• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

PFI पर प्रतिबंध लगने के बाद विपक्षी नेताओं को बातों की जलेबी क्यों बनानी पड़ रही है?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 29 सितम्बर, 2022 08:10 PM
  • 29 सितम्बर, 2022 08:10 PM
offline
कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई (PFI) पर हुई छापेमारी के बाद अब इस पर केंद्र सरकार ने 5 साल का प्रतिबंध (Ban) लगा दिया है. PFI के दफ्तरों से आईईडी विस्फोटक बनाने के दस्तावेज, मिशन 2047 के तहत इस्लामिक जिहाद का पूरा रोडमैप, डिजिटल डिवाइस समेत भारी मात्रा में कैश जैसी चीजें जब्त की गई हैं. लेकिन, विपक्षी दल (Opposition) पीएफआई का परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं.

बीते कुछ दिनों में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई पर हुई छापेमारी के बाद अब इस पर केंद्र सरकार ने 5 साल का प्रतिबंध लगा दिया है. पीएफआई के दफ्तरों से आईईडी विस्फोटक बनाने के दस्तावेज, मिशन 2047 के तहत इस्लामिक जिहाद का पूरा रोडमैप, डिजिटल डिवाइस समेत भारी मात्रा में कैश जैसी चीजें जब्त की गई हैं. ये वही पीएफआई है, जिस पर आतंकी संगठनों से संबंध रखने, हत्या, हिंसक घटनाएं को अंजाम देने जैसे संगीन अपराधों के आरोप लगे हैं. कट्टरपंथी मुस्लिमों के इस संगठन पर शाहीन बाग में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान उसकी फंडिंग से लेकर इसके बाद हुई दंगों तक के आरोप लगे हैं. इतना ही नहीं, पीएफआई के सदस्यों पर मुस्लिमों के बीच इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देने और लव जिहाद जैसी हिंदू विरोधी चीजों में लिप्त होने के भी आरोप लगे हैं.

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के इस कदम को भाजपा की ओर से कट्टरता के खिलाफ जीरो टॉलरेंस पॉलिसी करार दिया गया है. इन तमाम चीजों के सामने आने के बावजूद देश की राजनीति का एक धड़ा पीएफआई के समर्थन में खड़ा नजर आ रहा है. और, अगर वो ऐसा नहीं कर पा रहा है. तो, परोक्ष रूप से आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगाने या आरोपों की जांच करने और पीएफआई पर कार्रवाई किन सबूतों के आधार पर की गई, उन्हें सबके सामने रखने जैसी बातें कर रहा है. आसान शब्दों में कहें, तो पीएफआई को उसके मुस्लिम संगठन होने का फायदा मिल रहा है. इस प्रतिबंध के खिलाफ भाजपा विरोधी इकोसिस्टम से जुड़े बहुत से बुद्धिजीवी इसका विरोध कर रहे हैं. इस स्थिति में सवाल उठना जारी है कि आखिर पीएफआई पर प्रतिबंध लगने के बाद नेताओं को बातों की जलेबी क्यों बनानी पड़ रही है?

पीएफआई पर पांच साल के लिए बैन लगा दिया गया है. लेकिन, देश की विपक्षी पार्टियों का कहना है कि आरएसएस पर भी बैन लगाना...

बीते कुछ दिनों में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई पर हुई छापेमारी के बाद अब इस पर केंद्र सरकार ने 5 साल का प्रतिबंध लगा दिया है. पीएफआई के दफ्तरों से आईईडी विस्फोटक बनाने के दस्तावेज, मिशन 2047 के तहत इस्लामिक जिहाद का पूरा रोडमैप, डिजिटल डिवाइस समेत भारी मात्रा में कैश जैसी चीजें जब्त की गई हैं. ये वही पीएफआई है, जिस पर आतंकी संगठनों से संबंध रखने, हत्या, हिंसक घटनाएं को अंजाम देने जैसे संगीन अपराधों के आरोप लगे हैं. कट्टरपंथी मुस्लिमों के इस संगठन पर शाहीन बाग में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान उसकी फंडिंग से लेकर इसके बाद हुई दंगों तक के आरोप लगे हैं. इतना ही नहीं, पीएफआई के सदस्यों पर मुस्लिमों के बीच इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देने और लव जिहाद जैसी हिंदू विरोधी चीजों में लिप्त होने के भी आरोप लगे हैं.

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के इस कदम को भाजपा की ओर से कट्टरता के खिलाफ जीरो टॉलरेंस पॉलिसी करार दिया गया है. इन तमाम चीजों के सामने आने के बावजूद देश की राजनीति का एक धड़ा पीएफआई के समर्थन में खड़ा नजर आ रहा है. और, अगर वो ऐसा नहीं कर पा रहा है. तो, परोक्ष रूप से आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगाने या आरोपों की जांच करने और पीएफआई पर कार्रवाई किन सबूतों के आधार पर की गई, उन्हें सबके सामने रखने जैसी बातें कर रहा है. आसान शब्दों में कहें, तो पीएफआई को उसके मुस्लिम संगठन होने का फायदा मिल रहा है. इस प्रतिबंध के खिलाफ भाजपा विरोधी इकोसिस्टम से जुड़े बहुत से बुद्धिजीवी इसका विरोध कर रहे हैं. इस स्थिति में सवाल उठना जारी है कि आखिर पीएफआई पर प्रतिबंध लगने के बाद नेताओं को बातों की जलेबी क्यों बनानी पड़ रही है?

पीएफआई पर पांच साल के लिए बैन लगा दिया गया है. लेकिन, देश की विपक्षी पार्टियों का कहना है कि आरएसएस पर भी बैन लगाना चाहिए.

पहले जानिए किसने क्या कहा?

- एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बयान दिया है कि मैंने हमेशा पीएफआई के कट्टरपंथी दृष्टिकोण का विरोध किया है और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण का समर्थन किया है. लेकिन, पीएफआई पर लगे प्रतिबंध का समर्थन नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कुछ लोगों द्वारा किए गए अपराधों को किसी संगठन से नहीं जोड़ा जा सकता है. इस तरह का प्रतिबंध खतरनाक है. ये उस मुस्लिम पर प्रतिबंध है, जो अपने मन की बात कहना चाहता है. भारत के काले कानून यूएपीए के तहत अब हर मुस्लिम युवा को पीएफआई पर्चे के साथ गिरफ्तार किया जाएगा.

- वहीं, कांग्रेस नेता और पार्टी के महासचिव जयराम रमेश का कहना है कि कांग्रेस हमेशा से सांप्रदायिकता की खिलाफ रही है. और, हम सांप्रदायिकता के खिलाफ बहुसंख्यकवाद या अल्पसंख्यकवाद के आधार पर भेदभाव नहीं करते हैं. कांग्रेस ऐसी हर विचारधारा और संस्था के खिलाफ हैं, जो ध्रुवीकरण करने के लिए पूर्वाग्रह, नफरत, कट्टरता और हिंसा का सहारा लेती है.

- केरल में कांग्रेस की सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए आरएसएस पर भी प्रतिबंध की सिफारिश की है. बता दें कि केरल में पीएफआई के ऊपर लगे कई मामलों को केरल की वामपंथी सरकार द्वारा वापस भी लिया गया था.

- वहीं, आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भी आरएसएस को हिंदू कट्टरपंथी संगठन करार देते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की.

- वामपंथी संगठनों से लेकर हर संभव विपक्षी राजनीतिक दलों ने पीएफआई पर लगे प्रतिबंध का परोक्ष रूप से विरोध करते हुए इसे हिंदूवादी सरकार की साजिश करार दिया है.

नेताओं को बातों की जलेबी क्यों बनानी पड़ रही है?

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में मुस्लिमों की आबादी 14.2 फीसदी थी. अगर 2022 की बात की जाए, तो अनुमान के हिसाब से मुस्लिम आबादी करीब 20 फीसदी से ज्यादा ही होगी. और, पीएफआई पर लगे बैन के परोक्ष या खुलकर किए जा रहे विरोध की असली वजह यही है. दरअसल, भारत में मुस्लिमों को एकमुश्त वोटबैंक के रूप में देखा जाता है. और, पीएफआई जैसा संगठन जो देश के हर राज्य में मुस्लिमों के बीच अपनी व्यापक पैठ बना चुका हो. उस पर लगे प्रतिबंध का विरोध करना तमाम राजनीतिक दलों को सियासी फायदा पहुंचा सकता है. यही कारण है कि ये तमाम पार्टियां पीएफआई पर लगे प्रतिबंध का सियासी फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं. जबकि, आरएसएस जैसे संगठन की कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन से किसी भी तरह की तुलना नहीं की जा सकती है. भारत में आरएसएस पाकिस्तान के लिए स्लीपर सेल की तरह काम नहीं करता है. जबकि, पीएफआई के कई सदस्य आतंकी संगठन आईएसआईएस में शामिल होने तक जा चुके हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲