मैं मध्यप्रदेश की निवासी हूं. वो राज्य जिसकी सड़कें बकौल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के, 'अमेरिका से भी अच्छी हैं!' यहां की सड़कें इतनी अच्छी हैं कि पांच घंटे का सड़क का सफर मेरे लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा. मुझे बैतूल से भोपाल तक का सफर करना था. बैतूल एक छोटा सा शहर है मध्यप्रदेश में, जो भोपाल से लगभग साढ़े चार घंटे की दूरी पर है. जाहिर है कि अगर ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिला तो अपनी गाड़ी से जाना ही सबसे अच्छा तरीका है.
रास्ता हाईवे है और सड़क का हाल कुछ ऐसा है कि कार में बैठे-बैठे भी गड्ढों के कारण कमर दर्द होना पक्का है. पिता जी के पैर सिर्फ इसलिए ज्यादा दर्द करने लगे क्योंकि रास्ते भर गड्ढों के कारण ब्रेक, क्लच, एक्सिलेटर आदि दबा-दबा कर उनकी हालत खराब हो गई.
बैतूल जिले की सड़कों से आगे अगर होशंगाबाद जिले की तरफ कोई भी जा रहा है तो उसे समझ आ जाएगा कि गाड़ी चलाने वाले का एक्सपीरियंस होल्डर होना बहुत जरूरी है. सुखतवा नाम का एक शहर है उसके आते तक तो रोड बचती ही नहीं है उसके बाद सिर्फ और सिर्फ गड्ढे और धूल ही दिखती है. इटारसी आते आते हालत ये हो जाती है कि इंसान को गड्ढों की आदत हो जाती है. बुधनी क्रॉसिंग (होशंगाबाद जिले के पास एक छोटी सी क्रॉसिंग है) में घंटो का जाम कोई आम बात है. संकरी सी सड़क पर गाड़ियों और ट्रकों की लंबी कतार अक्सर देखी जा सकती है. इस पूरे सफर में 5 घंटे की जगह 7-8 घंटे लगना आम बात है. कारण? अगर मुझसे कारण पूछेंगे तो मैं तो यही कहूंगी कि ये सिर्फ और सिर्फ सड़कों की ही गलती है. सफर के दौरान suffer करना हो तो मध्यप्रदेश में रोड ट्रिप की जा सकती है.
मैं मध्यप्रदेश की निवासी हूं. वो राज्य जिसकी सड़कें बकौल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के, 'अमेरिका से भी अच्छी हैं!' यहां की सड़कें इतनी अच्छी हैं कि पांच घंटे का सड़क का सफर मेरे लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा. मुझे बैतूल से भोपाल तक का सफर करना था. बैतूल एक छोटा सा शहर है मध्यप्रदेश में, जो भोपाल से लगभग साढ़े चार घंटे की दूरी पर है. जाहिर है कि अगर ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिला तो अपनी गाड़ी से जाना ही सबसे अच्छा तरीका है.
रास्ता हाईवे है और सड़क का हाल कुछ ऐसा है कि कार में बैठे-बैठे भी गड्ढों के कारण कमर दर्द होना पक्का है. पिता जी के पैर सिर्फ इसलिए ज्यादा दर्द करने लगे क्योंकि रास्ते भर गड्ढों के कारण ब्रेक, क्लच, एक्सिलेटर आदि दबा-दबा कर उनकी हालत खराब हो गई.
बैतूल जिले की सड़कों से आगे अगर होशंगाबाद जिले की तरफ कोई भी जा रहा है तो उसे समझ आ जाएगा कि गाड़ी चलाने वाले का एक्सपीरियंस होल्डर होना बहुत जरूरी है. सुखतवा नाम का एक शहर है उसके आते तक तो रोड बचती ही नहीं है उसके बाद सिर्फ और सिर्फ गड्ढे और धूल ही दिखती है. इटारसी आते आते हालत ये हो जाती है कि इंसान को गड्ढों की आदत हो जाती है. बुधनी क्रॉसिंग (होशंगाबाद जिले के पास एक छोटी सी क्रॉसिंग है) में घंटो का जाम कोई आम बात है. संकरी सी सड़क पर गाड़ियों और ट्रकों की लंबी कतार अक्सर देखी जा सकती है. इस पूरे सफर में 5 घंटे की जगह 7-8 घंटे लगना आम बात है. कारण? अगर मुझसे कारण पूछेंगे तो मैं तो यही कहूंगी कि ये सिर्फ और सिर्फ सड़कों की ही गलती है. सफर के दौरान suffer करना हो तो मध्यप्रदेश में रोड ट्रिप की जा सकती है.
जिस राज्य की तुलना अमेरिका से की जा रही है उसकी हकीकत ये है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की 13,000 किलोमीटर तक एरिया की सड़कें खराब हैं. 2015 में गड्ढों के कारण ही मध्यप्रदेश में लगभग 3000 दुर्घटनाएं हुई हैं. सच्चाई तो ये है कि मध्यप्रदेश की सड़कों के कारण लोग अच्छे खासे परेशान हैं. गांव और दूर दराज के इलाके छोड़िए भोपाल शहर में ही अगर हईवे से जुड़ी हुई रोड को देखा जाए तो समझ आ जाएगा कि अमेरिका से तुलना कितनी सही है..
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की काबिलियत पर मैं कोई शक नहीं कर रही. हालांकि, मैं पैदा ही मध्यप्रदेश में हुई थी और अपनी जिंदगी के 25 साल इसी राज्य के अलग-अलग शहरों में बिताए हैं. पानी, बिजली, सड़कों का जो मुद्दा बनाया गया था, सरकार अब उसी मुद्दे पर से भटक गई है. भोपाल की कुछ सड़कें वाकई काफी अच्छी हैं, लेकिन वो सड़कें हैं सीएम हाउस के आस-पास, इसके अलावा एयरपोर्ट रोड के कुछ हिस्से को भी काफी अच्छा कहा जा सकता है. भोपाल में बोर्ड ऑफिस चौराहे से लेकर न्यूमार्केट तक जाने वाली रोड और उसके आगे सीएम हाउस, वीआईपी रोड, लेक व्यू की रोड अच्छी है, साथ ही वीआई पी रोड जिससे लेक की तरफ देखने पर लिखा होता है 'Welcome to the city of lakes' वो भी काफी अच्छी है, लेकिन इससे सारे शहर की या सारे राज्य की सड़कों का आंकलन नहीं लगाया जा सकता है.
शिवराज सरकार ने भोपाल में कितना डेवलपमेंट किया है ये सिर्फ होशंगाबाद जाने वाली रोड को देखकर पता लगाया जा सकता है. बीआरटीएस (बस सर्विस) और एम्बुलेंस के लिए अलग से लेन है, बाकी ट्रैफिक के लिए अलग लेन है. कुछ-कुछ दूरी पर ट्रैफिक लाइट है और इतना ही नहीं इस सड़क के अगल-बगल साइकलिंग ट्रैक भी है. इस रोड की खासियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यही रोड आगे चलकर NH69 में बदल जाती है.
सरकार ने क्या सोचा ये साइकलिंग ट्रैक बनाने से पहले ये तो मैं नहीं जानती, लेकिन खर्च अच्छा खासा किया है. अब खुद ही सोचिए जिस शहर में अक्टूबर में भी गर्मी लगती हो और जिस रोड पर कंस्ट्रक्शन के कारण चौबिस घंटे धूल रहती हो वहां साइकल का प्रयोग कितने ही लोग करते होंगे? मैं बताऊं... मैंने शायद ही किसी को वहां साइकल चलाते देखा है. हां वहां नई कारों का शोकेस जरूर हो जाता है. वहां झोपड़ पट्टी में रहने वाले लोग अपने गद्दे सुखाते हैं, वहां बैठे-बैठे गप्पे मारते हैं. बस दिखाने के लिए वो बना दिया गया है. शायद ये भी शिवराज जी अमेरिका से ही देखकर आए हों. पर क्या भोपाल का वातावरण ऐसा था कि यहां साइकलिंग ट्रैक इस्तेमाल किया जा सके? जवाब मेरे लिए तो नहीं ही है.
जब से मुख्यमंत्री जी ने ये बात कही है तब से ही लोगों ने अपने-अपने इलाकों की जर्जर सड़कों की फोटो पोस्ट कर यह बताने की कोशिश की कि प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर के हालात कितने बदतर हैं. उम्मीद है शिवराज जी को ये दिखेगा और अब इस तरह के बयान देने से पहले वो अपने राज्य की हालत देख लेंगे.
ये भी पढ़ें-
मध्यप्रदेश में शराबबंदी को लेकर क्या 'मौकापरस्त' हैं शिवराज ?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.