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कर्नाटक चुनाव में रैलियों का रिकॉर्ड whatsapp ने तोड़ा है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 16 मई, 2018 01:01 PM
  • 16 मई, 2018 01:01 PM
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विदेशी मीडिया के अनुसार कर्नाटक का पूरा चुनाव न सिर्फ व्हाट्स ऐप पर लड़ा गया बल्कि इसे जीता भी गया. यदि ये खबर सत्य है तो इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि आने वाले वक़्त में भारत जैसे लोकतंत्र पर संकट के बादल मंडराने वाले हैं.

बात जब फेक न्यूज और भ्रामक प्रचार की होती है तो वर्तमान परिदृश्य में जो एक चीज अपने आप हमारे जहन में आती है वो है व्हाट्सऐप. आज तमाम भारतीयों द्वारा व्हाट्स ऐप का इस्तेमाल ऐसे-ऐसे कामों के लिए किया जा रहा है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. लगातार चर्चा में रहने वाला व्हाट्स ऐप आज फिर चर्चा में है. कारण है कर्नाटक चुनाव. कर्नाटक चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और इससे जुड़ी जो ख़बरें आ रही हैं वो विचलित करने वाली है. खबर है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में व्हाट्स ऐप की भूमिका पर विदेशी मीडिया ने इस चुनाव को देश का पहला वॉट्सऐप इलेक्शन कहा है और विश्व भर में इसकी आलोचना की जा रही है.

विदेशी मीडिया के अनुसार पूरा कर्नाटक चुनाव न सिर्फ व्हाट्स ऐप पर लड़ा गया बल्कि इसे जीता तक गया

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. एनडीटीवी में छपी एक रिपोर्ट को अगर आधार बनाए तो मिलता है कि अब बहस और रैलियों का दौर गुजर चुका है अब भारत में चुनाव व्हाट्स ऐप पर न सिर्फ लड़ा जा रहा है बल्कि वहां इसे जीता भी जा रहा है. ज्ञात हो कि कर्नाटक में चुनाव के समय दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों का दावा था कि उनकी पहुंच 20 हजार व्हाट्स ऐप ग्रुप्स तक है और वो मिनटों में लाखों समर्थकों तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं.

गौरतलब है कि पूर्व में हम ऐसा बहुत कुछ देख चुके हैं जिसके अंतर्गत व्हाट्सऐप का इस्तेमाल बड़े स्तर पर कम्युनल हार्मनी बिगाड़ने, भड़काऊ बयानों को इधर उधर पहुंचाने, नेताओं के बयानों को तोड़ने मरोड़ने, धार्मिक भावना का मजाक उड़ाने और छोटी-छोटी चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए किया गया है. ध्यान रहे हैं कि गत दिनों ऐसे भी मामले प्रकाश में आए हैं जब व्हाट्सऐप के चलते श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों में दंगे तक हुए हैं जिनमें सैंकड़ों लोगों की जानें...

बात जब फेक न्यूज और भ्रामक प्रचार की होती है तो वर्तमान परिदृश्य में जो एक चीज अपने आप हमारे जहन में आती है वो है व्हाट्सऐप. आज तमाम भारतीयों द्वारा व्हाट्स ऐप का इस्तेमाल ऐसे-ऐसे कामों के लिए किया जा रहा है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. लगातार चर्चा में रहने वाला व्हाट्स ऐप आज फिर चर्चा में है. कारण है कर्नाटक चुनाव. कर्नाटक चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और इससे जुड़ी जो ख़बरें आ रही हैं वो विचलित करने वाली है. खबर है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में व्हाट्स ऐप की भूमिका पर विदेशी मीडिया ने इस चुनाव को देश का पहला वॉट्सऐप इलेक्शन कहा है और विश्व भर में इसकी आलोचना की जा रही है.

विदेशी मीडिया के अनुसार पूरा कर्नाटक चुनाव न सिर्फ व्हाट्स ऐप पर लड़ा गया बल्कि इसे जीता तक गया

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. एनडीटीवी में छपी एक रिपोर्ट को अगर आधार बनाए तो मिलता है कि अब बहस और रैलियों का दौर गुजर चुका है अब भारत में चुनाव व्हाट्स ऐप पर न सिर्फ लड़ा जा रहा है बल्कि वहां इसे जीता भी जा रहा है. ज्ञात हो कि कर्नाटक में चुनाव के समय दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों का दावा था कि उनकी पहुंच 20 हजार व्हाट्स ऐप ग्रुप्स तक है और वो मिनटों में लाखों समर्थकों तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं.

गौरतलब है कि पूर्व में हम ऐसा बहुत कुछ देख चुके हैं जिसके अंतर्गत व्हाट्सऐप का इस्तेमाल बड़े स्तर पर कम्युनल हार्मनी बिगाड़ने, भड़काऊ बयानों को इधर उधर पहुंचाने, नेताओं के बयानों को तोड़ने मरोड़ने, धार्मिक भावना का मजाक उड़ाने और छोटी-छोटी चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए किया गया है. ध्यान रहे हैं कि गत दिनों ऐसे भी मामले प्रकाश में आए हैं जब व्हाट्सऐप के चलते श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों में दंगे तक हुए हैं जिनमें सैंकड़ों लोगों की जानें गयीं.

बात अगर भारत में व्हाट्सऐप की लोकप्रियता की हो तो वहां ये बताना बेहद जरूरी है कि भारत व्हाट्सऐप के एक बड़े बाजार के रूप में स्थापित हो चुका है. आज देश में तकरीबन 20 करोड़ लोग व्हाट्सऐप का उपयोग कर संदेशों को एक दूसरे के बीच प्रसारित करते हैं. ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो देश शिक्षा के मामले में आज भी बहुत पीछे हैं वहां टेक्नोलॉजी के चलते एक ऐसी मुश्किल सामने आ खड़ी हुई है जिसका यदि वक़्त रहते समाधान नहीं किया गया तो आने वाले वक़्त में हालात बद से बदतर होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि आज के मुकाबले तब इसका इस्तेमाल हिंसा को ज्यादा स्तर पर बढ़ाने के लिए किया जाएगा. आज जिस तरह लोगों द्वारा भड़काऊ सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा रहा है वो अपने आप में ये बता देता है कि भविष्य में स्थिति क्या और कैसी होगी.

यदि ये खबर सच है तो इसे नकारना अपने आप में एक बड़ी भूल है

बात अगर भारतीय राजनीति में सोशल मीडिया विशेषकर व्हाट्सऐप के इस्तेमाल की हो तो, ये बात किसी से छुपी नहीं है कि यदि आज नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं तो इसकी एक बड़ी वजह सोशल मीडिया है. इसके अलावा पीएम मोदी का भी सोशल मीडिया प्रेम किसी से छुपा नहीं है. अगर सोशल मीडिया जगत से जुड़ी ख़बरों पर यकीन करें तो वर्तमान में उनकी पार्टी के कई कार्यकर्ता ऐसे हैं जो केवल व्हाट्स ऐप के लिए काम करते हैं. इनका काम पार्टी से जुड़े संदेशों को मास लेवल पर इधर से उधर पहुंचाना है. सबसे दिलचस्प ये है कि इन कार्यकर्ताओं को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि ये जिन संदेशों को प्रसारित कर रहे हैं उनमें सत्यता भी कुछ है या वो फेक हैं.

ज्ञात हो कि डेटा चोरी के मसले में फंसा फेसबुक अब व्हाट्स ऐप को पाक दामन साबित करने में लगा हुआ है. बहरहाल बात कर्नाटक चुनाव की हुई थी तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि यदि विदेशी मीडिया ने कर्नाटक चुनाव के लिए व्हाट्सऐप की भूमिका पर संदेह जताया है तो वो अपनी जहां बिल्कुल सही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह वोटिंग हुई, जिस तरह के परिणाम आए वो कहीं न कहीं ये बताने के लिए काफी हैं कि ये सब अचानक में नहीं हुआ है और कहा ये जा सकता है कि, इस पूरे परिदृश्य की प्लानिंग पूर्व में ही कर ली गयी थी बस इसे अमली जामा अब पहनाया गया. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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