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सावरकर 'वीर' नहीं 'ब्रिटिश एजेंट' थे!

    • मार्कंडेय काटजू
    • Updated: 28 मई, 2016 02:19 PM
  • 28 मई, 2016 02:19 PM
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जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया. वह ब्रिटिश नीति..बांटो और राज करो को आगे बढ़ाने का काम करने लगे थे.

आज 'वीर' सावरकर की जयंती है. (1883-1966). कई लोगों मानते हैं कि वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. लेकिन सच क्या है? सच ये है ब्रिटिश राज के दौरान कई राष्ट्रवादी गिरफ्तार किए गए और ब्रिटिश शासन ने उन्हें लंबे समय तक के लिए जेल में डाल दिया. इसके बाद जेल में ब्रिटिश अधिकारी उन्हें प्रलोभन देते थे कि या वे उनके साथ मिल जाए या पूरी जिंदगी जेल में बिताने के लिए तैयार रहें.

तब कई लोगो ब्रिटिश शासन का सहयोगी बन जाने के लिए तैयार हो जाते थे. इसमें सावरकर भी शामिल हैं. दरअसल, सावरकर केवल 1910 तक राष्ट्रवादी रहे. ये वो समय था जब वे गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें उम्र कैद की सजा हुई.

जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया. जेल से बाहर आने के बाद सावरकर हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करने लगे और एक ब्रिटिश एजेंट बन गए. वह ब्रिटिश नीति..बांटो और राज करो को आगे बढ़ाने का काम करते थे.

 

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे. उन्होंने तब इस नारे को बढ़ावा दिया, 'राजनीति को हिंदू रूप दो और हिंदूओं का सैन्यकरण करो'. सावरकर ने भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा युद्ध के लिए हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देने की मांग का भी समर्थन किया. इसके बाद जब कांग्रेस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो सावरकर ने उसकी आलोचना की. उन्होंने हिंदुओं से ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा न करने को कहा. साथ ही उन्होंने हिंदुओं से कहा कि वे सेना में भर्ती हों और युद्ध की कला सीखें.

क्या सावरकर सम्मान के लायक हैं और उन्हें स्वतंत्रता सेनानी...

आज 'वीर' सावरकर की जयंती है. (1883-1966). कई लोगों मानते हैं कि वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. लेकिन सच क्या है? सच ये है ब्रिटिश राज के दौरान कई राष्ट्रवादी गिरफ्तार किए गए और ब्रिटिश शासन ने उन्हें लंबे समय तक के लिए जेल में डाल दिया. इसके बाद जेल में ब्रिटिश अधिकारी उन्हें प्रलोभन देते थे कि या वे उनके साथ मिल जाए या पूरी जिंदगी जेल में बिताने के लिए तैयार रहें.

तब कई लोगो ब्रिटिश शासन का सहयोगी बन जाने के लिए तैयार हो जाते थे. इसमें सावरकर भी शामिल हैं. दरअसल, सावरकर केवल 1910 तक राष्ट्रवादी रहे. ये वो समय था जब वे गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें उम्र कैद की सजा हुई.

जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया. जेल से बाहर आने के बाद सावरकर हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करने लगे और एक ब्रिटिश एजेंट बन गए. वह ब्रिटिश नीति..बांटो और राज करो को आगे बढ़ाने का काम करते थे.

 

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे. उन्होंने तब इस नारे को बढ़ावा दिया, 'राजनीति को हिंदू रूप दो और हिंदूओं का सैन्यकरण करो'. सावरकर ने भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा युद्ध के लिए हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देने की मांग का भी समर्थन किया. इसके बाद जब कांग्रेस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो सावरकर ने उसकी आलोचना की. उन्होंने हिंदुओं से ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा न करने को कहा. साथ ही उन्होंने हिंदुओं से कहा कि वे सेना में भर्ती हों और युद्ध की कला सीखें.

क्या सावरकर सम्मान के लायक हैं और उन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहा जाना चाहिए?

सच्चे वीर तो भगत सिंह, सूर्य सेन, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, अशफाउल्लाह खान, राजगुरु, खुदीराम बोस जैसे लोग थे. इनमें से ज्यादातर लोगों को ब्रिटिश शासन ने फांसी दे दी. सावरकर के बारे में 'वीर' जैसी बात क्यों? वह तो 1910 के बाद ब्रिटिश एजेंट हो गए थे.

(यह लेख मार्कंडेय काटजू के फेसबुक पेज से लिया गया है..)

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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