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यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी के लिए चुनौती क्यों है, जानिए

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 29 जून, 2021 09:38 PM
  • 29 जून, 2021 09:38 PM
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उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव, जो भाजपा और समाजवादी पार्टी द्वारा बारीकी से लड़ा गया था, आधिकारिक तौर पर 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के साथ समाप्त हुआ है. चुनाव का विश्लेषण सुब्रमण्यम स्वामी ने किया है जिसमें कुछ दिलचस्प बातें निकल कर सामने आई हैं.

6 मई को, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने एक ट्वीट में उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों के परिणामों की जांच करते हुए अलर्ट जारी किया. अपने ट्वीट में सुब्रमण्यम स्वामी पंचायत चुनावों के परिणामों के मद्देनजर भाजपा के रुख से इतर चल रहे थे उन्होंने पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी के जीत के अंतर को बड़ा बताया.

पंचायत चुनाव के जैसे परिणाम आए हैं भाजपा के सामने चुनौतियों का पहाड़ है

अपने विश्लेषण में, सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 46 सीटें 'विशुद्ध रूप से शहरी' थीं और इसलिए, पंचायत चुनावों में 357 ग्रामीण विधानसभा सीटें कवर हुईं. पंचायत चुनाव परिणामों को विस्तार देते हुए, सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने 243 विधानसभा सीटें जीतीं, भाजपा ने केवल 67 और अन्य के पास 47 गई.

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव

उत्तर प्रदेश में चार चरणों में अप्रैल में पंचायत चुनाव हुए थे. परिणाम 2 मई को घोषित किए गए थे. पंचायत चुनाव आधिकारिक तौर पर 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के साथ समाप्त होते हैं.

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में त्रिस्तरीय चुनाव में 3,052 जिला पंचायत सदस्य चुने गए. ये चुनाव पार्टी की तर्ज पर नहीं होते हैं, लेकिन उम्मीदवारों के राजनीतिक जुड़ाव होते हैं जो संबंधित दलों द्वारा तय किए जाते हैं.

पंचायतों में संख्या का महत्व 

घोषित राजनीतिक संबद्धता के अनुसार, समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत निकायों में 747 सदस्य चुने, इसके बाद भाजपा के 690 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के...

6 मई को, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने एक ट्वीट में उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों के परिणामों की जांच करते हुए अलर्ट जारी किया. अपने ट्वीट में सुब्रमण्यम स्वामी पंचायत चुनावों के परिणामों के मद्देनजर भाजपा के रुख से इतर चल रहे थे उन्होंने पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी के जीत के अंतर को बड़ा बताया.

पंचायत चुनाव के जैसे परिणाम आए हैं भाजपा के सामने चुनौतियों का पहाड़ है

अपने विश्लेषण में, सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 46 सीटें 'विशुद्ध रूप से शहरी' थीं और इसलिए, पंचायत चुनावों में 357 ग्रामीण विधानसभा सीटें कवर हुईं. पंचायत चुनाव परिणामों को विस्तार देते हुए, सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने 243 विधानसभा सीटें जीतीं, भाजपा ने केवल 67 और अन्य के पास 47 गई.

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव

उत्तर प्रदेश में चार चरणों में अप्रैल में पंचायत चुनाव हुए थे. परिणाम 2 मई को घोषित किए गए थे. पंचायत चुनाव आधिकारिक तौर पर 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के साथ समाप्त होते हैं.

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में त्रिस्तरीय चुनाव में 3,052 जिला पंचायत सदस्य चुने गए. ये चुनाव पार्टी की तर्ज पर नहीं होते हैं, लेकिन उम्मीदवारों के राजनीतिक जुड़ाव होते हैं जो संबंधित दलों द्वारा तय किए जाते हैं.

पंचायतों में संख्या का महत्व 

घोषित राजनीतिक संबद्धता के अनुसार, समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत निकायों में 747 सदस्य चुने, इसके बाद भाजपा के 690 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 381 सदस्य चुने गए, और दिलचस्प बात ये कि बसपा अध्यक्ष मायावती ने दिलचस्प रूप से जिला पंचायत अध्यक्ष से दूर रहने का फैसला किया था. 

क्या हुआ थे दावे?

हालांकि, भाजपा ने दावा किया था कि सभी निर्दलीय उम्मीदवार उसके सदस्य हैं. इस प्रकार, तब भाजपा ने 981 सीटों पर अपनी जीत का दावा किया था. इसी के साथ बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के जीत के दावे को फुस कर दिया था.

हालांकि, जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन यानी 26 जून को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर 3 जुलाई के चुनावों में जीत हासिल करने के लिए प्रशासन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था.

अखिलेश यादव ने दावा किया था कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को इतनी सीटें नहीं मिलेंगी क्योंकि वह जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जीत सकती है.

बुल्स आई: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 - यही आगामी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव का लक्ष्य है. भाजपा ने 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश में लगभग 40 प्रतिशत या उससे अधिक मत प्राप्त किए हैं.

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों का लक्ष्य भाजपा के उस वोट बैंक में पैठ बनाना है जो 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों और 2019 के संसदीय चुनाव के बाद से पार्टी के साथ रहा है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा के साथ बहुकोणीय मुकाबला होने के कारण भाजपा को चुनौती देने के लिए अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर आसानी से भाजपा को 2022 में सत्ता में वापस आते हुए देख सकता है.

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...तो ये तय माना जाए कि अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव हारेंगे ही!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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