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सियासत

राहुल और प्रियंका पीट-पीटकर मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों से भी मिलेंगे क्या?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2021 08:26 PM
  • 06 अक्टूबर, 2021 08:15 PM
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उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) की वजह से 4 किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी. अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) लखीमपुर जा रहे हैं. लेकिन, लखीमपुर की राह उनके लिए 'धर्मसंकट' से कम नहीं है.

लखीमपुर हिंसा मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की जमीनी सक्रियता ने यूपी चुनाव से पहले मृतप्राय नजर आ रही कांग्रेस (Congress) पार्टी में नई जान फूंक दी है. लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में मृतक किसानों के परिवार से मिलने जा रही प्रियंका गांधी को सीतापुर के पीएसी गेस्ट हाउस को अस्थायी जेल में तब्दील कर यूपी पुलिस (P Police) ने गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि, अब उन्हें रिहा किया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भी लखीमपुर जाने की इजाजत मिल गई है. सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रियंका गांधी, राहुल गांधी समेत पांच लोगों को लखीमपुर जाने की इजाजत दी है.

सियासी गलियारों में इस बात की खूब चर्चा रही कि जब तक मृतकों का दाह संस्कार नहीं हो जाता है, तब तक किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को लखीमपुर खीरी में जाने की इजाजत योगी सरकार (Yogi Government) नहीं देगी. वहीं, अब दाह संस्कार होने के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के लिए लखीमपुर का रास्ता खोल दिया गया है. लेकिन, लखीमपुर खीरी की ये राह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को जितनी आसान दिख रही है, असल में उतनी है नहीं.

लखीमपुर की राह उनके लिए 'धर्मसंकट' से कम नहीं है. यहां पर उनका हर कदम एक नई राजनीतिक बहस को जन्म देगा. दरअसल, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केवल 4 किसानों की ही मौत नहीं हुई है. आक्रोशित किसानों द्वारा की गई प्रतिहिंसा 4 अन्य लोगों की भी मौत हुई थी. उनमें तीन भाजपा (BJP) कार्यकर्ता और एक पत्रकार शामिल हैं. अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को लखीमपुर जाने की अनुमति मिल गई है. तो, इस स्थिति में सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि राहुल और प्रियंका गांधी पीट-पीटकर मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों से भी मिलेंगे क्‍या?

लखीमपुर हिंसा मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की जमीनी सक्रियता ने यूपी चुनाव से पहले मृतप्राय नजर आ रही कांग्रेस (Congress) पार्टी में नई जान फूंक दी है. लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में मृतक किसानों के परिवार से मिलने जा रही प्रियंका गांधी को सीतापुर के पीएसी गेस्ट हाउस को अस्थायी जेल में तब्दील कर यूपी पुलिस (P Police) ने गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि, अब उन्हें रिहा किया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भी लखीमपुर जाने की इजाजत मिल गई है. सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रियंका गांधी, राहुल गांधी समेत पांच लोगों को लखीमपुर जाने की इजाजत दी है.

सियासी गलियारों में इस बात की खूब चर्चा रही कि जब तक मृतकों का दाह संस्कार नहीं हो जाता है, तब तक किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को लखीमपुर खीरी में जाने की इजाजत योगी सरकार (Yogi Government) नहीं देगी. वहीं, अब दाह संस्कार होने के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के लिए लखीमपुर का रास्ता खोल दिया गया है. लेकिन, लखीमपुर खीरी की ये राह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को जितनी आसान दिख रही है, असल में उतनी है नहीं.

लखीमपुर की राह उनके लिए 'धर्मसंकट' से कम नहीं है. यहां पर उनका हर कदम एक नई राजनीतिक बहस को जन्म देगा. दरअसल, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केवल 4 किसानों की ही मौत नहीं हुई है. आक्रोशित किसानों द्वारा की गई प्रतिहिंसा 4 अन्य लोगों की भी मौत हुई थी. उनमें तीन भाजपा (BJP) कार्यकर्ता और एक पत्रकार शामिल हैं. अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को लखीमपुर जाने की अनुमति मिल गई है. तो, इस स्थिति में सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि राहुल और प्रियंका गांधी पीट-पीटकर मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों से भी मिलेंगे क्‍या?

राहुल और प्रियंका गांधी पीट-पीटकर मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों से भी मिलेंगे क्‍या?

सेलेक्टिव होना पड़ सकता है भारी

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जोड़ी निश्चित तौर पर मारे गए किसानों के परिजनों से मुलाकात कर उनकी पीड़ा को कम करने की कोशिश करेगी. राजनीतिक तौर पर इस मुलाकात का उन्हें आगामी यूपी चुनाव में फायदा भी मिल सकता है. लेकिन, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि लखीमपुर खीरी हिंसा में केवल 4 किसान ही नहीं मारे गए हैं. इनके अलावा भी 4 लोगों को आक्रोशित किसानों ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया है. सियासत का तकाजा तो यही कहता है कि राहुल-प्रियंका को केवल किसानों ही नहीं अन्य 4 लोगों के घर भी जाना चाहिए. वैसे, मृतक पत्रकार के परिवार से मिलना भी तय ही माना जा सकता है. अगर लखीमपुर में राहुल-प्रियंका की जोड़ी केवल मृतक किसानों के परिवार से ही मिलती है. तो, उनका ये दौरा अपनेआप ही राजनीतिक हो जाएगा.

जिस पर सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और भाजपा को अपना राजनीतिक जाल बिछाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. ये बात तो तय है कि किसान आंदोलन को शुरुआत से ही कांग्रेस ने मुखर होकर समर्थन दिया था. लखीमपुर में पीड़ित परिजनों से मिलकर कांग्रेस को किसानों को अपने पक्ष में लामबंद करने का मौका तो मिल जाएगा. लेकिन, राहुल-प्रियंका के लिए मृतक भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवार से दूरी बनाना असहज करने वाली स्थिति को पैदा कर देगा. राजनीतिक तौर पर देखा जाए, तो लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद योगी सरकार ने फिलहाल किसानों के साथ समझौता कर लिया है. योगी सरकार की ओर से मृतक किसानों के परिवार को मुआवजे से लेकर न्यायिक जांच तक की मांग मान ली गई है. लेकिन, इस हिंसा में मारे गए अन्य लोगों के लिए योगी सरकार की ओर से कोई घोषणा नहीं हुई है.

आने वाले समय में सियासी समीकरणों को साधने के लिए मृत भाजपा कार्यकर्ताओं और पत्रकार के परिवार को भी मुआवजे की घोषणा की जाने की पूरी संभावना है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी इस बात की मांग भी कर चुके हैं. तो, भविष्य में भाजपा के लिए इस तरह की घोषणा पर कोई आश्चर्य भी नहीं जताया जा सकता है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लोगों में किसानों की प्रतिहिंसा को लेकर गुस्सा नहीं होगा. सोशल मीडिया पर तैर रहे तमाम वीडियो से एक बात तो तय हो ही गई है कि गलती केवल गाड़ी से कुचलने वाली की नहीं थी. तो, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी का अगला कदम काफी हद तक यूपी चुनाव के लिए अगली रणनीति बनाने में भाजपा के काम आने वाला है.

कांग्रेस की ब्राह्मण वर्ग की राजनीति को लगेगा झटका

कांग्रेस लंबे समय से ब्राह्मण समाज को लेकर दावा करती रही है कि उसने उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाए हैं और यह समाज हमेशा से पार्टी के साथ रहा है. लेकिन, मरने वालों में दो भाजपा कार्यकर्ता भी ब्राह्मण समाज से ही आते हैं. दरअसल, किसानों द्वारा हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा और हरिओम मिश्रा ब्राह्मण वर्ग से आते हैं. अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इन दोनों के परिवारों से मुलाकात करने में असफल रहते हैं, तो निश्चित तौर पर ये कांग्रेस के लिए किसी बड़े राजनीतिक झटके से कम नहीं होगा. क्योंकि, केवल किसान परिवारों से मिलकर वो सियासी उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता है, जिसके चलते प्रियंका गांधी और राहुल गांधी लखीमपुर जाने की जिद पकड़े बैठे हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफ हो चुका है कि इन सभी लोगों की मौत लाठी-डंडों से हुई पिटाई से हुई है. वहीं, भाजपा कार्यकर्ता श्याम सुंदर और स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप पिछड़ी जातियों से आते हैं. समावेशी राजनीति करने का दावा करने वाले राहुल-प्रियंका निश्चित तौर पर पत्रकार के परिजनों से मिलने जाएंगे. लेकिन, भाई-बहन की ये जोड़ी श्याम सुंदर के घर नहीं जाती है, तो पिछड़े वर्ग के समीकरण को साधने का दावा करने की बात कहने वाली कांग्रेस की समावेशी राजनीति को धक्का लगना तय है.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने राजनीतिक फायदा लेने के लिए लखीमपुर खीरी जाना चुन तो लिया है. लेकिन, उनके आगे की डगर बहुत कठिन होने वाली है. सियासी दंगल का अखाड़ा बन चुके लखीमपुर खीरी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का एक कमजोर दांव सामने वाले 'पहलवान' को कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष पर हावी होने का मौका दे देगा. वहीं, सोचने वाली बात ये है कि मीडिया में तमाम तरह के बयान देने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 'वेट एंड वॉच' की भूमिका निभाते हुए लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों से मिलने को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई है. अखिलेश यादव पूरी तरह से शांत होकर इस मामले में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कार्यक्रम और इसे मिलने वाली प्रतिक्रिया के नतीजे आने का इंतजार कर रहे हैं.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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