• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

2024 में कांग्रेस और राहुल गांधी से क्यों बेहतर है ममता का प्रमुख चैलेंजर बनना

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 29 जुलाई, 2021 10:22 PM
  • 29 जुलाई, 2021 10:22 PM
offline
पेगासस जैसे मुद्दे पर पूरा विपक्ष हंगामा कर रहा है. कांग्रेस के सांसद भी इसमें बराबर शरीक हो रहे हैं. लेकिन, इस हंगामे का पूरा क्रेडिट ममता बनर्जी के खाते में जा रहा है. राहुल गांधी पेगासस को लेकर केवल हल्ला मचाते नजर आ रहे हैं. लेकिन, ममता बनर्जी ने न केवल अपने मोबाइल फोन के कैमरे पर प्लास्टर लगाया, इसकी जांच के लिए एक कमेटी भी बना डाली. राहुल गांधी यहां भी पिछड़ गए.

दिल्ली आईं बंगाल की मुखिया ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंची थीं. इस मुलाकात के दौरान ममता और सोनिया के साथ राहुल गांधी भी मौजूद रहे. बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से ही ममता बनर्जी को कई विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक सशक्त नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं. मुलाकात के बाद ममता ने कहा कि विपक्ष का चेहरा चुनाव के समय की परिस्थिति पर निर्भर करेगा. यानी एक बात तो साफ है कि उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिलाने के बावजूद प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से अपना नाम बाहर नहीं किया है. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी भी हाल में राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनवाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी.

राहुल गांधी भी इन दिनों जिस तरह से भाजपा और पीएम मोदी पर हमलावर हैं, उसे खुद को पीएम मैटेरियल घोषित करने की कवायद के तौर पर ही देखा जा रहा है. 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता दो बड़े चेहरों के बीच फंसी हुई नजर आती है. भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक सशक्त चेहरे की खोज शुरू हो चुकी है. लेकिन, इस रेस में ममता बनर्जी राहुल गांधी से कहीं आगे दिखाई पड़ती हैं. आइए जानते हैं कि 2024 में ममता बनर्जी का प्रमुख चैलेंजर बनना कांग्रेस और राहुल गांधी से क्यों बेहतर है?

कांग्रेस के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस का संगठन और कैडर ज्यादा ताकतवर और समर्पित दिखता है.

कांग्रेस के मुकाबले टीएमसी मजबूत

देश में कांग्रेस का फैलाव भले ज्यादा हो, लेकिन उसकी स्वीकार्यता पर गंभीर सवाल खड़ा हो चुका है. ऐसे में कांग्रेस के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस का संगठन और कैडर ज्यादा ताकतवर और समर्पित दिखता है. ममता बनर्जी ने अपने संगठन और कैडर के दम पर पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में वोटरों का रुख एकतरफा कर दिया था....

दिल्ली आईं बंगाल की मुखिया ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंची थीं. इस मुलाकात के दौरान ममता और सोनिया के साथ राहुल गांधी भी मौजूद रहे. बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से ही ममता बनर्जी को कई विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक सशक्त नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं. मुलाकात के बाद ममता ने कहा कि विपक्ष का चेहरा चुनाव के समय की परिस्थिति पर निर्भर करेगा. यानी एक बात तो साफ है कि उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिलाने के बावजूद प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से अपना नाम बाहर नहीं किया है. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी भी हाल में राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनवाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी.

राहुल गांधी भी इन दिनों जिस तरह से भाजपा और पीएम मोदी पर हमलावर हैं, उसे खुद को पीएम मैटेरियल घोषित करने की कवायद के तौर पर ही देखा जा रहा है. 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता दो बड़े चेहरों के बीच फंसी हुई नजर आती है. भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक सशक्त चेहरे की खोज शुरू हो चुकी है. लेकिन, इस रेस में ममता बनर्जी राहुल गांधी से कहीं आगे दिखाई पड़ती हैं. आइए जानते हैं कि 2024 में ममता बनर्जी का प्रमुख चैलेंजर बनना कांग्रेस और राहुल गांधी से क्यों बेहतर है?

कांग्रेस के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस का संगठन और कैडर ज्यादा ताकतवर और समर्पित दिखता है.

कांग्रेस के मुकाबले टीएमसी मजबूत

देश में कांग्रेस का फैलाव भले ज्यादा हो, लेकिन उसकी स्वीकार्यता पर गंभीर सवाल खड़ा हो चुका है. ऐसे में कांग्रेस के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस का संगठन और कैडर ज्यादा ताकतवर और समर्पित दिखता है. ममता बनर्जी ने अपने संगठन और कैडर के दम पर पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में वोटरों का रुख एकतरफा कर दिया था. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव के दौरान ही तमाम विपक्षी दलों को चिट्ठी लिखकर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एकजुट होने की अपील की थी. ममता बनर्जी की उस चिट्ठी के बाद मजबूरन कांग्रेस और वामपंथी दल साइलेंट मोड में चले गए थे. वहीं, राहुल गांधी की बात करें, तो उनके खाते में अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि नहीं जुड़ी है. केरल में सत्ता परिवर्तन का सपना देखकर राहुल गांधी ने पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन, पिनराई विजयन के सामने वो खेत ही रहे.

कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ पार्टी के ही नेता

भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल का तमगा लिए फिर रहे कांग्रेस में आंतरिक कलह चरम पर पहुंच चुकी है. कांग्रेस नेतृत्व को उनकी ही पार्टी का समर्थन हासिल नहीं है. कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व के लगातार कमजोर प्रदर्शन के चलते पार्टी के कार्यकर्ता दूसरे दलों में जगह तलाशने पहुंच रहे हैं. राहुल गांधी के खिलाफ कांग्रेस के ही दिग्गज नेताओं ने जी-23 के रूप में मोर्चा खोला हुआ है. वहीं, बंगाल चुनाव में पीएम मोदी और भाजपा के स्टार प्रचारकों की फौज से अकेले टक्कर लेते हुए जीत की हैट्रिक लगाने वाली ममता बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस के साथ ही देश की अन्य पार्टियों का भी समर्थन मिला. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बंगाल चुनाव के दौरान कांग्रेसनीत यूपीए के तमाम सहयोगी दल ममता बनर्जी के पक्ष में खड़े दिखाई दिए थे.

राहुल गांधी में आत्मविश्वास की कमी

संसद का मानसून सत्र विपक्ष के हंगामे में चल नहीं पा रहा है. पेगासस, महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर पूरा विपक्ष हंगामा कर रहा है. कांग्रेस के सांसद भी इस हंगामे में बराबर शरीक हो रहे हैं. लेकिन, इस हंगामे का पूरा क्रेडिट ममता बनर्जी के खाते में जा रहा है. राहुल गांधी पेगासस को लेकर केवल हल्ला मचाते नजर आ रहे हैं. लेकिन, ममता बनर्जी ने अपने मोबाइल फोन के कैमरे को प्लास्टर करके विरोध जताया. ममता बनर्जी इतने पर ही नहीं रुकीं और इस पर एक्शन लेते हुए पेगासस फोन हैकिंग मामले की पड़ताल के लिए दो सदस्यीय जांच आयोग का गठन भी कर दिया. राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार है. लेकिन, राहुल गांधी में इस मुद्दे को उठाने के लिए ममता बनर्जी जैसा आत्मविश्वास नजर नहीं आया. राहुल गांधी ट्रैक्टर चलाकर संसद जरूर पहुंचे. लेकिन, किसान नेता राकेश टिकैत से मुलाकात नहीं कर सके हैं. वहीं, ममता बनर्जी ने चुनाव जीतने के बाद राकेश टिकैत को बुलावा भेजा और उनसे मुलाकात भी की. मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दा उठाने के मामले में ममता बनर्जी राहुल गांधी के मुकाबले ज्यादा आत्मविश्वासी नजर आती हैं.

ममता फुलटाइम और राहुल पार्टटाइम नेता

राहुल गांधी और ममता बनर्जी में एक सबसे बड़ा अंतर ये भी है कि 'दीदी' की छवि फुल टाइम राजनेता की है, जबकि 'युवराज' अक्सर पर्दे से गायब नजर आते हैं. राहुल गांधी पार्टी के स्थापना दिवस और किसान आंदोलन जैसे कई बड़े मौकों पर विदेश यात्रा पर निकल जाते हैं. राजनीति को लेकर वह कहीं से भी सीरियस नहीं आते हैं. वहीं, ममता बनर्जी पूरी तरह से राजनीति को समर्पित दिखती हैं. किसी जमाने में यूथ कांग्रेस में शामिल रहीं ममता बनर्जी ने अपनी फुलटाइम नेता वाली छवि के साथ ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस को खड़ा किया. और, राज्य में कांग्रेस को 'शून्य' पर ला दिया.

बंगाल मॉडल के जवाब में क्या पेश करेंगे राहुल गांधी

2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी और भाजपा के सामने गुजरात मॉडल की तर्ज पर ही तृणमूल कांग्रेस की मुखिया बंगाल मॉडल पेश कर सकती हैं. कहना गलत नहीं होगा कि ये बंगाल मॉडल का ही करिश्मा है, जो ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही हैं. लेकिन, राहुल गांधी के पास ऐसा कोई भी मॉडल नहीं है, जिसके सहारे वो अपनी ब्रांड वैल्यू को चमका सकें. न्याय योजना का जो शिगूफा उन्होंने 2019 में छेड़ा था. उसे लागू करने वाला राज्य़ छत्तीसगढ़ खुद कर्ज लेकर लोगों को सहायता राशि उपलब्ध करा रहा है. वहीं, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों ने इस योजना से दूरी बना रखी है. आखिर राहुल गांधी किस आधार पर ममता बनर्जी का मुकाबला करेंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲