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आखिर ममता बनर्जी को अपना गोत्र बताने की जरूरत क्यों पड़ गई!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 01 अप्रिल, 2021 09:14 PM
  • 01 अप्रिल, 2021 09:13 PM
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ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है, लेकिन वह सीधे तौर पर भाजपा की रणनीति में फंसती नजर आ रही हैं. जो गलतियां अन्य राज्यों में भाजपा के विरोधी दलों ने की हैं, टीएमसी मुखिया भी उन्ही गलतियों को दोहरा रही हैं.

पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सियासी घमासान अपने चरम पर पहुंच चुका है. दूसरे चरण में होने वाले मतदान में हॉट सीट 'नंदीग्राम' भी शामिल है. भाजपा अपना पूरा दम लगाकर ये 'किला' फतह करने की कोशिश कर रही है. इस सीट पर जीत का मतलब है कि भाजपा का बंगाल पर कब्जा तय है. इसी वजह से भाजपा के तमाम स्टार प्रचारक इस सीट पर खास फोकस कर ममता बनर्जी को कमजोर दिखाने की कोशिश कर चुके हैं. हाल ही में भाजपा की ओर से तृणमूल कांग्रेस की मुखिया का एक ऑडियो क्लिप भी वायरल किया गया था.

भाजपा कार्यकर्ता से बात कर रहीं 'दीदी' के सामने इस ऑडियो क्लिप ने असमंजस की स्थिति पैदा कर दी थी. हालांकि, उन्होंने एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मामले को हैंडल करते हुए कहा कि वह अपने किसी भी वोटर से बात कर सकती है और यह अपराध नहीं है. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ 'खेला होबे' का नारा देने वाली मुख्यमंत्री को अब अपना गोत्र और मां-माटी-मानुष भी याद आ गया है. सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वजह है, जिसने ममता बनर्जी को 'खेला होबे' से किनारा कर अपना गोत्र बताने को मजबूर कर दिया?

पहले चरण में करीब 80 फीसदी वोटिंग के बाद भाजपा और टीएमसी दोनों ही अपने हिसाब से दावे कर रहे हैं. लेकिन, ममता बनर्जी इतने से ही आश्वस्त नजर नही आ रही हैं. उनकी नजर हिंदू मतदाताओं पर जमी हुई है. ममता बनर्जी मानकर चल रही हैं कि भाजपाविरोधी वोटों का बंटवारा कांग्रेस-वाम दल और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ कहीं कम तो कहीं ज्यादा हो सकता है. इस स्थिति में राज्य के हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए ममता बनर्जी चंडी पाठ से लेकर अपना गोत्र तक बताने लगी हैं. दक्षिण बंगाल की सीटों पर चुनाव आखिरी के चरणों में है. इनमें से कई सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का खासा प्रभाव है. कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी ने खास रणनीति के तहत ही अभी से अपना गोत्र बता दिया है. जिससे आगे चरणों में उन्हें यह बताने की जरूरत न पड़े. बचे हुए मतदान के चरणों में वह इसे लेकर खतरा मोल नहीं ले सकती...

पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सियासी घमासान अपने चरम पर पहुंच चुका है. दूसरे चरण में होने वाले मतदान में हॉट सीट 'नंदीग्राम' भी शामिल है. भाजपा अपना पूरा दम लगाकर ये 'किला' फतह करने की कोशिश कर रही है. इस सीट पर जीत का मतलब है कि भाजपा का बंगाल पर कब्जा तय है. इसी वजह से भाजपा के तमाम स्टार प्रचारक इस सीट पर खास फोकस कर ममता बनर्जी को कमजोर दिखाने की कोशिश कर चुके हैं. हाल ही में भाजपा की ओर से तृणमूल कांग्रेस की मुखिया का एक ऑडियो क्लिप भी वायरल किया गया था.

भाजपा कार्यकर्ता से बात कर रहीं 'दीदी' के सामने इस ऑडियो क्लिप ने असमंजस की स्थिति पैदा कर दी थी. हालांकि, उन्होंने एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मामले को हैंडल करते हुए कहा कि वह अपने किसी भी वोटर से बात कर सकती है और यह अपराध नहीं है. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ 'खेला होबे' का नारा देने वाली मुख्यमंत्री को अब अपना गोत्र और मां-माटी-मानुष भी याद आ गया है. सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वजह है, जिसने ममता बनर्जी को 'खेला होबे' से किनारा कर अपना गोत्र बताने को मजबूर कर दिया?

पहले चरण में करीब 80 फीसदी वोटिंग के बाद भाजपा और टीएमसी दोनों ही अपने हिसाब से दावे कर रहे हैं. लेकिन, ममता बनर्जी इतने से ही आश्वस्त नजर नही आ रही हैं. उनकी नजर हिंदू मतदाताओं पर जमी हुई है. ममता बनर्जी मानकर चल रही हैं कि भाजपाविरोधी वोटों का बंटवारा कांग्रेस-वाम दल और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ कहीं कम तो कहीं ज्यादा हो सकता है. इस स्थिति में राज्य के हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए ममता बनर्जी चंडी पाठ से लेकर अपना गोत्र तक बताने लगी हैं. दक्षिण बंगाल की सीटों पर चुनाव आखिरी के चरणों में है. इनमें से कई सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का खासा प्रभाव है. कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी ने खास रणनीति के तहत ही अभी से अपना गोत्र बता दिया है. जिससे आगे चरणों में उन्हें यह बताने की जरूरत न पड़े. बचे हुए मतदान के चरणों में वह इसे लेकर खतरा मोल नहीं ले सकती हैं.

भाजपा ने पहले चरण के मतदान के बाद से ही 'परिवर्तन' और 'खेला शेष' का नारा बुलंद कर दिया है.

ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है, लेकिन वह सीधे तौर पर भाजपा की रणनीति में फंसती नजर आ रही हैं. जो गलतियां अन्य राज्यों में भाजपा के विरोधी दलों ने की हैं, टीएमसी मुखिया भी उन्ही गलतियों को दोहरा रही हैं. राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक ने भाजपा के सामने अपने चुनाव प्रचार में यही गलती की. भाजपा का सबसे बड़ा हथियार है ध्रुवीकरण. ममता बनर्जी ने अपना गोत्र बताकर इसे और धार दे दी है. भाजपा अपनी रणनीति के तहत ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ ही दलित और वंचित समुदायों की अनदेखी के आरोप लगाती रही है. ध्रुवीकरण के सहारे भाजपा ने हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की भरपूर कोशिश की है. भाजपा की कोशिशों को 'शांडिल्य' गोत्र ने पूरी तरह से हावी होने का मौका दे दिया है.

भाजपा ने पहले चरण के मतदान के बाद से ही 'परिवर्तन' और 'खेला शेष' का नारा बुलंद कर दिया है. जमीनी स्तर पर भाजपा ने अपने संगठन को काफी मजबूत किया है. पहले चरण के मतदान के बाद यह काफी हद तक नजर भी आ रहा है. यही बात टीएमसी और ममता बनर्जी के लिए चिंता का कारण बनी हुई है. जमीनी स्तर पर ममता बनर्जी को सत्ताविरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. टीएमसी के स्थानीय कार्यकर्ताओं की तोलाबाजी और कटमनी को भाजपा ने खूब प्रचारित किया है. यह ममता बनर्जी के विरोध में माहौल नहीं बना रहा है, लेकिन टीएमसी के लिए खतरे की घंटी है.

नंदीग्राम की हॉट सीट पर वाम दलों ने सीपीएम की युवा नेता मीनाक्षी मुखर्जी को चुनाव मैदान में उतार कर ममता बनर्जी को 'वॉकओवर' दे दिया है. लेकिन, इससे टीएमसी नेता की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. अल्पसंख्यक वोट निर्णायक जरूर हैं, लेकिन उन्हें जीत हासिल करने के लिए हिंदू वोट भी चाहिए होंगे. खेला होबे से मां-माटी-मानुष के नारे पर लौटीं ममता बनर्जी के लिए अब हिंदू मतदाताओं को साधना बहुत ही चुनौती भरा काम होने वाला है. गोत्र के सहारे उन्होंने जिन वोटों को साधने की कोशिश की है, भाजपा का आक्रामक रवैया उसे काफी हद तक बदलने की क्षमता रखता है. देखना रोचक होगा कि आने वाले चरणों के मतदान में ममता बनर्जी का गोत्र उनके कितने काम आता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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