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असम जैसे 'प्रणाम बिल' की पूरे देश में सख्त जरूरत है

    • आईचौक
    • Updated: 16 सितम्बर, 2017 06:39 PM
  • 16 सितम्बर, 2017 06:39 PM
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कानून लागू हो जाने के बाद अगर असम सरकार का कोई कर्मचारी अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने से भागता है तो सरकार उसकी तनख्वाह से 10 फीसदी रकम सीधे काट लेगी. ये रकम कर्मचारी के मां-बाप के खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी.

एक सर्वे में पता चला था कि दिल्ली के 50 प्रतिशत बुजुर्गों के संतान ख्याल रखना तो दूर कद्र भी नहीं करते. पूछे जाने पर सैंपल सर्वे के ऐसे 92.4 बुजुर्गों ने बताया कि ऐसी औलाद के लिए कड़े दंड के प्रावधान होने चाहिये. दिल्ली जैसा ही हाल पूरे देश का है.

इसी साल फरवरी में असम सरकार ने बजट पेश करते हुए बुजुर्गों के हित में कानून लाने का ऐलान किया था - और अब वो बिल भी पास हो चुका है. बुजुर्गों के लिए लाया गया ये बिल सचमुच वक्त की मांग है, जो बाकी राज्यों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकता है.

प्रणाम बिल

बुजुर्गों के सम्मान में ही इस बिल का नाम प्रणाम रखा गया है. बस इसे राज्यपाल की मंजूरी मिलने का इंतजार है और उसके बाद ये कानून लागू हो जाएगा. इसे असम एम्पलॉयीज प्रणाम बिल के नाम से जाना जाता है और इसका फुल फॉर्म है - पैरंट्स रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड नॉर्म्स फॉर अकाउंटैबिलिटी एंड मॉनिटरिंग बिल - 2017.

कानून लागू हो जाने के बाद अगर असम सरकार का कोई कर्मचारी अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने से भागता है तो सरकार उसकी तनख्वाह से 10 फीसदी रकम सीधे काट लेगी. ये रकम कर्मचारी के मां-बाप के खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी. इतना ही नहीं अगर किसी कर्मचारी का कोई भाई या बहन दिव्यांग है और वो देखभाल से वंचित है तो भी सैलरी काटी जाएगी.

हालांकि, असम के मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने साफ किया है कि इस बिल का मकसद राज्य कर्मचारियों के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना नहीं, बल्कि ये सुनिश्चित करना है नजरअंदाज किये जाने पर कर्मचारी के माता पिता या दिव्यांग भाई बहन विभाग में शिकायत कर सकें. मंत्री के मुताबिक बाद में सांसदों, विधायकों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और असम में संचालित निजी कंपनियों के कर्मचारियों के लिए भी एक ऐसा ही विधेयक पेश किया जाएगा.

बुजुर्गों के लिए कानून

औलाद द्वारा बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने के लिए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित...

एक सर्वे में पता चला था कि दिल्ली के 50 प्रतिशत बुजुर्गों के संतान ख्याल रखना तो दूर कद्र भी नहीं करते. पूछे जाने पर सैंपल सर्वे के ऐसे 92.4 बुजुर्गों ने बताया कि ऐसी औलाद के लिए कड़े दंड के प्रावधान होने चाहिये. दिल्ली जैसा ही हाल पूरे देश का है.

इसी साल फरवरी में असम सरकार ने बजट पेश करते हुए बुजुर्गों के हित में कानून लाने का ऐलान किया था - और अब वो बिल भी पास हो चुका है. बुजुर्गों के लिए लाया गया ये बिल सचमुच वक्त की मांग है, जो बाकी राज्यों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकता है.

प्रणाम बिल

बुजुर्गों के सम्मान में ही इस बिल का नाम प्रणाम रखा गया है. बस इसे राज्यपाल की मंजूरी मिलने का इंतजार है और उसके बाद ये कानून लागू हो जाएगा. इसे असम एम्पलॉयीज प्रणाम बिल के नाम से जाना जाता है और इसका फुल फॉर्म है - पैरंट्स रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड नॉर्म्स फॉर अकाउंटैबिलिटी एंड मॉनिटरिंग बिल - 2017.

कानून लागू हो जाने के बाद अगर असम सरकार का कोई कर्मचारी अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने से भागता है तो सरकार उसकी तनख्वाह से 10 फीसदी रकम सीधे काट लेगी. ये रकम कर्मचारी के मां-बाप के खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी. इतना ही नहीं अगर किसी कर्मचारी का कोई भाई या बहन दिव्यांग है और वो देखभाल से वंचित है तो भी सैलरी काटी जाएगी.

हालांकि, असम के मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने साफ किया है कि इस बिल का मकसद राज्य कर्मचारियों के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना नहीं, बल्कि ये सुनिश्चित करना है नजरअंदाज किये जाने पर कर्मचारी के माता पिता या दिव्यांग भाई बहन विभाग में शिकायत कर सकें. मंत्री के मुताबिक बाद में सांसदों, विधायकों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और असम में संचालित निजी कंपनियों के कर्मचारियों के लिए भी एक ऐसा ही विधेयक पेश किया जाएगा.

बुजुर्गों के लिए कानून

औलाद द्वारा बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने के लिए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून बनाया था. इस कानून के तहत पीड़ित माता-पिता जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया. कानून के तहत अगर संतान दोषी पाया जाता है तो उसे माता पिता की संपत्ति से वंचित करने और सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी न देने की व्यवस्था है.

अब तो कानून का ही सहारा...

फिलहाल देश में साठ साल से ज्यादा उम्र के लोगों की आबादी साढ़े सात फीसदी है और संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2030 तक ये 12.5 फीसदी हो जाने का अनुमान है.

2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 10 करोड़ से ज्यादा वरिष्ठ नागरिकों में से डेढ़ करोड़ एकाकी जीवन बिताने को मजबूर हैं. बताया जाता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की हालत ज्यादा खराब है. एक अन्य सर्वे में ऐसी 10 फीसदी महिलाएं अकेले रहने को मजबूर बतायी गयी हैं.

जिम्मेदार कौन?

1. 50 फीसदी से ज्यादा मामलों में सगे बेटे को ही जिम्मेदार पाया गया है.

2. करीब 25 फीसदी मामलों में बहुओं पर उंगलियां उठी पायी गयी हैं.

3. बुजुर्गों की उपेक्षा की घटनाएं गांवों के मुकाबले शहरों में ज्यादा पायी गयी हैं.

4. 50 फीसदी से कम ही मामले ऐसे होते हैं जिनमें बुजुर्ग अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं, जबकि बाकी हिम्मत ही नहीं जुटा पाते.

5. अच्छी खासी तादाद ऐसे बुजुर्गों की भी है जो इसलिए शिकायत दर्ज नहीं कराते कि उनके परिवार की बदनामी होगी.

बुजुर्गों के लिए पेंशन योजनाएं भी हैं, लेकिन उसका फायदा भी उन बुजुर्गों को नहीं मिल पाता जिनके पास बतौर सबूत जरूरी कागजात नहीं होते.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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