ऐसा तो विरले ही होता है. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से रोकने के लिए राजनीतिक विरोधी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे आधी रात को पहुंचे - और चीफ जस्टिस भी रात भर सुनवाई के लिए राजी हो गये हों. अब तक तो सिर्फ एक फांसी रोकने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट में ऐसी सुनवाई हुई थी.
येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता देने के कर्नाटक के गवर्नर वजुभाई वाला के खिलाफ कांग्रेस और जेडीएस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने शपथग्रहण पर तो रोक लगाने से इंकार कर दिया, लेकिन 48 घंटे बाद सुनवाई के लिए राजी जरूर हो गया.
येदियुरप्पा ने तय तारीख 17 मई को सुबह नौ बजे कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली - और उसके बाद आगे की तैयारियों में जुट गये. गवर्नर की हिदायत के मुताबिक येदियुरप्पा को 15 दिन के भीतर विधानसभा के पटल पर विश्वासमत हासिल करना है.
ये 24 घंटे!
येदियुरप्पा पर अब '24 घंटे' के जिस तलवार लटकने की बात हो रही है, उसका समय शपथग्रहण के डेढ़ घंटे बाद शुरू हुआ. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 18 मई को सुनवाई करेगा.
अब तो वकालत के पेशे से संन्यास ले चुके जानेमाने कानूनविद् राम जेठमलानी भी कोर्ट में दस्तक दे चुके हैं. जेठमलानी का कहना है कि कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के फैसले के खिलाफ कुछ दलीलें पेश करना चाहते हैं. जेठमलानी का कहना है कि वो किसी राजनीतिक दल की ओर से नहीं बल्कि निजी हैसियत से अपने 'मन की बात' कहना चाहते हैं. कोर्ट ने जेठमलानी को सुनवाई के दौरान बाकियों के साथ आने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट में येदियुरप्पा की ओर से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी और केंद्र सरकार की ओर से गवर्नर के बचाव में अटॉर्नी जनरल केके...
ऐसा तो विरले ही होता है. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से रोकने के लिए राजनीतिक विरोधी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे आधी रात को पहुंचे - और चीफ जस्टिस भी रात भर सुनवाई के लिए राजी हो गये हों. अब तक तो सिर्फ एक फांसी रोकने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट में ऐसी सुनवाई हुई थी.
येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता देने के कर्नाटक के गवर्नर वजुभाई वाला के खिलाफ कांग्रेस और जेडीएस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने शपथग्रहण पर तो रोक लगाने से इंकार कर दिया, लेकिन 48 घंटे बाद सुनवाई के लिए राजी जरूर हो गया.
येदियुरप्पा ने तय तारीख 17 मई को सुबह नौ बजे कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली - और उसके बाद आगे की तैयारियों में जुट गये. गवर्नर की हिदायत के मुताबिक येदियुरप्पा को 15 दिन के भीतर विधानसभा के पटल पर विश्वासमत हासिल करना है.
ये 24 घंटे!
येदियुरप्पा पर अब '24 घंटे' के जिस तलवार लटकने की बात हो रही है, उसका समय शपथग्रहण के डेढ़ घंटे बाद शुरू हुआ. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 18 मई को सुनवाई करेगा.
अब तो वकालत के पेशे से संन्यास ले चुके जानेमाने कानूनविद् राम जेठमलानी भी कोर्ट में दस्तक दे चुके हैं. जेठमलानी का कहना है कि कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के फैसले के खिलाफ कुछ दलीलें पेश करना चाहते हैं. जेठमलानी का कहना है कि वो किसी राजनीतिक दल की ओर से नहीं बल्कि निजी हैसियत से अपने 'मन की बात' कहना चाहते हैं. कोर्ट ने जेठमलानी को सुनवाई के दौरान बाकियों के साथ आने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट में येदियुरप्पा की ओर से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी और केंद्र सरकार की ओर से गवर्नर के बचाव में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल पेश हुए. कांग्रेस और जेडीएस का पक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने रखा. मुमकिन है जेठमलानी के विरोध में आने से येदियुरप्पा की मुश्किलें कुछ बढ़ें भी.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आधार
कांग्रेस और जेडीएस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है - 'राज्यपाल द्वारा बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिए जाने का फैसला रद्द किया जाये या कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए न्योता मिले - क्योंकि हमारे पास बहुमत के लिए जरूरी 112 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है.'
बहुमत को लेकर बीजेपी के दावे के खिलाफ सिंघवी ने दलील दी - 'हमारे पास 117 सीटें हैं और बीजेपी के पास सिर्फ 104 तो वह बहुमत कैसे साबित करेगी?' काउंटर में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल का कहना रहा - 'कृपया इस याचिका को खारिज करे दें. वे एक उच्च स्तरीय संवैधानिक सिस्टम के कार्य को रोकने के लिए यह फैसला चाहते हैं. ये राज्यपाल का काम है कि वो शपथ के लिए बुलाएं. राज्यपाल और राष्ट्रपति किसी भी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं. ऐसे में कोर्ट को चाहिए कि वो संवैधानिक कार्यप्रणाली को न रोके.'
मुकुल रोहतगी को रात में इस सुनवाई का कोई तुक नजर नहीं आया, "अगर शपथग्रहण हो जाता है तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा.'
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने शपथग्रहण पर तो रोक नहीं लगायी, लेकिन येदियुरप्पा के दावे का आधार जांचने के लिए सुनवाई की मंजूरी दे दी - 18 मई, 2018. समय - ठीक साढ़े दस बजे.
केस पर सवाल जवाब
कृष्ण मेनन मार्ग पर मुख्य न्यायाधीश का आवास आधी रात को भी रोशनी से जगमगा रहा था. कोर्ट के अधिकारी और कर्मचारी इधर से उधर भागते नजर आ रहे थे. आखिरकार सवा एक बजे के करीब चीफ जस्टिस ने पाया कि कांग्रेस-जेडीएस की अर्जी अर्जेंट सुनवाई के योग्य है. फिर चीफ जस्टिस ने सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच गठित कर दी.
रात के दो बजे तक सुप्रीम कोर्ट में गतिविधियां तेज हो चली थीं. मीडिया और वकीलों का जत्था भी पहुंच चुका था. जज भी अपनी सीट संभाल चुके थे, इसलिए कार्यवाही शुरू हुई.
येदियुरप्पा के मामले में सुप्रीम कोर्ट को जो बात खटकी वो रही - बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का लंबा वक्त. विरोधी पक्ष कोर्ट को ये समझाने में कामयाब रहा कि वक्त का फासला इतना अधिक है कि आसानी से विधायकों की खरीद फरोख्त मुमकिन हो सके.
हालांकि, विश्वासमत के लिए लंबे गैप के सवाल पर मुकुल रोहतगी का कहना था, 'सुप्रीम कोर्ट चाहे तो इस वक्त को 10 दिन या सात दिन कर सकता है.'
बात दल-बदल विरोधी कानून की भी उठी. कोर्ट का कहना रहा, 'यह कहना निरर्थक है कि बिना शपथ लिए विधायक एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत बाध्य नहीं हैं. ये खुलेआम खरीद फरोख्त को बुलावा है.'
जब कांग्रेस-जेटीएस के वकील सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि येदियुरप्पा ने गवर्नर को विधायकों की सिर्फ संख्या बतायी है, सूची नहीं दी है, तो कोर्ट ने तपाक से पूछ लिया, 'आप कैसे जानते हैं...'
लेकिन यही वो सबसे अहम प्वाइंट रहा जिस पर कोर्ट ने नोटिस जारी कर येदियुरप्पा के पत्र की कॉपी पेश करने का हुक्म दिया.
राजनीति का फैसला गणित से
सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई पर अटॉर्नी जनरल को वे पत्र पेश करने को कहा जो येदियुरप्पा ने राज्यपाल को सौंपा है. माना जा रहा है कि येदियुरप्पा ने विधायकों की संख्या तो बतायी है, लेकिन उनकी सूची नहीं सौंपी है. येदियुरप्पा के पत्र से कोर्ट के सामने सही तस्वीर दिखेगी.
देखें तो येदियुरप्पा का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि पत्रों के स्क्रूटनी के बाद सुप्रीम कोर्ट की राय क्या बनती है और फिर क्या फैसला सुनाता है.
1. राज्यपाल का फैसला विवेकपूर्ण है या विवेकहीन : ये सही है कि किसी भी पार्टी को सरकार बनाने का न्योता देने का विवेकाधिकार हासिल है. विवेकाधिकार जिसे पार्टी विशेष के बहुमत साबित कर देने का पक्का यकीन हो. राज्यपाल कर्नाटक में सरकार बनाने के दावेदार दोनों पक्षों से मिल चुके हैं. दोनों पक्ष अपने दावे को लेकर पत्र भी सौंप चुके हैं.
अगर येदियुरप्पा के पत्र में सिर्फ विधायकों की संख्या का जिक्र है और कांग्रेस-जेडीएस के पत्र में विधायकों की सूची भी शामिल है, फिर तो सवाल उठेंगे ही. आखिर राज्यपाल ने विवेकाधिकार का इस्तेमाल किस हिसाब से किया.
2. येदियुरप्पा का बहुमत कितना यकीन करने लायक : कांग्रेस-जेडीएस ने 117 विधायकों के समर्थन वाली सूची सुप्रीम कोर्ट को भी सौंपी है. अब अगर 117 विधायक किसी नेता के पक्ष में हों तो दूसरा कोई खुद के पास बहुमत होने का दावा किस आधार पर कर सकता है? अगर वस्तुस्थिति यही है तो राज्यपाल का विवेक न्यायसंगत कैसे समझा जाएगा?
3. बहुमत से फासला येदियुरप्पा कौन से विधायकों से पूरा करेंगे : कैसे बीजेपी का तर्क है कि राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी का नेता होने के नाते येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिया. सबसे बड़ी पार्टी के पास घोषित तौर पर 104 विधायक हैं तो फिर येदियुरप्पा ने किन विधायकों के समर्थन का दावा किया है? क्या वे कांग्रेस के विधायक हैं? क्या वे जेडीएस के विधायक हैं? अगर उन्होंने शपथ नहीं भी ली है फिर भी क्या उन पर एंटी डिफेक्शन लॉ लागू नहीं हो सकता?
4. सूचीबद्ध भरोसमंद यदि बाद में पलट गए तो... : फर्ज कीजिए येदियुरप्पा ने संख्या ही नहीं विधायकों की सूची भी सौंप दी है. लिस्ट में जिन विधायकों का नाम है वे जबान देने के बाद भी पलट गये फिर येदियुरप्पा कैसे विश्वासमत हासिल कर पाएंगे?
5. सूची में दर्ज नाम कितने सही हैं : एक और कंडीशन है. मान लीजिए, सूची के विधायकों में से कुछ येदियुरप्पा को सपोर्ट के स्टैंड से पलट गये - और येदियुरप्पा ने उनकी जगह दूसरे विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया. जब मामले की जांच होगी तो फिर वही ढाक के तीन पात. नतीजा सिफर. सरकार बनाने का दावा सिफर. और फिर शपथग्रहण भी सिफर.
येदियुरप्पा ने ईश्वर और कर्नाटक के किसानों के नाम पर शपथ लेने का पहले ही फैसला कर लिया था. शपथग्रहण के बाद मीडिया के सामने आये तो किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया. येदियुरप्पा ने ऐलान तो कर दिया, सवाल ये है कि क्या वो उस पर अमल भी कर पाएंगे?
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