचलित कर दे. मगर सच यही है. आपने हमेशा ही मदरसे के छात्रों को इस देश के आम छात्रों से अलग रखा. उनकी अलग पहचान बनाई. उनके दिमाग में ऐसे नैरेटिव भरे जिनका नतीजा ये निकला कि उन्हें वंदेमातरम कहने से शर्म आने लगी. अपने मदरसों में देश का झंडा अखरने लगा.

ये सुनकर भले ही आप आहत हो जाएं, मगर आज जो सुलूक मदरसे के छात्रों के साथ हो रहा है. उसकी एक बड़ी वजह आप लोगों की कट्टरपंथी विचारधारा है. हां वो विचारधारा जो मदरसे के छात्रों को लगातार गर्त के अंधेरों में ले जा रही है. एक ऐसी विचारधारा जो उनका सर्वांगीण विकास करने के बजाए उन्हें अन्दर से खोखला और लाचार बना रही है.

स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस हर साल दारुल उलूम कुछ न कुछ कहता रहता है

मुझे पूरी उम्मीद है, ये पत्र आपको अच्छा नहीं लगेगा. मगर मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं है. मैं बस ये जानने को आतुर हूं कि ऐसे बेतुकी बातें करके आखिर आपलोग साबित क्या करना चाहते हैं? ध्यान रहे ये कोई पहला मौका नहीं है जब आपके यहां से ऐसा फरमान आया है. इससे पहले भी आपके एक मुफ़्ती असद कासमी ने उस वक़्त सुर्खियां बटोरीं थी जब गत वर्ष उन्होंने गणतंत्र दिवस  जैसे मौकों पर छात्रों को ट्रेन में सफर न करने की हिदायत दी थी. तब भी ये कहा गया था कि ऐसे मौकों पर छात्रों की बेवजह चेकिंग की जाती है और उन्हें परेशान किया जाता है. तब भी मौलाना साहब ने डंके की चोट पर इस बात को स्वीकार किया था कि ऐसी स्थिति में छात्रों के बीच डर और खौफ़ का माहौल बन जाता है.

सवाल है कि आखिर छात्र डर क्यों रहे हैं? एक ऐसे वक़्त में जब पूरा देश गणतंत्र दिवस की खुशी माना रहा हो, अगर आप अपने को अलग कर लेंगे तो सवाल उठने लाजमी हैं और आपका भी ये नैतिक दायित्व हो जाता है कि आप उनके जवाब दें. अंत में बस इतना ही कि आपको देश के साथ हर हाल में आना होगा और उन खुशियों में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी जिनको देखकर पूरा देश खुश हो रहा है. यदि ऐसा हो गया तो बहुत अच्छी बात है और अगर नहीं हुआ तो आपकी आलोचना के लिए वसीम रिज़वी जैसे लोग तो बैठे ही हैं जिन्होंने आपके मदरसों को सिर्फ इसलिए बंद करने की मांग उठाई है क्योंकि उन्हें लगता है कि आप आईएसआईएस की विचारधारा का पोषण कर रहे हैं और उसे फलने फूलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

आपका

इस देश का एक आम नागरिक

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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