• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सोशल मीडिया

ट्विटर देखकर महसूस हुआ, शहीद उधम सिंह अब भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 26 दिसम्बर, 2017 07:31 PM
  • 26 दिसम्बर, 2017 07:31 PM
offline
ऐसा नहीं है कि हर बार सोशल मीडिया बुरा ही है. आज इसे देखकर वाकई खुशी तब हुई जब लोगों को शहीद ए आजम सरदार उधम सिंह के जन्मदिन पर उन्हें याद करते देखा.

आपने पंजाब में हुए उस नरसंहार कांड के बारे में अवश्य किताबों में पढ़ा या फिर अपने वरिष्ठों से सुना होगा, जिसमें 1919 में पंजाब के गवर्नर रहे माइकल डायर के एक आदेश पर सैकड़ों लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था. बताया जाता है कि इस नरसंहार में हजार से ऊपर लोग मारे गए थे और 2000 से ऊपर लोग घायल हुए थे. इतिहास इस नरसंहार को जलियांवाला बाग के नाम से जानता है. बात जब जलियांवाला कांड की चल रही है तो ऐसे में भारत मां के वीर सपूत उधम सिंह का नाम आना लाजमी है.

ये देखकर अच्छा लगा कि अब भी लोगों के दिलों में उधम सिंह जीवित हैं

ध्यान रहे कि सरदार उधम सिंह इस हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे जिन्हें इस घटना ने अंदर तक हिलाकर रख दिया था. उधम सिंह ने जलियांवाला कांड के 21 साल बाद अंग्रेजों की भूमि पर जाकर 21 साल पहले हुए उस नरसंहार का बदला लिया. सरदार उधम सिंह को अंग्रेजो ने फांसी दी और वो हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. इसी कारण सरदार उधम सिंह को शहीद ए आजम की उपाधि से नवाजा गया.'

बहरहाल, आज शहीद ए आजम सरदार उधम सिंह का जन्मदिन था तो ये जानने के लिए कि लोगों ने इन्हें याद रखा है या नहीं मैंने सोशल मीडिया का रुख किया. सोशल मीडिया पर जो देखा उसको देखकर कलेजे को बड़ी ठंडक मिली. ऐसा इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया को लेकर लोग तमाम तरह की बातें करते हैं. लोगों का मत है कि वर्तमान परिपेक्ष में ये एक ऐसा माध्यम बन चुका है जिससे केवल और केवल नफरत फैलाई जा रही है. इसके अलावा लोगों का ये भी तर्क है कि सोशल मीडिया अवसाद का जनक होता है और इसके इस्तेमाल से व्यक्ति केवल अपना समय बर्बाद करता है. आज सरदार उधम सिंह को याद करते लोगों को देखकर महसूस हुआ कि इसके तमाम फायदे भी हैं और कहीं न कहीं इससे हम अपने स्वर्णिम इतिहास को जान सकते...

आपने पंजाब में हुए उस नरसंहार कांड के बारे में अवश्य किताबों में पढ़ा या फिर अपने वरिष्ठों से सुना होगा, जिसमें 1919 में पंजाब के गवर्नर रहे माइकल डायर के एक आदेश पर सैकड़ों लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था. बताया जाता है कि इस नरसंहार में हजार से ऊपर लोग मारे गए थे और 2000 से ऊपर लोग घायल हुए थे. इतिहास इस नरसंहार को जलियांवाला बाग के नाम से जानता है. बात जब जलियांवाला कांड की चल रही है तो ऐसे में भारत मां के वीर सपूत उधम सिंह का नाम आना लाजमी है.

ये देखकर अच्छा लगा कि अब भी लोगों के दिलों में उधम सिंह जीवित हैं

ध्यान रहे कि सरदार उधम सिंह इस हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे जिन्हें इस घटना ने अंदर तक हिलाकर रख दिया था. उधम सिंह ने जलियांवाला कांड के 21 साल बाद अंग्रेजों की भूमि पर जाकर 21 साल पहले हुए उस नरसंहार का बदला लिया. सरदार उधम सिंह को अंग्रेजो ने फांसी दी और वो हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. इसी कारण सरदार उधम सिंह को शहीद ए आजम की उपाधि से नवाजा गया.'

बहरहाल, आज शहीद ए आजम सरदार उधम सिंह का जन्मदिन था तो ये जानने के लिए कि लोगों ने इन्हें याद रखा है या नहीं मैंने सोशल मीडिया का रुख किया. सोशल मीडिया पर जो देखा उसको देखकर कलेजे को बड़ी ठंडक मिली. ऐसा इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया को लेकर लोग तमाम तरह की बातें करते हैं. लोगों का मत है कि वर्तमान परिपेक्ष में ये एक ऐसा माध्यम बन चुका है जिससे केवल और केवल नफरत फैलाई जा रही है. इसके अलावा लोगों का ये भी तर्क है कि सोशल मीडिया अवसाद का जनक होता है और इसके इस्तेमाल से व्यक्ति केवल अपना समय बर्बाद करता है. आज सरदार उधम सिंह को याद करते लोगों को देखकर महसूस हुआ कि इसके तमाम फायदे भी हैं और कहीं न कहीं इससे हम अपने स्वर्णिम इतिहास को जान सकते हैं.

गौरतलब है कि  26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में जन्में सरदार उधम सिंह ने हम भारतियों पर एक बड़ा एहसान किया है. कहा जा सकता है कि इन्होंने हमें आत्मसम्मान से जीना और अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया. अंत में ये कहते हुए हम अपनी बात खत्म करेंगे कि जितना हो सके हमें अपने इतिहास को याद रखना चाहिए और उसका प्रचार प्रसार करना चाहिए. यदि हम ही उससे दूर भागेंगे तो फिर कोई और उसे सहेज कर नहीं रखने वाला.

ये भी पढ़ें -

आजादी के 3 दीवानों की शहादात की वो 90 साल पुरानी कहानी...

फेसबुक से ट्विटर तक, सरफ़रोशी की तमन्ना बस एक तमन्ना ही बनकर रह गयी…

सावरकर 'वीर' नहीं 'ब्रिटिश एजेंट' थे!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    नाम बदलने की सनक भारी पड़ेगी एलन मस्क को
  • offline
    डिजिटल-डिजिटल मत कीजिए, इस मीडियम को ठीक से समझिए!
  • offline
    अच्छा हुआ मां ने आकर क्लियर कर दिया, वरना बच्चे की पेंटिंग ने टीचर को तारे दिखा दिए थे!
  • offline
    बजरंग पुनिया Vs बजरंग दल: आना सरकार की नजरों में था लेकिन फिर दांव उल्टा पड़ गया!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲