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EVM परखने में दिलचस्‍पी कम, सवाल उठाने में फायदा ज्‍यादा है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 24 नवम्बर, 2017 09:37 PM
  • 24 नवम्बर, 2017 09:37 PM
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यूपी चुनाव के बाद कई नेताओं ने EVM में गड़बड़ी की आशंका जतायी थी. फिर चुनाव आयोग की EVM को हैक करने की चुनौती से सब भाग खड़े हुए. एक बार फिर सवाल उठे हैं और आयोग की भी साख दांव पर है.

EVM में गड़बड़ी की शिकायतें फिर सामने आयी हैं. ये शिकायतें यूपी में हो रहे निकाय चुनाव के दौरान जतायी गयी हैं. शिकायत भी वही पुरानी है - कोई भी बटन दबाओ, खिलता तो कमल का फूल ही है.

ये मामला ऐसे समय उठा है जब यूपी में निकायों के दो चरणों के चुनाव होने शेष हैं और उसके बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव की बारी है. हिमाचल प्रदेश और यूपी निकायों के पहले चरण के चुनाव हो चुके हैं.

शिकायतें आई हैं तो जांच तो होनी ही चाहिये. कांग्रेस को चुनाव आयोग की जांच से संतोष नहीं है. पार्टी चाहती है कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या रिटायर हो चुके जज से करायी जानी चाहिये.

फिर से EVM पर सवाल?

यूपी में निकाय चुनाव के दौरान EVM की गड़बड़ी को लेकर तीन घटनाएं बतायी जा रही हैं. इनमें से दो कानपुर से और एक मेरठ का वाकया है. दो घटनाओँ के बारे में कहा जा रहा है कि बटन दबाने पर वो बत्ती जली जहां कमल के फूल यानी बीजेपी का चुनावी निशान था. एक में बताया गया है कि कोई भी बटन दबाने पर बीजेपी और नोटा को वोट जा रहा था. लेकिन उसी मशीन में जब बीजेपी वाले निशान पर बटन दबाया गया तो किसी और की बत्ती नहीं जली.

कब तक उठेंगे सवाल?

इस बारे में चुनाव आयोग की ओर से बताया गया कि जहां भी EVM में गड़बड़ी की शिकायतें मिलीं, उन्हें बदल दिया गया. चुनाव आयोग अपने स्तर पर ऐसी घटनाओं की जांच रिपोर्ट भी मंगाता रहता है. हालांकि, कोई भी बटन दबाने पर बीजेपी को वोट जाने की बात को चुनाव आयोग ने कोरी अफवाह करार दिया है.

यूपी विधानसभा चुनाव में हार के बाद सबसे पहले EVM में गड़बड़ी की बात मायावती ने की थी. उसके बाद अखिलेश यादव ने मायावती का सपोर्ट करते हुए जांच की मांग की. बाद में आप नेता अरविंद केजरीवाल ने मामले को जोर शोर से उठाया. केजरीवाल...

EVM में गड़बड़ी की शिकायतें फिर सामने आयी हैं. ये शिकायतें यूपी में हो रहे निकाय चुनाव के दौरान जतायी गयी हैं. शिकायत भी वही पुरानी है - कोई भी बटन दबाओ, खिलता तो कमल का फूल ही है.

ये मामला ऐसे समय उठा है जब यूपी में निकायों के दो चरणों के चुनाव होने शेष हैं और उसके बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव की बारी है. हिमाचल प्रदेश और यूपी निकायों के पहले चरण के चुनाव हो चुके हैं.

शिकायतें आई हैं तो जांच तो होनी ही चाहिये. कांग्रेस को चुनाव आयोग की जांच से संतोष नहीं है. पार्टी चाहती है कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या रिटायर हो चुके जज से करायी जानी चाहिये.

फिर से EVM पर सवाल?

यूपी में निकाय चुनाव के दौरान EVM की गड़बड़ी को लेकर तीन घटनाएं बतायी जा रही हैं. इनमें से दो कानपुर से और एक मेरठ का वाकया है. दो घटनाओँ के बारे में कहा जा रहा है कि बटन दबाने पर वो बत्ती जली जहां कमल के फूल यानी बीजेपी का चुनावी निशान था. एक में बताया गया है कि कोई भी बटन दबाने पर बीजेपी और नोटा को वोट जा रहा था. लेकिन उसी मशीन में जब बीजेपी वाले निशान पर बटन दबाया गया तो किसी और की बत्ती नहीं जली.

कब तक उठेंगे सवाल?

इस बारे में चुनाव आयोग की ओर से बताया गया कि जहां भी EVM में गड़बड़ी की शिकायतें मिलीं, उन्हें बदल दिया गया. चुनाव आयोग अपने स्तर पर ऐसी घटनाओं की जांच रिपोर्ट भी मंगाता रहता है. हालांकि, कोई भी बटन दबाने पर बीजेपी को वोट जाने की बात को चुनाव आयोग ने कोरी अफवाह करार दिया है.

यूपी विधानसभा चुनाव में हार के बाद सबसे पहले EVM में गड़बड़ी की बात मायावती ने की थी. उसके बाद अखिलेश यादव ने मायावती का सपोर्ट करते हुए जांच की मांग की. बाद में आप नेता अरविंद केजरीवाल ने मामले को जोर शोर से उठाया. केजरीवाल ने महाराष्ट्र और पंजाब से दो उदाहरण भी दिये जिसमें से एक की जांच हुई तो उनका दावा गलत निकला.

धीरे धीरे EVM पर कुछ और दलों ने भी शक जताना शुरू किया और उसमें कांग्रेस भी शामिल हो गयी. कांग्रेस नेता विपक्ष के नेताओं को लेकर आयोग भी पहुंचे जहां उनकी आरोपों को खारिज कर दिया गया. बवाल ज्यादा हुआ तो चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को मशीन हैक करने की चुनौती भी दी.

जब फेल हुईं राजनीतिक पार्टियां

चुनाव आयोग की चुनौती में जाने से पहले ही एक दिन आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने विधानसभा में एक मशीन हैक कर दिखाया. जब चुनाव आयोग ने इसके लिए 3 जून, 2017 की तारीख तय की तो ये कह कर बहिष्कार कर दिया कि वो अलग से अपना हैकॉथन आयोजित करेंगे. तय वक्त पर आयोग का ईवीएम चैलेंज शुरू हुआ तो हिस्सा लेने सिर्फ दो दलों के प्रतिनिधि पहुंचे - एनसीपी और सीपीएम के. राजनीतिक दलों की ओर से अपने प्रतिनिधियों को एथिकल हैकर के तौर पर पेश किया गया था.

चार घंटे में उन्हें साबित करना था कि ईवीएम से कैसे छेड़छाड़ की जा सकती है. दो घंटे बाद ही उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिये - पूछने पर बताया कि वे तो सिर्फ डेमो देखने आये थे.

वैसे ईवीएम हैक करने को लेकर राजनीतिक दलों की भी कुछ शर्तें थी जिसे आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया. आयोग किसी भी सूरत में मशीन के मदर बोर्ड से छेड़छाड़ के लिए तैयार नहीं हुआ.

आयोग की साख पर सवाल

कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों या फिर रिटायर हो चुके जजों की एक समिति बनाने की सलाह दी है, ताकि निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सके और लोकतंत्र में लोगों का भरोसा कायम रहे. गुजरात चुनाव के लिए आयोग ने VVPAT के इंतजाम किये हैं, लेकिन कांग्रेस इसे अब नाकाफी बताने लगी है.

EVM को लेकर आम आदमी पार्टी ने फिर सवाल उठाया है. साथ ही, EVM में छेड़छाड़ से वोट BJP को जाने वाला वीडियो भी जारी किया है. वैसे आप का सवाल बड़ा दिलचस्प है - 'ऐसा कैसे हो रहा है कि सीधे वोट कमल पर जा रहा है, कभी गलती से भी वोट झाड़ू पर क्यों नहीं जाता है?'

सवाल तो बड़ा ही वाजिब है आम आदमी पार्टी का. चुनाव आयोग को इन बातों पर गौर करना ही होगा, वरना उसकी साख पर भी तो सवाल खड़े ही होंगे. वैसे भी हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखें अलग अलग घोषित करने पर भी सवाल उठे थे. कांग्रेस ने इसमें आयोग पर बीजेपी की परोक्ष मदद करने के भी आरोप लगाये. आयोग को सफाई भी देनी पड़ी लेकिन वो भी रस्मअदायगी जैसी ही लगी.

साख का भी सवाल...

इस मुद्दे पर राजनीतिक दल इसलिए भी कठघरे में खड़े नजर आते हैं क्योंकि चुनाव के वक्त तो वे खूब शोर मचाते हैं, लेकिन बाद में खामोशी छा जाती है. शोर भी तभी जब चुनाव में हार मिली हो, जीतने वाले के लिए वैसे भी कभी कुछ गड़बड़ तो होता नहीं. EVM पर सबसे पहले सवाल खड़े करने वाली मायावती की पार्टी बीएसपी ने तो अदालत का भी दरवाजा खटखटाने की बात कही थी, लेकिन सिर्फ तैयारियां ही चलती रहीं.

फिर भी अपनी साख कायम रखने के लिए चुनाव आयोग को भी सवाल का जवाब ढूंढना ही होगा. मान लेते हैं कि गड़बड़ी की स्थिति में कोई और बटन दबाने पर किसी दूसरे बटन की बत्ती जल सकती है, लेकिन हर बार एक ही क्यों - बाकी बटन क्यों नहीं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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