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सियासत

परशुराम की मूर्ति लगवाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने बिल्कुल सही समय चुना है!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 06 सितम्बर, 2021 10:27 AM
  • 05 सितम्बर, 2021 07:20 PM
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यूपी में जब सारी पार्टियां ब्राह्मणों की हिमायती बनने की होड़ में लगी हुई हैं, तो ब्राह्मण-विरोधी और ठाकुरवादी कहे जा रहे योगी आदित्यनाथ के पास भगवान परशुराम की मूर्ति लगवाने का इससे अच्छा मौका क्या हो सकता था? और इस तरह भाजपा अगड़ों की पार्टी कहे जाने के आरोप से भी बच गई.

बसपा सुप्रीमो मायावती के शासनकाल में पार्कों में लगी हाथी की मूर्तियों ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, तो बसपा के राज्यसभा सांसद और पार्टी के वकील सतीश चंद्र मिश्रा ने मायावती का भरपूर बचाव किया था. इन दिनों उत्तर प्रदेश में फिर से मूर्तियों की चर्चा ने जोर पकड़ा है. लेकिन, इस बार ये चर्चा हाथी को लेकर नहीं परशुराम की मूर्तियों पर हो रही है. बीते साल सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को पार्टी के नेताओं ने परशुराम की तस्वीर भेंट की थी. जिसके बाद घोषणा हुई थी कि सपा की सरकार आने पर हर जिले में परशुराम की मूर्तियां लगवाई जाएंगी. ऐसे समय में जब यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर वोट बैंकों के जटिल सियासी समीकरण सुलझाए जाने की कोशिशें तेज हो गई हों. तो, भाजपा ने इस मौके पर चौका मारते हुए बदायूं के परशुराम चौक पर उनकी मूर्ति का उद्घाटन कर सियासी तौर पर अन्य दलों पर बढ़त हासिल कर ली है. योगी सरकार के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने ब्राह्मण वर्ग की मौजूदगी में परशुराम की मूर्ति का अनावरण किया.

दरअसल, किसी जमाने में यूपी की सियासत में जो दर्जा मुस्लिम वोट बैंक को मिला हुआ था, वो यूपी में अब पूरी तरह से बदल गया है. लंबे समय से उत्तर प्रदेश में एक ही वोट बैंक चर्चा का विषय बना हुआ है और वो है ब्राह्मण वर्ग. इस 10 फीसदी ब्राह्मण वर्ग के वोटों के लिए राजनीतिक दलों में खुद को इनका सबसे बड़ा हिमायती घोषित करने की होड़ मची हुई है. जब सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने परशुराम की मूर्तियां लगवाने का वादा किया, तो वो सबसे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती के निशाने पर ही आ गए थे. इतना ही नहीं मायावती ने सरकार में आने पर सपा की परशुराम प्रतिमा से भी ऊंची मूर्ति लगवाने का दावा किया था.

फिलहाल ब्राह्मणों को प्रबुद्ध वर्ग मानते हुए उनके लिए सभी राजनीतिक दल सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती...

बसपा सुप्रीमो मायावती के शासनकाल में पार्कों में लगी हाथी की मूर्तियों ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, तो बसपा के राज्यसभा सांसद और पार्टी के वकील सतीश चंद्र मिश्रा ने मायावती का भरपूर बचाव किया था. इन दिनों उत्तर प्रदेश में फिर से मूर्तियों की चर्चा ने जोर पकड़ा है. लेकिन, इस बार ये चर्चा हाथी को लेकर नहीं परशुराम की मूर्तियों पर हो रही है. बीते साल सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को पार्टी के नेताओं ने परशुराम की तस्वीर भेंट की थी. जिसके बाद घोषणा हुई थी कि सपा की सरकार आने पर हर जिले में परशुराम की मूर्तियां लगवाई जाएंगी. ऐसे समय में जब यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर वोट बैंकों के जटिल सियासी समीकरण सुलझाए जाने की कोशिशें तेज हो गई हों. तो, भाजपा ने इस मौके पर चौका मारते हुए बदायूं के परशुराम चौक पर उनकी मूर्ति का उद्घाटन कर सियासी तौर पर अन्य दलों पर बढ़त हासिल कर ली है. योगी सरकार के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने ब्राह्मण वर्ग की मौजूदगी में परशुराम की मूर्ति का अनावरण किया.

दरअसल, किसी जमाने में यूपी की सियासत में जो दर्जा मुस्लिम वोट बैंक को मिला हुआ था, वो यूपी में अब पूरी तरह से बदल गया है. लंबे समय से उत्तर प्रदेश में एक ही वोट बैंक चर्चा का विषय बना हुआ है और वो है ब्राह्मण वर्ग. इस 10 फीसदी ब्राह्मण वर्ग के वोटों के लिए राजनीतिक दलों में खुद को इनका सबसे बड़ा हिमायती घोषित करने की होड़ मची हुई है. जब सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने परशुराम की मूर्तियां लगवाने का वादा किया, तो वो सबसे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती के निशाने पर ही आ गए थे. इतना ही नहीं मायावती ने सरकार में आने पर सपा की परशुराम प्रतिमा से भी ऊंची मूर्ति लगवाने का दावा किया था.

फिलहाल ब्राह्मणों को प्रबुद्ध वर्ग मानते हुए उनके लिए सभी राजनीतिक दल सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के सहारे ब्राह्मण वर्ग को अपने पाले में लाने की सारी जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्रा के कंधों पर डाल दी थी. जिसके बाद ब्राह्मण वर्ग को साधने के लिए सतीश चंद्र मिश्रा ने अयोध्या से प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन का जो फॉर्मूला निकाला था. अब उसी राह पर सपा और भाजपा भी चलते हुए दिखने लगे हैं. अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ भी प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के सहारे ब्राह्मण वर्ग को साथ लाने की कवायद में जुट गए हैं.

वैसे, इस तमाम कवायद से पहले मायावती ने ब्राह्मणों पर अपना प्रेम लुटाते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार पर इस वर्ग के उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे. मायावती ने सूबे के ब्राह्मणों को नया 'दलित' घोषित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. मायावती ने योगी सरकार पर ब्राह्मणों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए कहा था कि ब्राह्मणों के सारे हित बसपा शासन में ही सुरक्षित हैं. ये ठीक उसी तरह था, जैसा वो आमतौर पर अपने दलित वोट बैंक के लिए कहती नजर आती हैं. वैसे, 'कानपुर वाला' विकास दुबे और उसके गुर्गों की मौत को भी 'ब्राह्मण अस्मिता' से जोड़कर भरपूर माहौल बनाया गया था. योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वर्ग के साथ हुई हर आपराधिक घटना के लिए बसपा, सपा, कांग्रेस समेत तमाम पार्टियों ने एक सुर में सीधे तौर पर सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को दोषी ठहराना शुरू कर दिया था. कहना गलत नहीं होगा कि परशुराम की मूर्ति लगवाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने बिल्कुल सही समय चुना है.

योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के एक ब्राह्मण मंत्री ब्रजेश पाठक के जरिये परशुराम की मूर्ति लगवाकर एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है.

क्या ब्राह्मण विरोधी छवि कमजोर करने में मिलेगी मदद?

वैसे, परशुराम की मूर्ति लगाने से ब्राह्मण वर्ग के वोट मिलेंगे या नहीं, इसे लेकर दावा करने बुद्धिमत्ता नहीं होगी. लेकिन, इस मामले पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि जब सारी पार्टियां खुद को ब्राह्मणों का हिमायती साबित करने की होड़ में लगी हुई हैं, तो ब्राह्मण-विरोधी और ठाकुरवादी कहे जा रहे योगी आदित्यनाथ के पास भगवान परशुराम की मूर्ति लगवाने का इससे अच्छा मौका क्या हो सकता था? योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के एक ब्राह्मण मंत्री ब्रजेश पाठक के जरिये परशुराम की मूर्ति लगवाकर एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. ये संदेश ब्राह्मण वर्ग तक पहुंचेगा या नहीं, इसका जबाव यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के बाद ही मिल पाएगा. लेकिन, इतना तो तय है कि भाजपा ने मूर्ति लगाने के मामले में अन्य सियासी दलों को पीछे छोड़ दिया है. वैसे, योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण-विरोधी साबित करने के लिए 'अजय सिंह बिष्ट' नाम का इस्तेमाल बदस्तूर जारी है. सपा से लेकर आम आदमी पार्टी तक हर दल ये माहौल बनाने की कोशिश में है कि योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण-विरोधी हैं.

भाजपा पर अगड़ों की पार्टी होने का आरोप

किसी जमाने में भाजपा पर अगड़ों की पार्टी होने का आरोप लगाया जाता था. लेकिन, 2014 के बाद भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर पिछड़ों और दलितों के बीच मजबूत पकड़ बनाई और धीरे-धीरे मंत्रिमंडल से लेकर पार्टी संगठन में भाजपा ने ओबीसी और पिछड़ी जातियों के नेताओं को बहुतायत में जगह दी है. वहीं, अब सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण वोटों की इस दौड़ में खुद ही शामिल हो गए हैं, तो भाजपा के ऊपर अगड़ों की पार्टी होने का आरोप भी नहीं लग पाएगा. माना जा रहा है कि यूपी में जल्द ही योगी सरकार में कैबिनेट विस्तार हो सकता है. खबर है कि इस कैबिनेट में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए ब्राह्मण चेहरे जितिन प्रसाद को भी जगह मिल सकती है. साथ ही कुछ और ब्राह्मण विधायकों का भाग्य भी चमकने की संभावना है. वैसे, सभी पार्टियों में परशुराम की जय-जयकार सुनाई दे रही है, तो किस पार्टी का प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन यूपी विधानसभा चुनाव में फलीभूत होगा, ये देखने वाली बात होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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