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यासीन मलिक ने खुद को आतंकी माना, अब उसकी 'मेहमान नवाजी' करने वाले क्या कहेंगे?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 13 मई, 2022 12:45 PM
  • 13 मई, 2022 12:21 PM
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कश्मीर में आतंक का बड़ा चेहरा रहा यासीन मलिक (Yasin Malik) अब खुद को अलगाववादी नेता नहीं कह पाएगा. यासीन मलिक ने 2017 में कश्मीर घाटी में की गई आतंकवादी (Terrorist) और अलगाववादी गतिविधियों में खुद के शामिल होने की बात अदालत में स्वीकार कर ली है. अब यासीन मलिक का समर्थन करने वाले क्या कहेंगे?

कश्मीर में आतंक का बड़ा चेहरा रहा यासीन मलिक अब खुद को अलगाववादी नेता नहीं कह पाएगा. आखिरकार यासीन मलिक ने 2017 में कश्मीर घाटी में की गई आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों में खुद के शामिल होने की बात अदालत में स्वीकार कर ली है. इतना ही नहीं, यासीन मलिक ने यूएपीए (APA) के तहत अपने ऊपर लगाए गए आतंकी गतिविधियों के लिए पैसे जुटाने के आरोपों को भी स्वीकार कर लिया है. लेकिन, कश्मीर में आतंकवाद फैलाने, युवाओं को भड़काने, एयरफोर्स अधिकारियों की हत्या जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद यासीन मलिक कई सालों तक आजाद घूमता रहा. यह सोचने का विषय है. खैर, यासीन मलिक के आरोपों को कबूलने के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि किसी जमाने में उसे अलगाववादी नेता के तौर पर पेश कर उसकी 'मेहमान नवाजी' करने वालों का क्या होगा?

यासीन मलिक कश्मीर को आजाद कराने और कश्मीरी पंडितों की हत्या करने के लिए हथियार उठाने वाला एक आतंकी था.

आतंकवादी से बना दिया 'शांतिदूत'

यासीन मलिक कश्मीर को आजाद कराने और कश्मीरी पंडितों की हत्या करने के लिए हथियार उठाने वाला एक आतंकी था. इस्लामिक आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ (JKLF) का चीफ होने के नाते यासीन मलिक ने मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर आतंकियों को भी छुड़वाया था. लेकिन, 1994 में कश्मीर के कुछ नेताओं और बुद्धिजीवी वर्ग के एक धड़े ने यासीन मलिक को आतंकी से अलगाववादी बना दिया. जबकि, यासीन मलिक का पाकिस्तान प्रेम किसी से छिपा नहीं था. घाटी से आतंकवाद खत्म करने और शांति कायम करने के नाम पर यासीन मलिक को 'अभयदान' दिया गया. लेकिन, आतंकी घटनाएं नहीं रुकीं. क्योंकि, यासीन मलिक अब इन घटनाओं को सीधे तौर पर अंजाम देने की जगह मुस्लिम युवाओं को भड़काकर और ब्रेनवॉश कर उनसे ये काम करवाने लगा था.

कश्मीर में आतंक का बड़ा चेहरा रहा यासीन मलिक अब खुद को अलगाववादी नेता नहीं कह पाएगा. आखिरकार यासीन मलिक ने 2017 में कश्मीर घाटी में की गई आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों में खुद के शामिल होने की बात अदालत में स्वीकार कर ली है. इतना ही नहीं, यासीन मलिक ने यूएपीए (APA) के तहत अपने ऊपर लगाए गए आतंकी गतिविधियों के लिए पैसे जुटाने के आरोपों को भी स्वीकार कर लिया है. लेकिन, कश्मीर में आतंकवाद फैलाने, युवाओं को भड़काने, एयरफोर्स अधिकारियों की हत्या जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद यासीन मलिक कई सालों तक आजाद घूमता रहा. यह सोचने का विषय है. खैर, यासीन मलिक के आरोपों को कबूलने के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि किसी जमाने में उसे अलगाववादी नेता के तौर पर पेश कर उसकी 'मेहमान नवाजी' करने वालों का क्या होगा?

यासीन मलिक कश्मीर को आजाद कराने और कश्मीरी पंडितों की हत्या करने के लिए हथियार उठाने वाला एक आतंकी था.

आतंकवादी से बना दिया 'शांतिदूत'

यासीन मलिक कश्मीर को आजाद कराने और कश्मीरी पंडितों की हत्या करने के लिए हथियार उठाने वाला एक आतंकी था. इस्लामिक आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ (JKLF) का चीफ होने के नाते यासीन मलिक ने मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर आतंकियों को भी छुड़वाया था. लेकिन, 1994 में कश्मीर के कुछ नेताओं और बुद्धिजीवी वर्ग के एक धड़े ने यासीन मलिक को आतंकी से अलगाववादी बना दिया. जबकि, यासीन मलिक का पाकिस्तान प्रेम किसी से छिपा नहीं था. घाटी से आतंकवाद खत्म करने और शांति कायम करने के नाम पर यासीन मलिक को 'अभयदान' दिया गया. लेकिन, आतंकी घटनाएं नहीं रुकीं. क्योंकि, यासीन मलिक अब इन घटनाओं को सीधे तौर पर अंजाम देने की जगह मुस्लिम युवाओं को भड़काकर और ब्रेनवॉश कर उनसे ये काम करवाने लगा था.

पीएम मनमोहन ने की 'मेहमान नवाजी'

जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन सरकारों ने यासीन मलिक को अलगाववादी नेता के तौर पर मान्यता दी. तो, वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ग ने यासीन मलिक को हाथोंहाथ लेते हुए कश्मीर में शांति ला सकने वाले बड़े चेहरे के तौर पर पेश किया. इतना ही नहीं, कश्मीर के मुस्लिम नेताओं ने केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पीएम मनमोहन सिंह से मुलाकात का रास्ता भी तय करवाया. तब मनमोहन सिंह ने यासीन मलिक को पीएम आवास में बुलाकर खूब खातिरदारी की थी. और, उसे पाकिस्तान के साथ बातचीत करने का ब्रांड एंबेसेडर तक बना दिया था. जबकि, यही यासीन मलिक अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान लश्कर-ए-तैयबा के चीफ और 26/11 हमलों के मास्टरमाइंड रहे हाफिज सईद से खुलेआम मुलाकात करता रहा.

दिल्ली में आतंकी यासीन मलिक को उसके कुकर्मों को नजरअंदाज कर एक शांतिदूत के तौर पेश किया गया.

क्यों लिबरलों का चहेता बना यासीन मलिक?

बुकर अवार्ड विजेता अरुंधति रॉय की आतंकी यासीन मलिक की एक तस्वीर बीते दिनों काफी चर्चा में रही थी. क्योंकि, द कश्मीर फाइल्स के एक सीन ऐसी ही एक तस्वीर को संदर्भित किया गया था. दरअसल, यासीन मलिक के आतंकी से अलगाववादी बन जाने के बाद देश के स्वघोषित लिबरलों को एक ऐसा चेहरा चाहिए था, जो कश्मीर में मुस्लिमों पर हो रहे कथित अत्याचारों पर लिखी और कही गई बातों पर अपनी मुहर लगा सके. और, इसके लिए यासीन मलिक से बेहतर उन्हें कोई कहा मिल सकता था. क्योंकि, एक अलगाववादी नेता, जो पहले से ही कहता रहा हो कि कश्मीर में भारत का जबरन कब्जा है और वहां के मुस्लिमों पर सेना द्वारा अत्याचार किए जा रहे हों. और, मलिक के नाम से वामपंथी बुद्धिजीवियों के एजेंडे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वजन मिलना ही था.

द कश्मीर फाइल्स को 'झूठा' कहने वालों पर भी सवाल

वैसे, यासीन मलिक के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की बात कबूल करने के बाद उन लोगों पर भी प्रश्न चिन्ह लगना लाजिमी है. जो गला फाड़-फाड़कर द कश्मीर फाइल्स झूठी फिल्म करार देने पर तुले हुए थे. हाल ही में कांग्रेस नेता शशि थरूर और आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने इसे भाजपा द्वारा प्रचारित फिल्म साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. हालांकि, अरविंद केजरीवाल बाद में कई टीवी चैनलों में इंटरव्यू के जरिये डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश करते रहे. लेकिन, कांग्रेस ने अभी तक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के जिम्मेदार रहे यासीन मलिक को लेकर चुप्पी साध रखी है. खैर, कांग्रेस का इस मामले पर बोलना भी उसके खिलाफ ही जाएगा. क्योंकि, कई टीवी इंटरव्यू में निर्दोष लोगों की हत्याओं को पहले ही कबूल कर चुके यासीन मलिक पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. बल्कि, उसकी मेहमान नवाजी की गई.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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