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Eknath Shinde को सीएम पद देकर भाजपा ने क्या पाया, जानिए...

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 30 जून, 2022 07:41 PM
  • 30 जून, 2022 07:41 PM
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शिवसेना (Shiv Sena) के बागी विधायकों का नेतृत्व करने वाले एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री (Maharshtra CM) होंगे. लेकिन, पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने जिस मुस्कुराहट के साथ शिंदे के नाम का ऐलान किया है. उसने महाराष्ट्र में भाजपा (BJP) के एक बड़े गेम प्लान की ओर इशारा किया है.

उद्धव ठाकरे के सीएम पद से इस्तीफा देने के साथ महाराष्ट्र में जारी सियासी उथल-पुथल खत्म हुई. जिसके अगले दिन महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) जब एकनाथ शिंदे के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए. तो, उनकी चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ एक अजीब सा संतोष झलक रहा था. देवेंद्र फडणवीस ने फिर से दोहराया कि महाविकास आघाड़ी सरकार अपने ही अंर्तविरोध से गिरी है. और, इसके बाद फडणवीस ने शिवसेना के दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर दिया. देवेंद्र फडणवीस की ये घोषणा सियासी विश्लेषकों को हैरान करने वाली थी.

एक पूर्व सीएम जिसे भाजपा ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया हो. एक ऐसा पूर्व सीएम जिसके पास 120 विधायकों का समर्थन हो. वह अपनी कुर्सी को एक शिवसैनिक के लिए छोड़ रहा था. फैसला हैरानी भर था. क्योंकि, शिवसेना ने भाजपा से इसी सीएम पद की वजह से अपना नाता तोड़ा था. और, अब भाजपा ने शिवसेना के ही बागी विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है. खैर, एकनाथ शिंदे अब महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर एकनाथ शिंदे को सीएम पद देकर भाजपा ने क्या पाया?

देवेंद्र फडणवीस ने मुस्कुराहट के साथ सीएम पद छोड़ा है. लेकिन, इसके बहुत से मायने हैं.

भाजपा को होंगे ये फायदे

- बीएमसी में बढ़त : मुंबई भाजपा ने एक ट्वीट किया है कि 'यह तो झांकी है, मुंबई महापालिका बाकी है.' दरअसल, लंबे समय से बीएमसी यानी बृहन्मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना का एकछत्र कब्जा रहा है. और, भाजपा ने एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर अब अपना अगला निशाना साफ कर दिया है. देखा जाए, तो भाजपा ने शिंदे के सहारे बीएमसी में शिवसेना...

उद्धव ठाकरे के सीएम पद से इस्तीफा देने के साथ महाराष्ट्र में जारी सियासी उथल-पुथल खत्म हुई. जिसके अगले दिन महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) जब एकनाथ शिंदे के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए. तो, उनकी चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ एक अजीब सा संतोष झलक रहा था. देवेंद्र फडणवीस ने फिर से दोहराया कि महाविकास आघाड़ी सरकार अपने ही अंर्तविरोध से गिरी है. और, इसके बाद फडणवीस ने शिवसेना के दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर दिया. देवेंद्र फडणवीस की ये घोषणा सियासी विश्लेषकों को हैरान करने वाली थी.

एक पूर्व सीएम जिसे भाजपा ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया हो. एक ऐसा पूर्व सीएम जिसके पास 120 विधायकों का समर्थन हो. वह अपनी कुर्सी को एक शिवसैनिक के लिए छोड़ रहा था. फैसला हैरानी भर था. क्योंकि, शिवसेना ने भाजपा से इसी सीएम पद की वजह से अपना नाता तोड़ा था. और, अब भाजपा ने शिवसेना के ही बागी विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है. खैर, एकनाथ शिंदे अब महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर एकनाथ शिंदे को सीएम पद देकर भाजपा ने क्या पाया?

देवेंद्र फडणवीस ने मुस्कुराहट के साथ सीएम पद छोड़ा है. लेकिन, इसके बहुत से मायने हैं.

भाजपा को होंगे ये फायदे

- बीएमसी में बढ़त : मुंबई भाजपा ने एक ट्वीट किया है कि 'यह तो झांकी है, मुंबई महापालिका बाकी है.' दरअसल, लंबे समय से बीएमसी यानी बृहन्मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना का एकछत्र कब्जा रहा है. और, भाजपा ने एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर अब अपना अगला निशाना साफ कर दिया है. देखा जाए, तो भाजपा ने शिंदे के सहारे बीएमसी में शिवसेना के दशकों से चले आ रहे आधिपत्य को चुनौती दी है. क्योंकि, भाजपा तकरीबन हर राज्य के चुनावी प्रचार में 'डबल इंजन' की बात करती है. तो. बीएमसी चुनाव में इस बार भाजपा के पास 'ट्रिपल इंजन' के प्रचार का मौका रहेगा. 

- उद्धव को मिली सहानुभूति हुई शून्य : शिवसेना प्रमुख और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा देने से पहले फेसबुक लाइव के जरिये अपने लिए सहानुभूति बटोरनी की हरसंभव कोशिश की. आखिरी कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित करना इसी का एक हिस्सा था. ताकि, शिवसेना के मतदाताओं को पार्टी के साथ विचारधारा से समझौता न करने के नाम पर बनाया रखा जा सके. लेकिन, देवेंद्र फडणवीस के एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने के ऐलान के साथ ही उद्धव ठाकरे के लिए पैदा हुई सहानुभूति शून्य हो गई. क्योंकि, खुद उद्धव ठाकरे ने भी भाजपा से शिवसेना की राह अलग होने का कारण सीएम पद को बताया था. लेकिन, भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर विचारों के उस बुलबुले को ही फोड़ दिया.

- एकनाथ शिंदे का कद बढ़ाकर शिवसेना में फूट को और प्रबल कर दिया : एकनाथ शिंदे का सीएम बनना हैरानी वाला फैसला है. लेकिन, उससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये थी कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी हुए विधायकों की वापस लाने की कोई भी अपील और दांव काम नहीं आया. उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा देने के साथ ही विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दिया है. तो, माना जा सकता है कि उद्धव ठाकरे ने बगावत के आगे पूरी तरह से घुटने टेक दिए हैं. वहीं, भाजपा ने एकनाथ शिंदे का कद बढ़ाकर शिवसेना में पड़ी फूट को और बड़ा स्तर देने का दांव खेला है. क्योंकि, शिंदे गुट के बागी होने के बाद कई शिवसेना सांसद भी बागी विधायकों के पक्ष में आ गए थे. इन सांसदों ने उद्धव ठाकरे से भाजपा के साथ गठबंधन में लौटने की अपील की थी. लेकिन, शिवसेना प्रमुख अपने बेटे आदित्य ठाकरे के लिए सीएम पद की राह बनाने के चक्कर में सबकुछ गंवा बैठे.

- हिंदुत्व की कीमत पर सत्ता नहीं : उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन दिलाकर महाविकास आघाड़ी सरकार बना ली थी. लेकिन, इसके चलते उद्धव ठाकरे को हिंदुत्व समेत तमाम उन मुद्दों को साइडलाइन करना पड़ा था. जो शिवसेना के एजेंडे का अहम हिस्सा रहे थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व को खूंटी पर टांगकर सत्ता को चुना था. देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा कि शिवसेना ने बालासाहेब ठाकरे के विचारों को किनारे रखते हुए महाविकास आघाड़ी सरकार बनाने के फैसला किया था. लेकिन, भाजपा ने शिवसेना में हिंदुत्व के नाम पर बागी होने वाले एकनाथ शिंदे गुट को समर्थन देकर ये संदेश देने में कामयाबी पाई है कि पार्टी हिंदुत्व की कीमत पर सत्ता पाने की कोशिश नहीं करती है. बल्कि, हिंदुत्व का समर्थन करने वालों को उचित सम्मान भी देती है. फडणवीस का खुद को सरकार से बाहर रखना संदेश है कि देवेंद्र अब महाराष्ट्र के नए चाणक्य हैं.

- राजनीतिक पंडितों की आलोचना से बची भाजपा : एकनाथ शिंदे की बगावत को राजनीतिक पंडितों ने भाजपा का 'ऑपरेशन लोटस' करार दिया था. कहा जा रहा था कि सत्ता में आने के लिए भाजपा ने एकनाथ शिंदे गुट की बगावत को पर्दे के पीछे से हवा दी है. लेकिन, एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर भाजपा उन तमाम आलोचनाओं और तोहमतों से खुद को बचा ले गई, जो उस पर 'ऑपरेशन लोटस' के नाम पर लगाई जा सकती थीं. इतना ही नहीं, तकनीकी तौर पर देखा जाए, तो भाजपा को अभी भी शिवसेना का ही समर्थन प्राप्त है. क्योंकि, सारे बागी विधायक अभी भी शिवसेना का ही हिस्सा हैं. जिन्होंने एनसीपी और कांग्रेस जैसी विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों के खिलाफ बगावत की.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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