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धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सतरंगी हो गया ट्विटर

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 06 सितम्बर, 2018 03:02 PM
  • 06 सितम्बर, 2018 03:02 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 को एक ऐतिहासिक फैसला लिया है. धारा 377 जो अपनी मर्जी से किए जाने वाले 'अप्राकृतिक' (जिसे कानून अप्राकृतिक मानता था) सेक्स को भी गैरकानूनी बताती थी उसे हटा दिया गया है. अब भारत के हर नागरिक को अपना साथी चुनने का अधिकार है.

एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 के दिन आखिर कानूनी तौर पर समलैंगिक संबंधों को धारा 377 के दायरे से बाहर कर दिया. यानी अब LGBT समुदाय के लोगों को आज़ादी होगी अपना साथी चुनने की. उसे गैरकानूनी नहीं कहा जाएगा.

पांच जजों की बेंच, जिसके अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा थे, उसने ये फैसला सुनाया था. ये फैसला 17 जुलाई को ही ले लिया गया था पर इसे कोर्ट ने रिजर्व रखा था.

धारा 377 असल में 158 साल पुराना एक कानून था जिसमें 'अप्राकृतिक सेक्‍स' को जुर्म बताया गया था. इसमें वो लोग शामिल थे जिन्हें अप्राकृतिक ढंग से सेक्स करने का दोषी माना जाता था. जिसमें गे सेक्स, जानवरों के साथ सेक्स आदि के दोषियों को आजीवन कारावास, 10 साल की सज़ा या फिर तय फाइन देना होता था. सज़ा जुर्म के आधार पर तय की जाती थी.

धारा 377 158 साल पुराना कानून था जिसे हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लिया है

आज अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या प्राकृतिक है और क्या नहीं, इसका फैसला कौन कर सकता है? अभी तक भारत में सेक्शुअल अल्पसंख्यक डर में जी रहे थे और उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक जैसे रहना पड़ता था.

कुछ अभी भी है गैरकानूनी..

धारा 377 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है और इसका कुछ हिस्सा अभी भी गैर कानूनी है. कोर्ट ने ध्यान से 'कंसेंट' यानी सामने वाले की मर्जी की बात की है. यानी अगर ऐसा सेक्स किसी की मर्जी से हो रहा है तो ये गैरकानूनी नहीं है, लेकिन अगर किसी को फोर्स किया जा रहा है जैसे महिलाओं पर, मर्दों पर, जानवरों पर किसी अप्राकृतिक सेक्स के लिए दबाव डाला जाता है या यूं कहें कि उनकी मर्जी के खिलाफ ये किया जाता है तो ये अपराध है.

जैसे ही ये फैसला आया ट्विटर पर लोगों ने अपनी खुशी जाहिर करना शुरू कर...

एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 के दिन आखिर कानूनी तौर पर समलैंगिक संबंधों को धारा 377 के दायरे से बाहर कर दिया. यानी अब LGBT समुदाय के लोगों को आज़ादी होगी अपना साथी चुनने की. उसे गैरकानूनी नहीं कहा जाएगा.

पांच जजों की बेंच, जिसके अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा थे, उसने ये फैसला सुनाया था. ये फैसला 17 जुलाई को ही ले लिया गया था पर इसे कोर्ट ने रिजर्व रखा था.

धारा 377 असल में 158 साल पुराना एक कानून था जिसमें 'अप्राकृतिक सेक्‍स' को जुर्म बताया गया था. इसमें वो लोग शामिल थे जिन्हें अप्राकृतिक ढंग से सेक्स करने का दोषी माना जाता था. जिसमें गे सेक्स, जानवरों के साथ सेक्स आदि के दोषियों को आजीवन कारावास, 10 साल की सज़ा या फिर तय फाइन देना होता था. सज़ा जुर्म के आधार पर तय की जाती थी.

धारा 377 158 साल पुराना कानून था जिसे हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लिया है

आज अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या प्राकृतिक है और क्या नहीं, इसका फैसला कौन कर सकता है? अभी तक भारत में सेक्शुअल अल्पसंख्यक डर में जी रहे थे और उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक जैसे रहना पड़ता था.

कुछ अभी भी है गैरकानूनी..

धारा 377 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है और इसका कुछ हिस्सा अभी भी गैर कानूनी है. कोर्ट ने ध्यान से 'कंसेंट' यानी सामने वाले की मर्जी की बात की है. यानी अगर ऐसा सेक्स किसी की मर्जी से हो रहा है तो ये गैरकानूनी नहीं है, लेकिन अगर किसी को फोर्स किया जा रहा है जैसे महिलाओं पर, मर्दों पर, जानवरों पर किसी अप्राकृतिक सेक्स के लिए दबाव डाला जाता है या यूं कहें कि उनकी मर्जी के खिलाफ ये किया जाता है तो ये अपराध है.

जैसे ही ये फैसला आया ट्विटर पर लोगों ने अपनी खुशी जाहिर करना शुरू कर दिया. ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट को बधाई दे रहे हैं. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को कानूनी बताया था और उस समय कोर्ट का काफी विरोध भी हुआ था.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक इसलिए भी कहा जाना चाहिए क्योंकि धारा 377 सन 1861 से चली आ रही है और भारत में अब जाकर कुछ ऐसा हुआ है जिससे ये मॉर्डन और लिबरल देश लगे.

कई ऐसे लोग भी हैं जो बस इस फैसले के बाद खुशी से झूमना चाहते हैं.

LGBT समुदाय के हक को लेकर हमेशा से लोगों को चिंता रही है और इस बात पर अब लोग खुलकर ट्विटर पर अपनी राय दे रहे हैं.

इस फैसले को समानता का फैसला कहा जा रहा है क्योंकि अब हर समुदाय को एक जैसे हक मिलने लगेंगे. कम से कम सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो यही है.

एक बात तो सही है कि इस धारा के हट जाने से लोगों को प्यार करने का हक मिल जाएगा. सोचने वाली बात है कि किसी को प्यार करने के लिए भी कानूनी तौर पर मनाही थी. वैसे तो भारत में प्यार को लेकर मनाही रहती ही है, लेकिन सामाजिक तौर पर, कानूनी तौर पर किसी एक वर्ग के लिए ये गलत था और इसे सोचकर बहुत बुरा लगता था.

हालांकि, ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इस मामले को भी गलत ठहरा रहे हैं. उनके हिसाब से ये फैसला सही नहीं था. कुछ तो इसे कलयुगी फैसला कह रहे हैं.

मानव मन आखिर कहां पूरी तरह संतुष्ट हो सकता है. कुछ लोग इसे भी पूरी जीत नहीं मान रहे हैं. उनके हिसाब से आर्थिक मदद भी होनी चाहिए. उन्हें लग रहा है कि ये फैसला ऐतिहासिक नहीं है और इसमें ज्यादा खुश होने की बात है ही नहीं.

कुछ लोग तो ऐसे भी रहे जिन्हें इस सेलिब्रेशन को लेकर ही आपत्ती थी. उनके हिसाब से धारा 377 का हटना सिर्फ होमोसेक्शुअल लोगों के लिए ही खुशी की बात है और उनके हिसाब से 'आम' लोगों का इसमें क्या काम.

यकीन मानिए अगर कोई LGBT समुदाय को आम लोगों में नहीं मानता है तो ये उसके लिए गलत है. ये उसकी गलत मानसिकता का सबूत है.

पर इस सबके बीच कुछ कड़वी ट्वीट भी देखने को मिली. जैसे इन सज्जन की ट्वीट

शायद ये सही ही कह रहे हैं. पर जरूरी तो नहीं कि हर सही फैसले पर हम अपना निगेटिव पक्ष भी रखें. उससे बेहतर तो हम किसी के लिए खुश हो लें.

और अंत में ये देखिए..

यानी अब किसी और की खुशी में खुश होने की परंपरा भी भारत में नहीं रही. लोगों को उससे भी आपत्ति‍ है.

लोगों के अपने-अपने तरीके हैं इस फैसले के बारे में बताने के, लेकिन एक बात तो तय है कि फैसला वाकई ऐतिहासिक है. इस फैसले को लेकर जितनी खुशी सभी मना रहे हैं वो वाजिब है. एक लंबी लड़ाई के बाद अगर देश के अपने ही नागरिकों को ऐसी खुशी मिली है तो यकीनन इसका विरोध करने वाले गलत हैं. कम से कम आज हमारे देश का एक खास समुदाय आम लोगों की तरह भारत में जी पाएगा. प्यार करने का हक सबको मिलना चाहिए और अब ये कानूनी तौर पर सबको मिलेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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