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पहले चौकीदार अब आंदोलनजीवी पीएम जानते हैं खेलने-खाने के लिए लोगों को क्या कितना देना है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 10 फरवरी, 2021 10:45 PM
  • 10 फरवरी, 2021 10:45 PM
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2019 के आम चुनावों के वक़्त मुद्दा राफेल था तो उस समय चौकीदार और अब जबकि किसान आंदोलन ज़ोरों पर है तो आंदोलनजीवी कहकर आंदोलन करने वालों पर पीएम मोदी का तंज. प्रधानमंत्री जानते हैं कि सोशल मीडिया पर लोगों को खेलने-खाने के लिए क्या मुद्दा देना है और किस वक़्त देना है.

47 में देश के बंटवारे के बाद यूं तो कई चुनाव हुए कई नेता आए और गए लेकिन जो चुनाव ऐतिहासिक है या ये कहें कि जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाई वो 2019 का आम चुनाव था. 2014 में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को लेकर जो संभावनाएं थीं वो 19 में ध्वस्त हुईं. 2019 के आम चुनाव में जिस तरह कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का सूपड़ा साफ हुआ, राजनीतिक विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग था जिसका परिणाम देखने के बाद यही कहना था कि जैसा जनाधार भाजपा को मिला है और जिस तरह देश की जनता ने पुनः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाथों हाथ लिया है देश की मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में राहुल गांधी का कम बैक दूर के सुहावने ढोल हैं. 2019 में भाजपा क्यों जीती कैसे नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने इस पर लिखने को तो कई हज़ार शब्द लिखे जा सकते हैं मगर जो सबसे प्रभावी कारण है वो है राफेल मामले को लेकर राहुल गांधी का भाजपा की तीखी आलोचना करना और प्रधानमंत्री के लिए 'चौकीदार चोर है' जैसे जुमले का इस्तेमाल करना. एक राजनेता के रूप में नरेंद्र मोदी की खासियत है अपने ऊपर लगे आरोपों को भुनाना. पीएम मोदी ने राहुल गांधी के इस जुमले को भुनाया. नतीजा ये निकला कि पूरा सोशल मीडिया चौकीदा मय हो गया. जिसे देखो वहीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करते जुए इस बात को दोहरा रहा था कि 'मैं भी चौकीदार.'

राज्यसभा में किसान आंदोलन के नाम पर आंदोलनकारियों पर व्यंग्य करते पीएम मोदी

सवाल होगा कि आज ये बातें क्यों हुईं? आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते हमें 2019 के आम चुनाव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता का जिक्र करना पड़ा. वजह है पीएम मोदी का राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देना.

चाहे पार्टी के हों या फिर विपक्ष के तमाम नेता इस...

47 में देश के बंटवारे के बाद यूं तो कई चुनाव हुए कई नेता आए और गए लेकिन जो चुनाव ऐतिहासिक है या ये कहें कि जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाई वो 2019 का आम चुनाव था. 2014 में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को लेकर जो संभावनाएं थीं वो 19 में ध्वस्त हुईं. 2019 के आम चुनाव में जिस तरह कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का सूपड़ा साफ हुआ, राजनीतिक विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग था जिसका परिणाम देखने के बाद यही कहना था कि जैसा जनाधार भाजपा को मिला है और जिस तरह देश की जनता ने पुनः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाथों हाथ लिया है देश की मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में राहुल गांधी का कम बैक दूर के सुहावने ढोल हैं. 2019 में भाजपा क्यों जीती कैसे नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने इस पर लिखने को तो कई हज़ार शब्द लिखे जा सकते हैं मगर जो सबसे प्रभावी कारण है वो है राफेल मामले को लेकर राहुल गांधी का भाजपा की तीखी आलोचना करना और प्रधानमंत्री के लिए 'चौकीदार चोर है' जैसे जुमले का इस्तेमाल करना. एक राजनेता के रूप में नरेंद्र मोदी की खासियत है अपने ऊपर लगे आरोपों को भुनाना. पीएम मोदी ने राहुल गांधी के इस जुमले को भुनाया. नतीजा ये निकला कि पूरा सोशल मीडिया चौकीदा मय हो गया. जिसे देखो वहीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करते जुए इस बात को दोहरा रहा था कि 'मैं भी चौकीदार.'

राज्यसभा में किसान आंदोलन के नाम पर आंदोलनकारियों पर व्यंग्य करते पीएम मोदी

सवाल होगा कि आज ये बातें क्यों हुईं? आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते हमें 2019 के आम चुनाव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता का जिक्र करना पड़ा. वजह है पीएम मोदी का राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देना.

चाहे पार्टी के हों या फिर विपक्ष के तमाम नेता इस बात को स्वीकार करते हैं कि बोलने में पीएम मोदी का किसी से कोई मुकाबला नहीं है. नरेंद्र मोदी एक ऐसे वक्ता हैं जो अपनी प्रभावशाली बातों से ऐसा समा बांध देते हैं कि जिससे निकलना समर्थकों के अलावा आलोचकों तक के लिए लगभग असंभव हो जाता है.

बात चूंकि देश के प्रधानमंत्री की चल रही है तो ये बताना भी बेहद ज़रूरी है कि पूर्व से लेकर वर्तमान तक कई मौके ऐसे भी आए हैं जब अपने सेंस ऑफ ह्यूमर और वन लाइनर्स से पीएम ने बड़े बड़े भाषाविदों तक को हैरत में डाला है. 2014 और 2019 के आम चुनाव हों याअलग अलग राज्यों के चुनाव पीएम मोदी के वन लाइनर्स किसी प्रत्याशी को बड़ी ही आसानी से चुनाव जितवा सकते हैं.

उपरोक्त पंक्तियों में हमने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा और पीएम मोदी का जिक्र किया था तो बताते चलें कि धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान न केवल प्रधानमंत्री ने विपक्ष को आड़े हाथों लिया बल्कि उन्होंने किसान हितों के साथ साथ प्रदर्शकारी किसानों का भी जिक्र किया. इस दौरान पीएम ने उन लोगों का भी जिक्र किया जो मौके बेमौके हर बात के लिए आंदोलन का बहाना खोज लेते हैं. पीएम ने तंज कसते हुए ऐसे लोगों को आंदोलन जीवी की संज्ञा दी.

दिलचस्प बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंदोलन जीवी लोगों की तुलना परजीवी से की. धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा के दौरान जैसा अंदाज पीएम मोदी का था कहना गलत नहीं है कि उन्होंने जूते भिगा भिगाकर उन लोगों को पीटा है जिनकी जिंदगी का बस एक मकसद हर दूसरी बात पर विरोध के नाम पर आंदोलन करना है.

राज्यसभा में कही पीएम मोदी की बातें कितना असर करती हैं? क्या प्रधानमंत्री के आंदोलन कारियों पर व्यंग्य उन्हें सही दिशा में ले जाएंगे सवाल तो तमाम हैं. लेकिन हर दूसरी बात पर आंदोलन करने वालों को जिस तरह देश के प्रधानमंत्री ने निशाने पर लिया उसने सोशल मीडिया पर एक नई बहस को आयाम दे दिए हैं.

सोशल मीडिया पर बुद्धजीवियों से लेकर आम आदमियों तक तमाम लोग ऐसे हैं जो अपनी राजनीतिक विचारधारा के अनुसार पीएम मोदी के इस नए तंज के अर्थ निकाल रहे हैं.

बाहरहाल अब जबकि पीएम मोदी ने गलत मंसूबे रखने वाले लोगों को निशाने पर ले ही लिया है तो हमारे लिए भी ये कहना गलत नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि जनता को सोशल मीडिया पर खेलने, खाने, हैश टैग चलाने के लिए क्या मुद्दा देना है और किस वक़्त देना है.

ध्यान रहे ये दौर किसान आंदोलन का दौर है देश का किसान, देश की सरकार से नाराज है ऐसे में अगर प्रधानमंत्री ने 'आंदोलनजीवी' का मुद्दा उठाया है तो इसका सीधा असर किसान आंदोलन और इस आंदोलन के रहनुमा बने राकेश टिकैत जैसे लोगों पर हुआ है. पब्लिक का ध्यान किसान आंदोलन और राकेश टिकैत से हटकर 'आंदोलन जीवी' पर शिफ्ट हो गया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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