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जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव नतीजों से योगी को राहत, अखिलेश की खुशी छिनी!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 04 जुलाई, 2021 12:05 PM
  • 04 जुलाई, 2021 12:05 PM
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योगी आदित्यनाथ भले ही जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव (Zila Panchayat Adhyaksh Election Results) में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को पटखनी देने जैसा महसूस करें, लेकिन उठते सवाल बता रहे हैं कि विधानसभा चुनाव रिजल्ट BJP के लिए ऐसे ही होंगे, जरूरी नहीं है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) चुनाव जीत कर आये जिला पंचायत अध्यक्षों (Zila Panchayat Adhyaksh Election Results) के साथ साथ अपनी भी पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन अंदाज वैसा है लग रहा है जैसे एनकाउंटर करने वाले पुलिसवालों को शाबाशी देते रहे हों - और ऐसा महसूस होने की एक ही वजह है जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर उठाये गये सवाल.

वोटिंग के बाद 75 जिलों के आये नतीजों के मुताबिक, 65 सीटों पर बीजेपी को कब्‍जा दिला कर योगी आदित्यनाथ संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों आलाकमान को उनका लोहा नहीं मान लेना चाहिये. बीजेपी की सहयोगी अनुप्रिया पटेल के अपना दल को भी दो सीटें मिली हैं जिससे नंबर 67 हो जा रहा है.

अयोध्या से लेकर काशी और मथुरा तक पंचायत चुनाव में जीत का दावा करने वाली अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी को महज 5 सीटों से संतोष करना पड़ा है, जिनमें एक जिला आजमगढ़ भी है. अखिलेश यादव आजमगढ़ से ही लोक सभा सांसद हैं.

जैसे नतीजे हैं योगी आदित्यनाथ का उत्साह स्वाभाविक है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से हुए पंचायत चुनाव के बाद, जिला पंचायत अध्यक्ष के परोक्ष चुनाव में बाजी पलट जाने जैसी स्थिति सवाल तो खड़े करती ही है.

फिर भी जीत तो जीत होती है - और जिसकी क्रेडिट दांव पर लगी हो, उसके लिए तो जैसी भी जीत हो अच्छी ही होती है - ये तो बंपर जीत है और योगी आदित्यनाथ का खुशी से उछलना बनता भी है, लेकिन अगर इसी आधार पर 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों बीजेपी को अगर कोई अपेक्षा होती है तो उसे 'खुश होने का गालिब ये ख्याल अच्छा है' जैसा ही समझा जा...

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) चुनाव जीत कर आये जिला पंचायत अध्यक्षों (Zila Panchayat Adhyaksh Election Results) के साथ साथ अपनी भी पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन अंदाज वैसा है लग रहा है जैसे एनकाउंटर करने वाले पुलिसवालों को शाबाशी देते रहे हों - और ऐसा महसूस होने की एक ही वजह है जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर उठाये गये सवाल.

वोटिंग के बाद 75 जिलों के आये नतीजों के मुताबिक, 65 सीटों पर बीजेपी को कब्‍जा दिला कर योगी आदित्यनाथ संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों आलाकमान को उनका लोहा नहीं मान लेना चाहिये. बीजेपी की सहयोगी अनुप्रिया पटेल के अपना दल को भी दो सीटें मिली हैं जिससे नंबर 67 हो जा रहा है.

अयोध्या से लेकर काशी और मथुरा तक पंचायत चुनाव में जीत का दावा करने वाली अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी को महज 5 सीटों से संतोष करना पड़ा है, जिनमें एक जिला आजमगढ़ भी है. अखिलेश यादव आजमगढ़ से ही लोक सभा सांसद हैं.

जैसे नतीजे हैं योगी आदित्यनाथ का उत्साह स्वाभाविक है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से हुए पंचायत चुनाव के बाद, जिला पंचायत अध्यक्ष के परोक्ष चुनाव में बाजी पलट जाने जैसी स्थिति सवाल तो खड़े करती ही है.

फिर भी जीत तो जीत होती है - और जिसकी क्रेडिट दांव पर लगी हो, उसके लिए तो जैसी भी जीत हो अच्छी ही होती है - ये तो बंपर जीत है और योगी आदित्यनाथ का खुशी से उछलना बनता भी है, लेकिन अगर इसी आधार पर 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों बीजेपी को अगर कोई अपेक्षा होती है तो उसे 'खुश होने का गालिब ये ख्याल अच्छा है' जैसा ही समझा जा सकता है.

योगी के लिए रिजल्ट देना बहुत जरूरी था

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव भी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के आस पास ही हुए थे, जब कोरोना वायरस की तबाही को लेकर हर तरफ त्राहि त्राहि का आलम रहा. चुनाव कराने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों के संगठनों ने डेढ़ हजार से भी ज्यादा मतदान कर्मियों की कोविड 19 से मौत होने का दावा किया था. जब सिर्फ तीन लोगों को मुआवजे के लिए चुना गया तो बवाल मचा और फिर नियमों में बदलाव किया गया - और पहल भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से ही हुई थी.

जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए हुई वोटिंग से पहले ही 22 जिलों में निर्विरोध निर्वाचन संपन्न हो चुका था - और 21 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार रहे, जबकि इटावा की सिर्फ एक सीट पर समाजवादी पार्टी को भी ऐसी कामयाबी मिली थी. योगी आदित्यनाथ ने जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में बीजेपी को मिली इस अभूतपूर्व जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोक कल्याणकारी नीतियों को दिया है - और दावा किया है कि ये उत्तर प्रदेश में स्थापित सुशासन के प्रति जनता के विश्वास को दर्शाता है.

चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों को बधाई देते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि ये जीत पंचायती राज व्यवस्था को और भी ज्यादा मजबूती देगी. योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे बड़ी राहत की बात ये है कि सिर्फ गोरखपुर और लखनऊ ही नहीं, अयोध्या, मथुरा और काशी में भी जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर बीजेपी का कब्जा हो गया है. पंचायत चुनाव के नतीजे आये तो राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण तीनों ही जगहों पर बीजेपी को समाजवादी पार्टी से पिछड़ते देखा गया था.

यूपी में बीजेपी की ये जीत पार्टी से कहीं ज्यादा खुद योगी आदित्यनाथ के लिए जरूरी हो गयी थी - और योगी आदित्यनाथ से बेहतर भला इसे कौन समझ सकता है. जिस तरीके से योगी आदित्यनाथ अपनी जिद पर अड़े रहे और प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद अफसर से नेता बने अरविंद शर्मा को बीजेपी ने सरकार में नो एंट्री के बाद संगठन में एडजस्ट किया, योगी आदित्यनाथ के लिए ऐसे नतीजे देना बेहद जरूरी हो गया था.

लेकिन अगर योगी आदित्यनाथ खुद या बीजेपी नेतृत्व चाहे वो प्रधानमंत्री मोदी हों, अमित शाह या फिर पार्टी चीफ जेपी नड्डा ही क्यों न हों. अगर इस जीत को लेकर उनकी खुशी का लेवल जीत के आंकड़ों जैसा ही है, तो इसे जमीनी हकीकत से दूरी बनाकर हवाई किला बनाने जैसा ही है - क्योंकि जिला पंचायत अध्यक्ष को लेकर जैसी खबरें आयी हैं और जो सवाल किये गये हैं, वे तो ऐसा ही कह रहे हैं.

ये गंभीर सवाल हैं - जवाब कौन देगा?

उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव पर एक ही सवाल उठ रहा है और सवाल का जवाब भी एक ही है - योगी आदित्यनाथ ने सीटें बीजेपी की झोली में भर कर रख दी है.

ऐसा भी नहीं कि ये कोई पहली बार हुआ है. नतीजे अक्सर ही सूबे की सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में आते रहे हैं - और सत्ता परिवर्तन के बाद भी किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ते देखा जाता. सब के सब सत्ता में आयी नयी पार्टी की सरकार के साथ हो जाते हैं - अगर कहीं कहीं ऐसा नहीं हो पाता तो अविश्वास प्रस्ताव के जरिये तख्तापलट के उदाहरण तक देखने को मिलते रहे हैं - सवाल ये है कि फिर ऐसे चुनाव की जरूरत ही क्या है?

उपचुनावों को लेकर बीएसपी नेता मायावती ने अपना रुख भले ही अब बदल ली हो, लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर उनकी पुरानी धारणा ही कायम है. मायावती अब उपचुनावों में बीएसपी के उम्मीदवार खड़े करने लगी हैं, लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव से दूरी बना ली है.

जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में बीजेपी के मुकाबले समाजवादी पार्टी ने तो बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, लेकिन बीएसपी की ही तरह कांग्रेस ने भी एक दो सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे थे.

चुनाव में वैसे ही तौर तरीके इस्तेमाल किये जाने की खबरें आयी हैं जैसी पश्चिम बंगाल में या जम्मू-कश्मीर में पहले हुए पंचायत या निकाय चुनावों को लेकर आती रही हैं. जिसका भी जहां दबदबा है उसके खिलाफ या तो कोई नामांकन ही न भरे, या फिर विरोधी पार्टी समर्थक वोट देने ही न जायें.

अखिलेश यादव ने तो बीजेपी सरकार पर यहां तक आरोप लगा डाला कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को प्रशासन के बूते नामांकन करने से ही रोक दिया गया - और इसमें गोरखपुर का भी नाम लिया गया था. बाद में अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के भी दर्जन भर पदाधिकारियों को उनके पद से हटा दिया था.

अखिलेश यादव की पार्टी का बीजेपी सरकार पर सीधा आरोप है कि अव्वल तो उनके उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल ही नहीं करने दिया गया है - और जो ऐसा कर पाये उन पर नामांकन वापस लेने का दबाव बनाया गया.

अखिलेश यादव ने वायरल वीडियो बताते हुए एक फोटो जर्नलिस्ट के ट्वीट को रीट्वीट किया है - दावा किया गया है कि औरेया के डीएम कमरा बंद करके के मारने और जिला बदर करने की बात कर रहे हैं. बातचीत को चुनाव के संदर्भ में होने का दावा किया जा रहा है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, गाजीपुर जिले में तो करीब एक दर्जन जिला पंचायत सदस्य नोटों की गड्डियां लेकर एसपी के पास पहुंच गए. जिला पंचायत सदस्यों का कहना था कि उनको मिले मिठायी के डिब्बों में नोटों की गड्डियां भरी थीं - जो किसी उम्मीदवार ने भेजे थे.

जगह जगह से जिला पंचायत सदस्यों के अपहरण कर लिये जाने, बंधक बनाये जाने और गायब हो जाने तक की खबरें आयी हैं - और कई मामलों में पुलिस में शिकायत भी दर्ज करायी गयी है.

बागपत से तो बड़ा है दिलचस्प मामला सामने आया है - बताते हैं कि एक आरएलडी उम्मीदवार का नामांकन तो किसी और ने ही जाकर वापस ले लिया. जब एक वायरल वीडियो में, बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उम्मीदवार ने बताया कि वो तो यूपी से बाहर है, तब कहीं जाकर उसकी उम्मीदवारी बच सकी.

ये ऐसे गंभीर सवाल हैं जिनका जवाब देने वाला कोई नहीं है. विपक्ष आरोप लगा रहा है, सत्ता पक्ष आरोपों को खारिज कर रहा है, लेकिन घटनाएं अलग ही कहानी सुना रही हैं.

ये प्रत्यक्ष और परोक्ष चुनाव को जो फर्क नजर आ रहा है, लगता तो यही है कि या तो पूरे चुनाव को दलीय आधार पर कर देना चाहिये या फिर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी शहरों के मेयर की तरफ प्रत्यक्ष तरीके से कराने चाहिये और चुनाव आयोग इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिये - क्योंकि जिस तरह का चुनाव प्रबंधन देखने को मिल रहा है वो तो बूथ कैप्चरिंग की ही याद दिला रहा है - बस तौर तरीके बदल गये हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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