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Clubhouse Hate Conversation: कट्टरवादऔर वहशीपन की बलि चढ़ती पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी!

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 21 जनवरी, 2022 07:02 PM
  • 21 जनवरी, 2022 06:59 PM
offline
राजनीतिक-सामाजिक कट्टरवाद के साथ मानसिक कुंठा का ज़हर एक पूरी पीढ़ी को खतरनाक मानसिक रोगियों की श्रेणी में ला रहा है. जहां शरीर का भोग रिश्ते नाते और सामाजिक नियम कानून से परे है. इस जंगल राज की नींव हम आप सालों से फेक व्हाट्सएप फॉरवर्ड, वीडियो से रखते आ रहे हैं. अब फसल काटने को तैयार रहें. गुनहगार अपनी बेटी या बेटा कोई भी हो सकता है.

सोशल मिडिया में नफरत, गंदगी, अश्लीलता, धर्म और जाति के नाम पर ज़हर सुनने के हम आदि होते जा रहे हैं. दुखद है किन्तु सच है. ये गंदगी भी अलग आग तरह की है. आप कहेंगे दुनिया हमेशा से अच्छी, बुरी, बहुत बुरी और घृणित रही है. जी हां यकीनन रही है. लेकिन शायद कुछ बरस पहले तक सबके दायरे ज़रा अलग अलग थे. राजनितिक नफरत या अलगाव अलग था. धार्मिक अलगाव अलग. औरत को मांस का लोथड़ा समझने वाले कुंठित मानसिकता वाले कुछ अलग और जातीयता के नाम पर ऊपरवाला पालनहार एक है का ढोंग करने वाले अलग. लेकिन आज मामला ज़रा अलग है. अच्छाई संकुचित हो गयी है और बुराई आप में घुल मिल कर सैकड़ों रक्त बीज बना रही है.

हिंदू मुस्लिम के इतर क्लब हाउस में जो बातें हुई हैं वो शर्मिंदा करने वाली हैं

सुल्ली डील के बाद शर्मशार करने वाली एक खबर. क्लब हॉउस पर चर्चा होती है, मुस्लिम लड़कियां हिन्दू लड़कियों से ज़्यादा सुंदर है? सुंदरता की परिपाटी क्या है और किन किन अंगो का ज़िक्र बेधड़क बेशर्मी से हो रहा है वो हमारे देश की सभ्यता के परख्च्चे उड़ने के लिए काफी है. इसे नई पीढ़ी की गलत सोच बोल कर कन्नी नहीं काट सकते. दिन रात तिनका तिनका ज़हर अपने अपने बच्चों को हमने खुद दिया है.

आज राजनीति में धार्मिक जातीय अलगाव चरम पर है और दूसरे धर्म के प्रति नफरत का तेज़ाब अब धीमी आंच पर पक कर उबाल लेने को तैयार हो रहा है. औरत? मांस से ज्यादा कुछ नहीं तो सेक्स की कुंठा भी इसमें शामिल है.' अब समझिये की इन सब मुद्दों को बेस बना कर करोड़ों कॉन्टेंट तैयार हो. वीडियो, ऑडियो, आर्टिकल, समाचार पढ़ते कुछ भांड, फेसबुक के ग्रुप ट्विटर की आईडी व्हाट्सएप के फॉरवर्ड.

सालों...

सोशल मिडिया में नफरत, गंदगी, अश्लीलता, धर्म और जाति के नाम पर ज़हर सुनने के हम आदि होते जा रहे हैं. दुखद है किन्तु सच है. ये गंदगी भी अलग आग तरह की है. आप कहेंगे दुनिया हमेशा से अच्छी, बुरी, बहुत बुरी और घृणित रही है. जी हां यकीनन रही है. लेकिन शायद कुछ बरस पहले तक सबके दायरे ज़रा अलग अलग थे. राजनितिक नफरत या अलगाव अलग था. धार्मिक अलगाव अलग. औरत को मांस का लोथड़ा समझने वाले कुंठित मानसिकता वाले कुछ अलग और जातीयता के नाम पर ऊपरवाला पालनहार एक है का ढोंग करने वाले अलग. लेकिन आज मामला ज़रा अलग है. अच्छाई संकुचित हो गयी है और बुराई आप में घुल मिल कर सैकड़ों रक्त बीज बना रही है.

हिंदू मुस्लिम के इतर क्लब हाउस में जो बातें हुई हैं वो शर्मिंदा करने वाली हैं

सुल्ली डील के बाद शर्मशार करने वाली एक खबर. क्लब हॉउस पर चर्चा होती है, मुस्लिम लड़कियां हिन्दू लड़कियों से ज़्यादा सुंदर है? सुंदरता की परिपाटी क्या है और किन किन अंगो का ज़िक्र बेधड़क बेशर्मी से हो रहा है वो हमारे देश की सभ्यता के परख्च्चे उड़ने के लिए काफी है. इसे नई पीढ़ी की गलत सोच बोल कर कन्नी नहीं काट सकते. दिन रात तिनका तिनका ज़हर अपने अपने बच्चों को हमने खुद दिया है.

आज राजनीति में धार्मिक जातीय अलगाव चरम पर है और दूसरे धर्म के प्रति नफरत का तेज़ाब अब धीमी आंच पर पक कर उबाल लेने को तैयार हो रहा है. औरत? मांस से ज्यादा कुछ नहीं तो सेक्स की कुंठा भी इसमें शामिल है.' अब समझिये की इन सब मुद्दों को बेस बना कर करोड़ों कॉन्टेंट तैयार हो. वीडियो, ऑडियो, आर्टिकल, समाचार पढ़ते कुछ भांड, फेसबुक के ग्रुप ट्विटर की आईडी व्हाट्सएप के फॉरवर्ड.

सालों साल की मेहनत और जहर की फसल ऐसी की पूरी नई नस्ल के लड़के लड़कियां गर्त में डूबते हुए कहकहे लगा रहे है. औरत की इज़्ज़त इस देश में किस्से कहानियों से बाहर ज़मीनी तौर पर कभी नहीं हुई. उसे केवल शरीर मानना सिखाना नहीं पड़ता बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी थाती के रूप में आ रहा है.

बलात्कार जबरदस्ती रिवेंज यानि बदला लेने और नीचा दिखने का सबसे आसान कारगर तरीका है. ये सीखा है हमसे हमारी पीढ़ियों ने. धर्म की नफरत ऐसी नहीं थी नहीं बल्कि बोई गयी अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते. हालांकि प्रधामंत्री बनने का सपना लिए वो मर ही जायेंगे लेकिन धर्म के नाम पर ज़हर का बीज बोने का श्रेय उनके नाम रहेगा. आने वाला इतिहास माफ़ नहीं करेगा.

जातीयता कहीं नहीं गई बल्कि गहरे पथ गयी है. दलित के घर रोटी खाने से सोच बदलती नहीं. तो इस गंदगी के निवाले हमने ही खिलाये. ये बातचीत हर हिंदुस्तानी को सुनाई जानी चाहिए. जाति धर्म से परे इसे सुनना इस लिए ज़रूरी है की इस फसल को लहराने में हर एक का साथ रहा है.

कुछ ने अपनी सुबह की पहली चाय नफरत में डूबे किसी फेक, तो कभी रियल विडिओ की कर्कश आवाज़ के साथ बिताने का निर्णय ले लिया है. वो रिटायरमेंट के बाद सेक्युलर देश को हिन्दू राष्ट्र या मुस्लिम मुक्त राष्ट्र बनाने की मशक्क्त में जुड़े है. यकीनन कुछ मुसलमान भी होंगे जो जन्नत की हूरों का हवाला देते होंगे.

कुछ कामकाजी समय समय पर फेसबुक ट्विटर पर जा कर गंद फ़ैलाने में मदद करते है. कुछ ने अपने घर के ड्राइंग रूम को ही धर्म बचाने की भट्टी बना ली और उसमे अपनी और 12 -13 साल के बच्चों की सोच को झोंक दिया. और अब वो बच्चे 18-19-20 साल की उम्र में मानसिक कुंठा और गंदगी के उस दलदल में हैं जिसे सुन कर उबकाई आती है.

कोई लड़का जो अपनी माँ को अपने बिस्तर पर करने को लालायित है क्योंकि वो मां मुस्लिम है. कोई लड़की बेशर्मी से ये पूछती है की कैसे और क्यों मुस्लिम लड़की हिन्दू लड़की से अलग है. 7 बाबरी तोड़ने का पुण्य और सनातन धर्म के नाम पर... इससे पहले की आप मुझे देश विरोधी हिन्दू विरोधी कहे बस एक बार मुस्लिम लड़कियाँ हिन्दू लड़कियों से ज़्यादा सुंदर है? इस सवाल को बदल कर देखिये.

हिन्दू लड़कियां मुस्लिम लड़कियों से ज़्यादा सुंदर है? और पूरी बातचीत फिर से सुनिए. मुद्दा हिन्दू मुस्लिम से कहीं आगे जा चुका है. इस गर्त का अंत नहीं दिखता और अपनी नस्लों के लिए डार लगता है की कैसा समाज कैसा देश छोड़ कर जायेंगे हम? जिस पीढ़ी पर भरोसा कर मेक इन इंडिया के सपने देख हम अपनी इकॉनमी को दुनिया में आगे ले जाने के सपने देख रहे हैं वो आपकी ही फैलाई नफरत में सब भूल चुकी है. 

घर में आग लगने पर अगर हम यह सोच कर खुश हैं की आंच पड़ोसी को लग रही है तो जल्द ही अपना घर खाक होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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