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महाराष्ट्र में कांग्रेस मरी नहीं है सिर्फ बीजेपी में जीवित रहने का प्रयास कर रही है

    • साहिल जोशी
    • Updated: 13 सितम्बर, 2019 03:06 PM
  • 13 सितम्बर, 2019 02:53 PM
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अब तक करीब 20 कांग्रेसी महाराष्ट्र में पाला बदल चुके हैं. एनसीपी को जोड़ें तो यही आंकडा 40 तक पहुंच जाएगा. अब तक किसी विचारधारा को पकड़कर नहीं रखने के फायदे कांग्रेस उठाती आई, लेकिन अब विचारधारा की डोर छोड़ने का नुकसान भी पार्टी उठा रही है.

हमने 'आईचौक' पर कुछ महीने पहले ही लिखा था कि महाराष्‍ट्र में कांग्रेस और NCP का पतन चुनाव के पहले ही होता नजर आ रहा है. हालांकि तब लगा था कि हार्डकोर यानी कट्टर कांग्रसी तो कम से कम पार्टी को बचाने में लगे रहेंगे. लेकिन अब ये मामला सिर्फ चुनावी नहीं रहा. कांग्रेस का वैचारिक आधार ही कितना कमजोर साबित हो रहा है ये इसी से दिख रहा है. वैसे कांगेस किसी एक विचारधारा को लेकर चलने वाली पार्टी थी ही नहीं. अलग-अलग विचारधाराओं के स्रोत कांग्रेस में आकर मिलते थे, लेकिन व्यापक तौर पर किसी भी लाइन पर कट्टरता के साथ ना चलना और आमतौर पर आमसहमति की राजनीति करने पर कांग्रेस का जोर रहा. जिसे हम consensus politics भी कहते हैं. लेकिन अब कांग्रेस का ये बल कमजोर पड़ता नजर आ रहा है.

महाराष्ट्र में मदन भोसले सतारा से कांग्रेस के विधायक थे. 2014 में क्या हारे, बीजेपी का हाथ थाम लिया. इनके पिता प्रताप राव भोसले तब भी कांग्रेस छोडकर नहीं गए थे जब 1999 में शरद पवार ने एनसीपी बनाकर महाराष्ट्र मे कांग्रेस को करीब-करीब खाली कर दिया था. उस वक्त प्रताप राव प्रदेश अध्यक्ष थे. लोग मजाक उड़ाते कि बची-कुची कांग्रेस वो खत्म करने वाले हैं. जबकि प्रताप राव कहते कि महाराष्ट्र में उनका परिवार कांग्रेस के हैं मुश्किल से मुश्किल समय में भी कांग्रेस के अलावा किसी को वोट नहीं दे सकते, भले नेता कोई भी हो. उस वक्त भी लूली-लंगडी कांग्रेस ने 75 सीटें जीतकर शरद पवार को पीछे छोड़ दिया था. लेकिन 20 साल बीत गए पीढ़ी बदल गई. कांग्रेस को ही वोट देने वाले परिवार बूढ़े हो गए. खुद प्रताप राव के बेटे ये समझ गए और बीजेपी का रास्ता पकड़ लिया. अब हाल ही में कृपाशंकर सिंह ने भी कांग्रेस को राम-राम बोल दिया. मैंने उनसे पूछा कि अब तो ‘जय श्रीराम’ बोलना पडेगा, तो हंस पड़े. बोले- 'ये बोलने में हमें तो कभी दिक्कत थी ही नहीं.' मुंबई मे कांग्रेस क्यों टिकी रही इसका सबसे बड़ा कारण अगर कृपाशंकर जैसे नेता हैं तो कांग्रेस को लोग नापसंद क्यों करने लगे इसके पीछे भी कृपाशंकर सिंह जैसे नेता ही हैं.

हमने 'आईचौक' पर कुछ महीने पहले ही लिखा था कि महाराष्‍ट्र में कांग्रेस और NCP का पतन चुनाव के पहले ही होता नजर आ रहा है. हालांकि तब लगा था कि हार्डकोर यानी कट्टर कांग्रसी तो कम से कम पार्टी को बचाने में लगे रहेंगे. लेकिन अब ये मामला सिर्फ चुनावी नहीं रहा. कांग्रेस का वैचारिक आधार ही कितना कमजोर साबित हो रहा है ये इसी से दिख रहा है. वैसे कांगेस किसी एक विचारधारा को लेकर चलने वाली पार्टी थी ही नहीं. अलग-अलग विचारधाराओं के स्रोत कांग्रेस में आकर मिलते थे, लेकिन व्यापक तौर पर किसी भी लाइन पर कट्टरता के साथ ना चलना और आमतौर पर आमसहमति की राजनीति करने पर कांग्रेस का जोर रहा. जिसे हम consensus politics भी कहते हैं. लेकिन अब कांग्रेस का ये बल कमजोर पड़ता नजर आ रहा है.

महाराष्ट्र में मदन भोसले सतारा से कांग्रेस के विधायक थे. 2014 में क्या हारे, बीजेपी का हाथ थाम लिया. इनके पिता प्रताप राव भोसले तब भी कांग्रेस छोडकर नहीं गए थे जब 1999 में शरद पवार ने एनसीपी बनाकर महाराष्ट्र मे कांग्रेस को करीब-करीब खाली कर दिया था. उस वक्त प्रताप राव प्रदेश अध्यक्ष थे. लोग मजाक उड़ाते कि बची-कुची कांग्रेस वो खत्म करने वाले हैं. जबकि प्रताप राव कहते कि महाराष्ट्र में उनका परिवार कांग्रेस के हैं मुश्किल से मुश्किल समय में भी कांग्रेस के अलावा किसी को वोट नहीं दे सकते, भले नेता कोई भी हो. उस वक्त भी लूली-लंगडी कांग्रेस ने 75 सीटें जीतकर शरद पवार को पीछे छोड़ दिया था. लेकिन 20 साल बीत गए पीढ़ी बदल गई. कांग्रेस को ही वोट देने वाले परिवार बूढ़े हो गए. खुद प्रताप राव के बेटे ये समझ गए और बीजेपी का रास्ता पकड़ लिया. अब हाल ही में कृपाशंकर सिंह ने भी कांग्रेस को राम-राम बोल दिया. मैंने उनसे पूछा कि अब तो ‘जय श्रीराम’ बोलना पडेगा, तो हंस पड़े. बोले- 'ये बोलने में हमें तो कभी दिक्कत थी ही नहीं.' मुंबई मे कांग्रेस क्यों टिकी रही इसका सबसे बड़ा कारण अगर कृपाशंकर जैसे नेता हैं तो कांग्रेस को लोग नापसंद क्यों करने लगे इसके पीछे भी कृपाशंकर सिंह जैसे नेता ही हैं.

महाराष्ट में कांग्रेस का साथ हाल ही में कृपा शंकर और उर्मिला मातोंडकर ने छोड़ दिया है

दरअसल कांग्रेस कभी हारने की वजह से नहीं टूटी है. अब तक जब भी कांग्रेस हारती तो नेता सोचते लोगों में गुस्सा है, ठंडा होगा तो वापसी हो जाएगी. लेकिन इसमें पहला झटका यूपी और बिहार में लगा. मंडल से जागे पिछड़ों को महसूस हुआ कि कांग्रेस में उनके लिये कुछ नहीं है. वो कांग्रेस से हट गए. लेकिन महाराष्ट्र मे कांग्रेस बनी रही. कांग्रेस की बहुजन समाज की राजनीति जो 1960 की दशक से महाराष्ट्र में चल रही थी उसने पार्टी की जड़ें मजबूत रखी थीं. और उसी के आधार पर तमाम धक्के खाकर भी पार्टी बनी रही थी. लेकिन 2012 से सब बदल गया. कांग्रेस को पहला जोरदार झटका दिया अण्णा आंदोलन ने और दूसरा 2014 के चुनाव परिणामों ने. समाज का मन भी बदल गया. आम तौर पर अनेक विषयों पर passive यानी निष्क्रिय राय रखनेवाले वोटर सक्रिय यानी active राय रखने लगे. इस बदलाव से जूझने के लिये कांग्रेस का कैडर तैयार ही नहीं था. Article 370, आतंकवाद, ट्रिपल तलाक, कश्मीर, असम का NRC इन विषयों पर मतदान भी होने लगा था. लेकिन कांग्रेस अपनी भुमिका इसपर बता ही नहीं पा रही थी, जिससे ये नेता उलझन में थे कि लोगों को क्या समझाएं.

अब तक करीब 20 कांग्रेसी महाराष्ट्र में पाला बदल चुके हैं. एनसीपी को जोड़ें तो यही आंकडा 40 तक पहुंच जाएगा. उनमें से एक जो माहाराष्ट्र में मंत्री रह चुके हैं, पूछा कि इतना सब दिया पार्टी ने तो मुश्किल समय क्यों भाग रहे हैं, तो बोले- 'लोग कहते हैं कि आपसे शिकायत नहीं है लेकिन आपकी पार्टी से है, हम कुछ भी कहें कोई समझने को तैयार ही नहीं'. अब तक किसी विचारधारा को पकड़कर नहीं रखने के फायदे कांग्रेस उठाती आई, लेकिन अब विचारधारा की डोर छोड़ने का नुकसान भी पार्टी उठा रही है.

महाराष्ट्र कांग्रेस की सुध लेने में नाकाम सोनिया गांधी

उपर से नीचे तक नेतृत्वहीनता का असर दिख रहा है. राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोडने के बाद बिना गांधी परिवार के पार्टी चलाने का मन पार्टी का कैडर बना ही रहा था कि सोनिया गांधी अध्यक्ष बनाई गईं. इसका असर नीचे हुआ. आज की तारीख मे मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकारने के लिये कोई तैयार नहीं. मिलिंद देवड़ा रुठे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वो दिल्ली मे कांग्रेस के लिये कुछ कर सकते हैं. लेकिन उनकी कोई सुध नहीं ले रहा. संजय निरुपम हारने के बाद मिलिंद देवड़ा से कैसे निपटें, इस चक्कर मे लगे हैं. उर्मिला मातोंडकर जो सचमुच विचारधारा को लेकर कुछ करना चाहती थीं, उन्होंने ही पार्टी छोड़ दी. लेकिन इसकी सुध लेने के लिये भी कोई तैयार नहीं. महाराष्ट्र में अच्छी छवि का नाम देकर जिन्हें मुख्यमंत्री बनाकर भेजा वो पृथ्विराज चव्हाण इसबार अपनी सीट कैसे बचाएं उस चिंता मे लगे हैं. अशोक चव्हाण और नए प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट समझ नहीं पा रहे हैं कि टूट रहा जहाज कहां और कैसे बचाएं.

ऐसे में बीजेपी ने ये समझ लिया है कि कांग्रेस हो या एनसीपी, ये विचारधारा या कैडर की पार्टी नहीं, नेताओं और सूबेदारों की पार्टी है. जहां बीजेपी कमजोर है वहां का कांग्रेसी सूबेदार उठा लो, कांग्रेस अपने आप खत्म हो जायेगी. फिर असम मे हेमंत बिस्व सरमा हो या महाराष्ट्र में राधाकृष्ण विखे पाटिल. उनके अपने प्रभाव के हिसाब से कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा होगा. कांग्रेसियों में survival instinct जबरदस्त होता है, तो जो बचे-कुचे हैं वो बीजेपी में जाकर इसी जीवन प्रवृत्ति से बच रहे हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस मरी नहीं है, वो सिर्फ बीजेपी में जीवित रहने का प्रयास कर रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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