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पीरियड्स के दिनों में गरीब महिलाओं की हकीकत तरक्‍की के दावों को खोखला साबित करती है

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 09 जुलाई, 2018 07:29 PM
  • 09 जुलाई, 2018 07:29 PM
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एक महिला ने जब अपनी कामवाली बाई के पीरियड की सच्चाई ट्विटर पर बताई तो इस दिशा में हो रहे सभी सरकारी दावों की पोल खुल गई.

टीवी पर सैनिटरी पैड्स के विज्ञापन महिलाओं को ढ़ेर सारे ऑप्शन्स देते हैं, कि ये सॉफ्ट है, ये ज्यादा सोखता है, इसमें विंग्स हैं तो इसमें खुशबू भी है... आप अपनी सामर्थ्य और जरूरत के हिसाब से अपने लिए पैड्स खरीद लेती हैं. पर जब आप सॉफ्टनेस के बारे में सोचें तो एक बार उन महिलाओं के बारे में भी सोचना जो अपने पीरियड्स के दौरान उसी जगह मिट्टी, राख और लकड़ी के बुरादे वाले पैड्स दबाए होती हैं. आप सिहर जाएंगे उनके बारे में सोचकर.

मेंस्ट्रुअल हाईजीन और निम्न आय वर्ग की महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए जाने पर सालों से बहस चल रही है. सरकार इस तरफ काम भी कर रही है लेकिन एक महिला ने जब अपनी कामवाली बाई के उन दिनों के बारे में ट्विटर पर कुछ शेयर किया तो इस दिशा में हो रहे सभी सरकारी दावे खोखले महसूस हए. एक महिला ने ट्विटर पर लिखा कि -

''जब मैं भारत में थी, मैंने अपनी मेड दीदी को घर की साफ सफाई के लिए एक पुरानी टीशर्ट दी. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या वो उस टीशर्ट का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए कर ले. मैंने पूछा कि आप तो साड़ी और सूट ही पहनती हो फिर आपको इसकी क्या जरूरत है. उन्होंने कहा कि वो इसका इस्तेमाल पीरियड के दौरान करेंगी. क्योंकि वो कपड़ा जो वो इस्तमाल कर रही थीं वो काफी पुराना हो गया था और फट गया था. एक पल के लिए मैं शांत हो गई. मैं दुखी थी, मैंने उनसे पूछा कि वो सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल क्यों नहीं करतीं. उन्होंने कहा वो जानती हैं पैड्स के बारे में लेकिन वो बहुत महंगे हैं. इसके बजाए उतना पैसा वो घर की जरूरतों के लिए खर्च करेंगी. मैंने उन्हें एक पूरा पैकेट दे दिया. घर से जाने के पहले अपनी मां से भी ये कह दिया कि वो हर महीने उन्हें सैनिटरी पैड्स दे दिया करें. पैड्स पर 12% जीएसटी क्यों है जबकि बिंदी, सिंदूर और काजल पर नहीं इसपर बहस चलती है. सरकारी संस्थाएं फ्री पैड्स भी दे रही है, लेकिन इतना काफी नहीं है, बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

टीवी पर सैनिटरी पैड्स के विज्ञापन महिलाओं को ढ़ेर सारे ऑप्शन्स देते हैं, कि ये सॉफ्ट है, ये ज्यादा सोखता है, इसमें विंग्स हैं तो इसमें खुशबू भी है... आप अपनी सामर्थ्य और जरूरत के हिसाब से अपने लिए पैड्स खरीद लेती हैं. पर जब आप सॉफ्टनेस के बारे में सोचें तो एक बार उन महिलाओं के बारे में भी सोचना जो अपने पीरियड्स के दौरान उसी जगह मिट्टी, राख और लकड़ी के बुरादे वाले पैड्स दबाए होती हैं. आप सिहर जाएंगे उनके बारे में सोचकर.

मेंस्ट्रुअल हाईजीन और निम्न आय वर्ग की महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए जाने पर सालों से बहस चल रही है. सरकार इस तरफ काम भी कर रही है लेकिन एक महिला ने जब अपनी कामवाली बाई के उन दिनों के बारे में ट्विटर पर कुछ शेयर किया तो इस दिशा में हो रहे सभी सरकारी दावे खोखले महसूस हए. एक महिला ने ट्विटर पर लिखा कि -

''जब मैं भारत में थी, मैंने अपनी मेड दीदी को घर की साफ सफाई के लिए एक पुरानी टीशर्ट दी. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या वो उस टीशर्ट का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए कर ले. मैंने पूछा कि आप तो साड़ी और सूट ही पहनती हो फिर आपको इसकी क्या जरूरत है. उन्होंने कहा कि वो इसका इस्तेमाल पीरियड के दौरान करेंगी. क्योंकि वो कपड़ा जो वो इस्तमाल कर रही थीं वो काफी पुराना हो गया था और फट गया था. एक पल के लिए मैं शांत हो गई. मैं दुखी थी, मैंने उनसे पूछा कि वो सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल क्यों नहीं करतीं. उन्होंने कहा वो जानती हैं पैड्स के बारे में लेकिन वो बहुत महंगे हैं. इसके बजाए उतना पैसा वो घर की जरूरतों के लिए खर्च करेंगी. मैंने उन्हें एक पूरा पैकेट दे दिया. घर से जाने के पहले अपनी मां से भी ये कह दिया कि वो हर महीने उन्हें सैनिटरी पैड्स दे दिया करें. पैड्स पर 12% जीएसटी क्यों है जबकि बिंदी, सिंदूर और काजल पर नहीं इसपर बहस चलती है. सरकारी संस्थाएं फ्री पैड्स भी दे रही है, लेकिन इतना काफी नहीं है, बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

मेड ने मुझे ये भी बताया कि वो जहां रहती हैं वहां महिलाएं पैंड्स की जगह राख, मिट्टी, रेत और लकड़ी के बुरादे का इस्तेमाल करती हैं. एक स्टडी के मुताबिक भारत में 70% यौन बीमारियां मासिक धर्म की अस्वच्छता की वजह से होती हैं और इससे महिलाओं की मृत्यु दर भी प्रभावित होती है. मैं सभी से ये निवेदन करना चाहती हूं कि आप भी हर महीने अपनी महिला सहायकों, मेड आदि को उनकी पगार के अलावा उन्हें पैड्स देकर उनकी मदद करें. इससे आपपर तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन उनकी स्वच्छता और बेहतरी के लिए ये एक बहतर कदम होगा.

उन्हें पैड्स इस्तेमाल करने के फायदे बताएं और राख और मिट्टी के इस्तेमाल से होने वाले नुक्सान बताएं. उन्हें पैकेट देने से पहले थोड़ा खोल दें, जिससे उन्हें बाहर बेचा न जा सके. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और देश को प्रभावित करने वाली किसी भी समस्या को सिर्फ सरकारी योजनाओं और नीतियों से पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. किसी भी बदलाव के लिए सबको साथ आना होगा. हमारे छोटे प्रयास भी काफी दूर तक जाएंगे.''

इस महिला की कही बातें, शायद हम सबपर थोड़ा-बहुत असर करें. हम में से कुछ अपनी महिला सहयोगियों की मदद भी कर देंगे. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये मदद पर्याप्त है. सरकार को स्वच्छता अभियान के साथ-साथ इन महिलाओं की सुरक्षा के बारे में गंभीरता से सोचकर कुछ उपयोगी कदम उठाने होंगे. पैड्स फ्री दे रहे हैं, पर वो हर किसी के लिए उपलब्ध नहीं है. लोगों को जानकारी नहीं है. सस्ते पैड्स बाजार में उपलब्ध हैं, घर-घर बन भी रहे हैं, लेकिन कहां?? उनके बारे में कोई प्रचार प्रसार नहीं, जिसकी वजह से महिलाओं को ये नहीं पता कि उन्हें खरीदें कहां से.

ये बात सच है कि अपने आसपास वालों की मदद करके हम अपने मन को तो संतुष्ट कर सकते हैं लेकिन ये काम भी हर कोई नहीं करता. जिन्हें वास्तव में इन लोगों की प्राथमिक जरूरतों के बारे में सोचना चाहिए अगर वो ही इस काम को प्राथमिकता से सोचें तो आज इन जरूरतमंद महिलाओं को राख, मिट्टी और बुरादे से होने वाले इनफेक्शन से थोड़ी निजात मिले.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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