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उम्मीदों का दामन अब भी साथ है!

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 31 दिसम्बर, 2017 07:49 PM
  • 31 दिसम्बर, 2017 07:49 PM
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एक आम देशवासी सिर्फ़ स्वच्छ भारत ही नहीं, स्वच्छ मानसिकता भरे समाज में जीने की भी उतनी ही बाट जोहता है. वो निर्भय होकर आने-जाने, हंसने-खिलखिलाने, शिक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहता है, स्वछंदता नहीं!

इच्छाओं के समुन्दर में आप जब-जब डुबकी लगायेंगे, मुट्ठी भर मोती लेकर ही बाहर निकलेंगे. नववर्ष के आगमन पर भी ठीक यही होता है. जबकि यह सिर्फ एक तिथि के साथ एक अंक का बदल जाना भर ही है. फिर भी हम अत्यधिक उत्साह के साथ न केवल इसका स्वागत करते हैं बल्कि अपनी उम्मीदों की लम्बी सूची बनाना भी कभी नहीं भूलते. घर, बाहर, समाज, राजनीति और अपराध के मुद्दों पर आपकी रूचि हो या न हो पर इसका प्रभाव आपके जीवन पर पड़ता ही है.

बहुत-सी ऐसी बातें हैं, खयालात हैं जो अमल हो जाएं तो बहुत अच्छा हो. उन्हीं में से कुछ को संक्षिप्त में यहां रख रही हूं -

1- राजनीति में आने और चुनाव के भी कुछ नियम हों:

राजनीति में मानक तय किए जाने चाहिए

* राजनीतिज्ञों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित हो अथवा प्रवेश परीक्षा हो.

* चुनाव प्रचार उम्मीदवार अपने खर्च से करे. न कि सरकारी खजाने को पानी की तरह बहाकर, जनता पर कर का बोझ दोगुना कर दिया जाए.

* राजनीतिज्ञों के लिए रिटायरमेंट की उम्र भी तय होनी चाहिए.

* ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा हो जिसमें अपने आधार या pancard के नंबर से वोटिंग की जा सके. इससे वोटर्स की संख्या में भारी वृद्धि होगी तथा नकली वोटिंग और बार-बार वोटिंग पर भी शिकंजा कसा जा सकेगा.

2- सजा अपराध को देखकर दी जाए, उम्र देखकर नहीं:

* यौन शोषण, बलात्कार, हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा शीघ्रातिशीघ्र दण्डित किया जाए. अधिकांश मामलों में उम्र की दुहाई या मानसिक स्थिति असंतुलन की अवस्था बताकर उसे बचा लिया जाता है. यह न केवल पीड़ित/ पीड़िता के साथ अन्याय...

इच्छाओं के समुन्दर में आप जब-जब डुबकी लगायेंगे, मुट्ठी भर मोती लेकर ही बाहर निकलेंगे. नववर्ष के आगमन पर भी ठीक यही होता है. जबकि यह सिर्फ एक तिथि के साथ एक अंक का बदल जाना भर ही है. फिर भी हम अत्यधिक उत्साह के साथ न केवल इसका स्वागत करते हैं बल्कि अपनी उम्मीदों की लम्बी सूची बनाना भी कभी नहीं भूलते. घर, बाहर, समाज, राजनीति और अपराध के मुद्दों पर आपकी रूचि हो या न हो पर इसका प्रभाव आपके जीवन पर पड़ता ही है.

बहुत-सी ऐसी बातें हैं, खयालात हैं जो अमल हो जाएं तो बहुत अच्छा हो. उन्हीं में से कुछ को संक्षिप्त में यहां रख रही हूं -

1- राजनीति में आने और चुनाव के भी कुछ नियम हों:

राजनीति में मानक तय किए जाने चाहिए

* राजनीतिज्ञों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित हो अथवा प्रवेश परीक्षा हो.

* चुनाव प्रचार उम्मीदवार अपने खर्च से करे. न कि सरकारी खजाने को पानी की तरह बहाकर, जनता पर कर का बोझ दोगुना कर दिया जाए.

* राजनीतिज्ञों के लिए रिटायरमेंट की उम्र भी तय होनी चाहिए.

* ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा हो जिसमें अपने आधार या pancard के नंबर से वोटिंग की जा सके. इससे वोटर्स की संख्या में भारी वृद्धि होगी तथा नकली वोटिंग और बार-बार वोटिंग पर भी शिकंजा कसा जा सकेगा.

2- सजा अपराध को देखकर दी जाए, उम्र देखकर नहीं:

* यौन शोषण, बलात्कार, हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा शीघ्रातिशीघ्र दण्डित किया जाए. अधिकांश मामलों में उम्र की दुहाई या मानसिक स्थिति असंतुलन की अवस्था बताकर उसे बचा लिया जाता है. यह न केवल पीड़ित/ पीड़िता के साथ अन्याय है, बल्कि इससे अपराधी का हौसला भी बढ़ता है और उसके जैसे चार अपराधी और खड़े हो जाते हैं जो अठारह वर्ष के पूरा होने के पहले ही अपनी विकृत मानसिकता का परिचय दे कानून की इसी लचरता का फायदा उठा अपराध करने को उत्सुक हो उठते हैं. यह शर्मनाक स्थिति है!

* दंगे-फ़साद के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले हर व्यक्ति से ही उसकी भरपाई करवाई जानी चाहिए.

* गंदगी फ़ैलाने, दीवारों और स्मारकों पर लिखने वालों, यातायात के नियमों का उल्लंघन करने वालों को तुरंत दण्डित करने का प्रावधान हो. CCTV कैमरा से तुरंत ही उनकी करनी उन्हें दिखाई जाए और फिर यथोचित दंड भी दिया जाए.

3- कर को अनवरत भरते रहने से मुक्ति मिले:

व्यक्ति जो कमाता है उस पर उसी समय 'टैक्स' लग जाता है, जिसे 'इनकम टैक्स' कहते हैं. अर्थात अब उसके पास जो भी धनराशि शेष है, वह इस टैक्स को चुकाने के बाद बची हुई राशि ही है. जब वह अपने कमाए हुए पैसे का टैक्स दे चुका तो फिर उसे टोल टैक्स, खाना खाने पर रेस्टोरेंट में टैक्स, कपड़ों पर, पेट्रोल पर, ग्रोसरी, घर, बिजली, पानी और हर छोटी-बड़ी वस्तु की खरीद पर पुनः इसे क्यों चुकाना होता है?

प्रश्न यह है कि टैक्स कटने के बाद बचे पैसे से ही वह अपना महीने का खर्च चलाता है. लेकिन उसके बाद भी उस पर टैक्स का लगना क्यों समाप्त नहीं होता? जनता किस हद तक टैक्स भरे और क्यों? यह ठीक वैसा ही है की आपने बारह बिस्कुट का एक पैकेट खरीदा. 4 बिस्कुट दे देने के बाद भी बचे हुए 8 में से आपको हर बार एक टुकड़ा देना पड़ रहा हो. इनकम टैक्स जमा करने के बाद 'नो टैक्स' की नीति आनी चाहिए. साथ ही यह भी सुनिश्चित हो की प्रत्येक व्यक्ति 'इनकम टैक्स' भर रहा है.

4- खोखला आध्यात्म का बाज़ार और अपराध बंद हो:

* आध्यात्मिकता की आड़ में चल रहे 'यौन-शोषण' के अड्डों, जिन्हें आश्रम की छाया में रखकर संचालित किया जा रहा है, इस सब पर प्रतिबन्ध लगे. क्या यह बात समझनी इतनी मुश्किल है कि हमें इन आश्रमों से कहीं ज्यादा आवश्यकता अपने देशवासियों को शिक्षित करने की है. जितना धन ये संगठन जमा करते हैं उस राशि को यदि शिक्षा पर व्यय किया जाए तो यह संभव ही नहीं की कोई जनता की आंखों में यूं धूल झोंक सके! दरअसल ये तथाकथित धर्मगुरु तो चाहते ही यही हैं की कोई शिक्षित न हो सके और इनका वर्चस्व कायम रहे.

धर्म के ढकोसलों से मुक्ति मिले

वे स्त्रियां जो अपने दुःख-दर्द किसी से बांट नहीं पातीं और चाहती हैं कि उन्हें कोई सुने, वे इन संस्थाओं का सबसे पहला शिकार होती हैं. घर में किसी के पास समय नहीं और वे इतनी शिक्षित भी नहीं कि अन्य किसी माध्यम से जुड़ अपना जी हल्का कर सकें. ऐसे में यही 'बाबा' लोग उन्हें सीधे ईश्वर के मार्ग का भ्रम दिखाकर अपने मायाजाल में क़ैद कर लेते हैं.

* फ़तवा जारी करने / सिर काटकर लाने वाले को निश्चित धनराशि देने जैसी बयानबाज़ी करने वालों के खिलाफ़ तुरंत कार्यवाही हो तथा उन्हें 10 वर्षों की जेल की सज़ा भी मिले. वैसे देश में अशांति फैलाने वालों के लिए ये सजा भी कम ही है.

5- नारी स्वाभिमान भी एक मुद्दा हो:

* स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद और हर क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के बाद भी स्त्रियों को न तो आर्थिक स्वतंत्रता है और न ही निर्णय लेने की. आज भी हर बात के लिए उन्हें न केवल पुरुष की स्वीकृति चाहिए होती है बल्कि अपनी रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की खरीद हेतु भी उनके आगे हाथ फैलाना होता है. गृहिणियों के लिए भी कार्य-भत्ता निश्चित होना चाहिए और यहां चिंता या शर्मिंदा होने जैसी कोई बात ही नहीं! भारतीय स्त्रियां अत्यंत समझदारी और विवेक से निर्णय लेने में सक्षम हैं. यहां बात पुरुषों से बराबरी की नहीं, अपितु नारी के स्वाभिमान की है.

* स्त्रियों को सशक्त बनाने के लिए यह भी एक नियम बने कि किसी एक रात सिर्फ स्त्रियां ही बाहर निकलें और पुरुष घर के अन्दर रहें. इससे स्त्रियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और भयमुक्त होना सीख जायेंगीं. यहां यह भी समझ लेना जरूरी है कि बुरे पुरुषों का प्रतिशत कम ही है पर बुरों की बुराई तले, अच्छों की अच्छाइयां दबकर रह जाती हैं.

6- सोशल साइट्स और जिम्मेदारी:

* भाषाई संयतता बरतने को लेकर ट्विटर द्वारा की गई पहल प्रशंसनीय है. आशा है 2018 में अन्य नेटवर्किंग साइट्स भी इसका अनुसरण करेंगीं.

* सभी सोशल वेबसाईट के एकाउंट्स, आधार से लिंक हों और उन पर अपनी ही तस्वीर डालना आवश्यक हो. इससे फेक प्रोफाइल और उनसे जुड़े साइबर क्राइम को बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

सोशल मीडिया पर भी लगाम जरुरी

* व्यक्तिगत अकाउंट से 'कॉपी' का विकल्प समाप्त कर केवल 'शेयर' का ही विकल्प रहे, इससे रचनात्मक चोरियां रोकी जा सकती हैं.

* किसी भी धर्म विशेष की समर्थक/ विरोधी / कट्टरता फैलाने वाली पोस्ट को सम्बंधित साइट्स द्वारा स्वत: ही डिलीट कर दिया जाए एवं दोबारा यही गलती दोहराने वाले यूजर का अकाउंट समाप्त कर दिया जाए.

कुल मिलाकर एक आम देशवासी सिर्फ़ स्वच्छ भारत ही नहीं, स्वच्छ मानसिकता भरे समाज में जीने की भी उतनी ही बाट जोहता है. वो निर्भय होकर आने-जाने, हंसने-खिलखिलाने, शिक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहता है, स्वछंदता नहीं! उसे स्वयं पर हुए अन्याय के लिए सही न्याय की प्रतीक्षा है. वह धर्म और राजनीति के द्वंद में न उलझकर प्रेम भाव से जीने में विश्वास रखता है. यह अपेक्षाएं इतनी मुश्किल तो नहीं पर फिर भी असंभव सी क्यों दिखती हैं? 2018 इसी प्रश्न का उत्तर चाहता है.

नववर्ष की अशेष शुभकामनाएं! ये पंक्तियां सदा हम सबके साथ प्रेरणा बनकर रहें -

इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो नाहम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो न हो!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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