गणतंत्र दिवस (Republic day 2021) को किसानों ने आंदोलन दिवस (Kisan Andolan) बनाकर रख दिया. गणतंत्र दिवस जैसे किसान आंदोलन (Farmers Tractor Rally) के पीछे ढक गया. साथ ही किसानों की जो दो महीने की मेहनत थी उस पर भी पानी फिर गया. जैसे किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई गई हो. किसानों ने कहा था कि हम शांति पूर्वक रैली निकालेंगे. हमारी समझ में ये नहीं आ रहा है कि ये सब हो क्या गया. होने वाला तो कुछ और था लेकिन जो हुआ वो हमने सोचा भी नहीं था.
हम सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का हिस्सा हैं जहां इतना बड़ा चुनाव करवाया जाता है. हमारे देश में इतनी बड़ी गवर्नमेंट का ट्रांजैक्शन होता है. एक सरकार के बाद दूसरी सरकार आती है. जहां कई छोटे देशों में हम देखते हैं कि सरकार बदलने के नाम पर रक्त-पात हो जाता है. वहीं हमारे देश को लोकतंत्र की खूबसूरती के रूप में जाना जाता है. आज का दिन हम राष्ट्रियपर्व के रूप में मनाते हैं. जहां हर बार परेड की ख़बरें आती हैं वहीं चारों तरफ झड़प की ख़बरें आ रही हैं. जो भारतीयों की भावना को आहत कर रही हैं.
दो महीने से शांति से प्रदर्शन करने वाले किसानों ने अचानक ऐसा क्यों किया, किसने उन्हें उकयासा, क्या सरकार ने किसानों से कहा कि आगे हम आपसे बात नहीं करेंगे, क्या दिल्ली पुलिस को ट्रैक्टर रैली को इजाज़त नहीं देनी चाहिए थी? आम लोगों के मन में ऐसे कई सवाल घूम रहे हैं, जिसका जवाब शायद हम सभी जानना चाहते हैं.
लाल किले में किसानों को धार्मिक ध्वज 'निशान साहिब' फहराने की जरूरत क्या थी? क्या किसान किसी एक प्रदेश के होते हैं या किसी एक धर्म-जाति के होते हैं? किसान तो पूरे देश सके कोने-कोने में बसा है. अगर ऐसा अतिउत्हास में हुआ वो भी वह...
गणतंत्र दिवस (Republic day 2021) को किसानों ने आंदोलन दिवस (Kisan Andolan) बनाकर रख दिया. गणतंत्र दिवस जैसे किसान आंदोलन (Farmers Tractor Rally) के पीछे ढक गया. साथ ही किसानों की जो दो महीने की मेहनत थी उस पर भी पानी फिर गया. जैसे किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई गई हो. किसानों ने कहा था कि हम शांति पूर्वक रैली निकालेंगे. हमारी समझ में ये नहीं आ रहा है कि ये सब हो क्या गया. होने वाला तो कुछ और था लेकिन जो हुआ वो हमने सोचा भी नहीं था.
हम सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का हिस्सा हैं जहां इतना बड़ा चुनाव करवाया जाता है. हमारे देश में इतनी बड़ी गवर्नमेंट का ट्रांजैक्शन होता है. एक सरकार के बाद दूसरी सरकार आती है. जहां कई छोटे देशों में हम देखते हैं कि सरकार बदलने के नाम पर रक्त-पात हो जाता है. वहीं हमारे देश को लोकतंत्र की खूबसूरती के रूप में जाना जाता है. आज का दिन हम राष्ट्रियपर्व के रूप में मनाते हैं. जहां हर बार परेड की ख़बरें आती हैं वहीं चारों तरफ झड़प की ख़बरें आ रही हैं. जो भारतीयों की भावना को आहत कर रही हैं.
दो महीने से शांति से प्रदर्शन करने वाले किसानों ने अचानक ऐसा क्यों किया, किसने उन्हें उकयासा, क्या सरकार ने किसानों से कहा कि आगे हम आपसे बात नहीं करेंगे, क्या दिल्ली पुलिस को ट्रैक्टर रैली को इजाज़त नहीं देनी चाहिए थी? आम लोगों के मन में ऐसे कई सवाल घूम रहे हैं, जिसका जवाब शायद हम सभी जानना चाहते हैं.
लाल किले में किसानों को धार्मिक ध्वज 'निशान साहिब' फहराने की जरूरत क्या थी? क्या किसान किसी एक प्रदेश के होते हैं या किसी एक धर्म-जाति के होते हैं? किसान तो पूरे देश सके कोने-कोने में बसा है. अगर ऐसा अतिउत्हास में हुआ वो भी वह तिंरगा झंडा हो सकता था. यह प्रदर्शन किसी संगठन मात्र का तो है नहीं फिर? इस जोश ने दो महीने के मेहनत पर पानी फेर दिया है. इससे बदनामी किसानों की ही होगी. कई किसानों ने इस प्रदर्शन के लिए अपनी जान भी गवां दी, वे होते तो आज ये तस्वीरें देखकर क्या सोचते?
एक किसान को क्या आंदोलन में हिंसा जैसी इन बातों से मतलब होता है. वह तो बस अपनी किसानी करता है और एक शांतिपूर्ण जीवन जीता है. कई लोगों का मानना है कि इन सबके पीछे किसी और का हाथ है.
वहीं कई लोग मानते हैं कि जब भी कोई प्रदर्शन होता है तो उसमें 10-12 ऐसे लोगों को घुसा दिया जाता है जो हिंसा फैलाते हैं. इस बीच कई निहंगों को प्रदर्शन के समय तलवार के साथ देखा गया. वहीं कई आंदोलनकारी मुंह पर कपड़ा बांधकर बेसुध होकर ट्रैक्टर दौड़ाते दिखे. इस बारे में किसान नेताओं का कहना है कि, हम शांती पूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे. हमें बवाल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
क्या जो तस्वीरें दिख रही हैं उसे सही ठहराया जा सकता है? किसान तो अनुशासित होता है फिर ये कौन लोग हैं जो ऐसी साजिश रच रहे हैं? ऐसे लोगों का किसान आंदोलन से कोई सरोकार नहीं हो सकता. किसान तय रूट से अलग ट्रैक्टर से बैरिकेड्स तोड़ते हुए लाल किले की ओर बढ़ चले. इस दौरान पत्थरबाजी की गई, तलवार भांजी गई. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले भी दागे. क्या ये प्रदर्शन तो या फिर किसी की साजिश?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.