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Ram navmi Violence: आखिर भारत में 'संवेदनशील इलाके' बनाए किसने हैं?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 16 अप्रिल, 2022 10:08 PM
  • 16 अप्रिल, 2022 10:08 PM
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देश के कई इलाकों के साथ मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी की शोभायात्रा (Ramnavmi Violence) पर हुई पत्थरबाजी के बाद पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया है. यही कारण है कि भोपाल में पुलिस प्रशासन ने हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) पर जुलूस निकालने की इजाजत 16 शर्तों के साथ दी है. क्योंकि, ये जुलूस बुधवारा, इतवारा जैसे 'संवेदनशील इलाकों' से भी निकलना है.

देश के कई इलाकों के साथ मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी की शोभायात्रा (Ram Navmi Violence) पर हुई पत्थरबाजी के बाद पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया है. यही कारण है कि भोपाल में पुलिस प्रशासन ने हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) पर जुलूस निकालने की इजाजत 16 शर्तों के साथ दी है. क्योंकि, हनुमान जयंती का जुलूस बुधवारा, इतवारा जैसे 'संवेदनशील इलाकों' से भी निकलना है. हालांकि, शहर काजी ने रमजान की वजह से 'चहल-पहल' वाले इन इलाकों से जुलूस निकालने पर आपत्ति जताई थी. लेकिन, पुलिस प्रशासन की ओर से इजाजत दिए जाने के बाद हनुमान जयंती का जुलूस निकाला जाएगा. वैसे, जुलूस निकालने के लिए दी गई इजाजत की शर्तों में कहा गया है कि गदा और त्रिशूल के अलावा अन्य हथियारों पर पाबंदी होगी. डीजे पर बजाए जाने वाले गानों की लिस्ट पहले से देनी होगी. जुलूस में सिर्फ एक ही डीजे होगा. आयोजकों को पुलिस के साथ आगे ही चलना होगा. खैर, यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर भारत में 'संवेदनशील इलाके' बनाए किसने हैं?

भारत के अधिकांश संवेदनशील इलाकों में 'मुस्लिम बहुल क्षेत्र' शामिल हैं. क्योंकि, इन जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है.

'संवेदनशील इलाके' की परिभाषा क्या है?

पुलिस की भाषा में आमतौर पर जिन इलाकों में कानून-व्यवस्था बिगड़ती रही हो, वहां अपराधी तत्त्वों की मौजूदगी हो, सांप्रदायिक और जातिगत तनाव की संभावनाएं बनी रहती हों, उग्रवाद जैसे कारणों की वजह से उन्हें 'संवेदनशील इलाका' घोषित किया जाता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के अधिकांश संवेदनशील इलाकों में 'मुस्लिम बहुल क्षेत्र' शामिल हैं. क्योंकि, इन जगहों पर सांप्रदायिक तनाव का लंबा इतिहास रहा है. हाल ही में देशभर में रामनवमी की शोभायात्राओं पर जिन जगहों पर भी हमले हुए वो सभी...

देश के कई इलाकों के साथ मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी की शोभायात्रा (Ram Navmi Violence) पर हुई पत्थरबाजी के बाद पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया है. यही कारण है कि भोपाल में पुलिस प्रशासन ने हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) पर जुलूस निकालने की इजाजत 16 शर्तों के साथ दी है. क्योंकि, हनुमान जयंती का जुलूस बुधवारा, इतवारा जैसे 'संवेदनशील इलाकों' से भी निकलना है. हालांकि, शहर काजी ने रमजान की वजह से 'चहल-पहल' वाले इन इलाकों से जुलूस निकालने पर आपत्ति जताई थी. लेकिन, पुलिस प्रशासन की ओर से इजाजत दिए जाने के बाद हनुमान जयंती का जुलूस निकाला जाएगा. वैसे, जुलूस निकालने के लिए दी गई इजाजत की शर्तों में कहा गया है कि गदा और त्रिशूल के अलावा अन्य हथियारों पर पाबंदी होगी. डीजे पर बजाए जाने वाले गानों की लिस्ट पहले से देनी होगी. जुलूस में सिर्फ एक ही डीजे होगा. आयोजकों को पुलिस के साथ आगे ही चलना होगा. खैर, यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर भारत में 'संवेदनशील इलाके' बनाए किसने हैं?

भारत के अधिकांश संवेदनशील इलाकों में 'मुस्लिम बहुल क्षेत्र' शामिल हैं. क्योंकि, इन जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है.

'संवेदनशील इलाके' की परिभाषा क्या है?

पुलिस की भाषा में आमतौर पर जिन इलाकों में कानून-व्यवस्था बिगड़ती रही हो, वहां अपराधी तत्त्वों की मौजूदगी हो, सांप्रदायिक और जातिगत तनाव की संभावनाएं बनी रहती हों, उग्रवाद जैसे कारणों की वजह से उन्हें 'संवेदनशील इलाका' घोषित किया जाता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के अधिकांश संवेदनशील इलाकों में 'मुस्लिम बहुल क्षेत्र' शामिल हैं. क्योंकि, इन जगहों पर सांप्रदायिक तनाव का लंबा इतिहास रहा है. हाल ही में देशभर में रामनवमी की शोभायात्राओं पर जिन जगहों पर भी हमले हुए वो सभी इलाके मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे. और, कई मीडिया रिपोर्ट में सामने आ चुका है कि रामनवमी की शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी और पेट्रोल बम फेंके जाने की घटनाएं पहले से ही सुनियोजित थीं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो उपद्रव अचानक नहीं हुआ. बल्कि, इसके लिए पहले से ही तैयारी की गई थी. और, छतों पर पत्थर और पेट्रोल बमों का इंतजाम पहले से ही कर लिया गया था. 

सामान्य इलाकों में क्यों नहीं होती पत्थरबाजी जैसी घटनाएं?

कुछ राजनेता और बुद्धिजीवी वर्ग का एक धड़ा मध्य प्रदेश के खरगौन और राजस्थान के करौली में रामनवमी की शोभायात्राओं पर हुए हमले के पीछे उकसावे की बात कहकर पत्थरबाजी का बचाव कर रहे हैं. वैसे, यहां एक अहम सवाल ये खड़ा होता है कि सामान्य इलाकों (हिंदू बहुल क्षेत्रों) में मुस्लिमों के जुलूस पर पत्थरबाजी जैसी घटनाएं क्यों नहीं होती हैं? जबकि, वहां भी ऐसे ही उकसावे वाले गाने न केवल बजाए जाते हैं. बल्कि, सड़कों पर खुलकर तलवारें और अवैध तमंचे तक लहराए जाते हैं. स्वाती गोयल शर्मा नाम की एक ट्विटर यूजर ने एक वीडियो शेयर किया है, जो खरगौन का ही बताया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि ये वीडियो 2018 का है. जिसमें एक हिंदू बहुल इलाके में मंदिर के सामने खुलेआम तेज आवाज में डीजे पर गाना बजाया जा रहा है कि 'कर देंगे तड़ीपार, बुलाऊं क्या अली को. एक बार में मिट जाएगा हर बार का झगड़ा, बुलाऊं क्या अली को'. क्या ऐसे गानों को उकसावे वाला नहीं माना जाएगा? क्या हनुमान जयंती के जुलूस की तरह इन गानों के लिए भी पहले से अनुमति ली जाती है? 

स्वाती गोयल शर्मा ने लिखा है कि 'इस वीडियो की सत्यता जानने के लिए खरगौन में किसी से संपर्क किया था. उनसे इस बारे में पूछा कि क्या कभी इस तरह के जुलूस पर पत्थरबाजी हुई है? उनका जवाब चौंकाने वाला था कि मैडम, हम यहां दुकान चलाते हैं. पत्थरबाजी करने से इनका नुकसान नहीं होगा. नुकसान हमारा ही है.' वैसे, मोहर्रम और पैकियों के जुलूसों में शक्ति प्रदर्शन के तौर पर तलवारों का लहराया जाना कोई नई बात नहीं है. भारत में कई दशकों से ये होता चला आ रहा है. लेकिन, किसी मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद के सामने हिंदुओं के भगवानों से जुड़े गाने बजाने पर उसका अंजाम पत्थरबाजी के रूप में ही सामने आता है. वैसे, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने अपनी किताब 'पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन' में भी इस बात का जिक्र करते हुए कहा था कि 'सभी मुस्लिम देशों में किसी मस्जिद के सामने बिना किसी आपत्ति के गाना बजाया जा सकता है. यहां तक कि अफगानिस्तान में भी जो धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है. वहां भी मस्जिदों के पास गाजे-बाजे पर आपत्ति नहीं होती है. लेकिन, भारत में मुसलमान इस पर आपत्ति करते हैं, क्योंकि हिंदू इसे उचित मानते हैं.' 

संवेदनशील इलाके क्यों हैं मुस्लिम बहुल क्षेत्र?

हिंदू बहुल इलाकों में मुस्लिम पक्ष के जुलूस भड़काऊ गाने बजाने के बावजूद बिना किसी दिक्कत के आसानी से निकल जाते हैं. क्योंकि, उन उकसाऊ और भड़काने वाले गानों को हिंदू 'धर्मनिरपेक्षता' के नाम पर दशकों से किनारे रखते चले आ रहे हैं. लेकिन, क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता को निभाना केवल हिंदुओं के लिए ही बाध्य है? स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने की जिद, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ किया गया हिंसक विरोध जैसी घटनाओं पर धर्मनिरपेक्षता का ख्याल लोगों को क्यों नहीं आता है. संविधान ने इस देश में हर नागरिक को किसी भी इलाके में जाने की स्वतंत्रता दी है. तो, संवेदनशील मुस्लिम बहुल इलाकों में होने वाली घटनाओं पर आंखों पर पट्टी नहीं बांधी जा सकती है. क्योंकि, इससे हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच की खाई को और गहरा किया जा रहा है.

बीते साल तमिलनाडु के एक ऐसे ही मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदुओं की शोभायात्रा को निकलने से रोका गया था. जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर इसी आधार पर फैसला किया गया, तो देश के अधिकांश हिस्सों में अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) के लिए अपने कार्यक्रम आयोजित करना मुश्किल हो जाएगा. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि 'सड़कों और गलियों पर कोई धर्म दावा नहीं कर सकता. उसे सब इस्तेमाल कर सकते हैं.' लेकिन, इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि भारत के संवेदनशील इलाकों का मजहब लोगों के सामने पत्थरबाजी के रूप में सामने आ ही जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो संवेदनशील इलाकों यानी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हालात न सुधरे, तो भविष्य में स्थितियां और भयावह हो सकती हैं. और, एक बार फिर लोगों को 'विभाजन' का दर्द झेलना पड़ सकता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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