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मंदिरों को नुकसान पहुंचाने वाले हमेशा 'मानसिक बीमार' क्यों घोषित हो जाते हैं?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 01 अक्टूबर, 2022 05:58 PM
  • 01 अक्टूबर, 2022 05:58 PM
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इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हमारे देश में अगर किसी मस्जिद (Mosque) के बाहर से या किसी मुस्लिम इलाके (Muslim) से रामनवमी या कोई अन्य हिंदू (Hindu) यात्रा निकल जाए और कुछ देर के लिए वहां रुक जाए. तो, इसे हिंदुओं द्वारा भड़काने वाला कृत्य घोषित कर दिया जाता है. लेकिन, मंदिरों (Temple) में जबरन घुसकर मूर्तियां (Idol) तोड़ने वाले केवल मानसिक बीमार (Mentally ill) बता दिए जाते हैं.

बीते दिनों देश में दो छोटी-छोटी घटनाएं हुईं. पहली तेलंगाना में जहां पर बुर्का पहने दो मुस्लिम महिलाओं ने मंदिर और चर्च की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. वहीं, दूसरी घटना झारखंड में सामने आई, जहां रमीज अहमद नाम के एक मुस्लिम शख्स ने मंदिर का ताला तोड़कर हनुमान जी की मूर्ति को खंडित कर दिया. इन दोनों मामलों में वैसे तो कोई समानता नहीं है. लेकिन, पुलिस जांच के बाद इनमें समानता निकल आई है. और, वो ये है कि मंदिरों की मूर्तियों के नुकसान पहुंचाने वाले ये तमाम लोग 'मानसिक रूप से बीमार' थे. इसी साल अप्रैल में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था. गोरखनाथ मंदिर में 'अल्लाह-हू-अकबर' के नारे लगाकर धारदार हथियार से पुलिस वालों पर हमला करने वाले अहमद मुर्तजा अब्बासी को भी उसके पिता ने मानसिक रोगी ही बताया था. और, कुछ ही दिनों में अखिलेश यादव ने भी एटीएस की सारी जांच को किनारे रखते हुए अहमद मुर्तजा को मानसिक बीमार बता दिया था. तो, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि मंदिरों को नुकसान पहुंचाने वाले हमेशा 'मानसिक बीमार' क्यों घोषित हो जाते हैं?

अगर कोई मानसिक विक्षिप्त हिंदू भी ये हरकत कर दे, तो देश में बवाल मच जाता है.

आमतौर पर इस तरह की घटनाएं सामने आने के बाद घर-परिवार से लेकर सियासी दलों में भी इन हमलावरों को मानसिक रोगी साबित करने की होड़ मच जाती है. जबकि, इन लोगों को मूर्तियां तोड़ने के लिए किसने और क्यों भड़काया, इसकी जांच की ही नहीं जाती है. इससे इतर उनके मानसिक रोगी साबित होने के बाद उन्हें कुछ समय के लिए मेंटल असाइलम भेज दिया जाता है. और, वहां से वापस आने के बाद उन्हें फिर से ऐसी ही किसी घटना को अंजाम देने के लिए खुली छूट मिल जाती है. क्योंकि, वह सर्टिफाइड रूप से मानसिक बीमार साबित हो...

बीते दिनों देश में दो छोटी-छोटी घटनाएं हुईं. पहली तेलंगाना में जहां पर बुर्का पहने दो मुस्लिम महिलाओं ने मंदिर और चर्च की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. वहीं, दूसरी घटना झारखंड में सामने आई, जहां रमीज अहमद नाम के एक मुस्लिम शख्स ने मंदिर का ताला तोड़कर हनुमान जी की मूर्ति को खंडित कर दिया. इन दोनों मामलों में वैसे तो कोई समानता नहीं है. लेकिन, पुलिस जांच के बाद इनमें समानता निकल आई है. और, वो ये है कि मंदिरों की मूर्तियों के नुकसान पहुंचाने वाले ये तमाम लोग 'मानसिक रूप से बीमार' थे. इसी साल अप्रैल में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था. गोरखनाथ मंदिर में 'अल्लाह-हू-अकबर' के नारे लगाकर धारदार हथियार से पुलिस वालों पर हमला करने वाले अहमद मुर्तजा अब्बासी को भी उसके पिता ने मानसिक रोगी ही बताया था. और, कुछ ही दिनों में अखिलेश यादव ने भी एटीएस की सारी जांच को किनारे रखते हुए अहमद मुर्तजा को मानसिक बीमार बता दिया था. तो, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि मंदिरों को नुकसान पहुंचाने वाले हमेशा 'मानसिक बीमार' क्यों घोषित हो जाते हैं?

अगर कोई मानसिक विक्षिप्त हिंदू भी ये हरकत कर दे, तो देश में बवाल मच जाता है.

आमतौर पर इस तरह की घटनाएं सामने आने के बाद घर-परिवार से लेकर सियासी दलों में भी इन हमलावरों को मानसिक रोगी साबित करने की होड़ मच जाती है. जबकि, इन लोगों को मूर्तियां तोड़ने के लिए किसने और क्यों भड़काया, इसकी जांच की ही नहीं जाती है. इससे इतर उनके मानसिक रोगी साबित होने के बाद उन्हें कुछ समय के लिए मेंटल असाइलम भेज दिया जाता है. और, वहां से वापस आने के बाद उन्हें फिर से ऐसी ही किसी घटना को अंजाम देने के लिए खुली छूट मिल जाती है. क्योंकि, वह सर्टिफाइड रूप से मानसिक बीमार साबित हो चुके हैं. और, रोगियों की तबीयत तो कभी भी बिगड़ सकती है. जिस पर आप उंगुली भी नहीं उठा सकते.

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हमारे देश में अगर किसी मस्जिद के बाहर से या किसी मुस्लिम इलाके से रामनवमी या कोई अन्य हिंदू यात्रा निकल जाए और कुछ देर के लिए वहां रुक जाए. तो, इसे हिंदुओं द्वारा भड़काने वाला कृत्य घोषित कर दिया जाता है. लेकिन, मंदिरों में जबरन घुसकर मूर्तियां तोड़ने वाले केवल मानसिक बीमार बता दिए जाते हैं. इसे भड़काऊ कृत्य मानने तक से इनकार कर दिया जाता. वैसे, इस तरह की कार्रवाई सिर्फ विपक्ष शासित राज्यों में ही होती है. तेलंगाना और झारखंड में जहां मूर्तियों को खंडित करने वालों को मानसिक रोगी बताया गया है. वहीं, उत्तर प्रदेश में अहमद मुर्तजा अब्बासी को पुलिस ने जेल भेज दिया था. तो, बताने की जरूरत नहीं है कि नुकसान पहुंचाने वालों को मानसिक बीमार क्यों घोषित किया जाता है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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