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भाजपा और टीआरएस के बीच क्या खिचड़ी पक रही है?

    • आईचौक
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2018 04:35 PM
  • 08 सितम्बर, 2018 11:48 AM
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विधानसभा को भंग करने से पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करना और उसके बाद राहुल गांधी को निशाने पर लेना कोई आम संकेत नहीं है. चंद्रबाबू नायडू का विकल्प भाजपा ने खोज लिया है और दोनों नेताओं की मुलाकात इसका जीवंत प्रमाण है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने विधानसभा को भंग करने के साथ ही राहुल गांधी को देश का सबसे मसखरा नेता घोषित कर दिया है. विधानसभा को भंग करने से पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करना और उसके बाद राहुल गांधी को निशाने पर लेना कोई आम संकेत नहीं है. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ के जाने के बाद से ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दक्षिण भारत की राजनीति में ख़ास दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था. तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में अभी 9 महीने का वक़्त बाकी था लेकिन चुनाव की इतनी जल्दबाजी चंद्रशेखर राव और टीआरएस के आत्मविश्वास को दर्शाने के लिए काफी है. तेलंगाना में चुनाव चार अन्य राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में होने वाले चुनावों के साथ कराए जा सकते हैं. राज्य की राजनीति में कमजोर विपक्ष का फायदा टीआरएस को हो सकता है क्योंकि कांग्रेस तेलंगाना की राजनीति में फिलहाल ढलान पर है.

नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद राहुल गांधी पर निशाना साधने के राजनीतिक मायने क्या हो सकते हैं.

बार-बार दिल्ली दरबार आ रहे हैं चंद्रशेखर राव

चंद्रशेखर राव ने जुलाई और अगस्त महीने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तीन बार मुलाकात की. राव का पिछला दिल्ली दौरा विशेष तौर पर महत्वपूर्ण था. दरअसल चंद्रशेखर राव की इस दिल्ली यात्रा से पहले उनके एक वरिष्ठ सलाहकार जल्द चुनावों की संभावना को तलाशने के मकसद से पहले ही चुनाव आयोग से मुलाकात कर चुके थे. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ के जाने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी ने चंद्रशेखर राव को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया और तेलुगु राजनीति में हुए खालीपन को भरना उनकी प्राथमिकताओं में शुमार हो गया था.

आत्मविश्वास या नरेंद्र मोदी का डर

तेलंगाना सरकार ने कई लोकलुभावन योजनाओं की शुरुआत की है....

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने विधानसभा को भंग करने के साथ ही राहुल गांधी को देश का सबसे मसखरा नेता घोषित कर दिया है. विधानसभा को भंग करने से पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करना और उसके बाद राहुल गांधी को निशाने पर लेना कोई आम संकेत नहीं है. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ के जाने के बाद से ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दक्षिण भारत की राजनीति में ख़ास दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था. तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में अभी 9 महीने का वक़्त बाकी था लेकिन चुनाव की इतनी जल्दबाजी चंद्रशेखर राव और टीआरएस के आत्मविश्वास को दर्शाने के लिए काफी है. तेलंगाना में चुनाव चार अन्य राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में होने वाले चुनावों के साथ कराए जा सकते हैं. राज्य की राजनीति में कमजोर विपक्ष का फायदा टीआरएस को हो सकता है क्योंकि कांग्रेस तेलंगाना की राजनीति में फिलहाल ढलान पर है.

नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद राहुल गांधी पर निशाना साधने के राजनीतिक मायने क्या हो सकते हैं.

बार-बार दिल्ली दरबार आ रहे हैं चंद्रशेखर राव

चंद्रशेखर राव ने जुलाई और अगस्त महीने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तीन बार मुलाकात की. राव का पिछला दिल्ली दौरा विशेष तौर पर महत्वपूर्ण था. दरअसल चंद्रशेखर राव की इस दिल्ली यात्रा से पहले उनके एक वरिष्ठ सलाहकार जल्द चुनावों की संभावना को तलाशने के मकसद से पहले ही चुनाव आयोग से मुलाकात कर चुके थे. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ के जाने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी ने चंद्रशेखर राव को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया और तेलुगु राजनीति में हुए खालीपन को भरना उनकी प्राथमिकताओं में शुमार हो गया था.

आत्मविश्वास या नरेंद्र मोदी का डर

तेलंगाना सरकार ने कई लोकलुभावन योजनाओं की शुरुआत की है. 'रैयती बंधू योजना' की तारीफ मोदी सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम भी कर चुके हैं. राज्य के किसानों को इस योजना से बहुत लाभ मिला है जिसके कारण राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. जनकल्याण योजनाओं के कारण मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है. लेकिन इसका असर राज्य के बैलेंस शीट पर दिखने लगा है और एक छोटे से राज्य का राजकोषीय घाटा बढ़कर 1 लाख 80 हजार करोड़ को पार कर गया है. समय से पहले चुनाव का एक पहलू और है जो अलग ही कहानी बयां कर रहा है.

दरअसल राज्य में चुनाव अगले साल मई महीने में होना था और लोकसभा चुनाव भी उसी के आसपास होने वाला है. अगर राज्य विधानसभा के चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ होते तो इसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा को मिलता क्योंकि लोकसभा चुनाव के शोर में स्थानीय मुद्दे पूरी तरह दब जाते और चंद्रशेखर राव को इसका प्रत्यक्ष नुकसान उठाना पड़ता. नरेंद्र मोदी की छवि के आगे स्थानीय मुद्दे हवा हो जाते और इसी डर के कारण टीआरएस ने विधानसभा को पहले ही भंग कर दिया ताकि भाजपा को राज्य की राजनीति में पांव जमाने का मौका नहीं मिल सके.

भाजपा के लिए कठिन है डगर पनघट की 

साल 2014 के मोदी लहर में बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में पांच सीटें और तेलंगाना में 8 सीटों पर चुनाव लड़ा. हालांकि उसके खाते में आंध्र में दो और तेलंगाना में एक ही सीट आ पाई. विधानसभा में आंध्र में बीजेपी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़कर चार सीटें जीतीं, तेलंगाना में 47 विधानसभा सीटों पर लड़कर पांच सीट में जीत हासिल हुई. बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में बिना किसी सहयोगी दल के कभी भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. बीजेपी के महासचिव राम माधव ने 2019 में तेलंगाना जीतने के दावे के साथ कार्यकर्ताओं में लगातार उत्साह भर रहे थे लेकिन समय से पहले विधानसभा चुनाव के कारण भाजपा राज्य में बड़े भाई की भूमिका निभाने से चूक गई है.

वाईएसआर कांग्रेस और भाजपा के प्रतिद्वंदी कॉमन हैं

जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने हाल ही में दावा किया था कि भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान जगनमोहन रेड्डी से संपर्क साधा था और लोकसभा चुनाव के बाद बहुमत नहीं मिलने कि स्थिति में सहयोग की अपेक्षा की थी. भाजपा को ये मालूम है कि वो लाख कोशिश कर ले लेकिन राज्य की सत्ता में उसकी हिस्सेदारी न के बराबर होगी. पार्टी ये भरसक कोशिश करेगी की उसे दक्षिण भारत से लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिल सके क्योंकि उत्तर भारत में विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ने भाजपा नेतृत्व के होश पहले ही उड़ा रखे हैं. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ के जाने के बाद भाजपा और वाईएसआर कांग्रेस में नजदीकियां बढ़नी शुरू हो गई थी. राज्य में वैसे भी भाजपा और वाईएसआर कांग्रेस के कॉमन प्रतिद्वंदी चंद्रबाबू नायडू ही हैं इसलिए अमित शाह और जगनमोहन रेड्डी के चुनावी संकल्प साझा होने के पूरे आसार हैं.

चंद्रबाबू नायडू का विकल्प जगनमोहन रेड्डी भी हो सकते हैं.

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा दक्षिण भारत को लेकर आश्वस्त होना चाहती है. चंद्रबाबू नायडू के जाने की भरपाई अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने करना शुरू कर दिया है, ऐसे भी राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन और दोस्त नहीं होता है. चंद्रशेखर राव हों या जगनमोहन रेड्डी भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी के लिए दक्षिण के इन राजनीतिक प्यादों को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी. चुनाव नजदीक है इसलिए अभी और नए समीकरण बन सकते हैं और बिगड़ भी सकते हैं.

कंटेंट - विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक) 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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