• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सोशल मीडिया

बदलते Gujarat election results के साथ EVM की चोरी पकड़ी गई !

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 18 दिसम्बर, 2017 11:52 AM
  • 18 दिसम्बर, 2017 11:52 AM
offline
ईवीएम को लेकर चुनाव के पहले जो बात चल रही थी अब वो गुजरात चुनाव नतीजों के बाद थोड़ी बदल गई है. लोगों को भाजपा की साजिश यहां भी नजर आ रही है और कांग्रेस का रोना फिर से जारी है.. पर क्या है ईवीएम पर जनता की राय? ये ट्विटर रिएक्शन बता रहे हैं.

लो जी एक बार फिर चुनाव के नतीजे आ गए हैं और हमेशा की तरह एक बार फिर आरोप और प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. पिछले कुछ समय के सभी इलेक्शन की तरह इस बार भी भाजपा ही सरकार बनाती दिख रही है. हालांकि, यूपी चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में एक बात अलग है. वो है EVM का चर्चा कम हो गया है. बेचारी EVM इस बार खुद को शायद कहीं दबा हुआ सा महसूस कर रही होगी. जहां पिछली बार यूपी इलेक्शन से लेकर दिल्ली एमसीडी चुनाव तक हर जगह ईवीएम के चर्चे थे वहीं आज सुबह नतीजे जैसे ही आना शुरू हुए EVM की बात फेल हो गई और लोग नतीजों पर बात करने लगे. हालांकि, जब पूरी तरह से रुझान भाजपा की तरफ चले गए तो फिर EVM पर बात होने लगी.

पर सवाल अभी भी वहीं का वहीं है .. कांग्रेस फिर से उठाएगी EVM पर सवाल?

योगेंद्र यादव का कहना है कि किसी भी विपक्षी पार्टी को EVM पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

1. एक्जिट पोल EVM से नहीं होते, एक्जिट पोल के नतीजों की तरह ही चुनाव के रिजल्ट आए हैं. 2. बैलट पेपर की काउंटिंग से काउंटिंग एरर यानि काउंटिंग में गलतियों की गुंजाइश बहुत ज्यादा होती थी. ये सिर्फ मॉर्डन और पुराने तरीकों की बात नहीं है.3. ऐसा नहीं है कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हैक न हो सके, लेकिन सवाल ये है कि जिस तरह के प्रोटोकॉल हमारे यहां फॉलो किए जाते हैं उनको देखने पर लगता है कि ईवीएम की हैकिंग की गुंजाइश कम से कम है.

आखिर काम कैसे करती है ईवीएम-

ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में एक कंट्रोल यूनिट होता है. एक बैलट यूनिट और 5 मीटर की केबल. ये मशीन 6 वोल्ट की बैटरी से भी चलाई जा सकती है. होता कुछ यूं है कि मतदाता को अपनी पसंद के कैंडिडेट के आगे दिया बटन दबाना होता है और एक वोट लेते ही मशीन लॉक हो जाती है. इसके बाद सिर्फ नए बैलट नंबर से ही खुलती है....

लो जी एक बार फिर चुनाव के नतीजे आ गए हैं और हमेशा की तरह एक बार फिर आरोप और प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. पिछले कुछ समय के सभी इलेक्शन की तरह इस बार भी भाजपा ही सरकार बनाती दिख रही है. हालांकि, यूपी चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में एक बात अलग है. वो है EVM का चर्चा कम हो गया है. बेचारी EVM इस बार खुद को शायद कहीं दबा हुआ सा महसूस कर रही होगी. जहां पिछली बार यूपी इलेक्शन से लेकर दिल्ली एमसीडी चुनाव तक हर जगह ईवीएम के चर्चे थे वहीं आज सुबह नतीजे जैसे ही आना शुरू हुए EVM की बात फेल हो गई और लोग नतीजों पर बात करने लगे. हालांकि, जब पूरी तरह से रुझान भाजपा की तरफ चले गए तो फिर EVM पर बात होने लगी.

पर सवाल अभी भी वहीं का वहीं है .. कांग्रेस फिर से उठाएगी EVM पर सवाल?

योगेंद्र यादव का कहना है कि किसी भी विपक्षी पार्टी को EVM पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

1. एक्जिट पोल EVM से नहीं होते, एक्जिट पोल के नतीजों की तरह ही चुनाव के रिजल्ट आए हैं. 2. बैलट पेपर की काउंटिंग से काउंटिंग एरर यानि काउंटिंग में गलतियों की गुंजाइश बहुत ज्यादा होती थी. ये सिर्फ मॉर्डन और पुराने तरीकों की बात नहीं है.3. ऐसा नहीं है कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हैक न हो सके, लेकिन सवाल ये है कि जिस तरह के प्रोटोकॉल हमारे यहां फॉलो किए जाते हैं उनको देखने पर लगता है कि ईवीएम की हैकिंग की गुंजाइश कम से कम है.

आखिर काम कैसे करती है ईवीएम-

ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में एक कंट्रोल यूनिट होता है. एक बैलट यूनिट और 5 मीटर की केबल. ये मशीन 6 वोल्ट की बैटरी से भी चलाई जा सकती है. होता कुछ यूं है कि मतदाता को अपनी पसंद के कैंडिडेट के आगे दिया बटन दबाना होता है और एक वोट लेते ही मशीन लॉक हो जाती है. इसके बाद सिर्फ नए बैलट नंबर से ही खुलती है. एक मिनट में ईवीएम में सिर्फ 5 वोट दिए जा सकते हैं.

ईवीएम मशीनें बैलट बॉक्स से ज्यादा आसान थीं, उनकी स्टोरेज, गणना आदि सब कुछ ज्यादा बेहतर था इसलिए इनका इस्तेमाल शुरू हुआ. लगभग 15 सालों से ये भारतीय इलेक्शन का हिस्सा बनी हुई है. हालांकि, इसके पूरी तरह से सही साबित होने को लेकर अभी भी बहस चल रही है और कई देशों ने ईवीएम का इस्तेमाल इलेक्शन में बंद कर दिया है, लेकिन फिर भी अगर देखा जाए तो ईवीएम को दोषी ठहराना एकदम सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम टैंपरिंग से संबंधित जितने भी मामले पहले आये उनमें से किसी भी मामले में ईवीएम में टैंपरिंग सिद्ध नहीं हो पाई है. स्वयं चुनाव आयोग आम लोगों को आंमत्रित करता है कि वे लोग आयोग जाकर ईवीएम की तकनीक को गलत सिद्ध करने हेतु अपने दावे प्रस्तुत करें. लेकिन आज तक कोई भी दावा सही सिद्ध नहीं हुआ है.

इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा मजेदार ट्विटर के रिएक्शन रहे हैं. नतीजों से पहले और नतीजों के बाद जिस तरह ट्विटर पर रिएक्शन बदले हैं उससे समझ आ रहा है कि अब ईवीएम की पूछ परख कम होने वाली है...

रिजल्ट के पहले EVM पर रिएक्शन...

खुद हार्दिक पटेल का ट्विट ... पता नहीं चुनाव परिणामों के पहले चरण में वो कंपनी कहां गई थी...

 

 

 

 

 

EVM पर कांग्रेस और हार्दिक पटेल पहले से ही सवाल उठा रहे थे, ट्विटर भी उनके साथ था, लेकिन जैसे-जैसे नतीजे आने लगे वैसे-वैसे ईवीएम ही नहीं.. ट्विटर के सिपाही भी बदल गए. जरा देखिए EVM पर रिजल्ट के बाद की ट्वीट्स...

रिजल्ट के बाद EVM पर रिएक्शन...

हम अभी भी भाजपा को दोष ठहराएंगे...

ट्विटर के सिपाहियों ने तो ये भी नतीजे निकाल लिए कि आखिर कैसे शुरुआत में कांग्रेस जीत रही थी और अब भाजपा जीत गई. इसके पीछे भी किसी मास्टर माइंड का हाथ है. 

हम भाजपा के साथ हैं...

वाकई शायद ये राहुल गांधी के मन की बात है...

तो क्या अभी भी बाकी है EVM का रोना?

 

इलेक्शन कमिशन का क्या कहना है..

1. आयोग का कहना है कि ईवीएम इंटरनेट से जुड़ा नहीं होता. इसलिए इसे किसी भी दशा में ऑनलाइन हैक नहीं किया जा सकता.

2. किस बूथ पर कौन सा ईवीएम जायेगा, इसके लिए रैंडमाइजेशन की प्रक्रिया होती है. यानी सभी ईवीएम को पहले लोकसभा वार फिर विधानसभा वार और सबसे अंत में बूथवार निर्धारित किया जाता है और पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चल पाता है कि उसके पास किस सीरिज का ईवीएम आया है. ऐसे में अंतिम समय तक पोलिंग पार्टी को पता नहीं रहता कि उनके हाथ में कौन सा ईवीएम आने वाला है.

3. बेसिक तौर पर ईवीएम में दो मशीन होती है, बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट. वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी जोड़ दिया गया है, जो सात सेकंड के लिए मतदाता को एक पर्ची दिखाता है, जिसमें ये उल्लेखित रहता है कि मतदाता ने अपना वोट किस अभ्यर्थी को दिया है. ऐसे में अभ्यर्थी बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है कि नहीं.

4. वोटिंग के पहले सभी ईवीएम की गोपनीय जांच की जाती है और सभी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही ईवीएम को वोटिंग हेतु प्रयुक्त किया जाता है.

5. सबसे बड़ी बात, वोटिंग के दिन सुबह मतदान शुरू करने से पहले मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी द्वारा सभी उम्मीदवारों के मतदान केन्द्र प्रभारी या पोलिंग एंजेट के सामने मतदान शुरू करने से पहले मॉक पोलिंग की जाती है और सभी पोलिंग एंजेट से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि ये जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं. ऐसे में यदि किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकि गड़बड़ी होगी तो मतदान के शुरू होने के पहले ही पकड़ ली जायेगी.

खैर, ईवीएम का मसला जो भी हो अब एक बात तो साफ हो गई है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में सरकार तो भाजपा बना ही लेगी.

ये भी पढ़ें-

राहुल गांधी में बदलाव को क्रांति बताने वाली राजनैतिक मार्केटिंग क्यों?

गुजरात और हिमाचल की हार-जीत का राहुल पर नहीं होगा असर


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    नाम बदलने की सनक भारी पड़ेगी एलन मस्क को
  • offline
    डिजिटल-डिजिटल मत कीजिए, इस मीडियम को ठीक से समझिए!
  • offline
    अच्छा हुआ मां ने आकर क्लियर कर दिया, वरना बच्चे की पेंटिंग ने टीचर को तारे दिखा दिए थे!
  • offline
    बजरंग पुनिया Vs बजरंग दल: आना सरकार की नजरों में था लेकिन फिर दांव उल्टा पड़ गया!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲