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नीतीश बाबू, योग न रामदेव का है न मोदी का, इसे राजनीति से दूर ही रखें

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 20 जून, 2016 07:27 PM
  • 20 जून, 2016 07:27 PM
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नीतीश कुमार का सवाल बिलकुल वाजिब है. भला, शराब के साथ योग करने का क्या मतलब है? लेकिन इस सवाल से बाकी सवाल खत्म नहीं हो जाते.

नीतीश कुमार की नरेंद्र मोदी से सियासी एलर्जी अपनी जगह हो सकती है, लेकिन उसकी वजह से योग की बलि चढ़ाना समझ के बाहर है. नीतीश का कहना है कि वो योग करने को तैयार हैं बशर्ते प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश में शराबबंदी लागू कर दें. 2015 में भी बिहार सरकार ने सूबे में योग दिवस मनाने के केंद्र सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया था.

नीतीश के सवाल

नीतीश कुमार सवाल उठा रहे हैं कि शराबबंदी के बगैर योग दिवस मनाने का कोई फायदा नहीं मिलने वाला. एकदम सही बात है. मालूम नहीं उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि इस बात पर भी किसी को एतराज हो सकता है.

इसे भी पढ़ें: बनारस में नीतीश ने फूंका चुनावी बिगुल - संघमुक्त भारत, शराबमुक्त समाज

नीतीश कुमार का सवाल बिलकुल वाजिब है. भला, शराब के साथ योग करने का क्या मतलब है? लेकिन इस सवाल से बाकी सवाल खत्म नहीं हो जाते.

क्या बिहार में शराबबंदी हो लागू जाने के बाद कोई शराब नहीं पीता?

अगर नीतीश कुमार ये जताने की कोशिश कर रहे हैं तो सबसे ज्यादा हैरानी की बात है. क्या नीतीश कुमार की नजर उन खबरों पर पड़ी जिनमें बताया गया कि किस तरह बिहार के लोग पड़ोसी राज्यों में जाकर शराब खरीद रहे हैं? किस तरह सीमावर्ती इलाकों से गुजरने वाली ट्रेनों को लोग मयखाना एक्स्प्रेस तक कहने लगे हैं.

अगर इतनी सख्ती से शराबबंदी लागू है तो नीतीश कुमार की ही पार्टी की एमएलसी मनोरमा यादव के घर से शराब की बोतलें कैसे मिलीं? ये बात अलग है कि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हुई और उन्हें जेल तक जाना पड़ा. कानून बना लेने से समाज या देश अपराध मुक्त नहीं हो सकता....

नीतीश कुमार की नरेंद्र मोदी से सियासी एलर्जी अपनी जगह हो सकती है, लेकिन उसकी वजह से योग की बलि चढ़ाना समझ के बाहर है. नीतीश का कहना है कि वो योग करने को तैयार हैं बशर्ते प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश में शराबबंदी लागू कर दें. 2015 में भी बिहार सरकार ने सूबे में योग दिवस मनाने के केंद्र सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया था.

नीतीश के सवाल

नीतीश कुमार सवाल उठा रहे हैं कि शराबबंदी के बगैर योग दिवस मनाने का कोई फायदा नहीं मिलने वाला. एकदम सही बात है. मालूम नहीं उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि इस बात पर भी किसी को एतराज हो सकता है.

इसे भी पढ़ें: बनारस में नीतीश ने फूंका चुनावी बिगुल - संघमुक्त भारत, शराबमुक्त समाज

नीतीश कुमार का सवाल बिलकुल वाजिब है. भला, शराब के साथ योग करने का क्या मतलब है? लेकिन इस सवाल से बाकी सवाल खत्म नहीं हो जाते.

क्या बिहार में शराबबंदी हो लागू जाने के बाद कोई शराब नहीं पीता?

अगर नीतीश कुमार ये जताने की कोशिश कर रहे हैं तो सबसे ज्यादा हैरानी की बात है. क्या नीतीश कुमार की नजर उन खबरों पर पड़ी जिनमें बताया गया कि किस तरह बिहार के लोग पड़ोसी राज्यों में जाकर शराब खरीद रहे हैं? किस तरह सीमावर्ती इलाकों से गुजरने वाली ट्रेनों को लोग मयखाना एक्स्प्रेस तक कहने लगे हैं.

अगर इतनी सख्ती से शराबबंदी लागू है तो नीतीश कुमार की ही पार्टी की एमएलसी मनोरमा यादव के घर से शराब की बोतलें कैसे मिलीं? ये बात अलग है कि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हुई और उन्हें जेल तक जाना पड़ा. कानून बना लेने से समाज या देश अपराध मुक्त नहीं हो सकता. अगर ऐसा होता तो टाडा और पोटा कानून बनाने और फिर उन्हें वापस लेने की जरूरत नहीं पड़ती.

राजयोग से राजनीति योग तक...

नीतीश इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उनके इनिशिएटिव से तमिलनाडु और केरल में शराबबंदी चुनावी मुद्दा बना और उसे लागू करने और क्रेडिट लेने की पार्टियों में होड़ मच गई. लेकिन नीतीश कुमार ये क्यों भूल रहे हैं कि बिहार में गली गली में शराब की दुकानें खुलवाने का क्रेडिट भी उन्हीं को जाता है.

2012 में नीतीश ने कहा था, "अगर आप पीना चाहते हैं तो पीजिए और टैक्स पे कीजिए. मुझे क्या? इससे फंड इकट्ठा होगा और उससे छात्राओं के लिए मुफ्त साइकल की स्कीम जारी रहेगी."

योग किसी एक की बपौती नहीं

नीतीश कुमार इन दिनों जहां कहीं भी जाते हैं शराबबंदी की बात करते हैं. बात बात में मोदी द्वारा गुजरात में शराबबंदी लागू किये जाने की चर्चा भी करते हैं. क्या नीतीश के पास इस सवाल का जवाब है कि जब मोदी और खुद नीतीश अपने अपने राज्यों में मुख्यमंत्री थे - और गुजरात में शराबबंदी लागू था तो नीतीश खुद शराब को क्यों बढ़ावा दे रहे थे?

फिलहाल पूरे देश में योग के केंद्र में दो लोग हैं. एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे योग सिखाते सिखाते घूम घूम कर नूडल्स बेच रहे स्वामी रामदेव. मोदी ने जहां संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा उठाकर योग के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस का पक्ष रखा और उस पर अमल कराया वहीं रामदेव ने योग को मौजूदा दौर में घर घर तक पहुंचाया. नीतीश कुमार चाहे तो कह सकते हैं कि इसको लेकर किसी का मकसद राजनीति रही तो किसी का बिजनेस.

इसे भी पढ़ें: गांधी जी, नीतीश कुमार और शराब पर प्रतिबंध!

लेकिन नीतीश कुमार को ये क्यों लगने लगा है कि योग रामदेव की प्रॉपर्टी है या फिर देश के लोग सिर्फ मोदी की वजह से योग करने लगे हैं. अगर किसी को ऐसी गफलत है तो उन्हें खुद को सुधार लेना चाहिए.

ऐसा पहले भी होता रहा है पतंजलि से लेकर महर्षि महेश योगी तक सभी ने अपने अपने दौर में योग के लिए अपनी ओर से बेस्ट दिया है. कभी नीतीश कुमार के सहयोगी रहे बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने नीतीश के इस विरोध की वजह भी खोज डाली है. सुशील मोदी ने नीतीश को ताकीद किया है कि वो योग को एंटी-मुस्लिम के तौर पर प्रोजेक्ट करने से बाज आएं.

योग मुक्त बिहार

कांग्रेस मुक्त और संघ मुक्त भारत की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन निजी राजनीतिक दुश्मनी के चलते योग की आहूति देना कहां तक उचित समझा जाए.

अगर नीतीश के रास्ते पर देश का हर मुख्यमंत्री चल पड़े तब तो हो गया कल्याण. फर्ज कीजिए अरविंद केजरीवाल इस बात पर अड़ जाएं कि वो लोकपाल तभी लाएंगे जब प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशों से काला धन वापस लाएंगे. मान लीजिए अखिलेश यादव कहें कि वो यूपी में स्वच्छता अभियान की इजाजत तभी देंगे जब बनारस वास्तव में क्योटो बन जाएगा.

बेहतर तो ये होता कि नीतीश कुमार बिहार में भी योग के कार्यक्रम करते. बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते और फिर मोदी सहित बाकियों को चैलेंज करते कि ये देखो - बाकी जगह सिर्फ योग हो रहा है, बिहार में तो शराबबंदी के साथ योग हो रहा है.

तब शायद सोने में सुगंध की बात होती. तब शायद 'देश बदल रहा है' के स्लोगन पर 'बिहार बदल रहा है' कहीं ज्यादा भारी पड़ता.

अब क्या नीतीश कुमार को ये भी याद दिलाना पड़ेगा कि देश का प्रतिष्ठित योग पीठ मुंगेर में ही है, जो बिहार में है और वहां से योग सीख कर लोग दुनिया भर में अलख जगा रहे हैं.

अरे भई बिहार में जिन लोगों ने शराब छोड़ी है कम से कम उन्हें तो योग करने दें. कहीं ऐसा न हो, संघ मुक्त भारत के चक्कर में सियासी दुश्मनी योग मुक्त बिहार बना दे?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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