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Yogi Vs Naqvi: बढ़ती जनसंख्या पर किसकी बात सटीक है?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 12 जुलाई, 2022 07:40 PM
  • 12 जुलाई, 2022 07:40 PM
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विश्व जनसंख्या दिवस (Population Control) पर भाजपा के दो बड़े नेताओं के अलग-अलग बयान सामने आए. योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने एक वर्ग की बढ़ती आबादी के दुष्प्रभाव गिनाए. तो, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqvi) ने जनसंख्या को धर्म से जोड़ने को जायज नही बताया. लेकिन, अहम सवाल ये है कि बढ़ती जनसंख्या पर किसकी बात सटीक है?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम में कहा कि- 'ऐसा न हो कि किसी वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड या प्रतिशत मूल निवासियों से ज्यादा हो. जहां पर जनसंख्या असंतुलन की स्थिति पैदा होती है. जिससे धार्मिक जनसांख्यिकी पर इसका विपरीत असर पड़ता है. तो फिर वहां पर एक समय के बाद अव्यवस्था और अराजकता जन्म लेने लगती है.' वहीं, विश्व जनसंख्या दिवस पर मोदी सरकार के पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि 'बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मजहब की नहीं, मुल्क की मुसीबत है, इसे जाति, धर्म से जोड़ना जायज नहीं है.'

योगी आदित्यनाथ और मुख्तार अब्बास नकवी की बातें भले विरोधाभासी हों. लेकिन, मुस्लिमों की जनसंख्या के आंकड़ों की अलग ही कहानी है.

इस पर डाल लीजिए नजर

- बीते कुछ दिनों से झारखंड के गढ़वा और जामताड़ा में स्कूलों के इस्लामीकरण का मुद्दा लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. दरअसल, इस्लामिक कट्टरपंथियों ने मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की प्रार्थना बदलने से लेकर साप्ताहिक अवकाश को रविवार से बदलकर शुक्रवार करवा दिया है. क्या इस मामले से धार्मिक जनसांख्यिकी को लेकर कही गई सीएम योगी आदित्यनाथ की बात सही साबित नहीं होती है?

- जनसंख्या नियंत्रण कानून को लाने के लिए जब भी कोई चर्चा या तैयारी शुरू की जाती है. तो, तमाम सियासी दल इसे भाजपा की अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को दबाने और कुचलने की राजनीति करार दे देते हैं. लेकिन, अल्पसंख्यकों में मुस्लिमों के अलावा ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध और सिख भी शामिल है. इनकी ओर से कोई आवाज क्यों नहीं उठती है? आखिर, जनसंख्या नियंत्रण का विरोध धर्म के आधार पर क्यों होने लगता है?

- आंकड़ों...

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम में कहा कि- 'ऐसा न हो कि किसी वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड या प्रतिशत मूल निवासियों से ज्यादा हो. जहां पर जनसंख्या असंतुलन की स्थिति पैदा होती है. जिससे धार्मिक जनसांख्यिकी पर इसका विपरीत असर पड़ता है. तो फिर वहां पर एक समय के बाद अव्यवस्था और अराजकता जन्म लेने लगती है.' वहीं, विश्व जनसंख्या दिवस पर मोदी सरकार के पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि 'बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मजहब की नहीं, मुल्क की मुसीबत है, इसे जाति, धर्म से जोड़ना जायज नहीं है.'

योगी आदित्यनाथ और मुख्तार अब्बास नकवी की बातें भले विरोधाभासी हों. लेकिन, मुस्लिमों की जनसंख्या के आंकड़ों की अलग ही कहानी है.

इस पर डाल लीजिए नजर

- बीते कुछ दिनों से झारखंड के गढ़वा और जामताड़ा में स्कूलों के इस्लामीकरण का मुद्दा लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. दरअसल, इस्लामिक कट्टरपंथियों ने मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की प्रार्थना बदलने से लेकर साप्ताहिक अवकाश को रविवार से बदलकर शुक्रवार करवा दिया है. क्या इस मामले से धार्मिक जनसांख्यिकी को लेकर कही गई सीएम योगी आदित्यनाथ की बात सही साबित नहीं होती है?

- जनसंख्या नियंत्रण कानून को लाने के लिए जब भी कोई चर्चा या तैयारी शुरू की जाती है. तो, तमाम सियासी दल इसे भाजपा की अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को दबाने और कुचलने की राजनीति करार दे देते हैं. लेकिन, अल्पसंख्यकों में मुस्लिमों के अलावा ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध और सिख भी शामिल है. इनकी ओर से कोई आवाज क्यों नहीं उठती है? आखिर, जनसंख्या नियंत्रण का विरोध धर्म के आधार पर क्यों होने लगता है?

- आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए, तो 1950 से 2011 तक मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं से ज्यादा ही रही है. वहीं, कुल प्रजनन दर (TFR) में भले ही अब कमी दर्ज की गई हो. लेकिन, यह प्रजनन दर भी मुस्लिम समुदाय में अभी भी ज्यादा ही है. (नीचे के वीडियो में देखे जा सकते हैं. आंकड़े) 

- वहीं, समाजवादी पार्टी के शफीकुर्रहमान बर्क जैसे नेता भी इसी मुस्लिम समुदाय से आते हैं. जो कहते हैं कि 'बच्चे पैदा करने का ताल्लुक अल्लाह से है. जाती तौर पर इसका इंसान से कोई लेना-देना नहीं है. अल्लाह खाने-पीने का इंतजाम करके बच्चे को दुनिया में भेजता है.'


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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