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आखिर मध्यप्रदेश में कांग्रेस 'सॉफ्ट हिंदुत्व' अपनाने को क्यों मजबूर हो रही है

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 18 सितम्बर, 2018 04:42 PM
  • 18 सितम्बर, 2018 04:42 PM
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मध्यप्रदेश में लगातार तीन विधानसभा का चुनाव भाजपा जीतती आ रही है, ऐसे में कांग्रेस को अब महसूस होने लगा है कि भाजपा के हिंदुत्व की काट कांग्रेस के हिदुत्व से ही हो सकती है. और यही कारण है कि कांग्रेस राहुल गांधी को शिव-भक्त तो कभी जनेऊधारी हिन्दू का तमगा देने में लगी है.

धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरने वाली कांग्रेस ने आजकल चुनावों में भाजपा के 'हिंदुत्व' पिच पर ही बल्लेबाजी करना शुरू कर दिया है. पिछले साल गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने जमकर मंदिरों के दर्शन किए थे, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने कांग्रेस के 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की संज्ञा दी थी. इस चुनाव में कांग्रेस को पिछले चुनाव की तुलना में 16 सीटों का फायदा भी हुआ था.

और अब मध्यप्रदेश चुनाव में भी कांग्रेस 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का सहारा ले रही है जहां कांग्रेस 14 वर्षों से वनवास झेल रही है. पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ की घोषणा, कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो लगभग 23,000 ग्राम पंचायतों में गोशालाओं का निर्माण कराया जाएगा. फिर ‘राम वन गमन पथ यात्रा’ निकालने की घोषणा जो 21 सितंबर को चित्रकूट से शुरू होकर उन रास्तों से होकर गुजरेगी जहां से अपने वनवास के दौरान भगवान राम गुजरे थे. और अब कांग्रेस अध्यक्ष शिवभक्त राहुल गांधी द्वारा रोड शो की शुरुआत पहले पूजा अर्चना और शंखनाद से की गई. रोड शो से पहले कांग्रेस ने भोपाल को राहुल गांधी और अन्य नेताओं के पोस्टरों से पाट दिया था जिसमें राहुल गांधी की टीका और अक्षत वाली तस्वीरें दिख रही थीं. मकसद साफ है कि गुजरात के बाद कांग्रेस मध्यप्रदेश के चुनावी रण में भी सॉफ्ट हिंदुत्व का ही सहारा लेगी.

राहुल गांधी के भक्तिमय पोस्टरों से भोपाल पटा हुआ था

लेकिन सवाल ये है कि आखिर मध्यप्रदेश में कांग्रेस क्यों सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपनाने को मज़बूर है? आखिर वो कौन सी परिस्थितियां हैं जो एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी को सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाने के लिए विवश कर रही हैं? आइये जानते हैं उन कारकों के बारे में जो कांग्रेस को ‘सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाने को विवश कर रही हैं-

भाजपा हिंदुत्व का...

धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरने वाली कांग्रेस ने आजकल चुनावों में भाजपा के 'हिंदुत्व' पिच पर ही बल्लेबाजी करना शुरू कर दिया है. पिछले साल गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने जमकर मंदिरों के दर्शन किए थे, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने कांग्रेस के 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की संज्ञा दी थी. इस चुनाव में कांग्रेस को पिछले चुनाव की तुलना में 16 सीटों का फायदा भी हुआ था.

और अब मध्यप्रदेश चुनाव में भी कांग्रेस 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का सहारा ले रही है जहां कांग्रेस 14 वर्षों से वनवास झेल रही है. पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ की घोषणा, कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो लगभग 23,000 ग्राम पंचायतों में गोशालाओं का निर्माण कराया जाएगा. फिर ‘राम वन गमन पथ यात्रा’ निकालने की घोषणा जो 21 सितंबर को चित्रकूट से शुरू होकर उन रास्तों से होकर गुजरेगी जहां से अपने वनवास के दौरान भगवान राम गुजरे थे. और अब कांग्रेस अध्यक्ष शिवभक्त राहुल गांधी द्वारा रोड शो की शुरुआत पहले पूजा अर्चना और शंखनाद से की गई. रोड शो से पहले कांग्रेस ने भोपाल को राहुल गांधी और अन्य नेताओं के पोस्टरों से पाट दिया था जिसमें राहुल गांधी की टीका और अक्षत वाली तस्वीरें दिख रही थीं. मकसद साफ है कि गुजरात के बाद कांग्रेस मध्यप्रदेश के चुनावी रण में भी सॉफ्ट हिंदुत्व का ही सहारा लेगी.

राहुल गांधी के भक्तिमय पोस्टरों से भोपाल पटा हुआ था

लेकिन सवाल ये है कि आखिर मध्यप्रदेश में कांग्रेस क्यों सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपनाने को मज़बूर है? आखिर वो कौन सी परिस्थितियां हैं जो एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी को सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाने के लिए विवश कर रही हैं? आइये जानते हैं उन कारकों के बारे में जो कांग्रेस को ‘सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाने को विवश कर रही हैं-

भाजपा हिंदुत्व का मुकाबला

अभी तक भाजपा हिंदुत्व के सहारे ही चुनावों में जीत हासिल करती आई है. यहां तक कि भाजपा अपने चुनाव घोषणापत्र में भी इसकी बातें करती आई है. यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी भाजपा ने राम मंदिर का ज़िक्र किया था. भाजपा हिंदुत्व के सहारे ही 1984 के लोकसभा चुनाव में 2 सीटों से 2014 में 282 सीटों तक का सफर तय किया है. और मध्यप्रदेश में लगातार तीन विधानसभा का चुनाव भाजपा जीतती आ रही है, ऐसे में कांग्रेस को अब महसूस होने लगा है कि भाजपा के हिंदुत्व की काट कांग्रेस के हिदुत्व से ही हो सकती है. और यही कारण है कि कांग्रेस राहुल गांधी को शिव-भक्त तो कभी जनेऊधारी हिन्दू का तमगा देने में लगी है. यही नहीं, जब कमलनाथ की प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति हुई थी तब सबसे पहले वे दतिया के पीतांबरा पीठ मंदिर दर्शन करने गए थे. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत महाकालेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना के बाद ही की थी.

राहुल गांधी देखते ही देखते शिव भक्त बन गए

सवर्णों के असंतोष को भुनाने की कोशिश

भाजपा को सवर्णों का हमेशा से ही समर्थन मिलता रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी/एसटी एक्ट में बदलाव किया था उसे मोदी सरकार ने बिल लाकर बेअसर कर दिया था. इसका नतीजा ये हुआ कि सवर्णों में भाजपा के खिलाफ असंतोष उभरा. यह कांग्रेस के लिए एक अच्छा मौका हो सकता है जब वो सवर्णों को अपने पाले में ला सकें. और चूंकि मध्य प्रदेश में मुस्लिमों की बहुत अधिक आबादी नहीं है ऐसे में कांग्रेस खुलकर हिंदुत्व कार्ड का सहारा लेना चाहती है. वैसे भी कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का यह बयान कि कांग्रेस पार्टी का डीएनए ही ब्राह्मणों का है सवर्णों को लुभाने वाला ही था.

मुस्लिम समर्थक पार्टी की छवि को बदलना

कांग्रेस शुरू से ही मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करती आई है. और इस छवि का इसे नुकसान भी उठाना पड़ा है. चूंकि मध्यप्रदेश में मुस्लिमों की आबादी मात्र 6 फीसदी ही है, ऐसे में कांग्रेस को इस छवि को बदलने का अच्छा मौका है. जब 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मात्र 44 सीटें मिली थीं तब पार्टी की हार के कारणों की पड़ताल करने के लिए एंटनी की अध्यक्षता में समिति बनी थी जिसने पार्टी की हार का कारण इसका मुस्लिम समर्थक पार्टी की छवि होना बताया था. इसके अनुसार मुस्लिम तुष्टिकरण की पॉलिसी कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध हुई थी. अब ऐसे में इस प्रदेश में जहां हिन्दुओं की आबादी 91 फीसदी है तो कांग्रेस अपनी इस छवि को बदलने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रही है.

हालांकि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की बात तो करती है लेकिन हाल के दिनों में वह सॉफ्ट हिंदुत्व पर ज़्यादा जोर दे रही है. शायद कांग्रेस को अहसास है कि भाजपा और मोदी को मात देने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व ही उसकी नैया पार लगा सकता है. लेकिन आने वाला समय ही बता पायेगा कि कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व मध्यप्रदेश में सियासी वनवास खत्म करेगा या फिर और 5 सालों के लिए उसे इंतज़ार करना पड़ेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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