• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कश्मीर में पत्थरबाजी के मामलों में आई कमी, जानिए इसके पीछे की बड़ी वजहें

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 04 अगस्त, 2021 10:52 PM
  • 04 अगस्त, 2021 10:52 PM
offline
जिस जम्मू-कश्मीर में कभी पाकिस्तान के झंडे लहराना आम बात हो गई थी, उसी राज्य में अब आजादी की मांग को लेकर पत्थरबाजी का शगल खात्मे की ओर बढ़ता दिख रहा है. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की शब्दों के अनुसार, यह 'बदलता कश्मीर' है, जहां हर शुक्रवार को पत्थरबाजी इतिहास की बात हो गई है.

जम्मू-कश्मीर. भारत का वह अभिन्न अंग, जो आजादी के बाद से ही आतंकवाद की चपेट में आ गया. कश्मीरी पंडितों के जबरन पलायन और आतंक के चरम को झेल चुके जम्मू-कश्मीर की फिजाओं में बदलाव की लहर देखने को मिल रही है. आतंकी घटनाओं से लेकर हर रोज होने वाली पत्थरबाजी तक में अभूतपूर्व कमी आई है. जिस जम्मू-कश्मीर में कभी पाकिस्तान के झंडे लहराना आम बात हो गई थी, उसी राज्य में अब आजादी की मांग को लेकर पत्थरबाजी का शगल खात्मे की ओर बढ़ता दिख रहा है. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की शब्दों के अनुसार, यह 'बदलता कश्मीर' है, जहां हर शुक्रवार को पत्थरबाजी इतिहास की बात हो गई है. गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जम्मू-कश्मीर में 2019 की तुलना में पत्थरबाजी के मामलों में आश्चर्यजनक रूप से 88 फीसदी की कमी आई है. आइए जानते हैं कि पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आने के पीछे बड़ी वजहें क्या हैं?

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बदली हवा की तासीर

गृह मंत्रालय की इस रिपोर्ट में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी की वजह सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी, कोरोना से जुड़ी पाबंदियां और आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को बताया गया है. ये वजहें काफी हद तक सही हैं. लेकिन, बीते साल जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बने मनोज सिन्हा की इस बदलाव में बड़ी भूमिका है. राज्य में केंद्र सरकार की योजनाओं को बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों तक पहुंचाने के लिए मनोज सिन्हा ने निश्चित तौर पर काफी मेहनत की है. केंद्रशासित प्रदेश के लोगों के बीच विकास योजनाओं के सहारे उनकी पैंठ काफी बढ़ी है. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद बीते साल पहली बार हुए डीडीसी चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन ने इस बात को काफी हद तक साबित भी किया है. केंद्रशासित प्रदेश की महिलाएं, जो राज्य के बाहर शादी करने पर नागरिकता खो देती थीं, अब उनके जीवनसाथियों को भी डोमिसाइल सर्टिफिकेट दिया जाने लगा है. युवाओं को 'मुमकिन' योजना के तहत कॉमर्शियल वाहन बांटे जा रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर. भारत का वह अभिन्न अंग, जो आजादी के बाद से ही आतंकवाद की चपेट में आ गया. कश्मीरी पंडितों के जबरन पलायन और आतंक के चरम को झेल चुके जम्मू-कश्मीर की फिजाओं में बदलाव की लहर देखने को मिल रही है. आतंकी घटनाओं से लेकर हर रोज होने वाली पत्थरबाजी तक में अभूतपूर्व कमी आई है. जिस जम्मू-कश्मीर में कभी पाकिस्तान के झंडे लहराना आम बात हो गई थी, उसी राज्य में अब आजादी की मांग को लेकर पत्थरबाजी का शगल खात्मे की ओर बढ़ता दिख रहा है. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की शब्दों के अनुसार, यह 'बदलता कश्मीर' है, जहां हर शुक्रवार को पत्थरबाजी इतिहास की बात हो गई है. गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जम्मू-कश्मीर में 2019 की तुलना में पत्थरबाजी के मामलों में आश्चर्यजनक रूप से 88 फीसदी की कमी आई है. आइए जानते हैं कि पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आने के पीछे बड़ी वजहें क्या हैं?

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बदली हवा की तासीर

गृह मंत्रालय की इस रिपोर्ट में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी की वजह सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी, कोरोना से जुड़ी पाबंदियां और आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को बताया गया है. ये वजहें काफी हद तक सही हैं. लेकिन, बीते साल जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बने मनोज सिन्हा की इस बदलाव में बड़ी भूमिका है. राज्य में केंद्र सरकार की योजनाओं को बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों तक पहुंचाने के लिए मनोज सिन्हा ने निश्चित तौर पर काफी मेहनत की है. केंद्रशासित प्रदेश के लोगों के बीच विकास योजनाओं के सहारे उनकी पैंठ काफी बढ़ी है. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद बीते साल पहली बार हुए डीडीसी चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन ने इस बात को काफी हद तक साबित भी किया है. केंद्रशासित प्रदेश की महिलाएं, जो राज्य के बाहर शादी करने पर नागरिकता खो देती थीं, अब उनके जीवनसाथियों को भी डोमिसाइल सर्टिफिकेट दिया जाने लगा है. युवाओं को 'मुमकिन' योजना के तहत कॉमर्शियल वाहन बांटे जा रहे हैं.

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाई गई थी और अब इसके दो साल पूरे होने को हैं.

आतंकवाद के खिलाफ 'ऑपरेशन आलआउट'

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाई गई थी और अब इसके दो साल पूरे होने को हैं. इन दो सालों में भारतीय सेना ने केंद्रशासित प्रदेश में आतंकवाद के खिलाफ 'ऑपरेशन आलआउट' की रणनीति पर फोकस किया है. ऐसा भी नहीं है कि भारतीय सेना ने केवल आतंकियों का सफाया ही किया. इस दौरान कई भटके हुए युवाओं की मुख्यधारा में वापसी भी कराई गई है. हाल ही में भारतीय सेना ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना हाफिज सईद के भतीजे को इनकाउंटर में ढेर कर दिया था. भारतीय सेना ने ऑपरेशन ऑलआउट के तहत साल 2021 में अबतक 60 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया है. वहीं, इन आतंकियों के लिए काम करने वाले ओवर ग्राउंड वर्कर्स की गिरफ्तारियों में भी तेजी आई है. 2021 में भारतीय सेना ने आतंक के नेटवर्क को ध्वस्त करते हुए अब तक 178 आतंकियों और ओवर ग्राउंड वर्कर्स को पकड़ा है.

आतंक के खिलाफ कड़ाई ने पत्थरबाजों में भरा डर

बीते दो सालों में जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजों को सैलरी देने वाले अलगाववादी नेताओं की बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई हैं. पत्थरबाजों को रुपयों का लालच देकर पत्थरबाजी के लिए उकसाने वाले इन नेताओं पर NIA समेत अन्य सरकारी एजेंसियों ने शिकंजा कसा है. जिसके वजह से अब इनके मुंह से पत्थरबाजों को उकसाने वाले बयान निकलना बंद हो चुके हैं. अलगाववादी नेताओं पर इस कड़ाई से पत्थरबाजों के दिल में भी डर बैठ गया है. जिसके चलते पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है. लोग अब भीड़ के रूप में इनकाउंटर साइट पर जाने से पहले सौ बार सोचते हैं. यहीं वजह है कि इस तरह की घटनाओं में घायल या चोटिल होने वाले सुरक्षाबलों के जवानों और नागरिकों की संख्या में भी भारी कमी आई है.

राज्य प्रशासन की नीतियों में बदलाव

केंद्रशासित राज्य में आतंकियों से संबंध रखने वाले ओवर ग्राउंड वर्कर्स के साथ ही देशविरोधी गतिविधियों में शामिल सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी सख्ती बरती जा रही है. जिन सरकारी कर्मचारियों के आतंकियों से तार जुडे होने या देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने की जानकारी सामने आती है. उनके खिलाफ जांच के बाद उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जाना भी शुरू किया गया है. वहीं, पत्थरबाजी या अन्य किसी देशविरोधी गतिविधि में शामिल होने वाले लोगों के पासपोर्ट आवेदनों और सरकारी नियुक्तियों पर भी फुलस्टॉप लगाने की नई नीति राज्य प्रशासन ने लागू कर दी है. इन नीतियों से सीधा संदेश देने की कोशिश की गई है कि राज्य के निवासी देशविरोधी हरकतों में शामिल न हों. अगर ऐसा होता है, तो उसकी वजह से भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ समय पहले जम्मू-कश्मीर के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें आश्वासन दिया था कि केंद्र सरकार प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए प्रतिबद्ध है. परिसीमन का कार्य पूरा हो जाने पर चुनाव कराना केंद्र सरकार की प्राथमिकता है और स्थितियां पूरी तरह नियंत्रण में आने के बाद जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दे दिया जाएगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲