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2019 में केंद्र में सत्ता की चाबी दक्षिण भारत के इन राज्यों के पास होगी

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 09 सितम्बर, 2018 11:45 AM
  • 09 सितम्बर, 2018 11:45 AM
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दक्षिण भारत के चार राज्य ऐसे हैं जिनके पास लोकसभा की 109 सीटें हैं और वो केंद्र में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. और ये चार राज्य हैं - तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना.

राजनीतिक दृष्टि से साल 2019 भारत के लिए अहम होने वाला है. अहम इसलिए क्योंकि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पहली बार 2014 के लोकसभा चुनावों में दो तिहाई से ज़्यादा सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. लेकिन इस बार भाजपा को मात देने के लिए सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में लगा है. अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियां महागठबंधन बनाने की जुगात में हैं ताकि केंद्र में भाजपा को दोबारा आने से रोका जा सके. वहीं भाजपा भी कुछ नए क्षेत्रीय सहयोगियों की तलाश में है ताकि 2019 में सत्ता बरकरार रहे.

लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा की सीटें 2019 में कम हो सकती हैं वहीं महागठबंधन भी सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या को न छू पाए. ऐसे में दक्षिण भारत के चार राज्य ऐसे हैं जिनके पास लोकसभा की 109 सीटें हैं और वो केंद्र में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. और ये चार राज्य हैं - तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना.

अब हम बारी- बारी से चर्चा करते हैं उन चार राज्यों की जो 2019 में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं ख़ास तौर पर जब किसी भी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें न मिलें.

2019 लोकसभा चुनाव में ये चार दक्षिण राज्य बहुत जरूरी साबित होंगेतमिलनाडु: लोकसभा की सीटों के लिहाज़ से देश में पांचवां तथा दक्षिण भारत में पहला स्थान रखने वाले तमिलनाडु के पास 39 सीटें हैं. यहां 2014 के लोकसभा चुनावों में AIADMK ने 37 सीटें जीती थीं. हालांकि, भाजपा भी यहां लगातार इस कोशिश में है कि इसका साथ आने वाले लोकसभा के चुनाव में या इसके बाद उतपन्न स्थिति में मिल सके. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी AIADMK के साथ ही साथ DMK के साथ भी रिश्ते बनाकर रखे हुए हैं. तभी तो प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन...

राजनीतिक दृष्टि से साल 2019 भारत के लिए अहम होने वाला है. अहम इसलिए क्योंकि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पहली बार 2014 के लोकसभा चुनावों में दो तिहाई से ज़्यादा सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. लेकिन इस बार भाजपा को मात देने के लिए सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में लगा है. अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियां महागठबंधन बनाने की जुगात में हैं ताकि केंद्र में भाजपा को दोबारा आने से रोका जा सके. वहीं भाजपा भी कुछ नए क्षेत्रीय सहयोगियों की तलाश में है ताकि 2019 में सत्ता बरकरार रहे.

लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा की सीटें 2019 में कम हो सकती हैं वहीं महागठबंधन भी सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या को न छू पाए. ऐसे में दक्षिण भारत के चार राज्य ऐसे हैं जिनके पास लोकसभा की 109 सीटें हैं और वो केंद्र में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. और ये चार राज्य हैं - तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना.

अब हम बारी- बारी से चर्चा करते हैं उन चार राज्यों की जो 2019 में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं ख़ास तौर पर जब किसी भी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें न मिलें.

2019 लोकसभा चुनाव में ये चार दक्षिण राज्य बहुत जरूरी साबित होंगेतमिलनाडु: लोकसभा की सीटों के लिहाज़ से देश में पांचवां तथा दक्षिण भारत में पहला स्थान रखने वाले तमिलनाडु के पास 39 सीटें हैं. यहां 2014 के लोकसभा चुनावों में AIADMK ने 37 सीटें जीती थीं. हालांकि, भाजपा भी यहां लगातार इस कोशिश में है कि इसका साथ आने वाले लोकसभा के चुनाव में या इसके बाद उतपन्न स्थिति में मिल सके. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी AIADMK के साथ ही साथ DMK के साथ भी रिश्ते बनाकर रखे हुए हैं. तभी तो प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन पर तथा करुणानिधि जब अस्पताल में भर्ती थे तब प्रधानमंत्री मोदी वहां पहुंचे थे.

आंध्र प्रदेश: यहां लोकसभा की 25 सीटें हैं. हाल ही में भाजपा गठबंधन से अलग हुई तेलगु दशम पार्टी इस राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है. अब यह पार्टी कांग्रेस से गठबंधन करने के मूड में है लेकिन पार्टी के कुछ नेता इस गठबंधन के खिलाफ हैं. यहां की मुख्य विपक्षी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है और इसका रुझान भाजपा की तरफ हो सकता है क्योंकि इसके नेता जगनमोहन रेड्डी बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस आंध्र प्रदेश में किसी तरह अपनी ताक़त बढ़ाए.

कर्नाटक: कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं. इस राज्य में जेडीएस - कांग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी के गठबंधन सरकार चल रही है. वैसे तो यह गठबंधन लोकसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ने की घोषणा कर चुका है, लेकिन यहां के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया नाराज़ चल रहे हैं ऐसे में यह गठबंधन भगवान भरोसे ही चल रहा है. ऐसे में भाजपा को फायदा होना तय माना जा रहा है.

तेलंगाना: अब चर्चा ऐसे नए प्रदेश की जहां लोकसभा की 17 सीटें हैं तथा मुख्यमंत्री टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव विधानसभा भंग कर चुके हैं क्योंकि लोकसभा के साथ राज्य विधानसभा चुनाव नहीं चाहते थे. हालांकि, के. चंद्रशेखर राव को भाजपा का करीबी माना जाता है लेकिन हाल में ही टीआरएस को 'सेक्युलर' पार्टी बताते हुए उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन से साफ़ इंकार किया था. ऐसे में यहां भी पिक्चर साफ़ नहीं है.

इस तरह न तो कांग्रेस और न ही भाजपा इनमें से किसी भी राज्य में प्रमुख ताकत है और ये दोनों पार्टियां ऐसे में दक्षिण भारत में इन क्षेत्रीय दलों को अपने पक्ष में लाने की पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं ताकि समय और ज़रूरत के हिसाब से केंद्र की सत्ता में आने में इनका भरपूर फायदा उठाया जा सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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