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क्या पाकिस्तान ट्रंप की धमकी से डरेगा?

    • प्रवीण शेखर
    • Updated: 04 जनवरी, 2018 11:59 AM
  • 03 जनवरी, 2018 06:24 PM
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ट्रंप का पाकिस्तान पर कठोर रूप से पेश आना भारत की कूटनीति की जीत है. यही नहीं भारत को अपना नया दृष्टिकोण लागू करने के लिए अमेरिका को सलाह भी देनी चाहिए.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साल 2018 के अपने पहले ही ट्वीट से पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन देने पर धमकी दे दी. यही नहीं, ट्रंप के ट्वीट के एक दिन बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान को 255 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता निलंबित कर दिया.

यह दोनों ही बातें वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच तेजी से तनावपूर्ण संबंधों को उजागर कर रहे हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ट्रंप प्रशासन ने आतंकवादियों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करने और अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य प्रयासों को खतरे में डालने के कारण पाकिस्तान पर कड़ा रुख अपनाया है. ट्रंप ने अपने ट्वीट के द्वारा सुझाव दिया है कि अमेरिका का पाकिस्तान के लिए ब्लैंक चेक वाला दिन अब खत्म हो गया है.

पाकिस्तान को अमेरिकी सहायता-

आइये एक नज़र डालते हैं कि अमेरिका, पाकिस्तान को कितना और किस क्षेत्र में आर्थिक सहायता प्रदान करता है:

1. सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर- 336 मिलियन डॉलर2. सैन्य सहायता- 255 मिलियन डॉलर3. आर्थिक बुनियादी ढांचा- 229 मिलियन डॉलर4. मानवीय सहायता- 98 मिलियन डॉलर5. उत्पादन- 44 मिलियन डॉलर6. बहु-क्षेत्रीय- 36 मिलियन डॉलर

इसके बावजूद, अमेरिकी योजना केवल तभी काम करेगी जब पाकिस्तान पर दबाव निरंतर होगा. छिटपुट धमकियों ने प्रभावशाली पाकिस्तानी नेतृत्व- जैसे की आईएसआई जैसे संस्था जो राज्य नीति के एक साधन के रूप में आतंकवाद का समर्थन करता है, उनपर पर काम नहीं किया है. इसका एक अच्छा उदाहरण है कि किस तरह से पाकिस्तान ने 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का ख़्याल रखा है. संयुक्त राष्ट्र के नामित आतंकवादी होने के बावजूद, सईद को पाकिस्तानी अधिकारियों ने सुरक्षित रखा है, क्योंकि पाकिस्तान के लिए हाफिज के नेतृत्व में लश्कर-ए-तैयबा, भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एक रणनीतिक संपत्ति है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साल 2018 के अपने पहले ही ट्वीट से पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन देने पर धमकी दे दी. यही नहीं, ट्रंप के ट्वीट के एक दिन बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान को 255 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता निलंबित कर दिया.

यह दोनों ही बातें वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच तेजी से तनावपूर्ण संबंधों को उजागर कर रहे हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ट्रंप प्रशासन ने आतंकवादियों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करने और अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य प्रयासों को खतरे में डालने के कारण पाकिस्तान पर कड़ा रुख अपनाया है. ट्रंप ने अपने ट्वीट के द्वारा सुझाव दिया है कि अमेरिका का पाकिस्तान के लिए ब्लैंक चेक वाला दिन अब खत्म हो गया है.

पाकिस्तान को अमेरिकी सहायता-

आइये एक नज़र डालते हैं कि अमेरिका, पाकिस्तान को कितना और किस क्षेत्र में आर्थिक सहायता प्रदान करता है:

1. सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर- 336 मिलियन डॉलर2. सैन्य सहायता- 255 मिलियन डॉलर3. आर्थिक बुनियादी ढांचा- 229 मिलियन डॉलर4. मानवीय सहायता- 98 मिलियन डॉलर5. उत्पादन- 44 मिलियन डॉलर6. बहु-क्षेत्रीय- 36 मिलियन डॉलर

इसके बावजूद, अमेरिकी योजना केवल तभी काम करेगी जब पाकिस्तान पर दबाव निरंतर होगा. छिटपुट धमकियों ने प्रभावशाली पाकिस्तानी नेतृत्व- जैसे की आईएसआई जैसे संस्था जो राज्य नीति के एक साधन के रूप में आतंकवाद का समर्थन करता है, उनपर पर काम नहीं किया है. इसका एक अच्छा उदाहरण है कि किस तरह से पाकिस्तान ने 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का ख़्याल रखा है. संयुक्त राष्ट्र के नामित आतंकवादी होने के बावजूद, सईद को पाकिस्तानी अधिकारियों ने सुरक्षित रखा है, क्योंकि पाकिस्तान के लिए हाफिज के नेतृत्व में लश्कर-ए-तैयबा, भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एक रणनीतिक संपत्ति है.

पाकिस्तान ने अब तक अमेरिका की धमकियों को अनसुना ही किया है

अगर अमेरिका चाहे तो वह पाकिस्तान पर आतंकवादी गतिविधि रोकने के लिए कई तरह से दबाव डाल सकता है. इसमें पाकिस्तान को बहुपक्षीय सहायता काटने, व्यापार अधिकारों को नकारने, ड्रोन हमलों को लक्षित करने, पाकिस्तानी केंद्रीय बैंक पर प्रतिबंध और पाकिस्तानी नागरिक-सैन्य अभिजात वर्ग पर प्रतिबन्ध लगाना शामिल हैं.

जहां तक भारत का सवाल है, ट्रंप का पाकिस्तान पर कठोर रूप से पेश आना भारत की कूटनीति की जीत है. यही नहीं भारत को अपना नया दृष्टिकोण लागू करने के लिए अमेरिका को सलाह भी देनी चाहिए. बहरहाल, भारत को पाकिस्तान में उन लोगों के साथ बैक-चैनल वार्तालाप भी बनाए रखना चाहिए- जैसे बैंकॉक में दो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच की हालिया बैठक हुई थी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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