नागालैंड विधानसभा चुनाव से पहले, पूर्वोत्तर राज्यों में बैपटिस्ट चर्च की सर्वोच्च संस्था, नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) ने अपना विशेष घोषणा पत्र जारी किया है. घोषणा पत्र मतदाताओं से आग्रह करता है कि 'मैं ईसाई पहले हूं, बाद में एक मतदाता हूं. नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल ने ईसाई धर्म में विश्वास रखने वालों से आग्रह किया है कि पैसे और विकास के ख़ातिर ईसाई सिद्धांतों का आत्म-समर्पण उन लोगों के आगे न करें जो "यीशु मसीह के हृदय को भेदना चाहते हैं. एनबीसीसी ने ईसाई धर्म में विश्वास रखने वालों से त्रिशूल और क्रॉस के बीच में किसी एक में चुनाव करने का आवाहन किया है.
नागालैंड में साफ-साफ चर्च ईसाई समुदाय को भाजपा के विरुद्ध वोट करने के लिए प्रेरित कर रहा है. समाज में धर्म का अपना महत्व व सम्मान है लेकिन जब धर्म का प्रयोग चुनावी प्रक्रिया में किया जाता है तो लोकतंत्र और देश की धर्मनिरपेक्षता कमज़ोर हो जाती है. भाजपा को एनबीसीसी के वक्तव्यों की निंदा करनी चाहिए थी. परंतु इसके बजाए उसने इस विषय पर चुप्पी साध ली है.
गुजरात विधान सभा चुनावों के समय अहमदाबाद के एक पादरी ने ईसाई समुदाय से 'राष्ट्रवादी शक्तियों' को हराने के लिए आह्वान किया था. उस समय तो भाजपा ने अहमदाबाद के उस पादरी की सांप्रदायिक सोच की भर्त्सना की थी पर नागालैंड में भाजपा का रुख़ नर्म नज़र आता है. गुजरात में जो भाजपा बब्बर शेर थी, वह नागालैंड में भीगी बिल्ली बन गई है.
इतना ही नहीं भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चर्च के सामने नतमस्तक होते नजर आ रहे हैं. एक तरफ़ भाजपा प्रत्येक वर्ष नागालैंड के 50 वरिष्ठ नागरिकों को यरुशलम की मुफ़्त यात्रा कराने का लालच दे रहा है तो दूसरी ओर कांग्रेस...
नागालैंड विधानसभा चुनाव से पहले, पूर्वोत्तर राज्यों में बैपटिस्ट चर्च की सर्वोच्च संस्था, नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) ने अपना विशेष घोषणा पत्र जारी किया है. घोषणा पत्र मतदाताओं से आग्रह करता है कि 'मैं ईसाई पहले हूं, बाद में एक मतदाता हूं. नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल ने ईसाई धर्म में विश्वास रखने वालों से आग्रह किया है कि पैसे और विकास के ख़ातिर ईसाई सिद्धांतों का आत्म-समर्पण उन लोगों के आगे न करें जो "यीशु मसीह के हृदय को भेदना चाहते हैं. एनबीसीसी ने ईसाई धर्म में विश्वास रखने वालों से त्रिशूल और क्रॉस के बीच में किसी एक में चुनाव करने का आवाहन किया है.
नागालैंड में साफ-साफ चर्च ईसाई समुदाय को भाजपा के विरुद्ध वोट करने के लिए प्रेरित कर रहा है. समाज में धर्म का अपना महत्व व सम्मान है लेकिन जब धर्म का प्रयोग चुनावी प्रक्रिया में किया जाता है तो लोकतंत्र और देश की धर्मनिरपेक्षता कमज़ोर हो जाती है. भाजपा को एनबीसीसी के वक्तव्यों की निंदा करनी चाहिए थी. परंतु इसके बजाए उसने इस विषय पर चुप्पी साध ली है.
गुजरात विधान सभा चुनावों के समय अहमदाबाद के एक पादरी ने ईसाई समुदाय से 'राष्ट्रवादी शक्तियों' को हराने के लिए आह्वान किया था. उस समय तो भाजपा ने अहमदाबाद के उस पादरी की सांप्रदायिक सोच की भर्त्सना की थी पर नागालैंड में भाजपा का रुख़ नर्म नज़र आता है. गुजरात में जो भाजपा बब्बर शेर थी, वह नागालैंड में भीगी बिल्ली बन गई है.
इतना ही नहीं भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चर्च के सामने नतमस्तक होते नजर आ रहे हैं. एक तरफ़ भाजपा प्रत्येक वर्ष नागालैंड के 50 वरिष्ठ नागरिकों को यरुशलम की मुफ़्त यात्रा कराने का लालच दे रहा है तो दूसरी ओर कांग्रेस अल्पसंख्यक (ईसाई समुदाय) समाज के लोगों को यरुशलम यात्रा पर सब्सिडी देनी की बात कह रहा है. अभी कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को ख़त्म कर दिया था. उस समय केंद्र सरकार धर्म आधारित तुष्टिकरण का हवाला देकर, अपने कदम की सराहना कर रही थी. नागालैंड चुनाव के चलते भाजपा उन सारे तर्कों और आदर्शों को भूल गई है.
नागालैंड की 96% आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है. इसी सच्चाई के कारण भाजपा चर्च का विरोध करने में असमर्थ है. यही कारण है कि भाजपा उत्तर पूर्व के राज्यों में गौ हत्या पर रोक लगाने में इच्छुक नहीं है. यह घटनाएं साफ दर्शाती हैं कि राजनीतिक दल - धर्म और राजनीति को अच्छी तरह इस्तेमाल करना जानते हैं. जैसी परिस्थित होती है राजनीतिक दल उसी तरह अपने आदर्शों को बदल लेते हैं. अतः आम जनता को राजनीतिक दलों के दोहरे मापदंडों पर विवेचन कर ही अपने मत अधिकार का प्रयोग करना चाहिए.
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